तंद्रा में होश बेहोश हुए गुरु गुरुलाल सोच रहे थे कि उन्हें अंत समय पर अब परमेश्वर का दूत लेने पहुंच गया है। अब उन्हें मरना है और संसार छोड़ कर जाना है – खाली हाथ! अपने अंत को अपनी आंखों से देखने के लिए उन्होंने हिम्मत जुटा कर एक बार फिर आंखें खोली थीं! जो दूत सामने खड़ा था वह उसे अचानक देखते रहे थे – अपांग! उसके दर्शन करते करते वो सोच रहे हो कि ये तो बिलकुल हेमू जैसा ही था! हॉं हॉं हूबहू हेमू जैसा!
“प्रणाम गुरु जी!” उसी हेमू ने उनके चरण स्पर्श किये थे और प्रणाम भी किया था!
ये कैसा विभ्रम है – गुरु जी सोच नहीं पा रहे थे। उनकी अंतिम इच्छा तो थी कि किसी तरह हेमू मिले लेकिन वह तो ..
“बड़ी मजबूरी रही गुरु जी!” हेमू के स्वर विनम्र थे। “आ न सका!” वह बता रहा था। “खबर भी न दी!” उसने स्वीकार किया था।
“पर क्यों?” एकाएक क्रोध से भभक आये थे गुरु जी। “ये जानते हुए भी कि मैं ..”
“गुरु लाल गढ़ी जासूसों से भरी पड़ी थी।” हेमू आहिस्ता से बोल रहा था। “पानीपत की जंग के बाद हर आंख मुझे ही तलाश रही थी।”
“तो क्या गुप्तवास में थे?” गुरु जी का प्रश्न था। वह अब तनिक हिले थे। उन्होंने उठने का प्रयत्न भी किया था। लेकिन फिर लेट गये थे। “स..म्रा..ट हो ..!” विहंसे थे गुरु जी। “आयुष्मान भव!” अब आ कर उन्होंने आशीर्वाद दिया था। “लेकिन .. लेकिन ..?” वह तड़प उठे थे – अचानक!
“बाबर मर गया!” हेमू ने उन्हें बताया था। “गुरु लाल गढ़ी खाली है, खंडहर बनी खड़ी है और अब यहां कोई कुत्ता तक नहीं भौंकता!” हेमू ने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया था।
“अब नहीं मरूंगा मैं ..!” गुरु जी हंसे थे। “न न हेमू! अब मैं नहीं मरूंगा! मैं तो इसलिए मर रहा था कि तुम ..?”
“आप के आशीर्वाद ने मरने नहीं दिया!” हंस कर कहा था हेमू ने।
“और अगर मैं मर जाता तो?” उलाहना था गुरु जी का।
अब दोनों एक साथ हंसे थे। दोनों ही प्रसन्न थे। दोनों का मिलन चांद चकोरी जैसा था। दोनों के ध्वस्त हुए स्वप्न एकाएक साकार हो गये थे। सब कुछ प्रवहमान हुआ उन दोनों के आस पास तैर आया था।
“तैयारियां ..?” गुरु जी का पहला प्रश्न था। उनकी आवाज भी ऊंची थी। उनके प्राण भी लौट आये थे।
“पूरी है!” हेमू ने कहा था तो गुरु जी का चेहरा उद्भासित हो उठा था।
“केसर कहां है?” अचानक उन्होंने पूछा था।
“गुरु माता के घर में है!” हंस कर कहा था हेमू ने।
गुलाल से खिल गये थे गुरु – गुरु लाल! आंखें भर भर कर हेमू को देखा था, सहेजा था और सराहा था! कैसी प्रियदर्शन पिंडी थी हेमू की! जरूर .. जरूर बनेगा ये विश्व विजेता – वो मन ही मन आशीर्वाद दे रहे थे।
“कब तक हो ..?” गुरु जी अचानक जग से गये थे।
“चित्तौड़ गढ़ हो कर लौटता हूँ!” हेमू ने सूचना दी थी। “तब तक आप स्वस्थ हो जाएं! मैं जा रहा हूँ!”
“हॉं हॉं मैं ठीक हूँ। रोग तो कट गया मेरा! तू लौट कर आ। तभी फुरसत में बातें होंगी!” गुरु जी ने सहर्ष आज्ञा प्रदान की थी।
उन पलों में उन दोनों ने महसूसा था कि उन दोनों को ईश्वर ने फिर से जिंदगी सौंपी है और दायित्व भी बांटे हैं! एक नई तैयारी का आरम्भ कहीं हो चुका था!
जाने से पहले केसर ने भी गुरु जी से आशीर्वाद ग्रहण किया था!
राणा सांगा की मृत्यु से शोक संतप्त हुआ चित्तौड़ आज हेमू के आगमन की खबर पाकर जीवंत हो उठा था। लगा था कि उनका चहेता राणा सांगा मरा नहीं था और नया जीवन लेकर अब उनके पास लौट रहा था! हेमू भी अब चित्तौड़ के लिए नया नहीं था और न ही चित्तौड़ के लोग अपनी बेटी केसर को भूले थे!
“मैं जानता था आप सा लौटेंगे!” अमला ने हेमू को बांहों में भर कर कहा था। “हमें तो उम्मीद थी कि आप सा हमारे साथ मिल कर ..?” उलाहना था अमला का।
“बुलाया कब था मुझे?” हेमू ने भी तुनक कर कहा था।
“ये गलती तो हो गई राणा से।” टीस आया था अमला। “कुंवर सा! मन की बात मन में ही रह गई!”
“अब सारे ख्वाब पूरे होंगे!” हेमू हंसा था। “इस बार गलती नहीं करेंगे!” हेमू ने वायदा किया था। “तैयारियां पूरी कर के चलेंगे! तोपों का सौदा तय है केवल धन ..?”
“धन लो .. जन लो .. जान लो!” झाला चहका था। “आप का हुक्म होना चाहिये ..!”
राणा की मौत पर विलाप किया था केसर ने! उसे लगा था जैसे उसका कोई सगा ही स्वर्ग सिधार गया था। पहली बार जब राणा मिले थे तो कितना दुलार दिया था उन्होंने। लेकिन आज ..
“बेटी के लिए बाप से बड़ा कुछ नहीं होता – हम मानते हैं केसर!” महारानी कह रही थीं। “लेकिन देख! तू तो हमारी जान है, प्राण है! हमें भूलना मत!” उनका आग्रह था।
हेमू प्रसन्न था। उसकी मांगी मुराद मिल गई थी। वह जानता था कि राजपूतों के पास धन के ढेर लगे थे और एक से बढ़ कर एक वीर और बहादुर सैनिक राजपूताने में भरे पड़े थे! ईश्वर ने चाहा तो ..
अंगद आ गया था।
हेमू प्रफुल्लित हो उठा था। उसे लगा था जैसे उसका सौभाग्य लौट आया हो। लगा था – सफलता स्वयं चल कर उसके पास पहुँची हो और अब उजाला होने वाला हो! अंगद स्वस्थ लग रहा था। अंगद का चेहरा खुशी से खिला हुआ था। एक लंबे अंतराल के बाद वो दोनों मिल रहे थे। माहिल के माध्यम से हेमू ने अंगद को सूचना भेज कर बुलाया था।
“प्रणाम सुलतान!” अंगद ने अभिवादन किया था। फिर उसने हेमू के सजीले स्वरूप को आंखों में भर कर सराहा था। “मैं तो मरने मरने को था सुलतान! अगर माहिल न बताता तो शायद ..” अंगद किसी अनहोनी की ओर इशारा कर रहा था। “लेकिन कमाल तो ये कि मैं एक जहीन जासूस, खबरों का पिटारा और पूरे जहान का जादूगर सर मार कर भी पता न लगा पाया कि आप ..?”
“गुप्तवास का और अर्थ ही क्या होता है अंगद?” हेमू ने प्रसन्न होकर कहा था।
“मान गये सुलतान!” प्रसन्न होकर अंगद ने कहा था। “चिड़ियों को चहकते हुए देख लेता हूँ लेकिन आप पूरे चराचर में मुझे कहीं दिखाई न दिये तो मैं ..”
उन दोनों ने एक दूसरे को एक बार फिर से देखा था। पुराने विश्वास को दोहराया था और नई राहें खोजने का निर्णय लिया था।
“गुजरात के बारे बड़ा भ्रम है!” हेमू ने सीधी समस्या बताई थी। “पुर्तगालियों को हम नहीं जानते! लेकिन हम चाहते हैं कि उनके साथ संबंध बना लें! हमें तोपें चाहिये! और ये हमें उन्हीं से उपलब्ध हो सकती हैं क्योंकि उस्मानिया से हम उम्मीद नहीं रख सकते और ..”
“ये पुर्तगाली भी कम चालाक व्यापारी नहीं हैं, सुलतान!” अंगद बताने लगा था। “जो माल यहां से ले जाते हैं उसे साठ गुनी कीमत पर वहां बेचते हैं और वहां का माल यहां लाकर उसे भी साठ गुनी कीमत पर बेचते हैं!” अंगद ने अब हेमू को देखा था। “है कोई ठिकाना इनकी कमाई का?”
“मतलब ..?”
“होशियारी से हाथ रक्खें इन पर!” अंगद ने स्पष्ट कहा था। “लालची हैं। धन के भूखे हैं और बेहद लड़ाके हैं! अभी 1509 में इन्होंने द्वीव को बहादुर शाह से झपट लिया ओर अब पूरे मालाबार तट के मालिक हैं। कारखाने लगा रक्खे हैं और ..”
“लेकिन हमें ..?”
“व्यापार की बात तो करनी चाहिये लेकिन उससे आगे की बात नहीं!” दो टूक उत्तर था अंगद का। “ये तो मुसलमानों के भी बाप हैं!” हंसा था अंगद। “इन्हें मालाबार और गुजरात के तट से आगे बढ़ने ही न दिया जाये!” सुझाव था अंगद का।
“लेकिन मैं तो सोच रहा था अंगद कि अगर अरब सागर में हम दखल रक्खें और इनके साथ यूरोप तक पहुंचें तो ये उस्मानिया और खुरासान का भय खत्म हो जाएगा!” हेमू ने अपना विचार बताया था।
“उस्मानिया और खुरासान यूरोप का भी तो मित्र नहीं है!” हंसा था अंगद। “आपस में सुलटने दो इन्हें! हम रार में हाथ क्यों डालें?” अंगद ने बात साफ कर दी थी।
“और दिल्ली का और आगरा का क्या रहा?” हेमू मुद्दे पर आ गया था।
“बड़ी तकरार चल रही है। बेचारे कुल 22 साल के हुमायू को मुसीबतों ने चारों ओर से घेर लिया है। उसका सौतेला भाई – कामरान मिर्जा पहले से ही काबुल और कांधार को लिए बैठा है। अब रह गये .. आप?”
“कितने हैं ..?”
“कोई हिसाब नहीं! बाबर की कितनी पत्नियां थीं कोई गिनती नहीं!” हंसा था अंगद। “इनका कोई हिसाब किताब नहीं रहता। हॉं! मरने पहले बाबर ने हुमायू से वचन ले लिया था कि वो अपने भाइयों को हक बांटेगा, उनका कत्ल न कराएगा और ..”
“मेंहदी ख्वाजा – उसका बहनोई पहले से ही सल्तनत हथियाने के सपने देख रहा है!” अंगद ने सूचना दी थी। “भाई खलील मिर्जा – जो हुमायू के साथ था उसका भी कत्ल हो गया।” अंगद ने सूचना दी थी। “सारे अफगान ओर पठान बेकाबू हैं! सब ने अपने अपने होश संभाल लिए हैं ओर हुमायू को अंगूठा दिखा दिया है! कालपी और बिहार गया हाथ से ..”
“अब क्या होगा?”
“लड़ेगा हुमायू!” अंगद का विचार था। “सब से बड़े उसके दो दुश्मन हैं – गुजरात का अहमद शाह ओर बिहार में शेर शाह सूरी!” अंगद बताता रहा था।
“किस से पहले लड़ेगा हुमायू?” हेमू ने पूछ लिया था।
“ये तो आप ही जानें!” अंगद हंस पड़ा था। “मेरे पास तो कोई खबर नहीं है!”
“तो हम क्या करें?” हेमू ने फिर पूछा था।
“ये भी आप ही जानें!” अंगद ने हाथ झाड़ दिये थे। “मेरा काम तो अब आप के बाद आरम्भ होगा!” उसने साफ कह दिया था।
दोनों हंस पड़े थे – जोरों से हंसे थे – जैसे कोई जश्न मना रहे हों!
मेजर कृपाल वर्मा