Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग सतहत्तर

Hemchandra Vikramaditya

शेर शाह सूरी के दिमाग में बहुत गहरे में हेमू जा बैठा था!

इतना आकर्षक, विद्वान, सुलझा हुआ, विनम्र और जहीन युवक उसने पहली बार देखा था। एक दिव्यता जैसा कुछ दैवीय स्वरूप था उसका। शेर शाह सूरी किसी भी तरह उसे अपने साथ ले लेना चाहता था। वह व्यापारी था धनवान था, गुणवान था और था एक विनम्र और भला आदमी!

लेकिन ग्यासुद्दीन – बंगाल के सुलतान को शेर शाह सूरी एक बेईमान और विश्वासघाती शासक लगा था। उसने अल्पायु जलालुद्दीन से बिहार छीन लिया था ओर उसे फटकार कर भगा दिया था। शरण में आये जलालुद्दीन के बहाने अब ग्यासुद्दीन मोहम्मद शेर शाह सूरी से बिहार छीन लेना चाहता था। मौका भी अच्छा था। शेर शाह में ज्यादा दम न था वह जानता था। और वह यह भी जानता था कि उसका सेनापति इब्राहिम उसे बुरी तरह खदेड़ देगा और बिहार से बाहर भगा देगा!

हेमू की समझ में सारा खेल समा गया था!

‘पंडित जी’ का मात्र बोला ‘संवाद शब्द’ हेमू के जहन में जाकर पूरी एक कहानी कह गया था। वह मान गया था कि सासाराम में पैदा हुआ शेर शाह सूरी कहीं हिन्दुओं के प्रति सहृदय था और उन्हें साथ लेने में उसे संकोच न था। अब किसी तरह शेर शाह के साथ गोट बिठाने के प्रयत्न में हेमू कार्यरत था। तोपें पहुंच चुकी थीं। उज्जैनियों ने अपना दायित्व ओट लिया था और ..

“संदेश है! आपको शेर शाह सूरी ने याद किया है!” अंगद हंस कर बता रहा था।

“तुम भी साथ चलोगे!” हेमू ने आदेश दिया था। “और अपने लोगों को भी ..” हेमू ने अंगद को घूरा था। उसका तात्पर्य था कि अब मौका आन पड़ा था और अंगद सक्रिय हो जाये!

“पूरे दल बल के साथ इब्राहिम आ रहा है, पंडित जी!” शेर शाह सूरी ने जैसे शिकायत की हो, उसने कहा था। “और अब हम संधि करे या लड़ें – समझ नहीं आ रहा है। सेनापति इब्राहिम एक सुलझा हुआ खिलाड़ी है ओर बंगाल की फौज भी ..”

“लड़ना तो आपको पड़ेगा!” हेमू ने सीधी बात की थी। “आज नहीं तो कल ग्यासुद्दीन मोहम्मद लालची है! वह आपको ..”

“लेकिन कैसे ..?” शेर शाह सूरी समझ न पा रहा था कि बंगाल की सेना का मुकाबला किस तरह किया जाये! उसने तो अभी तक छोटी मोटी लड़ाइयां लड़ी थीं लेकिन अब तो मुकाबला इब्राहिम से था!

“उठिये और मैदान में आइये! इब्राहिम से पहले चल कर पहल करिये!”

“कैसे ..? कहां ..?”

“सूरजगढ ठीक है मेरे लिहाज से!” हेमू सारे उत्तर दिये जा रहा था। “गंगा है और इलाका भी ठीक है। हम उसके पहुंचने से पहले ही ..” हेमू ने शेर शाह को पूरी रण रचना समझा दी थी।

आश्चर्य चकित शेर शाह सूरी हेमू का मुंह ताकता रह गया था। उसे लगा था कि उसका अनुमान इस आदमी के बारे ठीक था और ये आदमी उसे दूर तक ले जाएगा – वह जान गया था!

सूरज पहुंचने के आदेश जा चुके थे। जैसे एक तूफान उठ कर चल पड़ा था। मात्र हेमू की उपस्थिति से सैनिकों का मनोबल बहुत ऊंचा था।

“तीन हिस्सों में लड़ेंगे!” हेमू ने गंगा तट पर बैठ कर शेर शाह सूरी को योजना समझाई थी। “आप – यहां मुख्य घाट पर बंगाल की सेना को रोकेंगे! आप के साथ तोपखाना होगा। आप बंगाल सेना को गंगा पार करने दें और जब उनकी अगली नौकाएं हमारे किनारे पर पहुंचें, कुछ मझधार में हों और कुछ उस किनारे पर तब आप तोपखाने का वार कीजिए! भागते दुश्मन को आप संभालिये!” रुका था हेमू।

“लेकिन यह तो ..?” शेर शाह सूरी उद्विग्न था और डरा हुआ भी था।

“दाएं से, ऊपर वाले घाट से राजा रायपथ अपने दो हजार राजपूत लेकर गंगा पार करेंगे! ये पहले होगा और जैसे ही तोपें चलती हैं राजा साहब पीछे से बंगाल सेना पर आक्रमण करेंगे ओर इब्राहिम को जिंदा या मुर्दा ..?” हंस गया था हेमू। “और बाएं से बशीर मोहम्मद का हमला होगा – जो रही सही बंगाल सेना की कमर तोड़ देगा! आप सब संभालिये उसके बाद!” हेमू ने हाथ झाड़ दिये थे!

हैरान था शेर शाह सूरी! हेमू ने जिस तरह रण नीति बनाई थी – वह तो कभी उसके जहन में आई ही न थी! वह तो सीधे सीधे टक्कर लेने की सोच रहा था।

और जब घमासान हुआ था, तोपें चली थीं बंगाल सेना की नावें डूबी थीं और इब्राहिम खान को राजा रायपथ ने पीछे से आ कर कत्ल कर दिया था तो बंगाल की सेना भाग उठी थी। लेकिन राजा रायपथ ने भागने कहां दिया था उन्हें?

युद्ध के बाद सैनिक शेर शाह सूरी ने संभाले थे और हाथी, घोड़े और तोप तमंचे राजा रायपथ के हिस्से में आ गये थे। उज्जैनियों को भी शेर शाह सूरी ने खुश करके विदा किया था!

और जब शेर शाह सूरी और हेमू अकेले में मिले थे तो शेर शाह सूरी ने पंडित जी को शुक्रिया अदा किया था। और जब शेर शाह सूरी ने उन्हें पूछा था कि उनकी क्या सेवा की जाये तो हेमू ने विनम्र भाव से हाथ जोड़ दिये थे!

“ये मेरा धर्म था सुलतान!” पंडित हेम चंद्र शोरे वाले के इस कथन ने शेर शाह सूरी को अपना बना लिया था!

निस्वार्थ भाव से सेवा करना शायद विश्व में हिन्दुओं की ही आदत थी! शेर शाह सूरी ने पहली बार एक अनोखी प्रसन्नता को प्राप्त किया था। उसे एक ऐसे पुरुष के दर्शन हुए थे जिसे अभी तक कहीं नहीं देखा गया था!

हुमायू को भी शेर शाह सूरी के किये कारनामों ने अचंभित कर दिया था। उसे तुरंत ज्ञान हुआ था कि शेर शाह ने बिहार को पूरी तरह कब्जा लिया था और सारे अफगान पठान उसके साथ थे। यहां तक कि उज्जैनियों का उसके साथ आना हुमायू को एक अजूबा ही लगा था और लगा था कि जरूर कुछ था – जिसके कारण शेर शाह सूरी सफलता के सोपान चढ़ रहा था!

“बिहार को हमें नहीं भूलना है!” हुमायू ने अचानक हुक्म दागे थे। “शेर शाह सूरी के इस कांटे को निकाल देते हैं!” उसका संकल्प था। गृह कलह से ऊपर उठ कर हुमायू बाबर के स्थापित साम्राज्य की सुरक्षा के बारे सोचने लगा था!

शेर शाह सूरी की तैयारियों और युद्ध कौशल के समाचारों को सुनकर हुमायू परेशान हुआ लगा था। कहीं कुछ था – उसका शक सामने आया था और फिर उसने बिहार की ओर से रुख मोड़ गुजरात की ओर कर लिया था। सुलतान बहादुर के विद्रोह को कुचलना उसे अत्यंत आवश्यक लगा था।

चूंकि हुमायू की सेना बाबर की प्रशिक्षित सेना थी – तोपखाने से लैस और घुड़सवार तीरंदाजों से समर्थ थी अतः गुजरात की सुलतान बहादुर की सेना उनका मुकाबला न कर पाई थी। तोपखाना आने के बाद भी गुजरात की सेना ज्यादा कुछ न कर पाई थी ओर नतीजा सुलतान बहादुर एक के बाद दूसरा मोर्चा हारता चला गया था। और अंतिम मोर्चा भी हार गया था तो सुलतान जान बचाने के लिए भाग उठा था!

वह जहां जाता वहीं हुमायू पहुंच जाता – सुलतान बहादुर जानता था कि उसे भागने पर भी कहीं शरण न मिलेगी तो वह छुप छुपा कर पंडित हेम चंद्र की शरण में जा पहुंचा था!

“पंडित जी से मिलना है!” एक विशिष्ट व्यक्ति केसर से आग्रह कर रहा था। केसर घबरा सी गई थी।

“अरे रे आप ..? सुलतान बहादुर?” हेमू अचानक बाहर निकल आया था। “कैसे ..?”

“कहां जाऊं? कहां जा कर छिपूं?” सीधा प्रश्न था सुलतान बहादुर का। “हुमायू ने ..?”

“है मेरे पास जुगाड़!” हेमू ने सुलतान को अंदर बुलाया था। “पुर्तगालियों तक हुमायू का हाथ नहीं पहुंचेगा!” सुझाव था हेमू का।

“लेकिन पुर्तगाली ..?” शक था सुलतान बहादुर को।

“मेरे कहने पर सब होगा!” हंस गया था हेमू। “वहां आप सुरक्षित रहेंगे!” उसने आश्वासन दिया था।

“गलती हो गई पंडित जी!” टीस कर कहा था सुलतान बहादुर ने। “अगर शेर शाह की तरह मैंने भी आपको बुला लिया होता तो शायद ..” उसने अफसोस जाहिर किया था।

हेमू की ख्याति फिर से लौटने लगी थी!

पुर्तगालियों की मदद और हेमू के परामर्शों से सुलतान बहादुर ने फिर से गुजरात को प्राप्त कर लिया था। अफगानों ने अभी तक मुगलों की हुकूमत स्वीकार नहीं की थी। और हुमायू से किसी को डर भी नहीं था! सुलतान बहादुर ने पुर्तगालियों के वायसराय को अगवा कर उन्हें गुजरात से खदेड़ने की एक गुप्त कोशिश की थी। लेकिन पुर्तगालियों ने सुलतान का कत्ल कर दिया था और उसके प्रयास को विफल कर दिया था। अब कादिर शाह ने गुजरात की सल्तनत को संभाला था!

पुर्तगालियों ने हेमू से सुलतान बहादुर की चली चाल को लेकर शिकायत की थी। हेमू को भी बहुत बुरा लगा था। और यही कारण था कि शेर शाह सूरी ने सन् 1537 में जब गुजरात पर आक्रमण किया था। कादिर शाह ने जान लड़ा कर शेर शाह सूरी का मुकाबला किया था लेकिन हेमू के जताए युद्ध कौशल के मुकाबले उसे हारना ही पड़ा था!

शेर शाह की इस विजय के बाद सबके कान खड़े हो गये थे!

“लोहा गरम है सुलतान!” हेमू ने हंस कर कहा था। “पीट लेते हैं बंगाल को भी!” उसकी राय थी। “मनोबल ऊंचा है सेना का ओर फिर कुछ माल टाल भी खजाने में आयेगा!” हेमू बताने लगा था। “अंततः हुमायू से जंग तो लड़नी ही होगी!”

शेर शाह सूरी लंबे पलों तक इस सुझाव को उलटता पलटता रहा था!

“आप की बात में दम है पंडित जी!” शेर शाह सूरी ने स्वीकार किया था। “ले ही लेते हैं बंगाल को भी – लगे हाथों!” वह हंस रहा था। “ग्यासुद्दीन मोहम्मद भी हमें भूला नहीं होगा?” शेर शाह सूरी ने अपनी शेखी बघारी थी।

सन् 1538 बंगाल को फतह करके लौटे शेर शाह सूरी के बारे मात्र सोच कर ही घबरा गया था हुमायू! जिस बला को वह टालता रहा था अब वही बला उसके आंगन में खड़ी हो उसे आवाजें लगा रही थी – उसे युद्ध के लिए ललकार रही थी!

शेर शाह सूरी अब बिहार, गुजरात और बंगाल का मालिक था!

“क्या है ऐसा जो शेर शाह ..” हुमायू अभी भी शकों के साथ था। “जो भी हो, इस कांटे को तो अब निकालना ही होगा!” उसने निर्णय ले लिया था!

मेजर कृपाल वर्मा

Exit mobile version