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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पच्चीस

Hemchandra Vikramaditya

दिल्ली लौटते हुए हेमू और कादिर घोड़ों पर सवार सरपट दौड़ते हुए दो अलग-अलग विचारधाराओं जैसे लग रहे थे! दोनों दोस्त थे, सहयोगी थे और दोनों बेजोड़ सैनिक भी! लेकिन थे अलग-अलग!

कभी अपने घोड़े को भर फेंक दौड़ाता हेमू कादिर को बहुत पीछे छोड़ जाता तो कभी कादिर कुछ इस तरह घोड़े को दौड़ाता कि हेमू हैरान रह जाता! घोड़ों की तरह ही उनके विचार भी अलग-अलग दिशाओं में दौड़ रहे थे!

कादिर को आज एक नया उत्साह चढ़ा था। उसे लग रहा था जैसे वह आज ही अपने हर अभीष्ट को पा लेगा! वह जैसे लड़ाइयां जीतता-जीतता दिल्ली का बादशाह बन बैठता। और फिर अल्हाद पूर्ण दृष्टि घुमा कर बगल में आ बैठी केसर बेगम को हासिल करने चल देता। लेकिन केसर एक परछाईं की तरह गायब हो जाती तो वह उदास हो जाता! लगता जैसे उसका मात्र एक ही उद्देश्य था – केसर को पा जाना!

फिर वह देखता कि हेमू का घोड़ा हवा में उड़ता हुआ उससे आगे चला गया!

हेमू के विचार दूसरे ही धरातल पर दौड़ रहे थे!

उसे राजा मान सिंह पर रोष आ रहा था। नौ रानियां रखना जैसे हेमू की निगाह में एक गुनाह था। फिर उस गुजरी रानी मृग नयनी का किरदार उसके सामने आता। पर्दा नहीं करती थी मृगनयनी! तो क्या केसर भी पर्दा नहीं करेगी? तो क्या केसर भी उसके साथ लड़ेगी। युद्ध के मैदान में उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर ..

“राम का आदर्श अपनाऊंगा!” हेमू ने जैसे शपथ ली थी अभी-अभी।

और अब कादिर का घोड़ा सरपट दौड़ता उससे आगे निकल गया था।

शेख शामी का लालची चेहरा कादिर के सामने था। वह शायद एक और नई बेगम लाने की सोच रहे थे। कादिर को रोष चढ़ने लगा था। उसे लगा था कि शेख शामी ने जान-मान कर उसे बिहार ले जा कर नीलोफर के साथ ब्याह दिया है। उनकी ऑंख अब बिहार की जागीर पर है। उनका मनसूबा है – शायद कि हेमू को और उसे सिकंदर लोधी को भेंट चढ़ा कर वो अब दिल्ली में ..

“अब कोई चाल नहीं चलेगी!” कादिर ने एक कसम उठाई थी। “निकल गया – आगे!” उसने लम्बी उच्छवास छोड़कर सरपट दौड़ते हेमू के घोड़े को देखा था।

“क्यों लड़ूं मैं राजपूतों के खिलाफ?” हेमू का मन प्राण विद्रोह पर उतर आया था। “आज नहीं तो कल हिन्दुस्तान तो फिर मुसलमानों का हो ही जाएगा!” उसका दिमाग बता रहा था। “राजपूतों के हारने के बाद तो ..” हेमू की दृष्टि ने सिकंदर लोधी के घोड़ों को आगरा के उस पार जाते देखा था। “अपराध हो जाएगा!” वह टीस आया था। “जघन्य अपराध!” उसने एक घोषणा की थी।

“रास्ता तो यहीं से जाता है हेमू!” आवाजें गुरु जी की थीं। “अभी नहीं, बेटे! वक्त को आने दो। अभी तो युद्ध कौशल को आत्मसात करो! अपनी बहादुरी के झंडे गाढ़ दो बेटे और ..”

“मान सिंह का बेटा विक्रम जीत क्यों नहीं लड़ेगा गुरु जी?” हेमू ने क्रोध में आ कर पूछा था।

“इसलिए हेमू कि मान सिंह के पुत्र मोह ने उसे नपुंसक बना दिया है!” दो टूक उत्तर था उनका।

“हर हिन्दू के लिए लड़ना अनिवार्य होगा!” हेमू ने ठान ली थी। “आने दो वक्त को .. जब ..!” उसने गुरु जी की राय ग्रहण कर ली थी।

और उसने देखा था कि कादिर तो सरपट दौड़ा चला जा रहा था!

कादिर मुड़कर सोच रहा था कि हेमू हर मायने में उससे ज्यादा प्रतिभा शाली था। लेकिन था सीधा, चरित्रवान, ईमानदार और बात का धनी! वह तो तीरंदाजी में ही श्रेष्ठ था। ऑंख बन्द कर निशाने पर तीर मार देना उसका अनूठा कमाल था!

“जीतूंगा तो मैं ही!” कादिर ने दूसरी कसम उठाई थी। “चाहे जो हो .. चाहे जो करना पड़े – फतह तो मेरी ही होगा!” कादिर उत्साहित हो आया था। “काम लूंगा हेमू से!” वह हँसने लगा था। “और .. और केसर ..?” कादिर अभी-अभी केसर को पकड़ने के लिए तैयार हुआ था। “अरे वो गया हेमू तो ..!” उसने स्वयं से कहा था!

और हेमू अब किसी तरह भी कादिर के काबू न आना चाहता था!

“चक्रवर्ती सम्राट – हेम चंद्र विक्रमादित्य ..!” अचानक हेमू केसर की आवाजें सुनने लगा था। “और उनकी महारानी .. केसर विक्रमादित्य!” हेमू ने हवा को सुना कर जोरों से कहा था। “राम राज्य – आदर्श राज्य – स्थापित!” हेमू ने अचानक उभर आये गुरु जी के चेहरे को निहार कर प्रणाम किया था। “साकार करने के लिए है यह स्वप्न!” शपथ ली थी हेमू ने।

“घोड़ी सराय में रुकेंगे!” साथ घोड़े को रोक कर कादिर हेमू को बता रहा था। “अब्बा का जानकार है ये समद!” कादिर ने सूचना दी थी। “यह भी शोरे का व्यापारी है!” वह हँस रहा था।

हेमू को अचानक ही याद हो आया था कि वह भी तो शोरे का व्यापारी ही था! सैनिक तो उसे भाग्य ने बना दिया था! और अब किस्मत कौन से पत्ते चलेगी – वह जानने के लिए उत्सुक था!

जैसे हवा पर सब कुछ लिखा होता है .. वक्त के कान होते हैं और वह सब कुछ सुन रहा होता है और एक क्रम होता है जो लगातार चलता ही चला जाता है!

घोड़ी सराय आगंतुकों से नाक तक भरी थी।

शेख शामी का रसूख ही था जो काम आया था और उन दोनों को ठहरने के लिए जगह मिल गई थी। शोरे के व्यापारी अब्दुल के साथ कह सुन कर उन्हें ठहराया था समद ने। हेमू घोड़ी सराय में लगी भीड़-भाड़ का मतलब नहीं लगा पा रहा था। वह देख रहा था कि किस्म-किस्म के लोग चारों ओर घूम रहे थे, मिल-जुल रहे थे और कोई सौदेबाजी थी जो चल रही थी। अलग ही एक उल्लास था जो जमा भीड़ को भरे था!

“यह मेला किस लिए लगा है भाई?” हेमू ने बगल में ठहरे अबुल से पूछ ही लिया था।

“क्यों ..?” चौंका था अबुल प्रश्न सुनकर। “तुम्हें पता नहीं – लड़ाई लगेगी?” उसने उलटा हेमू से पूछा था। “ससुराल से आ रहे हो ..?” अबुल ने व्यंग किया था।

हंस पड़ा था हेमू। ससुराल की बात जो छेड़ दी थी अबुल ने। वह अबुल के तमतमा आए चेहरे को देख रहा था। कुछ था .. हॉं-हॉं कुछ था तो जरूर जो वहॉं सराय में घट रहा था।

“भर्ती होने जा रहे हो दिल्ली?” एक युवक ने आकर हेमू से पूछा था। “भाई! अगर मुझे भी ..”

“आ जाना!” कादिर बीच में बोल पड़ा था। “अब्बा को कह दूंगा! भर्ती तो खुली है।”

“अब्बा ..?” अब्दुल ने प्रश्न पूछा था। “अरे कहीं तुम शेख शामी के चिराग तो नहीं हो?” उसने प्रसन्न होकर कादिर से पूछा था।

“क्यों? तुम जानते नहीं! घर पर पड़े रहते थे तुम ..” कादिर ने अब्दुल को घूरा था। “लेकिन मैं तो तुम्हें जानता हूँ अब्दुल भाई!” कादिर ने उसके कंधे पर हाथ मारा था। “और यह है हेमू।” उसने हेमू का भी परिचय कराया था।

“तुम तो शोरे का व्यापार करते थे, याद आया!” अब्दुल ने पूछा थी।

“अब नहीं करता!” उत्तर कादिर ने दिया था। “सुबेदार है फौज में!” उसने अब्दुल को बताया था। “और ..”

अचानक ही एक हलचल का सूत्र पात हो गया था!

“साहब! मैं घोड़ों का व्यापारी हूँ। अरबी घोड़े बेचता हूँ। आप मदद कर दें .. आप को ..” हेमू के पास अर्जियां आने लगी थीं। “तलवारों का कारोबार है सिरोही में, श्रीमान!” एक और व्यक्ति कह रहा था। “सिरोही की शमशीर का नाम तो सुना होगा। ये देखिये नमूना!” अब वह नंगी तलवार लिए हेमू के सामने खड़ा था। “आप अगर चाहें तो .. हमें याद करें ..”

और वहॉं घोड़ी सराय में हर वो आदमी मौजूद था – जो लड़ाई में काम आने वाले हर माल का सौदा करने को तैयार था।

“ये सब क्या है भाई?” हेमू ने समद से पूछा था।

“क्यों ..? लड़ाई का मतलब उठ कर चल दिए लड़ने से तो नहीं होता बरखुदार लड़ाई का मतलब है – पूरा लाव-लश्कर, हथियार, हाथी-घोड़े, रसद-राशन और इस सब को जुटाने के लिए मोटा धन-माल!” वह मुस्करा रहा था। “सिकंदर लोधी सोता कहॉं है आजकल?” अब वह हँस रहा था।

“अबकी बार तो ले ही लेगा ग्वालियर!” पास खड़े एक व्यक्ति ने कहा था। “मान सिंह तो मर गया!” उसने सूचना दी थी। “अब वहॉं है कौन .. जो ..?”

“मृग नयनी है रे!” कादिर ने मजाक किया था। “मेरा तो मुकाबला होगा ही उसके साथ!” कादिर एक उछल-कूद कर रहा था। “कहते हैं .. बहुत-बहुत खूबसूरत है वो!” उसने हेमू की ऑंखों में घूर कर कहा था।

हेमू को लगा था कि कादिर का कहा सुना सब केसर को लक्ष्य करके था!

“हिन्दुओं की तो औरतें लड़ती हैं!” जमा लोगों में से एक कह उठा था। “मर्द तो साले नपुंसक हैं!” उसने थूक दिया था।

हेमू का कलेजा जल गया था। उसने पलट कर उस आदमी को देखा था और गिरेबान से पकड़ लिया था।

“तू अपना जोर तो दिखा वीर बहादुर!” हेमू ने उसे अधर उठा लिया था।

एक हो हल्ला सराय में भर गया था। हेमू को लोग लौट-लौट कर देख रहे थे और समद के आदेश पर अपने-अपने डेरों पर लौट गए थे।

लेकिन कादिर लम्बे पलों तक हेमू को देखता ही रहा था – अपलक!

मेजर कृपाल वर्मा

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