Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पचास

Hemchandra Vikramaditya

केसर की ढाणी में दंगल जुड़ा था!

अषाड़ के पहले सप्ताह में हर वर्ष केसर की ढाणी में दंगल लगता था और ये एक संयोग ही था कि हेमू का गौना इसी सप्ताह में आ पड़ा था। सारे आगंतुकों को दंगल देखने का निमंत्रण था। हेमू को भी आग्रह पूर्वक बुलाया गया था!

बहुत रौनक थी। दूर दूर से लोग दंगल देखने आये थे। बड़े बड़े नामी-गिरामी पहलवान पधारे थे। सब को अपना अपना जोर तलाशना था और दंगल मारना था। उल्लास था .. उमंग थी .. हंसी ठहाके थे और सब की जबान पर दंगल देखने आये हेमू के किस्से भी थे! हेमू बादल गढ़ की विजय का सेहरा पहन चुका था।

दंगल में कुश्तियां छूट गई थीं। पहले छोटी छोटी कुश्तियां हुई थीं फिर ऊपर के जोड़ आये थे और अंत में गोकुला पहलवान ने लंगोट फिरा दिया था। इसका अर्थ था कि कोई भी पहलवान आये और गोकुला पहलवान से कुश्ती लड़े। अगर कोई आगे नहीं आता तो गोकुला को सर्व श्रेष्ठ पहलवान घोषित कर दिया जाता।

गोकुला के मुकाबले कोई नहीं आया था।

“कुंवर सा! हो जाये गोकुला से मुकाबला ..?” दंगल के संचालक एक प्रस्ताव लेकर हेमू के पास पधारे थे। “सुन तो रक्खा है कि आप सा ..?” उसके चेहरे पर मुस्कान धरी थी।

हेमू तनिक संकोच वश सिकुड़ गया था। कोई औचित्य नहीं था उसके लिए अखाड़े में आने का। और फिर ..

“राजा सा! लोग क्या कहेंगे ..?” महान सिंह ने एक उलाहना जैसा उछाला था।

तब हेमू ने भी मन बना लिया था कि वह गोकुला के मुकाबले में उतर आये – अखाड़े में! हेमू की स्वीकृति के साथ साथ ही भीड़ में उल्लास उमड़ आया था। उनका वह बादल गढ़ का वीर अब दंगल में अपना करतब दिखाएगा – एक खबर थी। इस खबर ने हर किसी के मन को गुदगुदा दिया था।

हेमू दंगल में उतरा था तो लोग उसकी कंचन जैसी काया देख कर दंग रह गये थे। गोकुला पहलवान के तो चेहरे पर लिखा था कि वो हारेगा। लेकिन अब कुश्ती तो होनी ही थी। और हेमू ने गोकुला पहलवान को गेंद की तरह आसमान में उठा कर जमीन पर रख दिया था। जय जयकार से आसमान गूंज उठा था। आज एक अजूबा देखने को मिला था लोगों को।

“आयें – चार छह पहलवान!” हेमू ने निमंत्रण दिया था। “एक साथ आ जायें!” उसने कहा था। और फिर उन चार छह पहलवानों को भी एक साथ पछाड़ते हेमू ने अविश्वसनीय करतब कर दिखाया था।

लोग दांतों तले उंगली दबा कर रह गये थे!

रात को ढोला का कार्यक्रम था। झील के आस पास अपार भीड़ जुड़ आई थी। दंगल में गोकुला की हार और हेमू की जीत ने नगाड़े बजा बजा कर हेमू का यशोगान किया था। अब भीड़ को हेमू के दर्शन करने की उमंग चढ़ी थी और जब ढोला आरम्भ हुआ था तो उन्हें लगा था जैसे राजा नल उनके बीच आ बैठा था आज!

राजा नल और दमयंती का प्रेम प्रसंग चल रहा था।

दमयंती से प्रेम होने के बाद अब नल अपनी प्रेमिका को लेने जा रहा था। लेकिन उसकी पूर्व पत्नी मोतिनी ने उसे समझाया था, सीख दी थी और कहा था – मेरे बिना पति नरवर वाले तेरी डोलेगी नाव बही? माने कि तू बरबाद हो जायेगा – मेरे भरतार! मत जा तू उस दमयंती के पास! मैंने भी तो तुम्हें प्यार और संरक्षण दोनों दिये हैं?

लेकिन मोतिने के आंसुओं को बिना पोंछे ही नल अपनी नई प्रेमिका दमयंती को लेने चला गया था!

दया, करुणा, क्रोध और आत्मीयता का एक महासागर ऊफन आया था!

पतिव्रता स्त्रियों की कथाएं जनमानस के लिए एक सीख थीं, शिक्षा थीं और अनुकरणीय थीं। स्त्री पुरुष के बीच अमर प्रेम आदि काल से ही वांछित रहा था। और यह भी प्रमाण थे कि जिसने भी सती नारियों का अपमान किया था – वह कभी सुखी नहीं रहा था। नल का क्या होने वाला था – ये श्रोता भी जानते थे! लेकिन राजा नल ही था जो यह नहीं जानता था और अब जिद करके दमयंती को लेने जा रहा था!

“मैं .. मैं .. हमेशा हमेशा केसर का ही रहूंगा!” उस धुंधले उजास में हेमू ने केसर को देख लिया था और मन प्राण से उसने केसर के सामने एक शपथ उठाई थी।

आज केसर की विदाई की बेला थी!

बड़ा ही शुभ मुहूर्त था जिसमें केसर विदा हो रही थी। हंसी खुशी का वक्त था। लेकिन न जाने क्यों कोई भी खुश नहीं था। केसर की ढाणी छोड़कर जैसे केसर का जाना किसी को भी रुचिकर न लग रहा था। अजीब से एक सन्नाटा वहां डोलता नजर आया था।

“कलेजा काट कर दे दिया है आपको कुंवर सा!” हेमू की सास मॉं आशीर्वाद देने के बाद बोली थीं। उनकी ऑंखें आंसुओं से लबालब भरी थीं। गला रुंध गया था। होंठ थर थर कांप रहे थे। “लाज राखियों म्हारी!” उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर अपने जमाई राजा से प्रार्थना की थी।

हेमू द्रवित हो आया था। उसकी समझ में ही न आया था कि वो उन्हें क्या वचन दे। भावाकुल हुआ वह भी उनके चरण स्पर्श के लिए झुका था और आशीर्वाद लिया था।

न जाने कैसे हेमू को लगा था कि पूरी केसर की ढाणी ही आंसू बहा रही थी!

और रथ में बैठने के पूर्व केसर भी बिफर बिफर कर रोई थी। बांहें पसार पसार कर मिलती सखी सहेलियां रो रो कर अपनी सहेली के विछोह का बखान कर रही थीं और अंत में मॉं पिता जी से भेंट कर केसर रथ पर जा चढ़ी थी। चुपचाप खड़े हेमू को इशारे से रथ में बैठने को कहा गया था और उसके बैठते ही रथ गतिमान हो गया था!

हेमू की विदाई का काफिला केसर के चचेरे भाई महान सिंह की सुरक्षा में था। महान सिंह को केसर की सुरक्षा के लिए अब हमेशा उसके साथ ही रहना था। घुड़ सवारों का दस्ता महान सिंह की निगरानी में हेमू के काफिले के साथ साथ चल रहा था। रथ, हाथी, ऊंट और घोड़ों को मिला कर एक अच्छी खासी भीड़ जमा हो गई थी और अब आगे बढ़ती जा रही थी।

अचानक ही हेमू ने महसूसा था कि वो बड़ा हो गया था – बहुत बड़ा हो गया था और अब न जाने और क्या क्या होने वाला था?

रथ के भीतर एक मोहक एकांत ठहरा था। रथ के परदे गिरे थे। बाहर का कुछ भी दिखाई न दे रहा था। भीतर एक नीम अंधेरा भरा था – और ये मायावी अंधेरा हेमू के साथ मिलकर केसर के साथ छल खेलने को कह रहा था। लेकिन हेमू धीरज न खोना चाहता था!

गतिमान हुए रथ की हल्की हल्की हाल के साथ सुखद संगीत भी चला आ रहा था। एक अपार वैभव जैसा रथ में भरा लगा था। अब हेमू ने बारीक निगाहों से शांत बैठी केसर को देखा था। उसके चेहरे पर चांदनी जैसी मुस्कान दौड़ गई थी। केसर अब उसकी थी .. लेकिन केसर ने अभी तक घूंघट न खोला था! क्यों खोलती ..?

ये तो अब हेमू का काम था .. उसे ही अब घूंघट के पार आकर केसर को पा लेना था।

हेमू प्रसन्न था। वह अब भी किसी जल्दी में न था। बैठी केसर को उसने फिर एक बार विमुग्ध निगाहों से देखा था। मुस्करा कर उसने अपने लम्बे चौड़े बदन को रथ में सीधा खोल दिया था। केसर और भी सिमट गई थी। फिर हेमू ने अपने सर को केसर की गोद में रख दिया था। केसर ने भी एक मूक स्वीकृति दी थी और हेमू के सर को अपनी गोद में संभाल लिया था!

भावातिरेक में नाक तक डूबे हेमू ने एक छोटी गुपचुप खोज टटोल के बाद केसर के हाथ को खोज लिया था। लम्बी, और गोरी केसर की उंगलियों से वह कई पलों तक खेलता रहा था। केसर मौन थी लेकिन उसका दिल धड़कने लगा था। और फिर पति हेमू ने आहिस्ता से उसकी हथेली पर जब गरम गरम चुंबन रख दिया था तो वह ज्वालामुखी बनी धधकती रही थी चुपचाप! कैसा जादू था – इन स्पर्शों में – केसर स्वयं भी हैरान थी!

ओर ये क्या? केसर को सुलगा कर हेमू गहरी नींद में जा सोया था!

शायद इस सामीप्य सुख का संवरण हेमू न कर पाया था और उसको इस आनंदानुभूति को पूर्णतह पा लेने के लिए निद्रा का सहारा लेना ही सुगम लगा था!

और सजग हुई केसर अब उस एकांत में अकेले ही खुली ऑंखों से कुछ जायजा लेने लगी थी। उसने हेमू के चौड़े ललाट को मोहक निगाहों से निहारा था। फिर उसने उसे उन झुक आये पलों में हेमू के घुंघराले बालों में उंगलियां डाल सहलाना आरम्भ किया था। हेमू की शानदार मूछों को केसर देखती ही रही थी। फिर उसने छूकर हेमू के कंधों को देखा था। उसका प्रकारांतर बोल उठा था – कितना छबीला – सजीला शरीर? और फिर सुनने में आईं हेमू की वीर गाथाएं? और फिर हेमू का अजस्र प्रेम? उन्मादित हो उठी थी केसर!

“मैं .. मैं तो भेड़ चराती थी – सा-ज-न!” केसर के होंठों से अस्फुट शब्द गूंजे थे। “तुमने न जाने कहां से आकर मुझे महारानी बना दिया! तुम .. तुम .. साजन?” केसर की आंखों से आभार के आंसू टपक रहे थे। “देवता हो मेरे .. आप सा!” केसर ने प्रणाम किया था – अपने पति पुरुष को!

रथ गतिमान था और उन दोनों का जीवन भी अपनी यात्रा पर चल पड़ा था!

Exit mobile version