“हुमायू कहां है?” हेमू राजा गजपथ से प्रश्न कर रहा था। राजा गजपथ को हेमू ने हुमायू को जिंदा या मुर्दा पकड़ने की खास हिदायत दी थी। लेकिन राजा गजपथ शर्मिंदा हुए हेमू के सामने आँखें नीची किये खड़े थे।
“क्या बताऊं सुलतान सांप न जाने कब अंधेरे में सरक गया!” हैरान थे राजा गजपथ। “मुझे भी बाद में पता लगा कि वो बदमाश भिश्ती उसे मुश्क पर लाद कर ले उड़ा था।” राजा गजपथ तनिक झेंप गये थे। “तनिक सी भी भनक लग जाती तो .. सुलतान ..”
“अंधेरों में देखना सीखो महाराजा!” हेमू सलाह दे रहा था। “सैनिक चार ऑंखों से अंधेरे में चार लाख चिराग जलाता है!” वह मुसकुराया था। “सीखें आप इस कला को!”
“अब आपके साथ रहूंगा तो ..” गलती को स्वीकार लिया था राजा गजपथ ने।
चौसा के मैदान में पड़ी लाशें और हुआ नरसंहार बता रहा था कि इस युद्ध में हुमायू की पूरी सेना खप गई थी। आठ हजार सैनिक मारे गये थे, हाथी घोड़े भी सब मारे गये थे या लूट लिए गये थे। महाराजा गजपथ को मोटा हाथ लगा था। जो बचे थे वो या तो भाग गये थे या फिर गंगा में डूब गये थे। हुमायू की तोपें भी राजा गजपथ खींच ले गये थे।
खाली हाथ आगरा लौटा हुमायू हुई पराजय से परेशान था।
“उस तिलक धारी पंडित का काम है!” हुमायू शमशुद्दीन भिश्ती की आवाजें सुन रहा था। “ठीक ही कहा था शमशुद्दीन ने!” हुमायू ने स्वीकार में सर हिलाया था। “इस शेर खान में कहां अक्ल है जो अजीम खान को नाप लेता? इस पंडित को भनक लग गई थी और बात बिगड़ गई।” हुमायू ने मान लिया था। “पंडित नहीं – ये वही हेमू है जो पानीपत से भाग लिया था। और ढूंढे न मिला था!” हुमायू को अब सूचनाएं मिल रही थीं। “और अगर इब्राहिम अपना हाथी न रोक लेता तो बाबर को ये मिट्टी में मिला देता!” लोगों का मत था। “इसने ही तो बादलपुर जीता था और इसने ही तो ..” एक अंबार था खबरों का। “ये आपके खून का प्यासा है .. बादशाह!” खतरनाक बातें थीं जो हुमायू के सामने आती जा रहीं थीं। “अब चल पड़ा है शेर खान आगरा की ओर ..”
हुमायू ने तुरंत ही अपने सभी भाइयों को बुलाया था और शेर खान को रोकने की मुहिम तैयार करने लगा था।
“मैं अपने बीस हजार सैनिक आपको सहायता के लिए देता हूँ।” कामरान – हुमायू का भाई जो काबुल और कांधार का शासक था, कह रहा था। “लेकिन मेरी शर्त है ..” उसने स्पष्ट कहा था।
हुमायू भी जानता था कि कामरान किसी न किसी तरह मुगल सल्तनत को हड़प लेना चाहता था। वह हुंडल के साथ मिल कर पहले भी षड्यंत्र रच चुका था।
“तुम मेरे सैनिक ले लो! तुम संभालो मोर्चा शेर खान के खिलाफ! फिर जो चाहे सो ले लेना।” हुमायू की राय थी।
इस सुझाव पर कामरान की तो जबान ही बंद हो गई थी। शेर खान का खौफ अब मुगलों पर तारी था। और खासकर तिलक धारी पंडित के बारे आती अफवाहों ने हवा को अलग तरह से गरम कर दिया था।
अचानक कामरान बीमार हुआ था तो अनुमान लगाया गया था कि उसे जहर दे दिया गया था। हुमायू के सभी भाई उसे छोड़ कर चले गये थे। अकेले रह गये हुमायू ने फिर से हारी हिम्मत को टटोला था। उसने फिर से मुगलों को पुकारा था और बाबर की बहादुरी का वास्ता दिया था।
कमाल ही था कि बाबर के नाम पर हुमायू को फिर से मदद मिली थी और फिर से सारे मुगल इकट्ठा हो गये थे और हुमायू को विजयी बनाने के लिए साथ आ खड़े हुए थे।
शेर खान जान गया था कि चौसा की विजय का सेहरा पंडित हेम चंद्र के सर बंध चुका था।
“मुबारक हो सुलतान!” अंगद भी हर्षातिरेक से कह उठा था। “कमाल कर दिया आपने!” उसके स्वर अभिमानी थे। “मुझे इतनी उम्मीद न थी।” वह हंस रहा था। “हारी बाजी जीतना कोई आप से सीखे!”
“तुम खबर न देते तो शायद मैं ..” हेमू ने संयत स्वर में कहा था। “तुमने सही समय पर सूचना दी और हो गया सब!” हेमू सहज था।
शेर खान भी अब सहज था। लेकिन जहां उसे हुमायू का डर था वहीं अब पंडित हेम चंद्र से भी वह बेखबर न था। सूरज गढ़ और चौसा से लेकर बंगाल तक की लड़ाइयों के बारे सोच शेर खान खबरदार था कि पंडित हेम चंद्र ने कितनी चतुराई के साथ उसका सहयोग किया था। लेकिन क्यों ..?
“अब अकेले ही हुमायू को हराना है!” निर्णय ले लिया था शेर खान ने। “पंडित को यहां से ज्यादा चढ़ाना खतरनाक भी हो सकता है!” उसका अपना अनुमान
था। “आखिर देश तो हिन्दुओं का ही है?” वह जानता तो था।
और हेमू ने भी शेर खान की सारी कमियां उंगलियों पर गिन कर रख ली थीं।
“आगरा ..?” शेर खान ने घोषणा जैसी की थी। “ढा देते हैं आगरा को भी?” उसने सीधा पंडित हेम चंद्र की आंखों में देखा था। वह उनसे एक स्वीकार चाहता था। लेकिन पंडित हेम चंद्र चुप थे। “अब धरा भी क्या है हुमायू के पास?” शेर खान ने अपनी बात बड़ी की थी। “खाली हाथ है! हा हा हा ..” हंस रहा था शेर खान। “अब तो भागेगा ..” उसका अनुमान था।
हेमू शेर खान के इरादों को नाप कर सहम गया था। वह जानता था कि जो शेर खान सोच रहा था वह तर्क संगत नहीं था।
“आप चुप क्यों हैं पंडित जी?” शेर खान ने सवाल किया था। “कोई आपत्ति तो होगी जो आप ..?”
“हो तो सकती है!” हेमू का स्वर संयत था। “युद्ध को भी कला ही मानते हैं – शास्त्र!” हेमू ने एक दार्शनिक की तरह कहा था। “और अगर ..” चुप हो गये थे पंडित हेम चंद्र।
“फिर आपकी राय क्या है?” शेर खान ने पूछ ही लिया था। हालांकि वह इस बार पंडित को युद्ध से दूर रखना चाहता था लेकिन उसे डर भी था – युद्ध हार जाने का डर! “अब हमें कैसे ..?”
“आगरा हुमायू का गढ़ है! हम इस गढ़ को नहीं जानते। लेकिन हुमायू तो जानता है!” सब से बड़ा मुद्दा कह सुनाया था पंडित जी ने। “और फिर आगरा हमारे लिए दूर पड़ेगा। अगर हमें ..”
“तो फिर ..?” शेर खान की बात समझ में आ रही थी।
“लखनऊ और कन्नौज पर कब्जा कर लेते हैं!” सहज भाव से हेमू बता रहा था। “फिर आयेगा हुमायू चल कर! उसके सारे पत्ते हमारे सामने होंगे!” मुसकुराया था हेमू। “हमें आसान रहेगा। हम अपनी जमीन पर होंगे – अपनी चुनी जमीन पर हर तरह से सुरक्षित और रक्षित। हर तरह से संगठित हो कर ..” हेमू सारी योजनाएं बताता ही चला जा रहा था।
शेर खान की चालाक निगाहों ने कई बार पंडित हेम चंद्र को नापा था ओर परखा था .. खोजा था! वह कहीं न कहीं इस हिन्दू को आज पकड़ लेना चाहता था लेकिन ..
“मुझे तो किसी तरह का कोई उज्र नहीं!” हेमू ने शेर खान को समझ कर कहा था। “मुझे तो कुछ लेना देना है ही नहीं!” सपाट आवाज थी हेमू की। “बादशाह तो आप हैं!” हाथ झाड़ दिये थे हेमू ने।
शेर खान विमुग्ध हो गया था पंडित हेम चंद्र के खुलासे पर!
हुमायू ने भी पंडित हेम चंद्र को ध्यान में रख कर इस बार युद्ध संयोजित करने की ठानी थी। वह चाहता था इस तिलक धारी पंडित को सबक सिखाना! और अगर ये हिन्दू अगर किसी तरह उसके हाथ लगा तो वह इसे बाबर की याद दिला देगा।
कन्नौज से 23 मील पहले ही हुमायू ने इस बार युद्ध का मैदान चुना था और डेरे डाल दिये थे। शेर खान को परास्त करने के पूरे प्रयत्न हुमायू ने किये थे। उसका सौभाग्य ही था कि मुगलों ने इस बार भी बढ़ चढ़ कर हुमायू का साथ दिया था। अगर शेर खान आगरा पर चढ़ आता जो शायद ही युद्ध जीत पाता!
इस बार युद्ध संचालन से लेकर जीतने के प्रयत्न और प्रबंध सब कुछ हुमायू के हाथ था। लेकिन उसकी आशा के विपरीत एक माह तक इंतजार करने के बाद भी शेर खान ने हमला नहीं किया था। अब बरसात आने का भी डर था। युद्ध को ज्यादा समय तक नहीं रोका जा सकता था। अत: हुमायू ने आगे बढ़ कर तीन कोस पहले शेर खान के मुकाबले के लिए पड़ाव डाला।
शेर खान की ओर से चुप्पी के सिवा चींटी भी चल कर ना आई।
हुमायू एक बार फिर तिलक धारी पंडित को भांप कर घबरा गया था। आक्रमण करते ही हुमायू की समझ में आ गया था कि चौसा की लड़ाई से यह स्थिति भी भिन्न नहीं थी! गंगा नदी उसके पीछे थी। शेर खान आगे था। तोपें बेकार थीं। शेर खान का हमला आया था तो हुमायू की सेना गड़बड़ा गई थी। हुमायू ने भी अपने सैनिकों को मैदान छोड़कर भागते हुए देख लिया था। शेर खान का खौफ हुमायू की सेना पर तारी था – यह विदित हो गया था।
घमासान युद्ध के दौरान ही राजा गजपथ हुमायू की तलाश में निकल पड़ा था। समूची दौड़ भाग का नतीजा निकला था कि हुमायू तो युद्ध के मैदान में था ही नहीं। वह तो न जाने कब का आगरा के लिए प्रस्थान कर गया था। हुमायू की दौड़ती भागती सेना को शेर खान के सैनिकों ने जम कर काटा था, बंदी बनाया था और खूब माल टाल लूटा था। राजा गजपथ का इस बार भी खूब मोटा हाथ बैठा था।
युद्ध हार कर लौटा हुमायू शेर खान की पीछा करती सेना के बारे खबरें सुन रहा था। इससे पहले कि वह युद्ध बंदी बने हुमायू ने पलायन करना ही उचित समझा था। अब वह आगरा में प्रवेश करना ही नहीं चाहता था। हुंडल को भेज कर उसने जरूरत का सामान मंगवाया था और लाहौर की ओर प्रस्थान किया था।
खाली आगरा में प्रवेश करते शेर खान को अचानक ही पंडित हेम चंद्र याद हो आया था। जो शेर खान को मिला था – वह तो बेजोड़ ही था। अब तो वह पूरे हिन्दुस्तान का शहंशाह ही था।
“कैसे आभार चुकाऊं पंडित हेम चंद्र का?” प्रश्न था शेर खान के मन में जो न जाने क्यों स्वतः ही उग आया था।
“आप मेरे साम्राज्य के महा प्रबंधक और सर्वे सर्वा होंगे पंडित जी।” शेर खान ने विनम्रता पूर्वक कहा था। “मैं आपका आभार मानता हूँ!” शेर खान विनम्र था।
पंडित हेम चंद्र ने भी एक मधुर मुसकान के साथ शेर खान की दी पदवी ग्रहण की थी।