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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग इकसठ

Hemchandra Vikramaditya

“मैंने इस काफिर का लाहौर में घुसने से पहले ही सर कलम करा देना है!” लाहौर के परिवार में गरमा गरम बहस छिड़ी थी। “इस हिन्दू की .. ये हिम्मत कि ..!” तातार खान कह रहा था। “इसी ने सारा खेल बिगाड़ा है!” वह हाथ फेंक फेंक कर रोष जाहिर कर रहा था।

“राजपूतों से क्यों नहीं लड़ा?” दौलत खान का प्रश्न था। “मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि – ये बादलगढ़ जीत सकता है .. तो फिर ..?”

“हमें नहीं जीत सकता!” हुसैन खान बोले थे। “हम ने अभी अभी तो बाबर के दांत खट्टे किये हैं .. उसे खदेड़ा है ..!” वह अपनी बहादुरी की डींग मार रहे थे। “अगर हम चाहते तो राजपूतों को भी” वह रुक गये थे। शायद वो आगे की बात बताना नहीं चाहते थे।

इब्राहिम की राजपूतों के हाथों हुई हार का जश्न मनाया था लाहोरियों ने!

“सर हिन्द पर रोक देते हैं हेमू को!” तातार खान का सुझाव आया था।

“लेकिन बाबर .. कभी भी ..” दौलत खान ने दूर की कौड़ी ला दी थी। “सर हिन्द से लौटना न हो पाएगा!” उसका मत था।

एक घोर संकट उन सब के सामने था!

हेमू ने लाहौर की तीन तरफ से घेराबंदी कर बीच में अपना डेरा जमाया था। उसे पंजाब बेहद भा गया था। उसे लगा था – उसका भारत तो यों ही गारत हुआ पड़ा है। लूट पाट करके इन लोगों ने सल्तनतें कायम कर लीं हैं। लेकिन असल में हैं तो ये हमलावर ही!

“न जाने कब ..?” हेमू की जबान पर शब्द फिसल गये थे। समस्या बहुत जटिल हो चुकी थी वह जानता था।

“आपकी खैरियत पूछने दौलत खां आये हैं!” हेमू को सूचना मिली थी।

उसे उम्मीद थी कि दौलत खां ही आयेगा और उसे उम्मीद भी थी कि बेल मढ़े पर चढ़ेगी। लेकिन ..

“आप धौलपुर में नहीं दिखे थे तो मैं सोच रहा था कि ..” दौलत खां ने सीधा ही बारीक सवाल पूछा था। वह जान लेना चाहता था कि हेमू धौलपुर की लड़ाई में कहां था?

“कहते हैं – आप लोग सब से पहले भागे थे धौलपुर से?” हेमू ने एक जटिल प्रश्न दौलत खां के सामने रख दिया था। “और ..”

“कौन कहता है ..?” उबल पड़े थे दौलत खां। “हमारे तो .. हमारे तो ..” वह कुछ बता नहीं पा रहे थे। चोर पकड़ा गया था।

“छोड़िए!” हेमू ने बात का सिरा काट दिया था। “कुछ भेजा नहीं आपने?” हेमू मुद्दे पर आ गया था। “बहुत हानि हुई है! आप को मदद करनी ही होगी!” हेमू का आदेश था।

“आराम कीजिए!” दौलत खां हंस कर बोला था। “पंजाब पहली बार आए हैं .. तो ..” वह फिर से मुसकराया था। “हमारा भी तो कुछ फर्ज बनता है!” वह कहता रहा था।

“कल मिलते हैं!” हेमू ने सीधा प्रस्ताव रक्खा था। “सब लोग आ जाएं ताकि लेना देना तय हो जाए!” हेमू ने बात काट दी थी।

वापस लौट कर दौलत खां ने सब को सचेत कर दिया था कि हेमू बुलंद इरादे लेकर लाहौर आया था।

“दिल्ली से अलग होने की खिचड़ी पक रही है!” अंगद बता रहा था। “अभी बात – ‘कौन गद्दी संभालेगा’ इसी सवाल पर अटकी है। तातार खान सबसे तेज है। वह हर कीमत पर पंजाब को दिल्ली से अलग कर स्वतंत्र हो जाना चाहता है।” अंगद तनिक रुका था। उसने हेमू के शांत चेहरे को पढ़ा था। “ये तातार खान आपका कट्टर दुश्मन है।” अंगद ने बताया था।

“दोस्त कौन है – मेरा ..?” हंस पड़ा था हेमू। “हिन्दू हूँ न!” उसने स्पष्ट कहा था।

“बाबर है – काबुल का बादशाह!” अंगद बताने लगा था। “फरगना से हार कर भागा है। उसे समरकंद की हार ने तोड़ दिया था तो काबुल भाग आया था।” अंगद रुका था।

“इनका दोस्त है या दुश्मन ..?”

“अभी तक तो दुश्मन है .. लेकिन कल दोस्त भी बन जाए तो कौन जाने? लाहौर पर उसकी निगाह है .. और दिल्ली पर भी आंख है!”

“लेकिन ..?”

“बहुत बहादुर बताते हैं! लोग कहते हैं कि गजब का जांबाज है!” अंगद ने हेमू को पढ़ा था। “आप की ही उम्र का हो शायद। और शायद .. आपकी ही तरह का ..” अंगद आंखें मटका मटका कर बता रहा था। “जिन्होंने उसे देखा है उनका कहना है कि बाबर ..”

हेमू अचानक ही बाबर से दो दो हाथ कर रहा था!

“तैमूर और मंगोल दोनों का मिला जुला बंदा है – बाबर!” अंगद फिर से बताने लगा था। “कहते हैं – लड़ाई में भी वह इन दोनों की तरह ही लड़ता है!”

अचानक ही हेमू का दिमाग जागृत हो गया था। उसे लगा था – शायद इस बाबर से उसका पाला अवश्य पड़ेगा!

हेमू से मिलने सारे लाहोरिए सरदार पधारे थे। एक संयत और सुदृढ़ संगठन की तरह वो सब एक जान थे – एक प्राण थे। सबके सम्मिलित इरादे हेमू को बैरंग लौटाने के थे। सब के पास बाबर से लड़ने की कहानी थी और लड़ाई पर होता खर्चा उनके पास एक मात्र बहाना था कि अब दिल्ली को कुछ न दिया जाए और हो सके तो कुछ न कुछ लिया जाए!

सब ने मिल कर हेमू को घेर लेना था – चारों ओर से!

मुलाकात बड़े ही सौहार्द पूर्ण ढंग से शुरू हुई थी। सब सरदारों ने एक एक होकर हेमू का स्वागत किया था, खैरियत पूछी थी और उसके इरादे नापे थे। सबको हेमू का दप दप करता दैदीप्यमान चेहरा डरा सा रहा था। हेमू की सतेज आंखें उन सब के भीतर के चोरों को डरा रही थीं!

“कैसे हैं आप?” तातार खां सबसे अंत में आ कर मिला था। जैसे वह हेमू को अभी अभी ललकारेगा – ऐसा लगा था। लेकिन उसके कंठ स्वर कांप उठे थे। हेमू ने भी उसे कूत लिया था!

“अभी तक तो अच्छा हूँ!” हेमू ने उत्तर दिया था और हंस पड़ा था।

इस मुक्त हंसी ने उन सब सरदारों को बे नकाब कर दिया था। उनके भीतर छुपे चोर बाहर आ कर खड़े हो गये थे। हेमू ने सब ताड़ लिया था।

“हम ने जान पर खेल कर लोधी सल्तनत का साथ दिया है!” अहमद बोलने लगा था। “आप तो नहीं जानते पर मैं बहलोल लोधी का लंगोटिया यार रहा हूँ।” वह तनिक हंसा था। “हमने जहां से जंग आरंभ की आप तो अनुमान भी नहीं लगा सकते! और ये साम्राज्य हमने अपने दम पर खड़ा किया – ये सब जानते हैं!” वह रुका था। उसने हेमू को पढ़ा था। “अब आप ही बताइये कि हमारा हे बनता है कि नहीं?”

हेमू कुछ न बोला था। एक चुप्पी लंबे पलों तक बैठी रही थी।

“तर्क संगत है कि सल्तनत का बंटवारा हो!” अब दौलत खां बोले थे। “मैंने कई बार कहा है कि हम सब एक परिवार के हैं – तो हम सब को ..?”

“हिस्सा तो मिलना ही चाहिये!” अफजल कूदा था। “हमारे ही दम पर ..”

“और पंजाब तो है ही हमारा!” तातार खां ने घोषणा जैसी की थी। “अब बाबर से हम अकेले ही तो लड़ रहे हैं! कौन सा कोई दिल्ली से आता है जो ..”

“जबकि हम दिल्ली के हर मौके पर हाजिर होते हैं! लड़ते हैं, धन देते हैं और अन्य मदद भी करते हैं! क्यों कि ..”

माहौल गरमाता ही जा रहा था। सब के सब उबाल पर थे। सबके सब इब्राहिम लोधी के खिलाफ थे। और सब को कम से कम पंजाब तो चाहिये ही था।

“आप लौट कर सुलतान को समझाइये जनाब कि न्याय करे, हक बांटें और सब को आदर दें!” इब्राहिम लोधी के चचा आलम खान कह रहे थे। “आप नहीं जानते कि मेरी इब्राहिम ने कितनी बेइज्जती की थी?” वो रुआंसे हो आये थे। “मैं – उनका चचा हूँ और मैंने भी भाई के साथ जंग लड़ी थीं! फिर मेरा भी कोई हक है, ओहदा है और मैं बुजुर्ग हूँ तो ..” उनका कंठ स्वर कांप कांप उठा था। “लेकिन सुलतान ने मेरी पगड़ी उछाल दी! मैं भूल ही नहीं पाता जनाब कि ..” सजल थीं उनकी आंखें।

जैसे हेमू वहां था ही नहीं। जैसे उसने कुछ सुना ही न था और जो वहां चल रहा था वह सबसे असंपृक्त था! वह तो जानता था कि जो स्वांग वहां रचा जा रहा था उसकी पृष्ठ भूमि ..

“आप जनाब ..” आलम खां ने अंतिम दरख्वास्त की थी।

“देखिये!” हेमू का स्वर शांत था। “ये पारिवारिक बातें मैं नहीं जानता!” उसने अब तक के सारे तर्कों पर धूल डाल दी थी। “मैं सुलतान का हुक्म लेकर आया हूँ!” उसने घोषणा की थी। “मैं आप सब लोगों को सचेत करने आया हूँ कि हक पाने के लालच में आप सब कुछ न गंवा बैठें!” उसने चेतावनी दी थी। “दीपालपुर की जागीर गई .. और ..” हेमू ने तमाम उन लोगों के नाम लिये थे – जो सब कुछ दे बैठे थे!

“और जलाल का क्या हुआ?” दौलत खां ने पूछा था।

“कहते हैं – कत्ल हुआ है! उनकी जागीर भी गई और अब बारी है ..” रुका था हेमू। लेकिन सब ने मन में कहा था – पंजाब की! “आखिरी चेतावनी है! आप लोग दिल्ली को बकाया दें और दिल्ली ..” हेमू की आवाज सब के सर पर गाज की तरह गिरी थी।

एक सन्नाटा छा गया था! इब्राहिम लोधी का खौफ सौ गुना होकर उनके ऊपर बिजली की तरह गिरा था!

एक संक्षिप्त सहमति लेकर हेमू दिल्ली लौट आया था!

मेजर कृपाल वर्मा

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