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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग इकानवे

Hemchandra Vikramaditya

“राजा वीर भान सिंह साथियों सहित नदारद हैं!” राजा टोडरमल ने बादशाह शेर शाह सूरी को सूचना दी थी। उनका स्वयं का हुलिया भी बिगड़ा हुआ था। मौत जैसी मुर्दानगी उनके चेहरे पर छपी थी। डर था उन्हें कि अब हिन्दुओं पर एक अलग से कहर टूटेगा।

“बगावत ..?” शेर शाह सूरी ने आंखें नचाते हुए कहा था। “हो गये बागी ..?” उन्होंने प्रश्न पूछा था। “अच्छी बात है! हमें मौका दे रहे हैं कि हम ..” एक सोच था जिसने अचानक बादशाह को रोका था।

कहीं .. कहीं बहुत गहरे में बादशाह शेर शाह सूरी दरक गये थे, टूट गये थे और टुकड़ों टुकड़ों में बिखर गये थे। हिन्दुओं का यों बगावत करने का यह पहला मौका था। ये पहला ही अवसर था जब हिन्दुओं के तने तेवर उन्हें नजर आये थे।

विगत और ब्रह्माण्ड एक साथ शेर शाह सूरी की निगाहों के सामने हिलने डुलने लगे थे।

अचानक उन्हें याद आया था कि किस तरह से उन्होंने अपनी सौतेली मॉं से तंग आकर सासाराम का घर छोड़ा था और जौनपुर आ कर दौलत खॉं के यहां नौकरी की थी। बाप के आठ बेटों में से एक थे – शेर खान और उनके हाथ पल्ले कुछ भी न था। पढ़ाई के नाम पर यूं ही अरबी फारसी सीख ली थी और फिर मौका मिला था तो बाबर की सेना में एक पैदल प्यादे की तरह काम आरम्भ किया था।

बाबर से इनाम इकरार पाने के बाद बाबर से ही बगावत की थी और फिर बाबर के सामने घुटने भी टेके थे। बिहार में पांव जमाए थे और ..

उदय तो उनका पंडित के आने के बाद ही हुआ था।

हॉं! हर तरह की मदद, परामर्श और प्रेरणा पंडित से ही मिली। अगर पंडित न होता तो हुमायू से मुकाबला जीतना असंभव ही था। और पंडित की वजह से ही तो हुमायू हारा था और उसने उन्हें उस्तादे बादशाह भी कहा था।

और .. और हॉं पंडित ने ही तो सूचना दी थी कि हुमायू के पुत्र रत्न पैदा हुआ है – जलालुद्दीन अकबर जो बादशाहे हिन्द बनेगा .. और ..

“शास्त्रों में लिखा है ..” अचानक बादशाह को पंडित हेम चंद्र की आवाजें सुनाई देती हैं।

“सब बकवास है!” शेर शाह सूरी प्रत्यक्ष में कहते हैं। “कोरा झूठ बोलता है ये पंडित!” वह तनिक उद्विग्न हो आते हैं। “अब नहीं छोड़ूंगा इन काफिरों को।” शपथ जैसी लेते हैं शहंशाह।

चहुं ओर छोड़े जासूसों ने खबर ला कर दी थी कि राजा वीर भान सिंह कालिंजर पहुंच गये थे।

“क्या ये पंडित की कोई सोची समझी चाल है?” शेर शाह सूरी के जहन में खयाल उगा था। “अभी तक कालिंजर से कलाकृति भी नहीं आई थी और न ही कोई उत्तर आया था। और अब राजा वीर भान सिंह का कालिंजर पहुंचना ..?”

एक बार धरती हिल गई लगी थी बादशाह शेर शाह सूरी को!

कालिंजर एक कील की तरह जा ठुका था शहंशाह शेर शाह सूरी के दिमाग में!

अचानक ही उन्हें अपने अफगान, मुगल, तुर्क और बलूची याद हो आये थे। पूरा मन बनाया था कि अब हिन्दुओं की खैर नहीं! इस बार जम कर लूटपाट होगी और सर काटे जाएंगे बागियों के। पहले से भी बुरा हाल किया जाएगा और इस बार बाबर की तरह ही इनके सर काट काट कर मीनारें बनाई जाएंगी। कालिंजर फतह करने के बाद तो गुजरात जीतेंगे, कश्मीर को लेंगे और फिर आसाम की ओर कूच करेंगे।

“काहे का अकबर! कौन अकबर? अब तो हिन्दुस्तान पर मेरा ही परचम फहराएगा!” प्रत्यक्ष में कह उठे थे शहंशाह शेर शाह सूरी। “कौन रोकेगा मुझे?” उनका प्रश्न था।

“कालिंजर के बारे क्या सूचना आई है?” बादशाह ने राजा महेश दास को बुला कर पूछा था।

राजा महेश दास तनिक सकपका गये थे। जो कालिंजर के बारे सूचना उनके पास थी – वो बादशाह को पसंद नहीं आनी थी और अगर तनिक सी ऊक चूक हुई तो उनका अपना सर जाने का अंदेशा था।

“क्या है शहंशाह कि .. कालिंजर अजेय है!” डरते डरते राजा महेश दास बताने लगे थे।

“तुम्हारे शास्त्रों में लिखा होगा?” शहंशाह शेर शाह सूरी जोरों से हंसे थे। “झूठ है ये सब और बकवास हैं तुम्हारे शास्त्र! मैं मिट्टी में मिला दूंगा कालिंजर को। मुझे पता है राजा साहब कि .. कब .. और कहां ..”

राजा महेश दास शहंशाह शेर शाह सूरी को खोजा निगाहों के नीचे दबा खड़े रहे थे। आज बादशाह के तेवर बिलकुल भिन्न थे – उन्होंने महसूसा था।

“यह सच है कि कालिंजर कब और किसने बनाया – किसी को पता नहीं है।” शेर शाह सूरी बताने लगे थे। “लेकिन ये भी सत्य है कि एक हजार उन्नीस और एक हजार तेईस दोनों बार कालिंजर को गजनवी ने लूटा था और फिर बारह सौ दो में चंदेलों को ऐबक ने जीता था और बारह सौ ग्यारह तक कालिंजर उसके अधीन रहा था। तैमूर ने जब 1398 में दिल्ली को लूटा था उसके बाद से राजपूतों ने फिर से कालिंजर पर कब्जा कर लिया था। और अभी 1538 में हम सबके सामने हुमायू ने कालिंजर पर आक्रमण किया था लेकिन बाबर की मौत ..” ठहर गये थे बादशाह शेर शाह सूरी। बाबर की असामयिक मौत से कालिंजर का कोई रिश्ता था – वह सोचते रहे थे।

“शास्त्रों में लिखा है ..” अचानक बादशाह शेर शाह सूरी को पंडित हेम चंद्र के स्वर सुनाई देने लगे थे। “कालिंजर का नीलकंठ मंदिर इसका प्रमाण है कि शिव ने यहां समुद्र मंथन से मिला गरल पिया था और काल पर विजय प्राप्त की थी। तभी से इसका नाम कालिंजर है सुलतान!”

त्योरियां चढ़ गई थीं – सुलतान शेर शाह सूरी की।

आज जितना बुरा पंडित हेम चंद्र उन्हें कभी नहीं लगा था। न जाने क्यों आज उन्हें हिन्दू शास्त्रों, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू विचार व्यवस्था बहुत बुरी लगी थी। उन्हें एहसास हुआ था कि जब तक हिन्दू शास्त्र और हिन्दू संस्कृति का पूर्ण विध्वंस नहीं होगा तब तक हिन्दुस्तान का इस्लामी करण होना असंभव था।

“अब शास्त्र और संस्कृति पर ही हमला होगा!” शेर शाह सूरी प्रत्यक्ष में बोले थे। “कालिंजर से ही आरम्भ होगी ये मुहिम!” उनका ऐलान था।

अचानक शेर शाह सूरी के दिमाग में गजनवी से लेकर बाबर तक हिन्दुओं पर ढाये जुल्मों का सिलसिला उठ बैठा था। इस बार शेर शाह सूरी चार कदम और आगे चलना चाहते थे। वो चाहते थे कि एक बार फिर अफगानों, तुर्कों और मुगलों को नए ढंग से हिन्दुस्तान को लूटने की इजाजत दी जाये और उन्हें फिर से बुला कर हिन्दुस्तान में बसाया जाये! इतना सुंदर देश प्रदेश और है कहां – जिसे हाथ लगने के बाद छोड़ा जाये?

“अब मंदिरों के स्थान पर मजार बनाए जाएंगे!” एक नया विचार उगा था शेर शाह सूरी के मन में। “इनके शास्त्रों से लोहा लेने के लिए सूफियों को भिड़ाया जाये!” उनका सोच था। “हिन्दू स्वभाव से भीरु हैं, लालची हैं और टोना टोटका में विश्वास रखते हैं! इन्हें गुमराह करने के लिए सूफी संत और मुल्लाओं का प्रयोग श्रेष्ठ रहेगा। उनका मत था।

नानक पंथी और कबीर पंथियों को आगे लाने का विचार भी उनके मन में था। जन मानस इन दोनों की बात सुनता था। संस्कृत विद्यालयों को समाप्त कर और गुरुकुलों को बंद करा कर फारसी, अरबी और उर्दू की शिक्षा का चलन लाना होगा और धर्म परिवर्तन को कुछ लालचों में लपेट कर लालची हिन्दुओं को हमें मुसलमान बनाना होगा ताकि ..

अब फिर वही पंडित हेम चंद्र अचानक ही शेर शाह सूरी के सामने एक चुनौती के रूप में आ खड़ा हुआ था। हिल डुल भी नहीं रहा था पंडित!

“हम पंडित जी से मिलना चाहते हैं!” अचानक ही सुलतान शेर शाह सूरी ने वैद्य धन्वंतरि को बुला कर उनसे मशविरा किया था।

वैद्य धन्वंतरि लम्बे पलों तक सुलतान शेर शाह सूरी के मनोभाव पढ़ता रहा था। उनके चेहरे पर न कोई सहज भावना थी और न ही कोई सौहार्द ही था। निरी एक जिज्ञासा थी कि क्या पंडित हेम चंद्र वास्तव में ही बीमार था और मरणासन्न भी था?

“परमेश्वर ऐसी बीमारी किसी को भी न दे!” गंभीर थे वैद्य धन्वंतरि। “तिल तिल कर उनका शरीर गल रहा है!” वह बताते रहे थे। “आप उनसे न मिलें शहंशाह! छूत की बीमारी विचित्र होती है – कौन कब और कहां पकड़ा जाये कुछ पता नहीं होता। मृत्यु के बाद इनके शरीर को ..”

शेर शाह सूरी के कलेजे को कुछ ठंडक मिली थी। पंडित की दुर्दशा पर हर्ष हुआ था। एक आश्वासन मिला था – पंडित की मौत का और एक रास्ता खुला था हिन्दुओं को पूर्णतः: परास्त करने का!

“जिसकी आई है वो तो मरेगा ही, सुलतान!” वैद्य राज ने मन मार कर कहा था।

न जाने ये कैसा जयघोष था धन्वंतरि की आवाज में जिसे शहंशाह सुनते ही रहे थे।

मेजर कृपाल वर्मा
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