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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग इकहत्तर

Hemchandra Vikramaditya

बाबर को अभी तक हिन्दुस्तान में अपना हितैषी नजर नहीं आया था।

दल बल से चढ़ बैठा बाबर किसी को भी अच्छा न लगा था। उसका लौट कर काबुल न जाना भी हर किसी को अखर गया था। बाबर के वंशज तैमूर और चंगेज खान की हैरतअंगेज कहानियां लोगों को याद थीं। अब बाबर क्या क्या करेगा – कौन जाने!

लेकिन राजपूतों को करारी शिकस्त देने के बाद बाबर ने हिन्दुस्तान को आंख उठा कर देखा था। खबर थी कि राजपूत मेदनी राय के साथ मिल कर फिर बाबर के मुकाबले में आएंगे और इस बार शायद है कि ..

“मार दो मेदनी को!” बाबर का दिमाग बोला था। “हो सकता है – हेमू वहीं हो?” उसकी सोच थी। “जरूर कुछ पक रहा था चंदेरी में, उसका अपना मत था!

मालवा मध्य प्रदेश में स्थित चंदेरी आंख से दूर थी और वहां पहुंच बनाना बाबर को आवश्यक लगा था। लेकिन इस बार बाबर चंदेरी को सीधे सीधे हमला कर प्राप्त न करना चाहता था। उसे डर था कि कहीं अगर हेमू से टक्कर हुई तो ..

बिना युद्ध के नगाड़े बजाए और बिना किसी को बताए बाबर ने एक संगठित सेना के साथ चंदेरी के लिये गुप्त रूप और गुप्त रास्तों से प्रस्थान किया था। चंदेरी में मेदनी राय को भनक लगी थी तो उसने भी अपनी सेनाएं संगठित की थीं। अहमद बिन अमीर के साथ साथ पृथ्वी देव भी उसके साथ आ गया था। बाबर को परास्त करने के उनके होंसले अब बुलंद थे!

“मैंने बाबर को किले के बाहर ही खड़ा रखना है .. जब तक कि वो भूखा न मर जाए!” पृथ्वी देव का ऐलान था। “किले की बाहरी प्राचीर पर ही बाबर की समाधि बनेगी!” उसका ऐलान था।

चंदेरी का किला अपने आप में एक अजेय दुर्ग था। किले की बाहरी प्राचीर को पार करना असंभव था। उसके बाद किले की भीतरी संरचना भी जटिल थी। और किसी भी आक्रमण कारी को उसे पार करना आसान न था। मेदनी और उसके मित्र किले की नाकाबंदी कर आश्वस्त हो गये थे कि बाबर चंदेरी से शायद ही जीवित लौटेगा!

लेकिन कमाल ये हुआ था कि बाबर की फौजों ने किले की बाहरी प्राचीर को रात के अंधेरे में चुपचाप ढा दिया था और पृथ्वी देव को होश आते न आते बाबर की सेना ने उस पर कब्जा कर लिया था। बौखलाया पगलाया पृथ्वी देव भी भाग कर किले के भीतर जा छुपा था!

चंदेरी पर अब बाबर का खौफ तारी हो गया था!

“चंदेरी छोड़ कर शाह बाद चले जाने पर मेदनी राय को जान बख्शी जा सकती थी।” बाबर की ओर से ये प्रस्ताव मिला था!

“ये बाबर की चाल है!” अहमद बिन अमीर ने कहा था। “लड़ते हैं! डर किसका है? हमारे पास तो इतनी सेना है और हम ..”

लड़ाई आरम्भ होने के कुल एक घंटे में ही मेदनी राय की सेना ने हथियार डाल दिये थे। इस पर तो बाबर को भी आश्चर्य हुआ था। वह स्वयं भी तो डरा हुआ था। लेकिन यहां तो कोई हेमू सामने नहीं आया था ..

और फिर तो चंदेरी की कहानी बाबर ने खून की कलम से लिखी थी!

मानवता दुहाइयां दे रही थी लेकिन आताताइयों ने बिना सैनिकों की चीख पुकार सुने उनके सर काटे थे और खून की नदियां बहा दी थीं! यहां तक कि मेदनी राय के सैनिकों ने अपनी इज्जत बचाने के लिहाज से एक दूसरे के सर काटे थे। औरत और बच्चों ने जौहर किया था .. आग में जल कर मर गये थे – इज्जत बचाने के लिए!

लेकिन बाबर नर मुडों की मीनार बनाना न भूला था! जश्न मनाना भी न भूला था! वह तो चाहता ही था कि पूरे हिन्दुस्तान पर उसका खौफ तारी हो जाए और वो ..

पूरे देश में खलबली मच गई थी। बाबर एक शैतान का रूप लेकर पैदा हो गया था। और इस शैतान को समाप्त करने के लिए फिर से अफगान, पठान, राजपूत और रुहेले इकट्ठा होने लगे थे। सुलतान महमूद लोधी भाग कर नुसरत शाह – बंगाल के सुलतान की शरण में पहुंच गया था। अब फिर से बाबर के खिलाफ पूरब में एक नया तूफान उठा था। एक मत थे सारे अफगान, पठान और वो बाबर को कुचल देना चाहते थे!

सुलतान जलालुद्दीन लोहानी, शेर शाह सूरी, फतह खान शेरवानी और शाह मोहम्मद इकट्ठे होकर इस बार बाबर को काबुल तक खदेड़ देना चाहते थे। सब के पास सेनाएं थीं, सब समर्थ थे और सब बाबर के विरोधी थे!

हुमायू पहले से ही पूरब में था। उसने इस उठते तूफान की पूरी जानकारी बाबर के पास भेज दी थी। बाबर ने हुमायू को वहीं बने रहने के आदेश दिये थे ओर स्वयं भी अपनी पूरी सामर्थ्य समेटकर पूरब की ओर चल पड़ा था। बाबर जानता था कि उसे बल से ज्यादा छल से काम लेना था और चतुराई से इन अफगान पठानों को परास्त कर अपने साथ ले लेना था!

तीन दिन की दौड़ भाग के बाद वो चारों अब चित्रवत खड़े लोहान घाटी को आंखें भर भर कर देख रहे थे!

अरावली की दुर्गम पहाड़ियों के पेट में लोहान घाटी जैसे प्रकृति ने अलग से गढ़ कर तैयार की थी। पूरी पहाड़ियां हरे भरे वृक्षों से ढकी थीं। बीचों बीच से बहती साबरमति नदी घाटी के लिए वरदान जैसा था। महुआ झील का विस्तार बड़ा तो न था पर था रमणीक! तीन कोस पर बसा मतुआ मेठ गांव रुहेले राजपूतों का था।

घाटी में आने जाने के सुगम रास्ते थे। साबरमती नदी घाटी को सीधा गुजरात की खंबात की खाड़ी से जोड़ती थी। साबरमती का जल मार्ग लोहान घाटी के लिए वरदान जैसा था। बिना किसी रोक टोक के माल का आना जाना हो सकता था!

“काम शुरू करने से पहले राजपूतों से ..?” माहिल का पहला प्रश्न था और यह प्रस्ताव था कि अगर कारखाना यहीं लगाना था तो पहले गांव के राजपूतों से ..?”

“मैं निपट लूंगा!” हंस कर हेमू ने कहा था। “राणा जानते हैं मुझे!” उसने घोषणा की थी। “वो मुझे न रोकेंगे!” हेमू ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा था।

“फिर रह क्या जाता है?” अब्दुल चहका था। “हमें तो मन की मांगी मुराद मिल गई है! यहां हम ठीक से काम कर पाएंगे और पुर्तगालियों को भी ये घाटी पसंद आएगी!” अब्दुल हंस रहा था। “सच मेरा मन तो कर रहा है कि मैं यहीं आ कर बस जाऊं!”

“मालिक होगे!” हेमू बोला था। “यहीं बस जाना और ..” उसने अब अब्दुल को गौर से देखा था। “पुर्तगालियों से व्यापार बढ़ाना!” राय दी थी हेमू ने। “अंत तक काम आएंगे ये लोग!” हेमू का मानना था।

“कारखाना ..?” माहिल ने प्रश्न पूछा था। उसने पहाड़ी क्षेत्र को निगाहों में भर कर देखा था। समतल स्थान तो कहीं नजर ही नहीं आया था।

“पहाड़ियों के पेट में बनेगा कारखाना!” हेमू हंस रहा था। “माहिल वक्त है कि पहाड़ियों में घुस जाओ! ये बना बनाया बानक है! बाहर तो पेड़ का पत्ता भी नहीं टूटना चाहिये! किसी को खबर ही न हो कि हम यहां हैं और हम कारखाना चलाते हैं!”

बात में दम था। एक बेहद अच्छा विचार था। अब्दुल को भी बात जम गई थी। माहिल ने भी मान लिया था हेमू का विचार और अब सब कुछ तय हो चुका था।

लौटने से पहले चारों चल कर मतुआ मेठ गांव चले आये थे। गांव के बाहर जोहड़ पर भीड़ जमा थी। शायद कोई जश्न होगा – उन्होंने सोचा था। लेकिन जब रोने पीटने और चीखने चिल्लाने की आवाजें सुनी थीं तो तय हो गया था कि कोई गमी थी या कोई गजब था जो गांव वालों पर टूटा था!

“क्या हुआ भाई?” माहिल ने अपनी ओर आते एक युवक से पूछा था। वो चारों अब घोड़ों से उतर अब जमीन पर खड़े थे। “क्यों हो रही है ये रोआराट?”

“तीस सैनिक मरे हैं चंदेरी में!” उसने बताया था। “सर के बिना उनके धड़ आये हैं!” वह बता रहा था। “पापी बाबर ने ..” उसका गला रुंध गया था। “करमबीर की नई शादी हुई थी, धरमू कुंआरा था और धीरज के दो बच्चे हैं!” वह जायजा दे रहा था।

उन चारों के पैरों की जमीन खिसक गई थी। चारों एक साथ ही हताहत हुए लगे थे। युवक अभी भी वहीं खड़ा था।

“कहते हैं बाबर की तोपों ने किले को ही ढा दिया!” युवक फिर से बताने लगा था। “सैनिकों ने एक दूसरे के सर काटे और औरत बच्चों ने जौहर किये .. और सब जल मरे ..”

एक चुप्पी लौट आई थी। वो चारों शांत खड़े थे। वह युवक भी अब उन चारों को घूर रहा था।

“कहते हैं – सैनिकों के कटे सरों की मीनार बना कर बाबर ने जश्न मनाया था!” युवक फिर से बोला था। उसका स्वर वेदना पूर्ण था। “न जाने क्या हो गया है हमारे देश को ..?” उसका प्रश्न था। “लगता है वीर विहीन हो गया है भारत!” उस युवक ने उलाहना दिया था। “न जाने अब क्या और कौन जुल्म ढाएगा?” वह टीस आया था। “बाबर की तोपें ..?”

हेमू ने घोड़े से छागल उठा कर पूरा पानी पी लिया था! फिर ठंडे पानी से चेहरे को धो कर शांत किया था। कांपते हाथों पर संयम साधा था। क्रोध था कि बल्लियों कूदा था! उसका दिमाग युद्ध की एक घरघराहट से भर आया था!

“भारत कभी नहीं हारेगा बेटे!” हेमू ने उस युवक को धीरज बंधाया था। “हार जीत तो ..?” हेमू ने अपने आप को आश्वस्त किया था!

बाबर का विनाश तो करना ही होगा – हेमू ने उसी दिन तय कर लिया था!

मेजर कृपाल वर्मा

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