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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग एक सौ तीन

Hemchandra Vikramaditya

“चूड़ामन शास्त्री का अनुरोध है कि आप आक्रमण में न जाएं!” पंडित हेम चंद्र इस्लाम शाह सूरी को सलाह दे रहे थे। “आपकी तबीयत आपकी सेहत और सीरत ..”

“नहीं पंडित जी, मैं इस जंग में जरूर जाऊंगा!” इस्लाम शाह सूरी ने घोषणा की थी।

“महेश दास और रमैया के सामने मालवा के शुजात टिक न पाएंगे!” पंडित जी ने खुलासा किया था। “आप की सेना अब अजेय है।” हंस गये थे पंडित हेम चंद्र।

“वो तो मैं जानता हूँ। लेकिन शुजा का घमंड ..? और फिर हमने जागीरदारी की व्यवस्था ही खत्म कर दी है! मैं चाहता हूँ कि ..”

“लेकिन सुलतान! आपके अब्बा शेर शाह सूरी ने इन्हें इनाम में दिया था मालवा! और शुजात को तो वो ..?”

“मैं सब कुछ जानता हूँ पंडित जी!” तनिक विहंसे थे सुलतान इस्लाम शाह सूरी। “लेकिन शुजात को ..” पलट कर उन्होंने पंडित जी को देखा था। “मैं इस बार तोपखाने सहित घुड़सवार सेना और हाथियों के साथ शुजात खान को ..”

पंडित हेम चंद्र समझ गये थे कि कुछ था जो सुलतान इस्लाम शाह सूरी व्यक्तिगत रूप से तय कर लेना चाहते थे।

सेना के पुनर्गठन के बाद अब दिल्ली सल्तनत की सेना सर्वश्रेष्ठ थी।

रिसाले को जहां पचास, दो सौ, ढाई सौ और पांच सौ के गुटों में बांट दिया था वहीं पैदल सेना को पांच हजार, दस हजार और बीस हजार के विभागों में बांटा था। और तोपखाने के भी संभाग बना दिये गये थे। इससे सेना की किसी भी मुकाबले में तुरंत जा भिड़ने की क्षमता बढ़ी थी और तोपों की मारक क्षमता को दोगुना कर दिया था।

जहां तक मंगोल और मुगलों के आक्रमण की बात थी वहां राजा टोडरमल की निगरानी में और पांच रोहतास नगर जैसे किले बना दिये थे। शेरगढ़, इस्लामगढ़, राशिदगढ़, मिर्जागढ़ और मनकोट के बनने के बाद अब दिल्ली पूरी तरह से सुरक्षित थी।

सेना के लिए छावनियां बनाई गई थीं और उन्हें जमीनें दी गई थीं ताकि वो खुद उन्हें संभालें और जरूरत के लिए चीजें उगा लें।

चूंकि अब सेना को नियमित रूप से पगार मिलने लगी थी अतः उन्हें जनता के साथ लूट-पाट करने की इजाजत न थी। सेना का मनोबल ऊंचा था और सिखलाई श्रेष्ठ थी।

शुजात को जब मालवा में दिल्ली की विशाल सेनाएं आने का संदेश मिला था तो वह दरक गया था। लेकिन उसने फिर भी अपनी पूरी सामर्थ्य के अनुसार अपनी पूरी सेना को इस्लाम शाह के मुकाबले ला खड़ा किया था। अब इस्लाम शाह सूरी और शुजात खान आमने-सामने थे। तभी शुजात अपने हाथी से नीचे कूदा था और इस्लाम शाह के सामने सर झुकाए आ खड़ा हुआ था।

“मैं अपने गुरु के बेटे के सामने युद्ध में तलवार नहीं खींचूंगा!” शुजात खान ने कहा था। “मेरा सर हाजिर है! आप चाहें तो कलम कर दें!” उसका आग्रह था।

अब एक नई स्थिति इस्लाम शाह के सामने थी। उसे उम्मीद न थी कि शुजात खान इस तरह का बर्ताव करेगा। वह तो समझ रहा था कि घोर संग्राम होगा और ..

“हमने भी आपके गुरु का दिया आपको दिया!” इस्लाम शाह भी अपने हाथी से कूदा था और शुजात खान से आ मिला था।

दोनों फिर बांहें पसार पसार कर मिले थे। पहली बार था जब इस्लाम शाह सूरी को शुजात खान के बर्ताव ने उसे दहला दिया था और द्रवित कर दिया था।

“लेकिन बाकी के सब अफगान मुझे चाहते नहीं हैं पंडित जी!” इस्लाम शाह शिकायत कर रहा था। “बाकी सब तो मुझे परास्त करना चाहते हैं, लूटना चाहते हैं, सल्तनत को बांटना चाहते हैं और चाहते हैं कि मैं ..”

“ये सब आपसे डरते हैं सुलतान!” पंडित जी ने हंस कर कहा था।

“लेकिन अब हमारी तबीयत सुधरेगी नहीं पंडित जी!” अचानक ही इस्लाम शाह बोल पड़े थे। “आप को तो चूड़ामन शास्त्री ने जीवनदान दे दिया लेकिन हमें ..?”

“आप चिंता क्यों करते हैं सुलतान!” पंडित जी आभार के साथ बोले थे।

“हमें फिरोज की भी चिंता है पंडित जी!” गंभीर थे सुलतान इस्लाम शाह। “कुल 12 साल का ही तो है फिरोज!” उन्होंने एक लंबी श्वास छोड़ी थी। “कहां संभाल पाएगा इतना बड़ा साम्राज्य?” उनका प्रश्न था। “लेकिन .. आप ..”

“हां हां! मैं हूँ तो! आप निश्चिंत रहें सुलतान!” पंडित जी ने दिलासा दिया था।

लेकिन दिल्ली की सल्तनत को अफगान, तुर्क, पठान और काबुली पहले से ही पंडित राज माने बैठे थे।

हेमू इस्लाम की आंख की किरकिरी था और उनकी अब तक की मिली सफलता पर पूर्ण विराम जैसा था।

जैसे वो एक नया प्रारम्भ था, एक नया सूरज और एक अलग किस्म का चांद था जो आसमान पर उगा था ओर लोगों को आपसी भाईचारे का पाठ पढ़ा रहा था। हिन्दू मुसलमानों के आपसी भेद मिटने लगे थे। एक नया सौहार्द और भाईचारे का चलन चल पड़ा था। सबसे बड़ी बात थी कि सरकारी अत्याचार खत्म हो गया था और अमन चैन था चारों ओर!

“मुझसे सारे मेरे भाई बंद और अफगान पठान नाराज हैं!” शिकायत कर रहे थे सुलतान इस्लाम शाह सूरी। “लेकिन पंडित जी मैं समझ नहीं पाता कि ..?” निराश और प्रश्नवाचक निगाहों से उन्होंने पंडित हेम चंद्र को देखा था।

“लेकिन लोग तो आपको प्रजा पालक कहते हैं सुलतान!” हंसते हुए पंडित जी बोले थे। “आपका दर्जा लोग शहंशाह शेर शाह सूरी से भी आगे का रखते हैं!” उन्होंने अचानक ही बाप बेटे को आमने-सामने ला खड़ा किया था।

“अब्बा को समय बहुत कम मिला, पंडित जी!” टीस आये थे इस्लाम शाह। “कुल पांच साल ही तो उन्हें मोहिया हुए और उन पांच सालों में ..”

पंडित हेम चंद्र की आंखों के सामने उन दोनों का वो सुनहरा कालखंड आ खड़ा हुआ था जब उन्होंने एक के बाद दूसरी सफलता का सोपान साथ साथ चढ़ा था।

“आप ने नौ साल के कार्य काल में नौ युगों का काम कर दिया है सुलतान! आज हिन्दू और मुसलमान जिस प्रेम और भाई चारे से साथ साथ रह रहे हैं वो कभी ख्वाब जैसा था।”

“इसमें आप का सहयोग भी सराहनीय है पंडित जी!” इस्लाम शाह अचानक कह उठे थे। “आप की रीतियां ओर नीतियां बहुत ही कारगर हैं – ये हम भी जानते हैं!” उन्होंने प्रशंसा की थी हेमू की।

अचानक ही हेमू की आंखों के सामने दो हस्तियां आ खड़ी हुई थीं।

इस बार मुकाबले में इब्राहिम लोधी आ खड़ा हुआ था। बहुत अच्छा और दूरदर्शी शासक था। एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी इंसान भी था – सिकंदर लोधी से भी कहीं ज्यादा। लेकिन एक ही कमी थी जहां वह इस्लाम शाह सूरी से मुकाबला हारता था और वो थी – एक जांबाज सिपहसालार होना! अगर इब्राहिम लोधी पानीपत की जंग में अपने हाथी को न रोक लेता तो आज का इतिहास ही अलग होता। किस्मत का धनी था बाबर जो जंग जीत गया था वरना तो ..?

“आदिल से हम चाह कर भी सुलह सफाई न कर पाए पंडित जी!” टीस कर कहा था सुलतान ने। “हमने उन्हें जागीर भी दी, हमने उन्हें उनका हक भी देना चाहा लेकिन ..”

“होतव्य हो कर रहता है शहंशाह! आपकी गलती कोई नहीं लेकिन ..”

“लेकिन भी हमें नजर आ रहा है, पंडित जी!” भारी भारी आवाज में बोले थे सुलतान। “हमें नहीं बचा पाएंगे आपके चूड़ामन शास्त्री!” उनका ऐलान जैसा था। “लेकिन .. लेकिन फिरोज तो अभी कुल 12 साल का है!” फिर से इस कटु सत्य को उन्होंने पंडित जी के सामने धरा था। “क्या होगा पंडित जी?” उनकी निगाहें बोझिल थीं। “हमारे बाद ..” चुप रहे थे बहुत देर और चुप्पी भी साथ खड़ी रही थी उन दोनों के बीच। “केवल आप पर भरोसा है पंडित जी!” उन्होंने हेमू की आंखों में देखा था।

और जब सुलतान इस्लाम शाह सूरी का सूरज डूबा था तो एक नया नवेला चांद उदय हुआ था। कुल बारह साल का फिरोज शाह गद्दीनशीन हुआ था। सब जानते थे कि अब पूरी सल्तनत का दारोमदार पंडित हेम चंद्र पर ही था।

“कहे देता हूँ मुसलमानों! खबस खान अचानक जिंदा हो गये थे। “हिन्दुस्तान में अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी! ये पंडित हेम चंद्र फिरोज शाह को उलटी पट्टी पढ़ाएगा – इस्लाम शाह सूरी की तरह और हिन्दुस्तान हड़प लेगा। ये हम सब को जूते मार मार कर देश से बाहर भगाएगा – देख लेना!” उसने हाथ फैला फैला कर घोषणाएं की थीं।

“ये तो हम भी देख रहे हैं खां साहब!” आदिल शाह ने भी उनका समर्थन किया था। “हर नाके पर, हर नुक्कड़ पर और हर ठिकाने पर हिन्दू बैठा है। खजाने की चाबी खुद पंडित के हाथ में है! सेना में जाट, गूजर और राजपूत भर दिये हैं। सारा राज काज टोडरमल के हाथ में हैं! बाकी के काम नवरत्न संभालते हैं! सिपहसालारों में इनका भाई है, भतीजा है, साला है, मामा और न जाने कितने हिन्दू भर दिये हैं। अब तो मुसलमानों की आवाज ही नहीं उठती।” एक खुलासा कर दिया था आदिल शाह ने।

“लद गये लूटमार के जमाने! गया वक्त जब कोई भी तलवार घुमा कर सल्तनत कायम कर सकता था।” नियाजी ने घोषणा की थी।

“ये लोग अभी चुप बैठने वाले नहीं हैं अंगद!” हेमू समझा रहा था। “अभी तो और भी षड्यंत्र रचेंगे!” उसका कहना था। “बेखबर मत रहना!” उसने चेतावनी दी थी अंगद को।

“क्या पक रहा है हांडी में उसकी भी खुशबू पहुंच गई है सुलतान!” अंगद हंस पड़ा था।

वक्त की चुप्पी का अर्थ समझने वाला ही विद्वान कहलाता है!

मेजर कृपाल वर्मा

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