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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग एक सौ पांच

Hemchandra Vikramaditya

आदिल शाह सूरी को अंततः युद्ध में परास्त कर इब्राहिम शाह सूरी की सल्तनत कायम करने की कामना पर तुषारापात हुआ लगा था।

उसे जो सूचनाएं मिल रही थीं बहुत भ्रामक थीं। कई बार उसने सोचा भी था कि ये अफवाहें थीं, लेकिन अब तो पुष्ट प्रमाण भी उसके सामने थे। हाथी, घोड़े, तोपखाना और पैदल सेना का एक संगठित स्वरूप उसके मुकाबले में आ खड़ा हुआ था। अब इब्राहिम शाह सूरी को आक्रमण करना था लेकिन बार बार उसकी हिम्मत उसे जवाब दे रही थी। कहीं दाल में काला था वह सोचे जा रहा था।

“आदिल शाह सूरी के धोके में न रहें सुलतान!” उसे फिर से एक सूचना मिली थी। “ये हेमू है जो सामने खड़ा ललकार रहा है।” उसे बताया गया था।

“हेमू कौन?” इब्राहिम शाह सूरी ने प्रश्न पूछा था।

“वही पंडित हेम चंद्र! वो कोई पंडित-वंडित नहीं है – वह हेमू है। बादलगढ़ वाला वही हेमू जिसने ग्वालियर फतह किया था।”

पसीने छूट गये थे इब्राहिम शाह सूरी के।

“अफवाहें हो सकती हैं।” इब्राहिम शाह सूरी फिर से कयास लगाने लगा था। “आदिल की कोई चाल भी हो सकती है।” वह जानता तो था आदिल को। “एक हमला – एक जोरदार हमला!” उसने ठान लिया था।

लेकिन आदिल शाह सूरी की फौजों से भिड़ने के बाद ही उसे अहसास हुआ था कि वो हेमू के चंगुल में आ फंसा है। और जब तीन ओर से उसपर हमला हुआ था तो इब्राहिम शाह सूरी चालाकी से जान बचा कर भागने लगा था और हेमू की आशा के विरुद्ध ही मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ था।

“बहुत चालाक है।” हेमू ने हंसते हुए कहा था। “लेकिन चलते हैं – टकराते हैं!” उसका इरादा था।

हेमू ने अब निर्णय ले लिया था कि जो भी अफगान, सुलतान, सेनापति या कि कोई जागीरदार सामने आता है उसका पूरा का पूरा खात्मा कर देना है। फिर के लिए उसे जिंदा नहीं छोड़ना। और जब इब्राहिम शाह सूरी भाग कर खनुआ जा पहुंचा था तो हेमू ने भी उसकी दुम जा दबाई थी। इस बार हेमू ने सीधा आक्रमण किया था। इब्राहिम शाह सूरी को ये उम्मीद न थी। वह तो जानता था कि हेमू घात लगा कर बैठता है और दुश्मन के पंजे में आने के बाद उसे दबोच लेता है।

इब्राहिम शाह सूरी फिर से मैदान छोड़कर भागा था और उसने बयाना के किले में आकर शरण ली थी। बयाना का किला अजेय था, अगम्य था, विशाल था और कोई भी उसे आसानी से फतह नहीं कर सकता था। जाटों का ये किला अभी तक अजेय ही बना हुआ था।

हेमू के सामने संकट आ खड़ा हुआ था।

बजाए इसके कि वो बयाना किले पर आक्रमण करे उसने किले के चारों ओर से घेरा-बंदी कर डाली थी। अब इब्राहिम शाह सूरी के पास कोई चारा न रहा था। वह एक तरह से कैद था किले में और आज नहीं तो कल उसे समर्पण के सिवा कुछ और नहीं करना था।

लेकिन तभी हेमू के पास सूचना आई थी कि वह तुरंत लौटे क्योंकि बंगाल के शासक मोहम्मद शाह बुग्ती ने आक्रमण कर दिया था और वो एक बड़ी सेना लेकर आदिल शाह सूरी पर चढ़ बैठा था।

बंगाल के सुलतान मोहम्मद शाह बुग्ती का भी अनुमान था कि आदिल शाह कमजोर है, अय्याश है और यही मौका था जब वो दिल्ली को फतह कर सकता था। अतः वो एक बड़ी तैयारी के साथ दिल्ली फतह करने के अंदाज में निकला था।

लेकिन तब छपरघाटा किले पर हेमू का आक्रमण हुआ था और बंगाल के सुलतान ने देखा था कि चारों ओर से उसे घेर लिया गया था और अब फतह नहीं हार ही हार थी। उसने भी जान बचा कर भागने की कोशिश की थी।

लेकिन इस बार हेमू ने उसे बख्शा नहीं था। सुलतान बंगाल जो दिल्ली जीतने आये थे अब छपरघाटा में दफन होकर रह गये थे।

लेकिन अभी तक कमजोर और अय्याश आदिल शाह को परास्त कर उसका राजपाट छीन लेने की अफगानों की अभिलाषा मरी नहीं थी। ग्वालियर के शासक ताज खान कर्रानी जो कभी इस्लाम शाह सूरी के खिदमतगार थे और ग्वालियर में शासन कर रहे थे अब वो भी चाहते थे कि आदिल शाह पर चढ़ाई करे और फिर तो ..

आदिल शाह सूरी अब आश्वस्त था। उसे अब पता चल गया था कि पंडित हेम चंद्र ही हेमू था। वही हेमू जिसने ग्वालियर फतह किया था। उसे भी अब अनुमान था कि शेर शाह सूरी की तरह ही हेमू अब उसे भी हिन्दुस्तान का शहंशाह बना देगा। अतः उसने हेमू को हर तरह की आजादी और सारी सत्ता ही सोंप दी थी।

“कर्रानी आ रहा है पंडित जी!” तनिक मुसकुरा कर आदिल शाह ने सूचना दी थी हेमू को। “इस बार तो हम भी आपके साथ लड़ेंगे!” उसने अपनी मांग सामने रक्खी थी।

“कैसे मन बना सुलतान का?” हेमू ने हलके मन से पूछा था।

“हम चाहते हैं कि आप का युद्ध कौशल अपनी इन आंखों से देखें!” आदिल शाह सूरी बता रहे थे। “कहते हैं कि आप जो लड़ाई की तर्ज और तरीका अपनाते हैं वो बे जोड़ होता है ओर दुश्मन के पास भागने या प्राण बचाने के सिवा कोई चारा नहीं बचता।”

“चलिए! इस बार आप ही संभालिए इस कर्रानी को।” हेमू मान गया था।

छिपरामऊ पर आमना सामना हुआ था ताज खान तर्रानी की सेना और आदिल शाह सूरी की सेना का।

हेमू किसी भी कीमत पर ताज खान कर्रानी को छोड़ना नहीं चाहता था। वह चाहता था कि इस बला को भी यहीं और अभी मिटा दे। क्योंकि ताज खान कर्रानी को वह भली भांति जानता था। बहुत ही चालाक और धोके बाज शासक था। उसकी भी पूरे हिन्दुस्तान का शासक बनने की अभिलाषा अभी तक कायम थी।

ताज खान कर्रानी को जब पता चला था कि युद्ध का संचालन हेमू कर रहा था और वो पंडित हेम चंद्र ही हेमू था तो उसके होंसले पस्त हो गये थे। युद्ध आरम्भ होते ही उसे अपनी अवश्यंभावी हार दिखाई दे गई थी। वह मैदान छोड़ कर भाग लिया था। आदिल शाह सूरी खूब हंसा था।

चुनार तक उसका पीछा किया था हेमू ने। वह चाहता था कि इस चालाक दुश्मन को कहीं तक भी छोड़ा न जाए। लेकिन जब चुनार पर भी लड़ने की बजाए वह भागा था और हेमू के चंगुल में नहीं आया था तो आदिल शाह सूरी चिंतित हो उठा था।

“बंगाल चला गया है।” हेमू ने सूचना दी थी आदिल शाह को। “और आप तो जानते हैं कि बंगाल अब आप का है। लेकिन वहां है कौन जो इसे संभालेगा? और ये तो नहीं मानेगा और बंगाल ले बैठेगा।”

“पीछा करते हैं!” आदिल शाह सूरी का विचार था।

“आप चुनार पर ही रहें! किले को संभालें! और मैं इसे संभालता हूँ। देखता हूँ कि ये कितना भागता है!” हेमू ने अपनी राय दी थी। “इसे यों खुला छोड़ देना तो घातक होगा।” हेमू ने बताया था।

चुनार पर बने रहने में आदिल शाह सूरी को कोई तकलीफ नहीं थी।

और हेमू ने पूरे लाव लश्कर के साथ बंगाल के लिए प्रस्थान किया था। वह समझ रहा था कि उसे मौका मिल रहा था कि पूरे हिन्दुस्तान को वह घूम घूम कर देख ले ओर जीत जीत कर हासिल कर ले! इस बार – हां हां इस बार अगर मौका आता है तो भारत तो खाली है और भारत उसे पुकार रहा है और भारत तो ..

बंगाल जाकर हेमू ने ताज खान तर्रानी को दबोच लिया था।

ताज खान तर्रानी को इतनी उम्मीद न थी। उसे तो यही उम्मीद थी कि आदिल शाह सूरी अब उसका पीछा न करेगा और बंगाल हाथ में आने के बाद उसे कोई घाटा भी न था। लेकिन जब अचानक हेमू और उसकी अजेय सेना सामने आई तो वह आगे की उम्मीद छोड़ बैठा था।

हेमू ने भी इस बार उसे माफ नहीं किया था।

अब बंगाल हेमू के पास था। बंगाल में सियासत की व्यवस्था उसकी तो उंगलियों पर थी। यहां के लोग अभी तक पंडित हेम चंद्र को जानते थे। अभी तक वहां एक दोष मुक्त शासन प्रणाली प्रवहमान थी। हेमू को बेहद प्रसन्नता हुई थी और अब इस नए परिप्रेक्ष्य में उसे अपने हिंदू राष्ट्र का सपना साकार हुआ लगा था। उसे लगा था कि वो अब हर अफगान, तुर्क, कबाइली और मुगलों का मुकाबला करने के लिए तैयार था।

और तभी उसे सूचना मिली थी कि मुगल शासक हुमायू जिसे उसने खदेड़ा था, भगाया था और परास्त किया था अब अचानक लौट आया था।

लगा था जैसे एक नए प्रकाश का आगमन हुआ था, एक नई किरण कहीं से फूटी थी, एक सपना साकार हो सामने आ खड़ा हुआ था और हेमू अब उसके गले मिल रहा था।

“स्वागत है शहंशाह!” हेमू ने प्रत्यक्ष में कहा था। “मिलते हैं दिल्ली में!” हेमू ने ऐलान किया था।

मेजर कृपाल वर्मा
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