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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग एक सौ दस

Hemchandra Vikramaditya

आज सासाराम में एक भिन्न प्रकार की हलचल थी।

विशाल धर्मसभा का आज आयोजन था। धर्म सभा एक सप्ताह तक लगातार चलनी थी। सप्ताह के अंत में ये सुनिश्चित हो जाना था कि हिन्दू राष्ट्र का धर्म, ध्वजा और भाषा कौन सी होगी। इसके लिए पूरे भारत वर्ष से विद्वान और विचारकों को आमंत्रित किया गया था। सबसे अनुरोध था कि वो अपने विचार रक्खें और उनका विस्तार तय करें।

सभा का आयोजन राजा टोडरमल की देखरेख में हुआ था।

सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के सिंहासन के दोनों ओर उनके नवरत्नों, सभासदों, विद्वानों और दार्शनिकों तथा गणमान्य जन प्रतिनिधियों के बैठने का प्रबंध था। नारी शक्ति के प्रतीक की तरह उनसे अलग बैठने की व्यवस्था थी – जहां महारानी केसर अपनी आमंत्रित विदुषियों के साथ बैठ कर हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के लिए एक नई प्रस्तावना को प्रेषित करने वाली थीं।

गुरुलाल गढ़ी से गुरुलाल शास्त्री अपनी पूरी तैयारी के साथ पधारे थे तो वृंदावन के वल्लभ संप्रदाय के भक्त और विद्वान राय पूरनदास के नेतृत्व में पहुंचे थे। गुरुलाल गढ़ी से कुछ फारसी विद्वान और विचारक भी आए थे जो सनातन धर्म के ग्रंथों का फारसी में अनुवाद करने के लिए वहां कार्यरत थे।

जन प्रतिनिधियों में पूरे भारत वर्ष के प्रतिष्ठित लोग थे। इससे अनुमान लगाया जा सकता था कि सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य द्वारा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना एक सच्चाई बन चुकी थी।

पूरे देश से भेंट और बधाई संदेश आ रहे थे।

सभा को संबोधित करने गुरु गुरुलाल मंच पर पधारे थे।

“महावीर और बुद्ध जैसे विचारक गरूब हो चुके हैं। बोधन जैसे दार्शनिकों को जिंदा जला दिया गया है। विद्वान और ब्राह्मण या तो मर चुके हैं और या फिर कहीं भय से छुपे बैठे हैं। सनातन का सूरज गरूब होने को है और जो हमारे आज के पथ प्रदर्शक और समर्थ प्रतिनिधि हैं उन्हें ही हम अपने प्रस्तावित हिन्दू राष्ट्र के प्रतिनिधियों के रूप में स्वीकार करते हैं!

कारण स्पष्ट है! जिस दिन से इस्लाम का पदार्पण भारत में हुआ उसी दिन से उनका उद्देश्य – इस्लाम की स्थापना और सनातन का अंत, सामने आया। उन्होंने धर्मांतरण किया ओर उसके लिए साम दाम और दंड भेद की नीति अपनाई। लालच दिया, भय दिखाया, कत्लेआम किए और यहां तक कि नए नए धर्मावलंबी पैदा किए और समाज को गुमराह किया!

श्रम, आस्था और समता की सैद्धांतिक त्रयी के साथ मुसलमान शासकों ने बड़ी ही चालाकी से एक नई संत परंपरा को प्रचलित किया! श्रम के साथ भक्ति को परवान चढ़ाते हुए इन संतों ने समाज को बताया कि हिन्दू और मुसलमान एक ही हैं, ईश्वर और अल्लाह भी एक ही हैं ओर जो कुछ ये ब्राह्मण बताते हैं वो सब ढोंग है।

संत कबीर जुलाहे हैं और मुसलमान भी हैं। संत सैनाई, नामदेव रंगरेज हैं और दादूदयाल रूई की धुनाई के अपने काम में माहिर हैं। गुरु नानक ने आखिरी जीवन में अब खेती की है तो संत रैदास को भी श्रम की ये शाख रखते हुए अपने पुश्तैनी पेशे जूते बनाने में संलग्न हैं।

हमने इन संतों को, इनके पेशों को और इनकी शिक्षाओं को सम्मान दिया है! यहां तक कि मीरा जो राज रानी थीं ओर भक्त थीं उन्होंने भी रैदास को गुरु भी माना और कहा – गुरु मिल्या रैदास जी! लेकिन रैदास जी कहते हैं – कृष्ण, करीम, राम हरि राधव जब लगि एक न देखा – वेद कतेव कुरान पुरातन सहज एक नहीं देखा।

यहां हमारे ही संत हमें एक भ्रामक समता का उपदेश दे रहे हैं। वेद कुरान ओर पुराणों को समान बताकर वो हमें क्या संदेश देना चाहते हैं? मैं तो कहूंगा कि न तो उन्हें वेद पुराणों का ज्ञान है और न ही उन्होंने कुरान को पढ़ा है। मात्र मुसलमान शासकों को प्रसन्न करने का उनका ये एक उपक्रम है।

ये सभी काशी के गुरु रामानंद के शिष्य माने जाते हैं लेकिन इन्होंने गुरु रामानंद के उपदेश और संदेशों को लोगों तक पहुंचाने के बजाए वो सब कहा जो सधुक्कड़ी भाषा में लोगों की समझ में आसानी से आया और धर्म परिवर्तन करने में मुसलमान शासकों को भरपूर मदद मिली।

और इसका भयंकर परिणाम हुआ – भारत में इस्लाम का पुनर्जन्म!

मैं सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य – भारत भाग्य विधाता और हमारे मन प्राण – उनसे प्रार्थना करूंगा कि हमारे हिन्दू राष्ट्र का सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य इन्हीं इस्लामी आक्रांताओं को रोकना और सनातन धर्म की पुन: स्थापना करना होगा।

इसी संदर्भ में प्रस्ताव ला रहे हैं श्री श्री राय पूरनदास जी – सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के पिता श्री और भारतवर्ष के शोरे के प्रतिष्ठित व्यापारी।”

तालियां बजी थीं। उद्घोष और जयघोष हुए थे। सासाराम की हवा स्वयं ही हिन्दू राष्ट्र की ओर मुड़ गई थी।

“मैं – राय पूरनदास पहले अपना परिचय पूरा करना चाहूंगा।” मंच पर आए राय पूरनदास बोल रहे थे। “सर्व प्रथम मैं राय पूरनदास अपने मन वचन ओर कर्म से वल्लभ संप्रदाय के साथ बचपन से ही जुड़ा हूँ और आज भी मैं संप्रदाय की सेवा में अर्पित हूँ।” उन्होंने आंख उठा कर पूरी सभा को देखा था।

सम्मान ही सम्मान था। आदर ही आदर था। मानो आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी हो ऐसा प्रतीत हुआ था।

“प्रस्तावना से पहले मैं अपने जगत गुरु आचार्य श्री वल्लभाचार्य जी महा प्रभु – शुद्ध अद्वैत के प्रनेता की अद्वितीय उपलब्धियों के बारे आप को बताता हूँ! वो अल्प आयु में ही वृंदावन चले आए थे और उन्होंने पुष्टि मार्ग की स्थापना की थी। विजयनगरम – दक्खिन में विद्वानों से शास्त्रार्थ में मुकाबला जीता था तो वहां के लोग दंग रह गये थे। चूंकि इनका अपना परिवार तेलगू ब्राह्मणों का था और ये परिवार आंध्र प्रदेश से काशी चला आया था अत: वेद पठन-पाठन और अध्यात्म परिवार का पुश्तैनी काम बन गया था। इनका जन्म चंपारण में हुआ था। चूंकि परिवार को काशी छोड़ कर मुसलमानों के आक्रमण के कारण भागना पड़ा था अत: इनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई और बाद में इन्होंने वृंदावन में आकर कृष्ण भक्ति के आधार पर वल्लभ संप्रदाय का आरंभ किया। तीन बार पूरे भारत का नंगे पैरों भ्रमण किया और इस बीच चौरासी वल्लभ संप्रदायों की स्थापना की जो पूरे भारत में आज विद्यमान हैं।

और इस संत महान ने कुल बावन वर्ष की आयु में हनुमान घाट वाराणसी में गंगा में मुसलमानों के हाथों मारे जाने के बजाए जल समाधि ली।” ठहर कर राय पूरनदास ने समूची सभा को देखा था।

लगा था – कहीं गंगा के जल पर गुरु वल्लभाचार्य की लाश तैर आई थी और लोग हाथ जोड़े उन्हें अलविदा कह रहे थे। सभा में प्रशांत खामोशी आ बैठी थी।

“अब मैं प्रस्तावना को आगे बढ़ाता हूँ!” राय पूरनदास बोल रहे थे। “भारत वर्ष को आज हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए वल्लभ संप्रदाय की नितांत आवश्यकता है। हमारी भाषा संस्कृत और हिन्दी होगी तथा हमारा ध्वज भगवा होगा जिसपर ऊँ अंकित होगा – क्योंकि ऊॅं हमारा वेद वाक्य है।” तालियां बज उठी थीं। लोगों ने हाथ हिला हिला कर प्रस्ताव का स्वागत किया था।

“अपने चौरासी संस्थानों के साथ हम विश्व विद्यालय स्थापित करेंगे जो पूरे देश की शिक्षा दीक्षा को चलाएंगे! वेद अध्ययन तथा संस्कृत भाषा का हमें पुनरुद्धार करना होगा!”

राय पूरनदास का प्रस्ताव पूरे भारत वर्ष में एक नई आशा किरण की तरह फैलता ही चला गया था।

अब मंच पर महारानी केसर आ कर खड़ी हुई थीं।

“मैं नारी शक्ति की बात करूंगी और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के साथ साथ यह भी स्थापित करने के लिए कहूंगी कि भविष्य में हम वीरांगनाएं आग में भस्म होकर मरना नहीं चाहतीं! हम लड़ना चाहती हैं – और लड़ लड़ कर दुश्मन को मौत के घाट उतारना चाहती हैं। हम अबला नहीं सबला बनना चाहती हैं। और हम चाहती हैं कि हमारे हिन्दू राष्ट्र में उन मान्यताओं को स्थान मिले जो हमारे सनातन में पहले से ही विद्यमान हैं।”

तालियां बजी थीं। फिर जोरदार तालियां बजी थीं।

“सैनिकों के साथ साथ हम हिन्दू राष्ट्र में नारियों की सैन्य शिक्षा का प्रावधान लेकर चलेंगे – ये मेरा मत है!” केसर ने हाथ उठा कर घोषणा की थी।

स्वीकार है! स्वीकार है! सम्मान है! गुणगान है! – के अनेकानेक नारे लगते रहे थे।

इसके साथ ही आज की सभा का समापन हो गया था।

मेजर कृपाल वर्मा
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