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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग एक सौ चार

Hemchandra Vikramaditya

देर रात गये यों अंगद का आगमन रहस्यमय था।

हेमू की ही नहीं केसर की नींद भी उड़ गई थी। उन दोनों के चेहरों पर चिंता रेखाएं खिची थीं। दोनों आये अंगद को अपलक देख रहे थे। और अंगद था कि उसके पास पहुंचे उन पुष्ट प्रमाणों को उजागर करने से पहले झिझका खड़ा था। सूचना ही कुछ अजीब थी।

“हुआ क्या ..?” हेमू ने ही प्रश्न पूछा था।

“षड्यंत्र है!” संभल कर बोला था अंगद। “आपके द्वारा रक्षित फिरोज शाह सूरी का कत्ल आज रात ..” अंगद की जबान अटक गई थी। “मोहम्मद मुबारिज खान ..”

“लेकिन अंगद! ये तो सुलतान इस्लाम शाह सूरी का चचेरा भाई है। इसकी सगी बहन बीबी बाई का बेटा है – फिरोज शाह! शेर शाह सूरी के छोटे भाई निजाम खान का ही तो बेटा है – ये मोहम्मद मुबारिज खान?” हैरान था हेमू।

“इसका सर कलम करा दो साजन!” केसर क्रोधित थी। “इस दरिंदे को अभी .. इसी वक्त ..”

अंगद और हेमू ने केसर के रौद्र रूप को देख होंठ काट लिए थे। हेमू की समझ में न आ रहा था कि केसर को कैसे समझाए कि जो अभी आगे होने जा रहा था वह तो और भी भयंकर था। इस्लाम शाह सूरी के सुशासन के बाद अब जो व्यवस्था .. वह तो ..”

“हम सामने आ जाएंगे केसर!” विनम्र भाव से हेमू बोला था। “सारे अफगान, पठान, मुगल और कबाइली हमारे ही खून के प्यासे हो जाएंगे!” हेमू बताने लगा था। “और अभी वक्त का इशारा कुछ और है!” उसने पलट कर अंगद को देखा था।

अंगद को हर राज की और हर आंख की आती भनक भूली नहीं थी। वह भी महसूस रहा था कि आगे आना वाला वक्त आसान नहीं था और एक बड़ी उथल-पुथल की संभावनाएं थीं। “कर लेने दो इसे ये गुनाह महारानी जी!” अंगद ने तनिक विहंस कर कहा था। “उसके बाद ही ..” उसने पलट कर हेमू को देखा था।

राय ठीक थी। बात तय हो गई थी। हेमू ने भी अपने पत्ते फिर से फेट लिए थे। अब वक्त अगली चाल चलने का आ गया था।

और जब दिल्ली को पता चला था कि नन्हे शहजादे का कत्ल हो गया है ओर अब गद्दी हथियाने के हथकंडे हवा में सन्ना-मन्ना रहे हैं तो लोगों ने लानत भेजी थी सूरियों की संतानों के नाम।

जैसे जैसे खबर फैली थी लोग दंग रह गये थे। अब तक का चलता राज काज और इस्लाम शाह सूरी के किए उपकार लोग अभी भूले कब थे। और लोग ये भी मान रहे थे कि किसने और क्यों ये नीच कर्म किया था। करने वाले का इरादा नेक न था।

इंसानियत की आंखों में आंसू तो थे लेकिन अफगानों, मुगलों, पठानों और कबाइलियों की आंखों में अभी भी एक भूख भरी थी। लोग साफ साफ देख रहे थे इन लोगों की लालची निगाहें, हिंसक आंखें, खुदगर्ज और बेशर्म लालसाएं। निगल जाने को आतुर थे ये लोग पूरे हिन्दुस्तान को।

“बहुत बुरा हुआ पंडित जी!” मोहम्मद मुबारिज खान सबसे पहला आदमी था जो हेमू के सामने आ थूक के आंसू रोया था। वह हेमू की ताकत को पहचानता था। और वह यह भी जानता था कि फिरोज शाह उसकी हिफाजत में था। और वह जानता था कि पंडित को अगर पता चल गया तो उसकी खैर न थी। “मैं तो हैरान हूँ पंडित जी कि कितनी सफाई से ओर कितनी चतुराई से ..”

“आपने फिरोज शाह का कत्ल करा दिया?” हेमू ने सीधा प्रश्न पूछ लिया था। “और अब आप गद्दीनशीन होने का ..?” हेमू ने सीधा मोहम्मद मुबारिज की आंखों में देखा था। “आप का तो सगा भांजा था फिरोज!” हेमू की आवाज में दर्प था। “मैं चाहूँ तो ..?” भृकुटी तान कर प्रश्न पूछा था हेमू ने!

मोहम्मद मुबारिज खान के पसीने छूट गये थे। हेमू भी बेखबर न बैठा था – वह समझ गया था। हेमू की शरण में आ जाना ही उसे उचित उपाय सूझा था।

“अ .. अ .. आप! जो चाहें सो ले लें! मैं आप को सल्तनत का वजीर-ए-खारजा नियुक्त करता हूँ, पंडित जी!” मोहम्मद मुबारिज खान की आवाज डरी हुई थी। “आप ने तो सबके लिये किया है अब मेरे लिए भी?” वह पंडित जी से भीख मांग रहा था।

मोहम्मद मुबारिज खान एक जघन्य अपराध करने के बाद अपना नाम आदिल शाह सूरी रख दिल्ली के तख्त पर आसीन हुआ था ओर जब उसने हेमू को वजीर-ए-खारिजा नियुक्त कर घोषणा की थी तो कोहराम मच गया था।

शायद ही कोई था जिसने इस खबर का स्वागत किया था।

आगरा के शासक इब्राहिम शाह सूरी की त्यौरियां तन गई थीं। वह हालांकि इन मोहम्मद मुबारिज खान का साला ही था फिर भी उसे बुरा लगा था कि उसने नन्हे शहंशाह फिरोज शाह का कत्ल कर उसकी सल्तनत संभाल ली थी।

दिल्ली पर आक्रमण की घोषणा कर इब्राहिम शाह सूरी ने पक्का इरादा बना लिया था कि वह किसी भी सूरत में आदिल शाह सूरी को दिल्ली न हथियाने देगा।

ये खबर आग की चिंगारी की तरह पूरे सूरी खानदान में फैल गई थी। अब इब्राहिम शाह सूरी ही नहीं हर कोई चाहता था कि उसे भी दिल्ली की सल्तनत में हक मिले और वह भी दिल्ली का बादशाह बने!

“हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे!” आदिल शाह सूरी ने भी अपनी सेनाओं को युद्ध के फरमान जारी कर दिये थे। “अब हम इस इब्राहिम से आगरा भी छीन लेंगे।” सुलतान का ऐलान था।

दिल्ली की रक्षा सुरक्षा के लिए फौजें चल पड़ी थीं।

आदिल शाह सूरी ने राजा महेश दास को बुला कर स्पष्ट आदेश दिये थे!

“आप अपनी सेना के साथ दिल्ली के आस पास बने रहें और रमैया और जुझार सिंह को अमानत और कयामत के साथ दाहिने बाएं तैनात करें ताकि जब इब्राहिम का लश्कर दिल्ली में घुसे तो उसे पीछे से घेर कर खत्म कर दिया जाए। इब्राहिम को बंदी बना लिया जाए और फिर हम ..”

“बेहतर शहंशाह!” राजा महेश दास अमल करने में जुट गये थे।

हेमू देख रहा था कि आदिल शाह सूरी ने जो हुक्म दिये थे उसमें वो स्वयं किसी भी मोर्चे पर न थे।

“कायर है!” अंगद ने ही कह दिया था। “हारेगा!” उसकी भविष्यवाणी थी। “ये आदमी कोरा अय्याश है।” अंगद का खुलासा था।

“इसी की दरकार है हमें अंगद!” हंस पड़ा था हेमू। “दूर से रंग पानी देखते हैं। फिर जो होगा उसे संभाल लेंगे।”

और दिन दहाड़े इब्राहिम शाह सूरी ने अपनी सेना लेकर स्वयं दिल्ली को परास्त किया था और आदिल शाह ने भाग कर अपनी जान बचाई थी!

अब सारे सूरी खानदान में गृह युद्ध छिड़ गया था। हर किसी को दिल्ली ही चाहिये थी। अंत में फैसला हुआ था कि सल्तनत को चार हिस्सों में बांट दिया जाए। पहला हिस्सा दिल्ली और आगरा इब्राहिम शाह सूरी ने ले लिया था ओर दूसरा हिस्सा आगरा से आगे बिहार तक आदिल शाह सूरी को मिला था। शमशुद्दीन मोहम्मद शाह ने बंगाल हथिया लिया था। सिकंदर शाह सूरी ने विद्रोह कर दिया था और फरह पर आ कर इब्राहिम शाह सूरी से भिड़ गया था। अब इब्राहिम शाह सूरी के हाथ से दिल्ली और आगरा जाता रहा था।

इब्राहिम शाह सूरी को अब जंच गया था कि वो अब पूरी सल्तनत पर काबू कर लेगा। अतः उसने आदिल शाह सूरी पर आक्रमण कर दिया। वह तो जानता था कि आदिल शाह सूरी लड़ न पाएगा और सहज में ही उसे सब कुछ हासिल हो जाएगा।

“यहां से भी भाग कर कहां जाएंगे पंडित जी?” उदास निराश आदिल शाह पूछ रहा था। “इब्राहिम सेना लेकर आ रहा है।” उसने सूचना दी थी।

“कब तक भागते रहोगे?” पंडित जी भी पूछ बैठे थे।

“आप तो जानते हैं कि इब्राहिम ..”

“लेकिन इब्राहिम हमें नहीं जानता!” हंस गये थे पंडित जी। “शेर शाह सूरी को हमने कोई जंग नहीं हारने दी। हमने हुमायू को जो शिकस्त दी थी और जो ..” हेमू ने आदिल शाह की आंखों में झांका था। उन आंखों में तो शिकस्त ही बैठी थी। “कालपी पर लड़ चुके हैं हम हुमायू से!” पंडित जी ने याद दिलाया था। “मुझे सब याद है सुलतान! आप को निराश नहीं होना पड़ेगा!” हेमू ने एक वायदा कर दिया था।

कालपी पहुंच कर ही इब्राहिम शाह सूरी का दिमाग भनक गया था।

मेजर कृपाल वर्मा
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