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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग एक सौ बारह

Hemchandra Vikramaditya

अबकी बार ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया था।

सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के हाथों हुई हार ने मुगल सल्तनत की कमर तोड़ दी थी। सारी सेना या तो मर-खप गई थी या हतोत्साहित हुए सैनिक भाग गये थे। जब से बैरम खां ने तारदी बेग का सर कलम किया था तब से मुगल सेना और उसके सेनापतियों में एक भय उठ बैठा था। भूखे प्यासे कुछ सैनिक आस-निराश हुए यूं ही का मन बनाए पड़े थे।

“अब तो काबुल लौट चलते हैं चचा जानी!” अकबर ने बैरम खां को सलाह दी थी। “सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य हमारे हाथ आने वाला नहीं है।”

बैरम खां कई पलों तक चुप रहा था। वह सोचता ही रहा था। उसके दिमाग में उठा बवंडर उसे चैन नहीं लेने दे रहा था। वो एक अनुभवी और वक्त का बनाया सेनापति था।

“जानते हो शहंशाह पानीपत में इब्राहिम लोधी के पास कितनी सेना थी?” बैरम खां पूछ रहा था। “और खनवा में दल बल से चढ़ा राणा सांगा – मौत का दूसरा नाम था।” तनिक ठहर कर बैरम खां ने अकबर को घूरा था। “और .. और आप के अब्बा जान 15 साल की जद्दोजहद के बाद दिल्ली के सिंहासन पर आ बैठे थे।” अब बैरम खां ने अकबर को प्रश्न वाचक निगाहों से घूरा था। “अब आप – ये क्या हुक्म देना चाह रहे हैं?” बैरम खां ने पूछ लिया था।

कुल 14 साल का शहंशाह अकबर क्या उत्तर देता उस अनुभवी बैरम खां को?

और बैरम खां सोच रहा था कि – इस बार .. एक बार फिर किसी तरह वह अगर सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य को परास्त करने में सफल हो जाए तो ..

बहुत मन था बैरम खां का भी कि एन-केन-प्रकारेण हिन्दुस्तान की बादशाहत उसके हाथ लग जाए तो ..

“कोई मिलने आया है आपसे!” दरबारी ने बैरम खां को सूचना दी थी। “बुलाओ उसे!” तनिक सोच कर बोला था बैरम खां।

और जो उसके सामने आ खड़ा हुआ था वह तो एक अजूबा ही था।

“क्या चाहिए ..?” बैरम खां ने कड़क आवाज में पूछा था।

“दिल्ली!” उस युवक ने भी उतनी ही कड़क आवाज में उत्तर दिया था।

“क्या दोगे?” बैरम खां ने यूं ही रंग लेने के लिए पूछ लिया था।

“हेमू की लाश!” उस युवक का उत्तर था।

“तनिक ठहरो।” बैरम खां ने कुछ सोच कर कहा था। उसने शहंशाह अकबर को बुलाने दरबारी भेज दिया था।

बैरम खां का माथा घूम गया था। कैसा विचित्र संयोग था यह वह सोच ही न पा रहा था।

“ये युवक दिल्ली के बदले हेमू की लाश का सौदा करने आया है।” जब बैरम खां ने अकबर को बताया था तो वह भी सकते में आ गया था।

“कौन हेमू?” अकबर ने प्रश्न किया था।

“सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य!” उत्तर उस युवक ने ही दिया था। “ये हमारे टुकड़ों पर पला है शहंशाह!”

“और तुम कौन?” अकबर ने फिर पूछा था।

“कादिर! मैं .. मैं हेमू का जिगरी दोस्त हूँ। उसने मेरे साथ गद्दारी की है। मैं उसे ..”

“दी दिल्ली!” बैरम खां बीच में बोल पड़ा था। “लेकिन ..”

“मुझे सब आता है!” कादिर बता रहा था। “मेरा निशाना अचूक है। मैं हमलावर शेर की आंख में तीर बिठा देता हूँ, शहंशाह!” कादिर की सहलाती निगाहों ने किशोर शहंशाह को देखा था और हंस गया था।

बड़ी होशियारी के साथ बैरम खां ने कादिर के हाथों आने वाली घटनाओं की कुंजी संभाल ली थी।

“अब अल्लाह को क्या मंजूर है – वो देखते हैं शहंशाह!” बैरम खां की राय थी। “आप तो यहीं कलानौर पर बने रहिये। अगर काबुल भागने की जरूरत पड़ी तो मैं हाजिर हो जाऊंगा!” बैरम खां का वायदा था।

अचानक ही निरभ्र आकाश पर युद्ध के बादल छाने लगे थे जो सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के लिए एक अचंभा था। स्वयं ही उनकी उंगली हुई सामरिक चूक पर आ धरी थी। मुगल साम्राज्य को उन्होंने तुगलकाबाद पर परास्त किया था – पर नष्ट नहीं किया था। जमीं जड़ों को हरा होने में क्या लगता है?

बैरम खां और किशोर शहंशाह अकबर तो अभी भी कलानौर और जलंधर में जिंदा बैठे थे! उन्होंने चोर को तो मारा था लेकिन उसकी मां तो अभी तक जिंदा थी। बैरम खां बाबर का शागिर्द था और आसानी से हार मानने वालों में से न था। उनके काबुल जाने की खबरें शायद अफवाहें थीं। उनका इरादा तो ..

सम्राट विक्रमादित्य की नींद उड़ते ही उन्हें याद आ गया था कि रमैया – उनका जुझारू सेनापति दक्खिन गया हुआ था और जुझार सिंह राजस्थान में था। केसर भी पीहर गई हुई थी और अंगद तो न जाने कब से गायब था। यहां तक कि सैनिक भी छुट्टियां मना रहे थे और माहौल भी ठंडा था। अचानक ही उन्हें दुश्मन का हाथ ऊपर आ गया लगा था।

बिना किसी विलंब के सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य ने राजा टोडरमल और राजा महेश दास को बुला कर एक नई और नायाब रण नीति तैयार की थी।

पानीपत का युद्ध का मैदान सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के लिए नया न था। वो उसके चप्पे चप्पे से वाकिफ थे। उन्हें आज भी याद था कि बाबर ने किस तरह व्यूह रचना की थी और सफलता पाई थी। उसी घटना को ध्यान में रख कर सम्राट ने नए निर्णय लिए थे।

पानीपत दिल्ली से कुल 60 मील दूर था। राजा महेश दास को उन्होंने अपने सबसे श्रेष्ठ तोपचियों और तोपखाने को सबसे पहले पानीपत भेजने को कहा था। कहा था – हमारा तोपखाना हमारे सेनापति मुबारक खान और बहादुर खान इस तरह से तैयार करेंगे कि हमारी तोपें तीन दिशाओं में एक साथ गोले बरसा सकें और ..

“राजा साहब! हमारा विचार है कि हम हाथी, घोड़े, धनुर्धर और पैदल सैनिकों को मिला कर हमलावर टुकड़ियों का निर्माण करें और दुश्मन पर हर ओर से एक साथ हमला करें। इस बार हम चाहते हैं कि दुश्मन भागने न पाए। मिटा कर रहेंगे मुगल साम्राज्य को इस बार!”

“आप का विचार श्रेष्ठ है सम्राट!” राजा महेश दास प्रसन्न थे। “सोच तो मैं भी यही रहा था कि इस बार ..” तनिक मुसकुराए थे राजा महेश दास।

इब्राहिम लोधी की मौत का दृश्य सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य की आंख के सामने घूम गया था और हुआ वो हाथियों द्वारा विध्वंस वो भूले कब थे। फिर उन्हें महाराणा सांगा का कहा वेद वाक्य याद आया था – हाथी वफादार नहीं होता जबकि घोड़ा सवार के साथ होता है। मैं घोड़ों पर ज्यादा विश्वास रखता हूँ, कुमार!

“बात ठीक है!” सम्राट ने स्वयं को आश्वस्त किया था। “हमारी सम्मिलित टुकड़ियां दुश्मन की ठीक से चीर फाड़ करेंगी और इस बार बचेगा कोई नहीं। बैरम खां और अकबर ..”

अचानक अकबर के बारे लाहौर में हुई दरवेश की भविष्यवाणी सम्राट को याद हो आई थी। तब तो हुमायू का कोई बेटा था भी नहीं। अकबर तो बाद में अमरकोट में हिन्दू राजा के घर पैदा हुआ था और तब शेर शाह सूरी ने कितना कितना चाहा था कि अकबर को ..

“काश गुरु जी होते!” सम्राट को याद आने लगा था। “अगर केसर भी होती तो ..?” तनिक उदास हो आए थे सम्राट। “विधाता क्या चाहेगा – कौन बता सकता है?”

राजा महेश दास मिलने आए थे। सम्राट ने राजा महेश दास के चेहरे को देखकर ही मजबून भांप लिया था। उनके उदास निराश चेहरे पर किसी अनाम गम की गाथा लिखी थी।

“क्या हुआ राजा साहब!” सम्राट विक्रमादित्य ने सीधा प्रश्न पूछा था।

“गजब हो गया सम्राट!” राजा महेश दास की जबान लड़खड़ा रही थी। “कभी उम्मीद ही नहीं थी कि ..”

“हुआ क्या?” सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य हिम्मत बटोर कर बोले थे।

“हमारा तोपखाना ..”

“क्या हो गया?”

“नष्ट-भ्रष्ट हो गया! हमला कर दिया मुगलों ने। मुबारक खान और बहादुर खान भी मारे गए। बचे सैनिक भाग खड़े हुए और तोपें भी ..”

“कोई बात नहीं राजा साहब!” सम्राट विक्रमादित्य का स्वर गंभीर था। “हक होता है दुश्मन का भी कि वो वार करे।” तनिक से हंसे थे सम्राट। “अब हमारी बारी है।” उन्होंने ऊंची आवाज में घोषणा जैसी की थी। “ईंट से ईंट बजाएंगे इस बार। वो गलती अब नहीं होगी राजा साहब जो हम उस वक्त कर बैठे। युद्ध की तैयारियां करें इस बार ..”

राजा महेश दास के जाने के बाद कई लंबे लमहों तक सम्राट सोचते रहे थे कि तोपखाने पर यों हमले की घटना क्यों घटी?

“जरूर उधर कोई है – कोई ऐसा आदमी है जो मेरा मन्तव्य जानता है और मुझे पूरी तरह से पहचानता है। षड्यंत्र रचा जा रहा है और कोई मेरा – बहुत मेरा उसे अंजाम दे रहा है।” सम्राट को जंच गया था।

सामने तो आएगा ही आज नहीं तो कल!

हंस गये थे सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य!

मेजर कृपाल वर्मा
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