Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग छियासी

Hemchandra Vikramaditya

“क्या करें पंडित जी?” शेर शाह सूरी की आवाज में बेबसी थी। उसकी आंखों के सामने अंधेरा था। चेहरे की चमक जाती रही थी। उसे सम्मुख खड़ी हार बुरी तरह हरा रही थी और डरा रही थी। पूछा प्रश्न भी उसकी निपट लाचारी थी।

“आक्रमण!” पंडित हेम चंद्र कह उठे थे। “हमला करेंगे ..” उनकी आवाज में दम था। “हम न हारेंगे सुलतान!” उन्होंने मुसकुरा कर कहा था। “कल हम हमला करेंगे।”

शेर शाह सूरी चुप था। वह होने वाले हमले की बात को समझने का प्रयत्न कर रहा था। सारी मजबूरियां जान कर भी पंडित हेम चंद्र हमला करने के निर्णय पर कैसे पहुंचे – वह समझ ही न पा रहा था। अचानक उसे डर लगने लगा था।

“लेकिन पंडित जी ..?”

“जश्न मनाओ! लड़ाई की तैयारियां करो!” पंडित जी ने स्पष्ट कहा था। “अब डरो मत सुलतान! जीत तुम्हारी होगी।” पंडित हेम चंद्र ने पूर्ण विश्वास के साथ कहा था।

और अचानक ही डरी बैठी, भूखी प्यासी सेना में एक नई उमंग उठ बैठी थी। मात्र पंडित हेम चंद्र के आने से ही सेना में एक आशा किरण फैल गई थी। सैनिक जानते थे कि पंडित जी ने कुछ न कुछ करिश्मा तो कर ही दिखाना था .. और ..

महाराजा माल देव को सूचना मिल गई थी।

“अब क्या करें ..?” महाराजा माल देव का प्रश्न था। उन्होंने सामने बैठे अंगद को गौर से देखा था। वह जानते थे कि अंगद अवश्य ही कोई प्रस्ताव लेकर आया था। अब तक की जो सूचनाएं मिली थीं – भयानक थीं। यहां तक कि उनके सेनापतियों ने – क्या प्रस्ताव लाए हो, अंगद से पूछ लिया था।

“जोधपुर!” अंगद का सुझाव था। “रातों रात लौट लो!” वह बता रहा था। “जोधपुर पर शेर शाह की पहुंच अब न हो पाएगी। सेना – भूखी प्यासी सेना .. मरता क्या न करता के उन्माद में है। फाड़ खाएगी। चालीस तोपों का मुंह जब खुलेगा तो ..”

“लेकिन ..?”

“पंडित जी की राय है। मानें न मानें!” अंगद ने हाथ झाड़ दिये थे।

शेर शाह सूरी के पैरों तले की मिट्टी निकल गई थी जब उसे पता चला था कि तोपों का तो इस्तेमाल ही न हो पाएगा! बारूद गीला था और ..

“हार जाएंगे पंडित जी!” शेर शाह सूरी का स्वर कातर था।

“हमला नहीं रोकेंगे!” पंडित जी ने भी स्पष्ट कह दिया था। “हथियार नहीं सैनिक लड़ता है और वही जीतता है।” उनका कहना था। “मन बन गया है – सेना का!” वह बता रहे थे। “जीत हमारी होगी शहंशाह।”

“जीत हमारी होगी महाराज!” सेनापति शिव करण छाती ठोक कर ऐलान कर रहा था। “यों कायरों की तरह मैदान छोड़कर हम न भागेंगे।” उसका निर्णय था। “आप क्यों चिंता कर रहे हैं?”

“इसलिए शिव करण कि शेर शाह की विशाल सेना है, चालीस तोपें हैं और अस्सी हजार घुड़सवार हैं! कैसे संभालोगे? अभी आज रात को ही जोधपुर के लिए कूच करो! ये मेरा आदेश है – शिव करण!” उन्होंने तय कर दिया था।

“पर हम न लौटेंगे रण छोड़ कर महाराजा!” जैतसी उमावत – रणबांकुरा सेनापति बोल उठा था। “है क्या शेर शाह हमारे सामने।” उसने ललकार कर कहा था। “रण करेंगे महाराज!” उसने ऐलान किया था।

उमावत के साथ साथ जैता और कुंभा दोनों रण बांकुरे सिपहसालार भी जोधपुर लौटने से साफ नाट गये थे। उनका इरादा भी रण करने का था। उन सब का इरादा सुलतान शेर शाह सूरी को मिट्टी में मिलाने का था। वह वीर राजपूत रण में पीठ दिखाना पाप मानते थे।

और महाराजा राव माल देव राठौर जोधपुर लौट गये थे जबकि उनके सिपहसालार – शिव करण, जैता, उमावत और कुंभा जंग करने की तैयारियां कर रहे थे।

हेमू की समझ में पूरा खेल समाया हुआ था। फौजें उसी के इशारे पर चल पड़ी थीं। रण भूमि का दृश्य भी उजागर होने लगा था।

“अगर हमारी हार होती है तो हम राजपूतों की आंख बचा कर दिल्ली लौट लेंगे।” सुलतान शेर शाह सूरी ने भी अपनी मुकम्मल तैयारी कर ली थी। उन्होंने अपने अंग रक्षकों और वफादारों को रात में ही ये बता दिया था ओर सबने पूरी तैयारी कर ली थी।

हेमू भी बेखबर न था।

गिद्धों की तरह घात लगाये राजपूतों पर अफगानों की सेना बाजों की तरह टूट पड़ी थी। राजपूतों को बजाए तोपों की गर्जन तर्जन के अफगानों की सेना की ललकार ही सुनाई दी थी। दोनों ओर की सेनाएं अब बढ़ चढ़ कर वार पर वार कर रही थीं और युद्ध अपने चरम की ओर चल पड़ा था।

राजपूतों के सेनापति शिव करण ने युद्ध का संचालन स्वयं किया था।

सामने के मोर्चे पर सेनापति उमावत जूझ रहा था तो दाएं कुंभा और बाएं जैता ने युद्ध की बागडोर संभाली हुई थी। राजपूत सैनिक अफगानों पर भारी पड़ रहे थे। लाख कोशिशों के बाद भी शेर शाह सूरी उन्हें पीछे हटाने में असमर्थ रहा था। जैता ने बढ़त हासिल की थी और बाईं ओर से जानलेवा आक्रमण किया था। कुंभा भी पीछे न था और उसने भी अफगान सेना को समेटना आरम्भ कर दिया था। शिव करण को विश्वास था कि अब दुश्मन प्राण बचाकर भागेगा।

आदिल शाह मरते मरते बचा था और उसकी सेना भी लड़खड़ाने लगी थी। चाह कर भी वह आगे न बढ़ पा रहा था। गौर खान को तनिक सी सफलता मिली थी। उसने मौका पाते ही बाएं से हमला किया था। लेकिन उमावत ने उसे संभाल लिया था। अब उमावत भी आगे बढ़ने लगा था ओर अफगान सेना डगमगाने लगी थी।

शेर शाह सूरी ने कई बार मन बनाया था कि राजपूतों के बीच जा घुसे और उन्हें परास्त करके युद्ध जीत ले। लेकिन न जाने क्यों उसकी सामर्थ्य ने आज जवाब दे दिया था।

अब अफगानों की हार निश्चित थी।

शेर शाह के इशारे पर दिल्ली लौटने का क्रम जारी हो गया था। उसके अंग रक्षक और वफादार आस पास आ लगे थे। अब शेर शाह ने भी घोड़ा बदली कर दिया था और ..

“सुलतान!” एक आवाज सुनी थी शेर शाह सूरी ने। “उमावत मारा गया।” सूचना मिली थी। “जैता भी खेत रहा।” फिर से सूचना मिली थी। “आगे बढ़ो!” एक आदेश आया था।

ओर न जाने क्यों शेर शाह इस आदेश की अनसुनी न कर पाया था। उसे लगा था कि ये पंडित जी का आदेश था, सच था, सही था ओर उसे अब दुश्मन से भिड़ जाना था – जूझ जाना था।

राजपूत सेना सेनापतियों के खेत रहने के कारण गड़बड़ा गई थी और शिव करण के हाथ से फतह जाती रही थी। अचानक ही सारा दृश्य बदली हो गया था। शेर शाह सूरी ने राजपूतों का होंसला तोड़ डाला था। अब वो पीछे हटने लगे थे और अंत में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था।

अफगान सेना की भारी क्षति हुई थी। जहां आदिल शाह मरते मरते बचा था वहीं गौस खान प्राण गंवा बैठा था। राजपूतों के दो सेनापतियों के बदले शेर शाह के सात सेनापति मारे गये थे।

“अगर माल देव की समूची सेना से मुकाबला होता तो ..?” पंडित हेम चंद्र का प्रश्न था।

“हार निश्चित थी!” शेर शाह ने एक अच्छा सच्चा उत्तर दिया था। “और अगर आप न रहते तो हम शायद हार ही जाते।” उसने स्वीकारा था। “बेकार ही रहा सब।” तनिक उदास होकर कहा था शेर शाह सूरी ने। “चंद बोरे बाजरा पाने के लालच में हिन्दुस्तान का राजपाट जा रहा था।” वह तनिक सा हंसा था। “यहां धरा क्या है पंडित जी?” उसने मुड़ कर पूछा था।

“राजपूत हैं – जिनके पास जान है जहान नहीं!” पंडित जी कह रहे थे। “ओर ये जान का लालच करते ही नहीं!” उनका कथन था। “क्यों दीवारों से सर मारते हैं शहंशाह?” पंडित जी राय दे रहे थे। “ये लोग स्वयं हमारे साथ आ मिलेंगे अगर आप ..?” पंडित जी का इशारा हिन्दू मुसलमानों के साथ साथ रहने सहने की ओर था।

“लेकिन पंडित जी ..” शेर शाह सूरी को उलेमाओं की याद हो आई थी।

“अमर कोट में हुमायू को शरण किसने दी?” पंडित जी ने याद दिलाया था। “हिन्दुओं के घर में शास्त्रीय विधि विधान से पुत्र अकबर का जन्म हुआ और भविष्य वाणी भी हुई ..?” पंडित जी ने मुड़ कर शेर शाह सूरी की आंखों में देखा था।

अचानक ही जैसे मामा कंस को पैदा हो गये कृष्ण की खबर मिली हो – शेर शाह सूरी सतर्क हुआ लगा था। लगा था – अकबर उसके हाथ से हिन्दुस्तान को छीने ले रहा था और वो छटपटा रहा था।

“हुमायू का क्या करें पंडित जी?” शेर शाह सूरी ने टीसते हुए पूछा था।

लेकिन पंडित जी ने कोई उत्तर नहीं दिया था। वो चुप ही बने रहे थे।

मेजर कृपाल वर्मा
Exit mobile version