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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग छियालीस

Hemchandra Vikramaditya

अंजान और अनाड़ी सा सामने खड़ा ग्वालियर आजम खान शेरवानी को भोला, सच्चा ओर सीधा एक हिन्दू जैसा लगा था – जो बलिदान देने के लिए तैयार खड़ा था!

आजम खान शेरवानी की ऑंखें चमक उठी थीं। उसे अपना सपना आज पूरा होता लगा था। ग्वालियर की फतह उसकी पहली फतह होगी और यहीं से उसने अपने साम्राज्य की स्थापना का आरंभ होगा! वह ग्वालियर ले लेगा फिर इब्राहिम को अंगूठा दिखा देगा और किसी को हवा तक न लगने देगा!

तीस हजार रिसाला और तीन सौ हाथियों का जत्था एक जंगी ताकत थी। ग्वालियर से भी उसे अपार धन जन और सेना मिलेगी – वो सोच रहा था। दिल्ली में क्या धरा था – वह हंसा था ..

आजम खान शेरवानी ने सूरज की पहली किरण को सलाम किया था ओर ग्वालियर पर धावा बोल दिया था!

आजम खान शेरवानी हाथियों के जत्थे का स्वयं संचालन कर रहे थे!

हाथियों के जत्थे के ठीक पीछे पैदल सैनिक तैनाती पर थे – जिन्होंने किले पर कब्जा करना था। दाहिने और बाएं से रिसाले का हमला उस वक्त आना था जब हाथियों के जत्थे ने किले पर आक्रमण करना था। किले में भी वो स्वयं युद्ध संचालन करेंगे और सब कुछ अपनी निगरानी में ले लेंगे – उनका इरादा था!

सूर्यास्त होते न होते ग्वालियर उनके कदमों पर आ गिरेगा! और जब इब्राहिम का चमचा हेमू दरियाफ्त करने आयेगा तो वो उसे फौरन बंदी बना लेंगे और वहीं सरेआम उसका सर कलम करा देंगे!

“अंत ला दूंगा – इब्राहिम लोधी का!” आजम खान हंस पड़े थे। “फिर क्या दिल्ली और क्या आगरा – सब कुछ हमारा होगा!”

तभी हॉं हॉं तभी आजम खान शेरवानी ने एक अजीब कोलाहल सुना था! चीख पुकारें थीं। हल्ला गुल्ला था। और शायद कहीं मार धाड़ भी आरंभ हो गई थी। उन्होंने मुड़ कर देखा था। हाथी के ऊपर से साफ साफ नजर आया था कि उनके ठीक पीछे उन्हीं के पैदल सैनिकों में ये हाहाकार मचा था और घोर संग्राम शुरु था। गुरिल्लों ने पीछे से हमला कर दिया था!

तेजी से मुड़े थे आजम खान शेरवानी। लेकिन पूरे हाथियों के जत्थे को मुड़ने में भी बहुत समय लगा था। अब तक उनकी सेना में भगदड़ जैसी शुरु होने लगी थी। रिसाले का हमला होने में अभी तक देर थी। अतः उन्होंने स्वयं हाथियों के जत्थे को युद्ध में झोंक दिया था।

लेकिन ये क्या? जैसे ही वो मुड़े थे उनपर बादल गढ़ के किले से तीरों की वर्षा हाेने लगी थी। अब चुन चुन कर हाथियों के महावत और उनके महारथियों को मारा जा रहा था। वह न छुप पा रहे थे न भाग पा रहे थे! हमला भी करते तो कहां? हमलावर तो पूरी तरह से अदृश्य था।

ओट से पूरे दृश्य का जायजा लेता हेमू मान रहा था कि अभी तक कादिर किले में दाखिल न हो पाया था! उसके पांच – एक एक हजार के दस्तों को किले की पीछे की अभेद्य दीवार पर चढ़कर किले में चोरी से प्रवेश पाना था! भीतर घुसने के लिए मुकम्मल बंदोबस्त था। तकाजा था तो वक्त का ही था!

और अब आजम खान शेरवानी के हाथियों के जत्थे, पैदल सेना और घुड़सवार सारे के सारे एक साथ तौमरों के माया जाल में आ फंसे थे!

जो भी जिधर भी भागता या बचता उसपर उसी दिशा से हमला आ जाता! और कमाल तो ये था कि हमलावर उनके सामने न था – पर था! न जाने कहां से और कैसे कहर बरपा रहा था दुश्मन!

आजम खान शेरवानी को अब अपना सूरज गरूब होता लगा था। इब्राहिम लोधी की फौजें कहां थीं – वह सोचने पर मजबूर हुआ लगा था। लेकिन तभी उनके हाथियों के जत्थे पर जानलेवा हमला हुआ था!

सूरज आधे आसमान पर चढ़ आया था!

हेमू मान रहा था कि अब किसी पल भी कादिर किले के ऊपर दिखाई दे जाएगा!

आजम खान शेरवानी ने जान बचाने के लिए हाथी को मोड़ा था। वह अब बच निकलने के लिए भागा था। लेकिन उसे घुड़सवारों ने चारों ओर से घेर लिया था!

कादिर अब किले पर था! हेमू ने उसे देख लिया था!

हेमू ने हमला कर दिया था।

बुरी तरह से घायल हुए और मरणासन्न आजम खान शेरवानी को सबसे पहले उसने निकल भागने का रास्ता मोहिया कराया था। आजम खान शेरवानी ने मुड़कर पीछे नहीं देखा था। लेकिन हॉं – भागते भागते उसे हेमू का हाथी नजर आ गया था। मारे क्रोध के उसका तन बदन जल गया था!

अब तौमरों के हैरान होने की बारी थी!

किले के भीतर से अब उनकी फौजों पर तीरों की वर्षा हो रही थी। अब उनके सैनिक मरने लगे थे। जैसे ही उनके हाथियों का हुजूम किले की ओर भागा था उनपर पीछे से हेमू ने हमला कर दिया था। और जब उनके गुरिल्ला अपने बिलों की ओर भागे थे तो उन्हें रिसाले ने घेर लिया था!

हैरान परेशान विक्रम जीत सिंह बदल गये दृश्य को देख कर बुरी तरह से घबरा गया था! अभी अभी तो वह अपनी जीत के नगाड़े बजाने के लिए तैयार हुआ था! अभी अभी तो लग रहा था कि शाही फौजों का दमन हो चुका था और शायद कभी भविष्य में भी वो ग्वालियर पर आक्रमण करने की न सोचें? लेकिन अब ..?

मुड़कर देखा था विक्रम जीत सिंह ने तो बादल गढ़ कादिर खान की गोद में जा बैठा था! हर नुक्कड़ पर, हर कोने में और हर खंदक में कादिर के सैनिक आ बैठे थे। किले में मौजूद सारे सैनिक मारे गये थे और बाकी भाग गये थे।

हेमू ने ग्वालियर की सेना को जैसे मुठ्ठी में ले लिया था! उन्हें कहीं से भी भागने का रास्ता न मिल रहा था। जहॉं भी जाते, जिधर भी जाते – मौत पाते! अब क्या हो – तेज पाल तौमर की समझ में ही न आ रहा था! उसने किले में घुस कर जब जान बचाने की कोशिश की थी तो उसे वहीं पकड़ लिया गया था!

“जान सलामती के लिए हथियार डाल दो!” हेमू ने अपने हाथी पर खड़े होकर ऐलान किया था। “हम खून खराबा नहीं चाहते!” उसने कहा था।

हेमू की आवाज हर कान तक पहुंची थी और न जाने किस करिश्मा के तहत सबने हथियार डालना आरंभ कर दिया था।

कादिर ने महाराजा विक्रम जीत को बंदी बना लिया था और तेज पाल तौमर हेमू के हिस्से आ गया था! बाकी तो संपूर्ण समर्पण होते होते शाम ढल गई थी!

“शेरवानी को क्यों बचा लिया?” हेमू ने हेमू से ही प्रश्न किया था।

“जो होता है – किसी भले के लिए होता है!” अचानक हेमू ने गुरु जी की आवाज सुनी थी। “क्या पता .. तुम्हें क्या पता हेमू कि कल क्या होगा?” गुरु जी हंस रहे थे।

कादिर अभी भी किले की साज संभाल में लगा था!

हेमू बंदी बने विक्रमाजीत के साथ किले पर खड़ा होकर ग्वालियर के सूर्यास्त को देख रहा था!

“तुम ने .. तुम ने ..!” विक्रम जीत सिंह हेमू से कुछ पूछने का प्रयत्न कर रहे थे। “अगर तुम न होते तो हमने इन अफगानों की यहीं कब्र खोद देनी थी! हमने इन्हें ..?” विक्रम जीत की आवाज टूट गई थी। गला रुंध गया था। उन्हें अपनी हार पर गहरा अफसोस था! “शायद .. हमारा दुर्भाग्य ..” उन्होंने लम्बी सांस छोड़ी थी।

हेमू ने भी महसूसा था कि ये हिन्दुओं का दुर्भाग्य ही था जो उन्हें परास्त किये दे रहा था। वरना तो वीरता में, साहस और सामर्थ्य में तो हिन्दू सबसे श्रेष्ठ थे।

“दिखाएंगे अपना ग्वालियर ..?” हेमू ने बड़ी ही नम्रता से महाराजा विक्रम जीत सिंह से आग्रह किया था।

विक्रम जीत सिंह बहुत देर तक चुप ही बने रहे थे। अपनी हार का अफसोस उन्हें खाए जा रहा था और अपने जिंदा बच जाने का हादसा भी वो झेल नहीं पा रहे थे!

“हंसना चाहोगे .. हमारी हार पर ..?” विक्रम जीत सिंह ने आहत आवाज में प्रश्न पूछा था।

“नहीं!” हेमू ने उसी विनम्र आवाज में उत्तर दिया था। “आपके वैभव के दर्शन करना चाहूंगा, आपकी परंपराओं को नमन करूंगा ओर यह समझने की कोशिश करूंगा कि ..”

महाराजा विक्रम जीत सिंह ने एक बार फिर हेमू को ऑंख उठा कर देखा था!

एक प्रियदर्शन पिंडी विक्रम जीत सिंह के सामने खड़ी विहंस रही थी! न जाने क्या था हेमू की ऑंखों में जो उन्हें सम्मोहित कर रहा था! और न जाने क्या जादू था उसकी जबान में जो सारे का सारा जंग का जहर पी गया था!

“आइये!” बड़े ही आदर के साथ कह कर विक्रम जी सिंह ने हेमू को अपने साथ ले लिया था।

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