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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग छिहत्तर

Hemchandra Vikramaditya

“हुमायू से बात संभल नहीं रही है!” निपट एकांत में बैठे अंगद और हेमू मशविरा कर रहे थे। “एक तो नासमझ है ये हुमायू! है ही कुल बाईस साल का!” अंगद ने जानकारी दी थी। “फिर थोड़ा रहमदिल इंसान भी है। ये बाबर की तरह खूंखार नहीं है। और इसके भाई भी ..” अंगद रुका था।

“साथ नहीं दे रहे?”

“अब तो जग जाहिर है इनकी दोस्ती और दुश्मनी! एक छोटे का तो कत्ल हो ही गया है! और अब जो काबुल कांधार वाला है उसकी आंख दिल्ली पर है। और इसका जीजा भी इसी ताक में है कि इसे कंधा मारे और दिल्ली ले ले!”

“फिर ये क्यों ..?”

“बाबर कह कर जो मरा था! उसने हुमायू को अपने सभी भाइयों को हिस्सा देने को कहा था। और ये बेचारा ..” और अंगद की आंखों से भी बेचारगी टपकने लगी थी।

हेमू की समझ में अब खेल समाने लगा था।

वह भी नहीं चाहता था कि हुमायू के पैर जम जाएं! मुगलों से तो अच्छे अफगान पठान ही थे। जो बाबर ने जुल्म ढाए थे वो तो जघन्य अपराध थे! और आगे चलकर ये हुमायू भी क्या गुल खिलाएगा – किसे पता था?

“बिहार तो गया हुमायू के हाथ से!” अंगद ने बात आरम्भ की थी। “शेर शाह सूरी अब नहीं छूने देगा इसे बिहार!”

“कैसे ..?” हेमू ने पूछा था।

“अरे सम्राट! ये शेर शाह भी तो बाबर का चेला है। पानीपत में बाबर के साथ ही तो लड़ा था! और अब बिहार में जागीर लेकर बैठ गया और अब मौका आते ही बनारस पर भी कब्जा कर लिया। लेकिन बाबर तो इसका बाप था। जब चढ़ बैठा था बिहार पर तो ये भी सब छोड़ छाड़ कर भाग लिया था।”

“और अब बाबर के मरते ही बिहार को लेकर बैठ गया?”

“जी हॉं!” अंगद ने हामी भरी थी। “बहुत शातिर है! वो जो नाबालिग जमील खान था – वह तो बेचारा बंगाल भाग गया है। लेकिन अब बंगाल वाला इसे आंखें दिखा रहा है। और हो सकता है कि इसे बिहार छोड़कर भी भागना पड़े!”

“क्यों ..?”

“कैसे टिकेगा बंगाल के सामने? है क्या इस पर! खाली बैठा है।” अंगद का दो टूक उत्तर था।

“और हुमायू?” हेमू ने फिर से पूछ लिया था।

“अभी तो अइयाशियों में डूबा है! उसे नहीं कोई फिकर फाका! मस्त तबीयत का आदमी है!” हंसा था अंगद। “बाबर के बिलकुल विपरीत है!” अंगद की अपनी राय थी।

“बिहार में .. हमारा कोई है, अंगद?” हेमू का प्रश्न था।

“हॉं है तो एक छोटा सा अंकुर!” अंगद ने कुछ सोच कर बताया था। “पुरविये हैं!” उसने नाम धरा था। “उज्जैनिए कहलाते हैं! ये आये भी उज्जैन से थे। राजा भोज के वंशज हैं – परमार राजपूत! पांडवों की रक्षा के लिए आये थे और यहीं रह गये थे! लड़ाके तो हैं लेकिन .. इनके महाराजा ..” अंगद बताता रहा था और हेमू का मन उड़ कर उन उज्जैनियों के पास पहुंच गया था।

“शेर शाह सूरी ..?”

“अरे जनाब ये वही शेर खान तो है जिसने शेर मार दिया था। घर से भाग कर ये जौनपुर रहा था और वहीं इसकी दीक्षा हुई थी। सासाराम में पैदा हुआ है। ये अफगानिस्तान का नहीं है। है तो बहादुर लेकिन ..?” अंगद ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया था।

अंगद के जाने के बाद हेमू लम्बे समय तक राजनीतिक परिदृश्य को खुली आंखों देखता रहा था। हुमायू से उसे कुछ न मिलना था – यह तो तय था। लेकिन शेर शाह सूरी के साथ गोट बैठ सकती थी। न जाने क्यों और कैसे उसने शेर शाह सूरी में कुछ देख सा लिया था। लगा भी था कि उसने शायद शेर शाह सूरी को पानीपत में देखा था। हो सकता था कि ये वही शेर खान था जो ..

उज्जैनियों से मिलने का मन बन आया था हेमू का!

खून खून को पुकारता है – हेमू सोच रहा था। चित्तौड़ से कितना कुछ नहीं मिला था? और अगर बात बनी तो बिहार में भी उसे पैर रखने की जगह मिल सकती थी। अंगद को भेज कर पता करेगा उज्जैनियों के रुख और रुझान का – हेमू ने निर्णय ले लिया था!

अब्दुल आया था तो हेमू की बाछें खिल गई थीं।

“है कोई और ओने पोने का मुरीद?” हेमू ने हंस कर पूछा था। गुजरात का हुआ मुनाफे का सौदा हेमू को याद था।

“है!” अब्दुल ने हाजिर जवाबी दिखाई थी। “शेर शाह सूरी है!” अब्दुल तुरंत ही मुद्दे पर आ गया था। “सुलतान बहादुर से भी ज्यादा बुरे हाल में है!” अब्दुल बयान करता रहा था।

“कैसे?” अब हेमू भी उत्सुक था। सतर्क भी था। मात्र शेर शाह सूरी का नाम आते ही वह जाग सा गया था।

“दो पाटों के बीच आया खड़ा है! इधर कुआं तो उधर खाई!” पहेली बुझाई थी अब्दुल ने। “बंगाल से हमला आयेगा .. नहीं तो हुमायू ..” अब्दुल ने रुक कर हेमू को देखा था। “और पिटेंगे – अगर कुछ सौदा सपाटा न जुड़ पाया तो ..”

“तो ..?” हेमू का धीरज छूट रहा था।

“चलते हैं!” अब्दुल हंस गया था। “माल तो मिलेगा!” उसने घोषणा की थी। “और मूंह मांगा मिलेगा सम्राट! फिर ओने पोने ..”

दोनों हंस पड़े थे। दोनों की मुरादें और मंतव्य मिल गये थे!

इस बार भी हेमू का दिमाग व्यापार से आगे कुछ खोज निकालना चाहता था। अंगद को साथ लेना न भूला था वह। जिज्ञासा थी उसे शेर शाह सूरी से मिलने की और आशा थी कि व्यापार से आगे का अगर कुछ मिलेगा तो उसका रास्ता शेर शाह सूरी ही बताएगा!

केसर ने अपनी व्यक्तिगत परंपरा के अनुसार हेमू को चंदन का टीका लगा कर और पैर छूकर विदा किया था। इस बार उसने देवी माता का व्रत भी रक्खा था। हेमू के हर इरादे से केसर सुगंध की तरह जुड़ी थी!

शेर शाह सूरी को लगा था जैसे अल्लाह ने उसकी मदद के लिए ये दो फरिश्ते भेजे थे! हेमू से होने वाली मुलाकात का मतलब वो समझ गया था। वह समझ गया था कि अब अल्लाह उसके हक में था!

“पंडित हेम चंद्र शोरे के प्रसिद्ध व्यापारी हैं!” अब्दुल ने परिचय दिया था। शेर शाह सूरी ने भी सामने आ बैठे उस आकर्षक युवक को खोजी निगाहों से देखा था। उसके ललाट पर लगा सफेद चंदन का तिलक न जाने क्यों उसे बहुत भा गया था। दप दप जलती तेजवान आंखों से एक नई रोशनी निकलती लगी थी – सूरी को! “गुजरात के सुलतान बहादुर शाह को इन्होंने ही तोपें बेची हैं! कारखाना अपना है! और अगर आप चाहें तो सेवा ..”

“हमें भी चाहिये तोपखाना!” शेर शाह सूरी तुरंत बोला था। “कीमत बताइये आप?”

“वही – जो सुलतान गुजरात से लिया है!” अब्दुल ने बात घुमा दी थी। “लेकिन पैसा पहले ..”

“पहले ही लीजिए जनाब!” शेर शाह सूरी उछला था। “और क्या है आपके पास, पंडित जी?” शेर शाह सूरी पूछ रहा था।

“तुर्की के घोड़े मिल जाएंगे!” हेमू का स्वर विनम्र था। “और जो भी सेवा आप कहेंगे – हम करेंगे!” हेमू ने बात आगे बढ़ा दी थी।

“हमें तो बहुत कुछ चाहिये ..!”

“सब कुछ मिलेगा!” हेमू ने भी हामी भरी थी।

“सैनिक .. मेरा मतलब है कि सेना ..?”

“वह भी मिलेगी!” हेमू मुसकुराया था। “चंद दिन की मोहलत दीजिए! आपकी हर मांग पूरी कर के लौटेंगे!”

और उस दिन के बाद हेमू ने अंगद को भेज कर उज्जैनियों के राजा रायपथ को बुलवा लिया था। रायपथ भी तैयार बैठा था। केवल सेवा के बदले इनाम इकरार मिलना तय होना था। हेमू ने भी दोनों पक्षों को आमने सामने बिठा कर सब कुछ तय करा दिया था।

“अभी देने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है राजा साहब!” शेर शाह सूरी ने खुलासा किया था। “पर फिर भी आप युद्ध के बाद लूट का सारा माल ले जा सकते हैं!” उसने वायदा किया था।

“हमें मंजूर है!” राजा रायपथ मान गये थे।

हेमू लौटते वक्त दो दिन राजा रायपथ के यहां रुका था!

और अब दिल्ली में बैठा बैठा हेमू अपने हिन्दू राष्ट्र के सपने की पीठ थपथपा रहा था!

मेजर कृपाल वर्मा

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