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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग चवालीस

Hemchandra Vikramaditya

“सिकंदर तक का राज-पाट हम सब का शामिल था!” दीपालपुर का शासक असब खान कह रहा था। “अब इसे बांट लेते हैं।” उसका सुझाव था। “उसके बाद जो जितना चाहे – खाए!” उन्होंने ऐलान जैसा किया था।

उनकी बात का विरोध किसी ने नहीं किया था। मन था सबका कि अब राज का बंटवारा हो ही जाए!

“देखिये, जनाब!” उलेमा नसरुद्दीन बोले थे। “इस बात पर सहमति हो चुकी है कि ग्वालियर की जंग के बाद ही कोई बंटवारे की बात होगी। आप लोगों को न्योता पहुंचेगा । समय और जगह तय की जाएगी और ..”

“न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी!” तातार खान बोल पड़ा था। तातार खान दौलत खान का बेटा था और आलम खान का पोता था – जो अब लाहौर के मालिक थे। “मैं तो देख रहा हूँ कि इब्राहिम भाई – हेमू जैसे हिन्दू गद्दारों को ..”

“बड़ा वफादार साबित हो रहा है हेमू, जनाब!” अब असदउद्दौला बोले थे।

“वफादार कुत्ता होता है, असद साहब – इंसान नहीं!” तातार खान हंसा था। और भी लोग हंस पड़े थे। “और पालतू कुत्ते के गले में भी पट्टा डालकर रखना होता है?” उसने एक चेतावनी को हवा में उछाल दिया था। “सांप पालने का शौक चढ़ा है, इब्राहिम भाई को!” उसने विश वमन किया था।

“बादशाह आगरा कूच कर गये हैं!” सबको सूचना दी गई थी। “आप लोग चाहें जब अपनी मर्जी से लौट जाएं!” ऐलान हुआ था।

“ईंट से ईंट बजेगी!” नसीर खान लोहानी ने ललकारा था। “जलाल को उसका हक मिलेगा! कालपी में राजधानी बनेगी जलाल की और गाजीपुर उनका साथ देगा!” नसीर खान लोहानी ने खुले आम बगावत कर दी थी।

कालपी, जौनपुर और गाजीपुर के काफिले दिल्ली से कूच कर गये थे! फिर लाहौर वालों ने भी जाने का मन बना लिया था और आहिस्ता आहिस्ता सब लोग खिसकने लगे थे। इब्राहिम लोधी का मन चाहा सब होता चला जा रहा था!

आगरा में चैन से बैठा इब्राहिम लोधी कुछ विशिष्ट लोगों के साथ बैठकर बातें कर रहा था!

“अरब सागर में तुर्कों ने अपना अदल जमा लिया है, बादशाह!” कमाल जमाली जो तुर्की से पधारे थे, बता रहे थे। “पुर्तगालियों के साथ जंग जारी है। पर फतह हमारी होगी – हम जानते हैं! आप एक बार दक्खिन पहुँचे फिर तो दुनिया हमारी तलवार के नीचे होगी!” वह हंस रहा था।

“ग्वालियर हमारी झोली में गिरने वाला है, कमाल साहब!” इब्राहिम ने मुसकुराते हुए कहा था। “फिर तो हमें कोई रोक नहीं पाएगा! हम किसी को भी हाथ नहीं देंगे!” उसने कमाल की ओर देखा था। “मैंने हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़ाकर हिन्दुस्तान को तुर्की और अफगानों को जंग जीतने के खेल में तकसीम कर देना है!”

“बहुत खूब! बहुत खूब! आपका ख्वाब जरूर जिंदा होगा, बादशाह! आप इतिहास में अमर हो जाएंगे .. आप सार्वभौम शासक बनेंगे और ..”

हेमू अच्छी खबरें लेकर ग्वालियर से लौटा था!

“मैं चाहता हूँ कि आगरा को ही हम अपना मुख्य ठिकाना मान लें और दिल्ली को तुम्हारे नीचे रख दें!” इब्राहिम लोधी ने हेमू की राय मान ली थी।

“विचार उत्तम है जनाब। आगरा में रह कर आप अपने मनसूबे पूरे कर सकते हैं। जबकि दिल्ली में आपके लोग आपको चैन से न बैठने देंगे।” हेमू की राय थी।

“सारा गुप्तचर विभाग आगरा रहेगा!” इब्राहिम लोधी बता रहे थे। “कादिर खान को सौंप दो ये काम!” इब्राहीम ऐलान कर रहे थे।

“बेहतर बात है जनाब!” हेमू ने समर्थन किया था। “आंख ओझल पहाड़ ओझल!” वह हंसा था। “अब किसी को पता ही न लगने दें कि कहां क्या हो रहा था और – कि क्या होने वाला था।”

“यही हमारी फतह होगी!” इब्राहिम ने खुशी जाहिर की थी।

सिकंदर लोधी के जन्नत जाने के बाद आज पहली बार इब्राहीम लोधी को लग रहा था कि वो अब अकेला था। जलाल था तो पर वो कांटे की तरह उसके जहन में जा बैठा था और हर पल, हर छिन चुभता ही रहता था!

और जो अभी अभी दिल्ली में घमासान हुआ था – वो?

सब आये थे। चचेरे थे, मुमेरे थे और फुफेरे थे – सब थे! सब साथ साथ हिन्दुस्तान आये थे। सब के इरादे लूट-पाट करने के थे, माल कमाने के थे, औरतें ले जाने के थे और थे – अपनी अपनी सल्तनतें कायम करने के! सब से आगे सिकंदर लोधी पहुंचा और सल्तनत कायम करके सब हथिया लिया! लेकिन अब ..?

“वफादार कुत्ता होता है!” इब्राहिम लोधी तातार खान के बोल सुन रहा था। “इंसान नहीं!” तातार खान गरज रहा था। लाहौर से आया उनका जमघट असरदार था। डरावना भी था। उनके इरादे नेक न थे। ये उनके बगावत के बोल थे!

“सबसे पहले लाहौर को लगाम पहनानी होगी!” इब्राहिम ने स्वयं से एक वायदा किया था। “उसके बाद जलाल और फिर ..” वह उंगलियों पर अपने दुश्मनों को गिनता ही चला जा रहा था। “इनसे अब कोई उम्मीद नहीं!” इब्राहिम का अंदाजा था।

इब्राहिम को सिकंदर लोधी का अगला कदम याद था!

पुराने अफगानों और तुर्कों का अदल खत्म करना ही जरूरी था – अब्बा जान का विचार था। और अब उसे वही सब करना था! लेकिन बात आसानी से बनेगी नहीं – वह ये भी जानता था!

दिये वक्त पर हेमू पहुंच गया था!

“खैरियत तो है ..?” इब्राहिम लोधी ने हेमू से आते ही पूछा था।

“अमन चैन है – आपके साम्राज्य में!” हेमू ने प्रसन्नता पूर्वक उत्तर दिया था। “जहां आप हैं – वहां जहान है, जन्नत है!”

“इतनी तारीफ क्यों?”

“आप बादशाह हैं! आप की प्रशंसा नहीं होगी तो ..?

बड़े ही कांटे की बात कह रहा था हेमू। इब्राहिम की समझ में सब आ रहा था। शासक के बल से ज्यादातर बातें असर करती हैं! जो शासक है – और जो गुन जाता है वही गिना जाता है! बाकी तो सब फिजूल ही होता है!

“क्या उम्मीद रक्खूं?” इब्राहिम लोधी ने सीधा सवाल किया था।

“फतह आपकी होगी!” हेमू ने भी बिना लाग लपेट के सीधा उत्तर दिया था। “मुहिम ये हैं कि – आप आगरा से हाथियों का जत्था लेकर कूच करेंगे और धौलपुर किले में डेरा जमा लेंगे!” हेमू ने इब्राहिम के खिल गये चेहरे को देखा था। “ग्वालियर पर हमला हमने कुछ अलग तरह से करना होगा!”

“लेकिन क्यों?”

“इसलिये कि तौमरों ने इस बार गुरिल्ला युद्ध करने की ठान ली है। ये राजा मान सिंह का अपना नायाब तरीका है जिसे उनके सैनानी तेज पाल तौमर ने कामयाबी के शिखर पर पहुँचा दिया है। तौमरों का इरादा है कि वो दिल्ली की फौजों को गिद्धों की तरह फाड़ फाड़ कर खाएंगे!” रुका था हेमू।

“और आपका इरादा क्या है?”

“वही – धौलपुर जैसा!” हंस गया था हेमू। “संपूर्ण समर्पण कराना है इस बार!” उसने ऐलान किया था। “आप देखेंगे कि ..”

“बेहतर ..! बहुत बेहतर!” इब्राहिम लोधी अब तालियां बजाना चाहता था पर रुक गया था।

“लेकिन मेरा एक विनम्र निवेदन है!”

“मांगो दोस्त! सब कुछ मिलेगा ..!”

“मैं चाहता हूँ कि – विक्रम जीत को प्राण दान मिले काम आयेगा आपके!”

“और साथ में इस तेज पाल तौमर को भी अपना लेना! हमें चाहिये ये लोग! हम चाहेंगे कि ये बहादुर लोग हमारे साथ आ जाएं तो हम ..” प्रसन्न था इब्राहिम। “और हॉं! इस दौरान हमारा जत्था ..?”

“आप धौलपुर पर ही रहिये! बेहतर है आप चंबल पार ही न करें!” हेमू ने जैसे इब्राहिम के मुंह की बात छीन ली थी। “समाचार मिलते ही रहेंगे आपको!”

हेमू – ख्वाबों में आया कोई फरिश्ता जैसा लगा था – इब्राहिम को!

मेजर कृपाल वर्मा

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