Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग चौरानवे

Hemchandra Vikramaditya

उदास निराश आंखों से हेमू देख रहा था दिल्ली को!

बादशाह शेर शाह सूरी की आकांक्षा एक तूफान बन कर उठ खड़ी हुई थी। दिल्ली में पैदा हुआ ये तूफान एक टिड्डी दल की तरह बुंदेलखंड की ओर चल पड़ा था। अफगान, मुगल, तुर्क और कबाइली मिलकर अब बुंदेलखंड को लूटने, तबाह करने और बेइज्जत करने के लिए निकल पड़े थे। निरीह और निस्सहाय हिन्दुओं पर अब कयामत टूटनी थी और कहर बरपना था! उन्हें उजड़ना था, मरना था या फिर मुसलमान बनना था।

क्या करे हेमू? कोई तो नहीं था जिसे वो पुकार लेता! घोर निराशा थी, अंधकार था, और बेबसी थी जो उसे खाए जा रही थी!

“प्रणाम सुलतान!” तन्ना शास्त्री ने हेमू का सोच तोड़ा था। वह संगीत शिक्षा के लिए चले आये थे। केसर ने उन्हें याद किया था। “ये उदासी कैसी?” अनायास ही तन्ना शास्त्री ने प्रश्न पूछ लिया था।

तन्ना शास्त्री ने अच्छे बुरे दिन देखे थे। राज घरानों से ही उनका सारा सरोकार रहा था। रीवा से लेकर ग्वालियर और आगरा तक वो विख्यात थे। युग पुरुष थे तन्ना शास्त्री!

कालिंजर पर आक्रमण हो रहा है गुरु जी!” केसर बीच में आ कर बोल पड़ी थी। “इसी कारण से विक्षिप्त हैं आपके सुलतान!”

“विनाश काले विपरीत बुद्धि!” तन्ना शास्त्री ने हंस कर कहा था। “कालिंजर शिव की स्थली है।” उन्होंने बताया था। “शिव का तीसरा नेत्र न खुल जाए – तभी तक है!”

“मैं तो कहती हूँ शास्त्री जी – खुल ही जाए!” केसर ने प्रसन्न होकर कहा था। “अति हो चुकी है ..” कोसा था मुसलमानों को केसर ने।

“सब हो जाएगा महारानी जी!” तन्ना शास्त्री ने आशीर्वाद जैसा दिया था। “चलो! आज हम अपने शहंशाह को वो नया राग सुनाते हैं जो आपने अभी सीखा है।” तन्ना शास्त्री ने आग्रह किया था।

हेमू का मन बहलाने में केसर और तन्ना शास्त्री जुट गये थे!

“चलो! आज साथ साथ गाते हैं!” केसर ने हेमू को अपने साथ खींचा था। “और सुनो!” केसर हंसी थी। “उस दिन की तरह कंसुरे मत हो जाना!” उसने वर्जा था हेमू को।

केसर के इस मधुर आग्रह ने हेमू का सारा विषाद हर लिया था।

“न मानूं .. न मानूं .. मैं न मानूं .. कान्हा मैं न मानूं तेरी बतिया!” केसर गा रही थी। हेमू ने भी सुर साधा था और आहिस्ता से गाना आरम्भ किया था। उनका मन प्राण अब संगीत में डूब गया था। गमों से छुटकारा मिल गया था। व्याधाएं भाग खड़ी हुई थीं। मन के तार झंकृत हो उठे थे और आनंद ने तन मन को ओतप्रोत कर दिया था। “न मानूं .. न मानूं ..!” हेमू गाता ही जा रहा था। उसका शरीर भी सुर ताल के साथ घूमने झूमने लगा था। “न मानूं .. कान्हा मैं तेरी बतिया!”

“वाह वाह सुलतान ..” तन्ना शास्त्री हर्षातिरेक में झूम उठे थे। “क्या ताल बिठाई है आपने!” उन्होंने हेमू की प्रशंसा की थी।

घोर निराशा के बीच आशा और विश्वास के बीज बोकर लौट गये थे तन्ना शास्त्री!

लंबे पलों तक हेमू संगीत की अपार शक्ति के बारे सोचता ही रहा था! शायद यही कारण रहा होगा दरबारी संगीत और नृत्यांगनाओं के आकर्षण का कि शासकीय विडम्बनाओं से कहीं छुटकारा मिले और आनंद के पलों में अच्छे विचारों का आगमन हो और कल्याणकारी भावनाओं का विकास हो! जैसे कि अब केसर के साथ ..

“क्यों न मैं भी नृत्य सीख लूं शास्त्री जी से साजन?” अचानक ही केसर पूछ बैठी थी।

प्रश्न तो प्रासंगिक था लेकिन स्वीकृति देने से पूर्व हेमू का दिमाग सजग हो उठा था। रोता बिलखता भारत अचानक ही हेमू की आंखों के सामने उठ खड़ा हुआ था।

“नहीं!” हेमू का उत्तर था। “तुम्हें नृत्यांगना नहीं वीरांगना बनना है केसर!” हेमू गंभीर था। “देख नहीं रही हो – औरतों को बे-आबरू करते मुसलमानों के टिड्डी दल ..?” हेमू ने सीधा केसर की आंखों में देखा था। “लाज लूटते ये अफगान और मुगल यूं बाज आने से रहे केसर!” चेतावनी दे रहा था हेमू। “हम तो दोनों मिल कर उस भारत की नींव डालेंगे जहां स्त्रियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ें ओर अपनी लाज बचाने के लिए किसी की भिखारी न बनें बल्कि स्वयं देवी का अवतार बनें!” भावुक हो आया था हेमू।

विचार बुरा न था – केसर सोच रही थी। स्त्रियों में भीरु की भावना से निजात पाने का एक यही उपाय था कि उन्हें युद्ध कौशल में प्रवीण किया जाए और समाज की इस कमजोर कड़ी को अष्ट धातु का बना दिया जाए ताकि लालची और वहशी हमलावरों को ऐसा माकूल उत्तर मिले कि वो भारत आने की राह ही भूल जाएं!

लेकिन अभी तक तो भारत के वैभव की सुगंध सूंघ कर मुसलमान ही नहीं अब तो पुर्तगाली भी भारत पहुंच गये हैं! वो भी कानी आंख से देख रहे हैं हिन्दुस्तान में यूं ही बिखरे पड़े माल असबाब को और बंदर की तरह हिन्दू मुसलमान के बीच बैठ बंटवारा करना चाहते हैं ताकि हिन्दुस्तान को गड़प कर जाएं!

“कितने लालची लोग हैं ये!” अचानक हेमू हंस पड़ा था। “जो भारत की वास्तविक धरोहर है उसे तो ये लोग देख ही नहीं पाते! हमारे वेद, हमारा आयुर्वेद, हमारा अध्यात्म और हमारा वेदांत इनकी समझ से बाहर है! इन्हें तो केवल धन माल ही लूटना आता है!”

और हेमू ने मान लिया था कि पुर्तगाली भी पैर जमते ही अपने धर्म का ध्वज अवश्य फहराएंगे!

“हिन्दू मुसलमान बनने के बाद कभी हिन्दू और हिन्दुस्तान की हिमायत क्यों नहीं करते?” अचानक प्रश्न उगा था हेमू के दिमाग में। “उलटे ये हिन्दुओं को जलील करते हैं, उनसे बदला जैसा चुकाते हैं और कट्टर मुसलमानों से भी ज्यादा जुल्म ढाते हैं!”

ये एक नग्न सत्य था और यही कारण था कि इस्लाम कामयाब होता चला जा रहा था। मुसलमान बनने के बाद हिन्दुओं को जो सामाजिक स्वतंत्रता हासिल हो जाती थी वही उनके लिए जन्नत थी। दो चार शादी कर लेना, मांस मछली खाना और सारे गुनाह करने के बाद भी मुक्ति पा जाना और अन्य वैचारिक और नैतिक हदों को पार कर वो धन्य हो जाते थे और फिर तो ..

“कैसे .. कैसे हो कि हमारे भटके हिन्दू हमारे पास लौट आएं?” हेमू का सोच जागा था। है कोई युक्ति – पूछेगा वो गुरु जी से ताकि हम अपने स्वजनों को फिर से प्राप्त कर लें और .. और हम सब हिन्दू भी खुरासानियों की तरह अपना ध्वज लेकर विश्व विजय के लिए निकल पड़ें?

अचानक ही हेमू के सामने हुई हार जीत की एक एक घटना आ खड़ी होती है और प्रश्न करती है ..

बाबर पानीपत में युद्ध जीता और उसी की आंखों के सामने इब्राहिम लोधी मरा लेकिन वह कुछ न कर पाया! लेकिन क्यों? क्यों हारा इतना बड़ा लश्कर लेकर बाबर की उस बे मामूल टुकड़ी से – इब्राहिम लोधी? और फिर – परम वीर, परम श्रद्धेय राणा सांगा सारी सामर्थ्य लगा कर भी उस बेहूदा बाबर को न हरा पाया! क्यों ..? और बाबर का वो अपने मुठ्ठी भर मुगलों को दिया वचन, शराब छोड़ने का व्रत और .. और ..

और बाबर के किये विनाश ..? और शेर शाह सूरी को चूहे से शेर बनाने के उसके अपने अपराध ..? और अब लुप्त होने को खड़ा बुंदेलखंड ..

“लड़ाके हैं बुंदेलखंडी तो!” हेमू का अंतर बोला था। “अगर डट गये मैदान में तो ले बैठेंगे सूरी को!” उसका अपना अनुमान था।

लेकिन सूरी की चाल और उसका दिया नया लालच एक नया प्रयोग जैसा था। मुगलों, अफगानों और तुर्कों के लिए जहां वो बुंदेलखंड को उजाड़ सकते थे और ..

“क्या खबर है?” अंगद आ गया था तो हेमू ने पूछा था।

“अभी तक तो कोई खबर नहीं है!” अंगद ने उदास आवाज में कहा था। “किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया है!” बता कर वो चुप हो गया था।

बड़ी ही निराशा जनक स्थिति थी। हेमू जल्दी में था। वह जानता था कि एक बार सूरी कालिंजर से लौटा तो किसी तरह का भी पलायन संभव न था। यही वक्त था जब आसानी से वो दिल्ली से निकल सकते थे।

“यों बैठ कर मौत का इंतजार कब तक करेंगे अंगद?” हेमू की आवाज में एक टीस थी। उसके प्रश्न ने अंगद को भी हिला दिया था। “फिर तो हमें एक दूसरे का शीश ही काटना शेष रह जाएगा?” अंतिम विकल्प भी हेमू ने ही सुझाया था। “माहिल को बुलाओ!” उसने आदेश दिया था।

अंगद चला गया था। केसर ने सब सुना था। केसर की आंखें नम हो आई थीं। विकट स्थिति थी सामने। दिल्ली से विजय नगर या गुजरात निकल भागना कोई आसान काम न था। शहंशाह सूरी के जासूस चारों ओर लगे हुए थे – वह भी तो जानती थी। और वह यह भी जानती थी कि जब तक कोई ठिकाना तय न हो भाग कर जाना भी संभव न था।

“न जाने कैसी पराजय का मुंह देखना पड़ेगा केसर?” हेमू छटपटा रहा था।

“नहीं! पराजय नहीं! तुम कभी नहीं हारोगे मेरे बादशाह!” केसर ने बड़े ही आत्म विश्वास के साथ कहा था। “तुम्हीं तो हो मेरे विक्रमादित्य!” वह हंस पड़ी थी। “दिल्ली का ये सिंहासन तुम्हारा ही है साजन!” केसर ने घोषणा कर दी थी।

मेजर कृपाल वर्मा
Exit mobile version