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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग चौहत्तर

Hemchandra Vikramaditya

राय पूरन दास के घर में बधाइयां बज रही थीं!

हेमू और केसर के आगमन की खुशी में हर कोई खुश था! चूंकि हेमू एक लंबे अंतराल के बाद लौटा था, जिंदा था और लड़ना भिड़ना छोड़ शोरे का व्यापार संभालने लगा था – यह एक बड़ी खुश खबरी थी। मुसलमानों के बीच में किसी भी हिन्दू का उठना असंभव हो गया था! पानीपत की हुई लड़ाई में हर किसी ने हेमू को ही दोश दिया था! क्योंकि हेमू एक हिन्दू था अतः यह भी स्वाभाविक ही था कि हिन्दुओं को कोई श्रेय न मिले और न ही मिले उन्हें की गलती की माफी।

हिन्दुओं को मिटाने का तो मुसलमानों को मात्र बहाना चाहिये था। जिंदा जलते बोधन को सभी ने देखा था और उसे कोई भी भूल नहीं पाया था। बोधन का श्राप ही तो था जो लोधियों को ले डूबा था – लोगों का यह पूर्ण विश्वास था।

केसर के आस पास का सब कुछ झूम उठा था।

“अगर इब्राहिम लोधी अपना हाथी न रोक लेता तो मैंने बाबर को पानीपत में ही मिटा देना था!” हेमू आहिस्ता से गुरु जी को बता रहा था। वह दोनों ही थे। गुप्त रूप से मिले थे और आगे की स्थिति पर मनन कर रहे थे। “और हॉं गुरु जी! अगर मैं उस दिन बाबर के हत्थे चढ़ जाता तो वो मेरा भी कत्ल करा देता।” तनिक हंस पड़ा था हेमू।

“जो परमात्मा को मंजूर होता है – वही होता है हेमू!” गुरु जी का स्वर गंभीर था। “शायद वह हिन्दुओं का कुछ भला सोच रहा है!” उन्होंने हेमू को घूरा था। “तुम्हीं एक अकेली उम्मीद हो – हेमू!” गुरु जी कह रहे थे। “अगर तुम न लौटते तो मैं भी ..”

दोनों ने एक दूसरे को एक अडिग आत्मीयता से देखा था!

“हिन्दू राष्ट्र का सपना बहुत दूर चला गया लगता है गुरु जी! मुगलों के आने के बाद तो ..?” ठहर गया था हेमू। “ये इस्लाम का विष हमारी नस नस में व्याप्त हो चुका है। पूरा का पूरा भारत वर्ष बीमार है। और ये इस्लाम का जोर पूरे भारत को गारत किये दे रहा है!” रुका था हेमू। “मानेंगे नहीं आप! लेकिन किस कदर ये मुसलमान हिन्दुओं का वध करते हैं, लूट पाट करते हैं, घर घूरा जला देते हैं और बहन बेटियों की इज्जत ..” गंभीर था हेमू। “देखा नहीं जाता गुरु जी! जब सर काट काट कर मीनारें चुनते हैं! लेकिन आपस में ये ऐसा नहीं करते?” उसने आश्चर्य जताया था। “और हम उदार हिन्दू .. जीव दया और ..”

“हारी हारी बातें क्यों कर रहे हो?” गुरु जी तनिक नाराज हुए थे। “मुझे तो उम्मीद थी कि तुम ..”

“मानिए गुरु जी – ये लोग खुरासान ओर उस्मानिया से लेकर हिन्दुस्तान तक एक हैं! इनके पास ..”

“आज की नहीं – कल की बात करो!” गुरु जी संभल कर बैठ गये थे। “हिन्दू राष्ट्र की बात करो! वो बात करो जो ..”

“मुगलों के आने के बाद तो ..?” हेमू बहुत विचलित था।

“जानते हो न कि केशव का जन्म कारावास में हुआ था और राम को राज तिलक के बजाए चौदह साल का वन वास मिला था? लेकिन तुम्हें तो कुछ नहीं हुआ?” गुरु जी गुर्रा रहे थे। “दे सकते हो हिन्दू राष्ट्र?” उनका कठोर प्रश्न था। कई पलों तक वे हेमू को घूरते ही रहे थे और उसकी सामर्थ्य को कूतते रहे थे। “जानते हो कृष्ण ने क्या कहा था – नपुंसक न बनो पार्थ! गांडीव उठाओ और युद्ध करो! जीत हार तो ..!”

“युद्ध तो मैं करूंगा गुरु जी!” हेमू बोल उठा था। “मैं दूंगा आपको हिन्दू राष्ट्र! मैं .. मैं प्राणों पर खेल कर आपका स्वप्न पूरा करूंगा!”

“अब हुआ है मेरा कलेजा ठंडा! अब मैं न मरूंगा जब तक कि हिन्दू राष्ट्र स्थापित नहीं हो जाता!” गुरु जी तनिक विहंसे थे। “तुम अकेले नहीं हो हेमू! मैं तुम्हारे साथ हूँ और पूरा भारत वर्ष तुम्हारे साथ खड़ा है! और जनता भी तुम्हारे साथ होगी! फिर डरना क्यों बेटे ..?” हंस गये थे गुरु जी।

हेमू का मन हलका हुआ था। भ्रम भी दूर हुआ था। गुरु जी ने आज फिर से उसे आश्वस्त कर दिया था। उसे प्रसन्नता हुई थी कि गुरु जी ने आज उसे फिर जगा दिया था!

“मैंने पुर्तगालियों से तोपों का जुगाड़ बिठा लिया है ओर शोरे के व्यापार में धन भी खूब कमा लिया है! अब मैं चाहूंगा कि ..?”

“गुप्त! परम गुप्त!” गुरु जी बोले थे। “सब कुछ चोर की चुप्पी के साथ करो! मनोरथ की महक दिमाग से बाहर न निकले! सेना से लेकर शहंशाह तक और एक से लेकर अनेक तक – सब गुप्त!” गुरु जी ने मूल मंत्र दिया था।

देश काल को समझते हुए भी गुरु जी ने आदेश दिये थे!

गुरु जी से वचन भरने के बाद घर आते आते न कैसे हेमू फिर से गंभीर था, विचलित था और चिंतित भी था! जो वायदा वह कर बैठा था वह तो ..?

हेमू का मन उचट गया था। खाने नहाने और गाने में उसका मन रम ही न रहा था। केसर के लाख कोशिश करने के बाद भी उसकी उदासी छट ही न रही थी। वह न जाने किन किन विपदाओं के गर्भ में जा घुसा था। दुनिया जहान की आती स्मृति और उसके गले में व्यालों सी लिपट गई थीं। नींद उससे कोसों दूर थी। केसर भी सो न पा रही थी।

“बात क्या है साजन?” अंत में केसर हेमू के पास बैठ पूछ रही थी। “हमें भी तो बताओ कि आप सा किस मुसीबत में फंसे हैं। केसर ने हेमू का स्पर्श किया था तो हेमू तड़प आया था!

क्या बताता केसर को? कैसे बताता कि वो मैदान छोड़ कर भागने की सोच रहा था .. कि वह प्रहार करने से पहले ही परास्त हो चुका था और अब अपनी पराजय को सहन न कर पा रहा था!

“गुरु जी कहते हैं – हिन्दू राष्ट्र बनाना है!” हेमू कठिनाई से कह पाया था।

“तो ..?” केसर ने तुरंत पूछा था। “कष्ट क्या है?” उसने फिर पूछा था।

हेमू ने केसर के बेजोड़ हुस्न को पराजित हुई निगाहों से निहारा था!

“बाप का माल है – हिन्दू राष्ट्र जिसे में लाकर उन्हें दे दूं?” हेमू रोष में था। “केसर! देख तो चुकी हो कि हम दाने दाने को मोहताज हैं ओर ऊपर से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ..?” उसने सीधा केसर की आंखों में झांका था। “हिन्दू राष्ट्र का सम्राट बनना?”

“मेरा साजन होगा – सम्राट!” केसर ने बात काटी थी। “ये तो मैं पहले से ही जानती हूँ साजन!” उसने विहंस कर कहा था। “मैं तो बचपन से जानती हूँ कि मेरी शादी वीर विक्रमाजीत के साथ होगी!” वह हंस पड़ी थी। “सच मानो साजन!” उसने हेमू को जगा सा लिया था। “दादी सा कहानी सुनाती थी – तो मैं जिद करके वीर विक्रम जीत की कहानी ही सुनती थी। ओर जब दादी सा कहती थीं – कहे काठ की कूतरी – सुन रे राजा भोज! तो मेरे कान खड़े हो जाते थे। आंखों की नींद न जाने कहां भाग जाती थी। सिंहासन पग जब धरो जब वीर विक्रम जीत सा होये! उनका ये ऐलान जैसा होता था!”

केसर ने हेमू की आंखों को पढ़ा था। वह अब भी विचलित था। केसर की बातें उसे अभी भी व्यर्थ लग रहीं थीं शायद।

“बेकार की बातें नहीं हैं साजन!” केसर ने हेमू की मनोदशा पढ़ कर कहा था। “वीर विक्रमाजीत का चरित्र सुनते सुनते मैं न अघाती थी। विक्रम जीत की सिंहासन बत्तीसी और बेताल पच्चीसी मुझे कंठस्थ है!” केसर ने तनिक हंस कर उदास बैठे हेमू को देखा था। “सच मानो साजन वीर विक्रम जीत तभी से मेरे सपनों का राजकुमार बन गया था। मैं सोते जागते, उठते बैठते और हर समय और हर मौके पर अपने उस वीर विक्रम जीत को ही ढूंढती रहती थी। मैं ..”

“ये बचपन की बातें हैं केसर!” हेमू बोला था। “लेकिन मैं जो बातें कर रहा हूँ ..”

“उसी का उत्तर तो दे रही हूँ!” केसर का स्वर आश्वस्त था। “उस पहले पल में जब मैंने तुम्हें देखा था तब मुझे विश्वास हो गया था कि मेरा विक्रम जीत आन पहुंचा है! मैंने तुम्हें उसी पल में बेताल की शंकाएं मिटाते और सिंहासन पर बैठ कर न्याय करते देख लिया था!” केसर रुकी थी। उसने हेमू को फिर से देखा था।

“बहक क्यों रही हो तुम?” हेमू ने पूछ लिया था।

“मैं नहीं आप सा बहक रहे हैं!” हंस पड़ी थी केसर। “आप सा ही मेरे विक्रम जीत हैं!” केसर कह रही थी। “आप सा ही भारत वर्ष में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करेंगे! गुरु जी गलत नहीं हैं! और मैं भी गलत नहीं हूँ!” उसने हेमू को मनाया था। “आप ही मेरे सम्राट वीर विक्रम जीत हैं!”

हेमू चकित दृष्टि से केसर को देखता ही रहा था!

मेजर कृपाल वर्मा

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