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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग छत्तीस

Hemchandra Vikramaditya

“यहॉं गुलाब पैदा होते हैं!” मुरीद अफगान बहुत दूर देख रहे थे। “पर मेरा ये मित्र सिकंदर यहॉं बबूल बो रहा है!” वह तनिक हंसे थे। उम्र भर की दास्तान उनके चेहरे पर उभर आई थी। “इस्लाम इस जमीन पर कभी न उगेगा!” एक भविष्यवाणी जैसी की थी उन्होंने। “चाहे जैसे .. और चाहे जब इन्हें जाना तो होगा!” उनकी आवाज में एक दर्प था – पश्चाताप भी।

सिकंदर लोधी का प्रसंग आते ही हेमू के फिर से कान खड़े हो गये थे!

“धौलपुर पर चढ़ाई करने के लिए ..?” हेमू ने प्रसंग को मोड़ना चाहा था। वह चाहता था कि मुरीद अफगान – सिपहसालार-ए-जंग से कुछ जंग जीतने के गुरु मंत्र मांग ले। “और जंग जीतने के लिए आप ..?” डरते डरते उसने पूछ ही लिया था।

बहुत लम्बे पलों तक मुरीद अफगान हेमू को नापते रहे थे। कुछ सोचते रहे थे। विगत की तमाम लड़ी लड़ाइयों का जमा जोड़ उनके दिमाग में आने जाने लगा था। वह हेमू पर शक न कर रहे थे। क्योंकि वो जानते थे कि हेमू का प्रश्न स्थिति के लिहाज से सही था।

“हार-जीत ..?” हंस पड़े थे मुरीद अफगान। “जंग में जीत-हार – एक बड़ा ही पेचीदा सवाल है, बरखुर्दार!” उन्होंने हेमू को ऑंखों में देखा था। “तुम्हारे चेहरे पर लिखी होती है – जीत-हार!” उन्होंने कहा था। “जीत-हार एक जिंदगी नामा होता है, हेमू!” वो चुप हो गये थे।

“धौलपुर ..?” हेमू फिर से बोल पड़ा था।

“क्या धरा है धौलपुर में .. और क्या नहीं धरा धौलपुर में?” उन्होंने तुनक कर कहा था। “पूरे एक साल धक्के खाए हमने .. जानें गंवाईं, जिल्लतें सहीं लेकिन धौलपुर ..?” फिर से वो चौकन्ना हो गये थे। “गुड़ का पूआ मत मान लेना धौलपुर को!” उन्होंने चेतावनी दी थी। “मैं बताता हूँ कि ..” वह रुके थे। कुछ सोचने लगे थे।

धौलपुर हेमू के गले में भी अब आ अटका था। वह जान गया था धौलपुर जीतने की मुहिम तो शायद सिकंदर लोधी ही बनाएगा। उसे तो शायद .. हो सकता था कि ..

“अभी 1501 की ही तो बात है!” मुरीद अफगान की जैसे नींद खुली थी। “कुछ अफगान अमीर और उलेमा, सिपाही और सिपहसालार – जिन्हें हक नहीं मिला था, जिन्हें मर्जी के मुताबिक जागीरें नहीं मिली थीं और जिनके नाम ..” उन्होंने फिर से हेमू को देखा था। “था तो उसमें मेरा भी नाम उन सबके साथ पर मैंने बहलोल की दोस्ती का वास्ता ..”

“झगड़ा हुआ था ..?” हेमू पूछ रहा था।

“साजिश हुई थी!” मुरीद अफगान हंसे थे। “ग्वालियर के महाराजा मान सिंह के साथ मिलकर सिकंदर लोधी को खत्म करने का षड्यंत्र रचा था। ग्वालियर में जंग कर ये लोग ..” कुछ सोच कर फिर बोले थे मुरीद अफगान। “लेकिन सिकंदर ने वक्त बिना गंवाए ग्वालियर पर चढ़ाई कर दी थी। मुझे धौलपुर हासिल करना क्योंकि हर कीमत पर सिकंदर को धौलपुर चाहिये था। कारण धौलपुर जीते बिना ग्वालियर को जीतना तो असंभव था!”

“क्यों ..?” हेमू ने पूछ ही लिया था।

“इसलिए बरखुर्दार कि धौलपुर को सलाम किये बगैर आप दक्खिन जा ही नहीं सकते! ये एक ऐसा दरवाजा है जिसे खोलना, तोड़ना, जीतना और कब्जा करना इसलिए जरूरी है कि तौमर राजपूत और जाट, गूजर तीन तीन लड़ाकू कौमें धौलपुर की हिफाजत करती हैं। धौलपुर का किला – क्या किला है यार!” हवा में हाथ फेंके थे मुरीद अफगान ने। “चंबल के पास के पहाड़ों पर बना है और आस पास का इलाका ..” चकित हुई दृष्टि से मुरीद अफगान कुछ देखने से लगे थे। “क्या अजब गजब है – वो चंबल का बीहड़! खार हैं – खड़े खार! हाथी और घोड़े तक खड़े दिखाई नहीं देते! रास्ता भूलने पर भटक भटक कर मर जाते हैं सैनिक और ..”

हेमू डर गया था। जो जानकारी सामने आ रही थी – बिल्कुल नायाब थी। और अभी तक शायद ही कोई ..

“पर मैंने जान लड़ा कर लड़ाई लड़ी। एक साल तक पड़े रह कर इस इलाके पर कब्जा किया। किले को घेर कर मैंने जंग छेड़ी थी तो भागा था विनायक देव और ..” एक चमक कौंधी थी मुरीद की ऑंखों में।

“एक साल तक ..?” हेमू का प्रश्न वाजिब था।

“आगरा न होता तो हम परास्त हो जाते!” मुरीद अफगान ने बेबाक स्वर में कहा था। “और ये सिकंदर की सबसे बड़ी अक्लमंदी है कि उसने आगरा बसा दिया और इसे सेनाओं का अड्डा बना दिया! वरना तो ..”

पहली बार ही शायद मुरीद अफगान ने सिकंदर लोधी की प्रशंसा की थी!

“तो अब क्या दिक्कत है ..?” हेमू का प्रश्न था – एक अबोध बच्चे जैसा प्रश्न!

“क्यों ..?” गुर्रा कर पूछा था मुरीद अफगान ने। “वही इलाका है .. वही जाट, गूजर, तौमर और राजपूत हैं! ये यहॉं के बाशिंदे हैं! और फिर वही किला है .. वही चंबल है!”

“चंबल ..?” हेमू ने बात काटी थी।

“सबसे बड़ा तो चंबल का ही घपला है!” मुरीद अफगान हैरान परेशान लगे थे। “अरे भाई दुश्मन हो तो दो दो हाथ करने में लुत्फ आता है! लहू बहता है तो लगता है कि सरहदें सुहागिन हो गई हों! लेकिन ..” रुके थे मुरीद अफगान। “लेकिन ..” वो फिर अटक गये थे। उन्होंने हेमू की ओर ताका था। “इन नदी पहाड़ों से लड़ना लड़ाना तो ..?” उनका प्रश्न था। “मुसीबत ये आती है कि .. इन हिन्दुओं के ये पैगम्बर – नदी पहाड़ भी लड़ना शुरू कर देते हैं!” मुरीद अफगान की ऑंखों में अजब सा एक आश्चर्य था!

“मैं समझा नहीं आपकी बात!” विनम्रता पूर्वक पूछा था हेमू ने।

“शर्म खोलकर बताता हूँ बेटे!” मुरीद अफगान की आवाज नरम थी। “मुझे तो अब वतन लौटना ही है!” उनका उलाहना था। “लेकिन जो किया है .. बुरा, भला, हेर फरेब – सब सत्ता हासिल करने के लिए ही हुआ! लेकिन हुआ कुछ बहुत गलत! मैं भी शामिल हूँ और गुनहगार भी कि मैंने भी हिन्दुओं के इन देवी देवताओं में खूब ठोकरें मारी। मैंने भी हिन्दुओं के साथ जुर्म ढाए। मैंने भी मखौल उड़ाया इनके धर्म का और इनके देवी देवताओं को खूब गरियाता रहा! मैं ललकारता रहा और सोचता रहा कि इनके देवी देवता सामने क्यों नहीं आते ..” एका एक चुप हो गये थे मुरीद अफगान।

हेमू बड़े गौर से सुन रहा था उनके उद्गार। उसे बड़ा बुरा लग रहा था कि हिन्दुओं के साथ अकारण जुल्म ढाए गये थे! पर अच्छा भी लग रहा था कि स्वयं मुरीद अफगान के मुंह से एक पश्चाताप बहता चला जा रहा था।

“ये चंबल ..!” मुरीद अफगान फिर से मुद्दे पर आ गये थे। “कहने को तो नदी है – और है भी एक नदी! कितनी नदियां हैं – दुनिया देश में? लेकिन इस चंबल के बारे न जाने कितनी कहानियां जारी हैं! कोई कहता है – द्रौपदी ने इसे अपनी हथेली से पैदा किया था, तो कोई कहता है कि ..”

“महाभारत की कथाएं तो जुड़ी हैं! वो बंजारा माहिल भी मुझे बता रहा था कि यहां पर पांडवों का राज था। और ये तौमर भी अर्जुन के कुल के हैं! उसी के बेटे की तो संतान हुई थी और ..” हेमू ने भी अपनी जानकारी दी थी।

“मैं कब मानता था ये बातें?” हंस रहे थे मुरीद अफगान। “मैंने तो आते ही इलाकों में कत्लेआम कराया था, नर संहार कराया था जिससे हिन्दुओं की रूह तक कांपने लगी थी! और एक साल में तीन बार मेरा ओर विनायक देव का मुकाबला हुआ था। लेकिन मैंने उसके पैर नहीं लगने दिये थे। सच मानना बेटे – रण में उतरते ही मेरे शरीर में हवा सा कुछ भर जाता है। फिर मैं नहीं रुकता। मैं दुश्मन के आरपार चला जाता हूँ। ओर यही हुआ था जब मैंने विनायक देव को अपने सिपाहियों को कत्ल करते देख लिया था। मैं सीधा उसके सर लगा था। मैंने भाला संभाला था। भाला मेरा अचूक हथियार है! मैंने विनायक देव पर वार किया था। मैं जानता था कि अब इसकी जान गई। लेकिन उसकी किस्मत कि भाला बजाए सीने के उसके कंधे में जा गढ़ा था!”

मुरीद अफगान अचानक चुप हो गये थे।

हेमू को उनकी ये चुप्पी खाए जा रही थी। वो तो अब जानना चाहता था कि उसके बाद क्या हुआ विनायक देव का?

“घोड़े से जब विनायक देव लुढ़क कर जमीन पर गिरा था तो मेरी बाछें खिल गई थीं!” बड़े ही नए जोश के साथ बताने लगे थे मुरीद अफगान। “मैं भी कूदा था घोड़े से। मैंने नंगी तलवार सूंत ली थी। मेरा इरादा था कि मैं विनायक देव का सर धड़ से अलग कर दूंगा और फिर तो ..”

कांपने लगा था हेमू। युद्ध की विभीषिका उसे नजरों के सामने नाचती दिखाई दे रही थी। उसे लग रहा था जैसे मुरीद अफगान अब तलवार से वार करेगा और उसका सर कलम कर देगा!

“विनायक देव के छह सैनिकों ने मुझे चारों ओर से घेर लिया था।” मुरीद अफगान बताने लगे थे। “मैं बिफर बिफर कर लड़ा था। मैंने तलवार के अचूक निशाने मारे थे लेकिन मुझे लगा था कि मेरी जान तो गई!”

“फिर क्या हुआ?” हेमू ने डरते डरते पूछा था।

“हाथी पर सवार सिकंदर लोधी के तीरंदाजों ने उन कटीले तौमरों को छेद भेद डाला था। मेरी जान बची थी और विनायक देव भी बच गया था!” मुरीद अफगान ने एक लम्बी सांस छोड़ी थी।

हेमू का भी हौसला लौटा था। उसे युद्ध भूमि का यह पहला परिचय बड़ा ही रोचक लगा था। जांबाजों का खेल था लड़ाई – अब हेमू की समझ में भी आ गया था!

“रातों रात घायल विनायक देव ग्वालियर भाग गया था!” हंस कर बता रहे थे मुरीद अफगान। “हमारा कब्जा धौलपुर किले पर हो गया था। अब ग्वालियर पर हमला होने का शोर सन्नाने लगा था। हमने अफवाहें उड़ा दी थीं कि विनायक देव मारा गया था और हमने यह भी कहा था कि हमारी सेनाएं आगरा से कूच कर चुकी हैं और अब ग्वालियर हमसे दूर नहीं है ..”

“चंबल के पार मत चले जाना!” एक मुनादी जैसी होने लगी थी। कोई भय था – जो हमारे भीतर भरता ही चला जा रहा था .. चंबल पार करने का भय .. नदी चंबल को पार करने का अंजाम और एक भयानक भय .. हमारे भीतर ..” मुरीद अफगान ने मुड़ कर हेमू को देखा था।

“मैं तो पागल था! मुझे कहॉं डर लगता था – इन नदी नालों से .. हिन्दुओं के इन पीर मुरीदों से! मैं तो न जाने कितनों को मौत के घाट उतार चुका था! मैंने चुहल के तौर पर ही कहा था – चंबल को चीरते हुए ग्वालियर पहुँचेंगी लोधियों की फौजें ..”

“हम चंबल को पार कर गये थे!”

मेजर कृपाल वर्मा

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