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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग चालीस

Hemchandra Vikramaditya

दिल्ली में जश्न जैसा कुछ मनाया जा रहा था!

“अब न पड़ेगी महामारी!” चर्चा जोरों पर थी। “पंडित ज्ञानेश्वर ने कील दिया है महामारी को!” सूचनाएं हवा पर सन्नाती-मन्नाती सुनाई दे रही थीं। “इनकी मॉं – अम्बा के गुरु जी हैं ज्ञानेश्वर!” उनके संबंध सूत्र भी उजागर हो रहे थे।

“आखिर में याद हो आये हिंदू – सिकंदर लोधी को?” हेमू ने अपने दिमाग में इस नई घटना को घुमाया था। “कल तक तो हिंदूओं को फूटी ऑंख से देख रहे थे। लेकिन आज ..”

“हेमू साहब!” किसी ने सोच तोड़ा था हेमू का। “आपका आना कितना शुभ है!” वह आदमी बता रहा था।

“और क्या हुआ ..?” हेमू ने तनिक चौंक कर पूछा था।

“पता नहीं ..? अरे, ब्राह्मणों पर से कर हट गया!” उस व्यक्ति ने प्रसन्नता पूर्वक कहा था।

“आप ब्राह्मण हैं?” हेमू ने पूछ लिया था।

“जी ..! जी हॉं! मैं कश्यप हूँ।” उस व्यक्ति ने बताया था। “मैंने ही तो ..” वह हंस रहा था।

“एक ढाल और टूट गई, हिन्दुओं की ..” हेमू को गहरा सदमा लगा था। “ब्राह्मणों का विरोध भी अब समाप्त!” उसने अनुमान लगाया था। “अब न लड़ेंगे हिन्दुओं के देवी-देवता इन मुसलमानों से!” वह हंस पड़ा था।

हेमू को अहसास हुआ था कि अचानक ही एक नई हवा चल पड़ी थी। एक नया विचार था – जिसका जन्म अभी अभी हुआ था। मुसलमान अब हिन्दुओं को प्रेम-प्रीत के साथ सत्ता को हमेशा हमेशा के लिए अपने नाम लिख लेना चाहते थे। एक शासक वर्ग के रूप में अब ये अपने आप को हिन्दुस्तान में कायम कर लेना चाहते थे!

और अब ये हिन्दू ही गुलाम बनाएंगे हिन्दुओं को – आजन्म के लिए!

“कल का कट्टर सुन्नी मुसलमान सिकंदर लोधी आज का उदार शासक क्यों बना?” प्रश्न था जो हेमू को खाए जा रहा था!

“याद किया है – आपको!” हेमू को सूचना मिली थी। उसका सोच टूट गया था और वह फिर से हुकूमत का हुक्म बजा लाने के लिए तैयार हुआ था।

“जी, जनाब!” बड़े ही अदब से हेमू ने बादशाह सिकंदर लोधी को जुहार किया था।

“भाई! आपका कादिर दोस्त आपको आगरा पर मिलेगा!” सिकंदर लोधी ने एक सूचना दी थी। “काम होशियारी से होना चाहिये!” वो बताने लगे थे। “इन तौमरों का कोई भरोसा नहीं कि कब और कहॉं से टूट पड़ें!” हंसने लगे थे सिकंदर लोधी। “लेकिन हमें तुम पर भरोसा है!” वह अब हेमू को नजर भर कर देख रहे थे।

आगरा पहुँच कर हेमू और कादिर बाहें पसार कर मिले थे!

दोनों ने मिल कर बड़ी ही चतुराई से धौलपुर पर कब्जा करने की सामरिक योजना तैयार की थी। दोनों ने माना था कि पैदल सैनिकों और हाथियों के जत्थों का वाजिब उपयोग करते हुए – उन्हें धौलपुर जीत लेना था!

कादिर का सलामी दस्ता आगवानी पर चलना था। किसी भी आते खतरे की खबर इन्होंने पीछे चलते काफिलों को देनी थी। और घोड़े पर सवार कादिर को पूरी चौकसी करनी थी। हेमू का अश्वस्थामा बादशाह सलामत के सलामी के पीछे था। हाथियों को चार हिस्सों में बांटा गया था। पांच सौ हाथी आगे और पीछे थे तो दो दो सौ हाथी दाएं और बाएं चल रहे थे!

मात्र सिकंदर लोधी के विशाल काफिले को देख कर ही किसी बड़े से बड़े दुश्मन के भी होंसले पस्त हो जाने थे। ग्वालियर में खबरें पहुँचाई जा रही थीं। सिकंदर लोधी को अनुमान था कि इस बार उन्हें खूब माल मिलेगा और ग्वालियर – जिसके लिए न जाने कब से उनकी रूह तड़प रही थी अबकी बार फतह हो जाएगा!

पहला हमला वसौली पर था। यहीं से धौलपुर पर हमला होना था!

“सलाम हुजूर!” किसी ने अचानक ही आकर हेमू का ध्यान तोड़ा था।

“अरे रे आप ..?” हेमू उठा था और गर्म जोशी के साथ माहिल से हाथ मिलाया था। “कैसे हैं आप?” हेमू ने उसकी खैरियत पूछी थी।

“बंदोबस्त देख कर ही पता लग जाएगा!” माहिल ने हंस कर कहा था। “कोई कमी हो तो बताइए जरूर!” उसका आग्रह था।

“सब काबिले तारीफ है भाई!” हेमू ने प्रशंसा की थी। “और कोई नई ताजा ..?” उसने पूछा था। उनके आसपास कोई नहीं था। हेमू को पता था कि उसके पास माहिल आता ही किसी उम्मीद के तहत था।

“आगरा में भर्ती खुली है। बहुत सारे तौमर, गूजर और जाट भरती हुए हैं।” माहिल ने सूचना दी थी। “अच्छा है – एक तरह से!” वह बताने लगा था। “कभी जब आपको जरूरत होगी तो ये लोग काम आएंगे!” वह हंसा था। उसका मुख मण्डल उद्दीप्त हो उठा था।

कौन सी भविष्यवाणी कर रहा था ये माहिल, हेमू अंदाजा लगाता रहा था। “तो क्या उसके इरादे गुप्त नहीं थे?” हेमू ने स्वयं से पूछा था।

“हमें तो तिनके का ही सहारा है, हुजूर!” माहिल ने चुपके से कहा था लेकिन खूब जोरों से हंसा था!

“किले पर तो कबूतरों का राज है, हुजूर!” मदन खबर लेकर आया था। “चिड़ियाओं ने घोंसले बना लिए हैं और मोर के अंडे ..” वह हंस रहा था। “न जाने कब से खाली पड़ा है किला तो!” हंसता ही जा रहा था मदन। “विनायक तो न जाने कब का निकल गया?” उसने दोनों हाथ झाड़े थे। “आप का रास्ता तो साफ है!” उसने घोषणा की थी।

“आज ही शाम तक किले पर कब्जा कर लेते हैं!” कादिर की सलाह थी। “फिर भी कहते हो तो मैं सलामी दस्ते को भेज कर ..?”

“नहीं!” हेमू विचार मग्न था। “हमने अभी तक चंबल के खारों को देखा नहीं ना ..?” उसने कादिर से पूछा था। हेमू को अचानक ही मुरीद अफगान का कहा सब कुछ याद हो आया था। “चंबल के खारों में खड़ा हाथी गुम हो जाता है! रास्ता भूलने के बाद सैनिक तड़प तड़प कर मर जाते हैं!” घोड़े मंगवा लो!” हेमू की सलाह थी। “हम दोनों ही निकलते हैं!” उसने कहा था।

“लेकिन हेमू ..?” कादिर तनिक तुनका था। “बेकार में .. यार ..”

“तुम समझ नहीं रहे हो कादिर!” हेमू गंभीर था। “दुश्मन है .. यहीं है और किले के आसपास ही है और हमारे इंतजार में है कि हम किसी तरह किले में प्रवेश पा जाएं! उसके बाद तो उसने हमें समेट देना है!” हेमू ने अपना विचार सामने रख दिया था।

“फिर ..?” कादिर ने चिंतित हो कर पूछा था।

“हम समेट देते हैं – दुश्मन को!” हेमू मुसकुराया था।

“सो कैसे ..?” कादिर का प्रश्न था।

“यहॉं चार जत्थे रहेंगे और पहला जत्था तुम लेकर सुबह किले के लिए निकल पड़ोगे!” हेमू बता रहा था। “मुझे उम्मीद है कि तुम पर ग्यारह बजते बजते हमला हो जाएगा!” हेमू ने पुष्टि की थी अपने विचार की। “और जब पूरा दुश्मन तुम पर टूट पड़ेगा तब मैं अपने तीन जत्थों से किले के तीन ओर से हमला बोल दूंगा! तुम आगे से लड़ना और मैं पीछे से दुश्मन को दुम से पकड़ लूंगा!” हंस रहा था हेमू।

घोड़ों पर सवार हो हेमू और कादिर ने रात गारत कर दी थी। हेमू का कहा सब शत प्रति शत सच था। लेकिन उन्होंने अपने आने जाने की भनक तक किसी को न लगने दी थी।

कादिर पर किले में दाखिल होने के बाद ग्यारह बजे के करीब ही हमला हुआ था।

कादिर ने हमले को संभाल लिया था फिर किले पर चंबल की ओर से चढ़ाई हुई थी। और फिर भी कादिर काबू न आया था तो पहाड़ियों में छुपे दुश्मन ने तूफान की तरह किले को घेरा था। लेकिन कमाल ये हुआ था कि वो सब हेमू के घेरे में आ गये थे। हेमू के तीन ओर से हुए हाथियों के जत्थे के हमले ने तौमरों के छक्के छुड़ा दिये थे!

“आप सब लोग घिर गये हैं!” हेमू ने घोषणा करा दी थी। “एक भी जिंदा नहीं बचेगा!” बार बार दुश्मन को बताया जा रहा था। “हथियार डाल दो! जान बख्श दी जाएगी!” हेमू उन्हें बता रहा था। “वरना तो ..”

उजाला समाप्त होने लगा था। सूर्यास्त से पहले तक सभी ने हथियार डाल दिये थे और हेमू ने धौलपुर अपने कब्जे में कर लिया था!

यह पहली लड़ाई थी जहॉं कम से कम खून खराबा हुआ था और सबसे ज्यादा दुश्मन के सिपाही और सिपहसालार हाथ लगे थे!

“हमें नाज है – तुम दोनों पर!” सिकंदर लोधी हेमू और कादिर के कारनामों को सराह रहे थे। “हमने ऐसी लड़ाई अभी तक नहीं देखी!” वह आश्चर्य चकित थे। “हम तो डरे हुए थे कि कहीं ये तौमर गजब न ढा दें?” वह हंसे थे। “अब तो ग्वालियर पर ..?” उन्होंने हेमू और कादिर को ऑंखों में घूरा था। “क्या कहते हो हेमू?” उनका प्रश्न था। “हमला ..?”

हेमू जानता था कि ग्वालियर पर हमला तो इब्राहिम लोधी का हमला होगा और जलालुद्दीन ने शहर और शाही महलों को अपने कब्जे में करना था। उसके बाद ही तो सिकंदर लोधी का आगमन होना था! धौलपुर की हार के बाद दुश्मन का मुगालता भी जाता रहा था और शायद था कि ग्वालियर ..

कहीं भीतर से हेमू दरक गया था! उसे पराजित होता ग्वालियर सामने खड़ा होकर प्रश्न पूछता लगा था। “तुम तो हिन्दू हो भाई?” लेकिन हेमू ने आज ऑंखें चुरा ली थीं! वह चुप ही बना रहा था।

“हम चाहते हैं हेमू!” बादशाह सिकंदर लोधी कह रहे थे। “सूरज डूबते डूबते हम ग्वालियर में होंगे!” उनका ऐलान था। “और जब सुबह का सूरज निकलेगा तो हम ग्वालियर में दरबार ले रहे होंगे!” वह हंस रहे थे।

बादशाह सिकंदर लोधी की निगाहें हेमू पर कई पलों तक टिकी रही थीं!

लेकिन हेमू चुपचाप ही खड़ा रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा

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