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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग बावन

Hemchandra Vikramaditya

“आगरा आने का फरमान है – आपके लिए!” हरकारा सुबह सुबह ही सूचना लेकर आन पहुंचा था। “फौरन आने को कहा है – सुलतान ने!” बात स्पष्ट कर दी गई थी।

कुल एक रात ही तो गुजरी थी केसर के साथ।

“जाना तो पड़ेगा केसर!” अंगड़ाई तोड़ते हुए हेमू बोला था। “राजपूतों से टक्कर होगी!” वह हंसा था।

“मैं भी साथ चलूंगी साजन!” केसर ने सीधी मांग की थी। “मैं अकेली ..?”

“जंग में जाना है केसर!” हेमू ने केसर को अपांग देखा था। “और ये .. भेड़ों की रखवाली करना नहीं है!” उसने व्यंग किया था।

“बात तो एक ही है साजन!” केसर हंस रही थी। “दुश्मन चाहे आदमी हो या भेड़िया! एक समान ही होता है।” उसने उत्तर दिया था। “हम साथ साथ रहेंगे साजन! जो हो सो हो – मैं आप सा से जुदा नहीं रहूँगी।” केसर का ऐलान था। “एक जान, एक प्राण और एक अरमान लेकर जिंदगी जीएंगे आप सा! साथ साथ जीएंगे और साथ साथ ..” केसर जैसे किसी ली शपथ को दोहरा रही थी – हेमू को लगा था।

निःशब्द हुआ हेमू अपनी प्रिया, प्राण प्रिया और परम सुंदरी केसर को नई निगाहों से देख रहा था। अचानक उसे राजा मान सिंह की प्रेमिका और पत्नी मृगनयनी याद हो आई थी। कैसे पता लगा केसर को उसकी उन मनो भावनाओं का जब उसने भी कल्पना की थी कि वो भी अपनी पत्नी .. प्रेमिका और प्राण प्रिया के साथ साथ?

“लेकिन ये वक्त बड़ा नाजुक है, केसर!” गंभीर था हेमू। “अभी मैं .. माने कि मेरा कोई निश्चित नहीं कि मैं क्या करूंगा, कहां जाऊंगा या की ..”

“मैं आगरा साथ चल रही हूँ, साजन!” आदेश केसर के थे!

हेमू ने आंख उठा कर देखा था तो माहिल सामने खड़ा था।

इसका अर्थ था कि युद्ध अवश्यंभावी था और उसे अब राजपूतों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाना था – और .. उसे ..

“आगरा जाने का बंदोबस्त हो गया है सुलतान!” माहिल ने हंस कर बताया था।

“होना क्या है, माहिल ..?” हेमू ने यूं ही पूछा था। वह जानता था कि माहिल के पास पूर्व सूचना होती है और मुकम्मल प्रमाण होते हैं!

“आपको ताती बयार भी नहीं लगेगी सुलतान!” माहिल ने प्रसन्न होकर बताया था और चला गया था।

वक्त क्या चाह रहा था – हेमू समझने की कोशिश कर रहा था।

“ग्वालियर वाली गलती अब नहीं करूंगा गुरु जी!” हेमू शपथ जैसी ले रहा था। न जाने क्यों उसका मन नहीं था, वह उचंग भी नहीं थी और न वो उमंग थी जो धौलपुर और ग्वालियर फतह करते वक्त थी। बहुत कुछ बदल गया था हेमू के दिमाग में!

केसर ने महान सिंह को सब कुछ समझा दिया था।

आगरा रौनक में नाक तक डूबा था। इब्राहिम लोधी की ताजपोशी होने का शुभ लग्न निकल चुका था। उलेमा और उस्मान सब आगरा पधारे थे। सारे अफगान सरदार और शासक आगरा पहुंच रहे थे। लाहौर – पंजाब से पूरा काफिला आ पहुंचा था और यमुना किनारे डेरा डाले था। जलाल नहीं आया था। उसने कालपी को राजधानी बना कर जौनपुर पर कब्जा कर लिया था और अब बंगाल तक उसका हुआ जा रहा था। मीयां बेग जो बहलोल लोधी के सहायक और सिकंदर के मित्र रहे थे, आगरा आ कर जम गये थे। बिहार से भी खाने जहान लोधी और परिया खान लोधी पधारे थे। गाजीपुर के वजीर खान लोहानी आए थे तो अलाउद्दीन शाह बंगाल से पहुंच गये थे। आजम खान शेरवानी तो अपने पूरे दल बल के साथ पधारे थे!

राणा सांगा के आक्रमण की बात भी हवा पर लहरा रही थी। सभी आगंतुकों को आभास था कि राजपूतों से जंग होनी थी और बहुत शीघ्र!

लेकिन उन सब का इरादा था – अपना अपना हक पा लेना! राजपूतों से लड़ने से पहले वह अपना हक हकूक पा लेना चाहते थे। पंजाब स्वतंत्र राज्य चाहता था तो शेरवानी को ग्वालियर चाहिये था! अन्य सभी अफगान अपनी अपनी वफादारी और सेवाओं का इनाम चाहते थे, जागीरों में इजाफा चाहते थे और चाहते थे कि उन्हें बढ़ते लोधी साम्राज्य में साझेदारी मिले!

ये सब लोग बहलोल लोधी से लेकर सिकंदर लोधी तक सल्तनत के साथ रहे थे और वफादारी से लड़े थे!

उधर इब्राहिम लोधी ने भी ठान ली थी कि वह किसी को एक तिनका तक न देगा! वह उठते विद्रोह को कुचल देगा और जो फिर भी नहीं मानेगा उसे मिटा देगा! विद्रोही जलाल उसका सबसे पहला निशाना था। आगरा शहर के ऊपर शाम झुक आई थी। हेमू केसर को साथ लिए नौका विहार के लिए निकला था। केसर बहुत प्रसन्न थी। उसने पहली बार इतनी विशाल नदी के दर्शन किये थे। यमुना का महत्व तो केसर जानती थी तभी उसने यमुना को प्रणाम किया था और अंजुरी में जल लेकर आचमन भी किया था।

नाविक ने केसर को नई आंखों से देखा था, सराहा था और न जाने क्या सोचता रहा था।

“यमुना मइया के दर्शन कर जनम सफल हो गया साजन!” केसर के मुख मंडल पर एक उल्लास आ बैठा था। इतनी विशाल जल राशी – उसने आश्चर्य जाहिर किया था।

“जब पूरे देश को देखोगी तो ..?” हेमू मुसकराया था।

“देखूंगी!” केसर ने एक वायदा जैसा किया था। “और ग्वालियर को सबसे पहले देखूंगी।”

“क्यों भाई?”

“मैं ये देखूंगी कि मेरे साजन ने ग्वालियर को कैसे फतह किया था!”

हेमू अपलक केसर को देखता रहा था। उसका तन मन केसर के भावावेश के बारे सोच आंदोलित हो उठा था।

“ग्वालियर को हारना नहीं चाहिये था केसर!” टीस कर कहा था हेमू ने। “मैंने इसे जीत नहीं – अपनी हार माना है, प्रिये!” हेमू के स्वर गंभीर थे। “महाराजा विक्रम जीत को कैदी बनाना मुझे बुरा लगा था। महाराजा मान सिंह की मृत्यु ओर मृग नयनी के साथ उनका हुआ कत्ल ..! उफ ..!”

“क्या हुआ था साजन? क्यों किया उनका कत्ल? किसने किया ..?”

“यह गृह कलह की कहानी है, केसर!” हेमू ने तेवर साध कर कहा था और चुप हो गया था।

लम्बे समय तक चली थी ये चुप्पी। सूरज अब यमुना के पानी में जा डूबा था। पूरा वातावरण सुनहरी हो दहक उठा था। हिलता डुलता यमुना का पानी ओर उसपर डोलती छोटी छोटी लहरें केसर से बतियाना चाह रही थीं। लेकिन केसर थी कि ऑंखें चुरा रही थी।

“बताओ न साजन! क्या हुआ था?” फिर से केसर ने मधुर स्वर में आग्रह किया था।

“मृग नयनी गुर्जर कन्या थी! मान सिंह शिकार पर गये थे तो देखा था कि एक युवती ने दो लड़ते सांडों के सींग पकड़ कर उन्हें जुदा कर दिया है और उनमें सुलह करा दी है! दंग रह गये थे महाराजा!”

“और उसे महारानी बना लिया?” केसर ने पूछ लिया था।

“हॉं! उसे महारानी बना लिया जबकि उनकी आठ पटरानियां पहले से ही थीं!”

“हाय राम!” केसर सुनकर दंग रह गई थी। “लेकिन साजन ..! राजाओं की रानियां तो होती हैं?” केसर ने कुछ सोच कर पूछा था। “फिर ..?”

“राजपूत!” हेमू ने एक सत्य उगला था। “चूंकि मृग नयनी गुर्जर थी अतः अन्य रानियों ने उसे स्वीकार ही नहीं किया! उनके राजपूत परिवारों ने भी घोर विरोध किया। जबकि महाराजा मान सिंह का उद्देश्य था कि वो राजपूतों के अलावा अन्य सभी जातियों को अपने साथ लेकर चलें और साम्राज्य का सर्वांगीण विकास करें!”

“फिर ..?”

“फिर ये कि उन्होंने मृग नयनी के लिए उसकी शर्तों के अनुसार अलग महल बना दिया – गुजरी महल!” हेमू ने पलट कर केसर को देखा था। “क्या महल है केसर!” हेमू की ऑंखों में आश्चर्य भरा था। “पानी भी सीधा नदी से बनी नहर के द्वारा महल से होकर बहता है! मृग नयनी का नाम ‘मिनी’ था। और वो नदी जिसमें वो नहाती थी ..”

“तभी इतनी बहादुर थी!” केसर ने स्वीकारा था। “प्रकृति के साथ रहने से देवीय गुण स्वयं समाहित हो जाते हैं, साजन!” केसर ने अपना अनुमान बताया था। “और प्रेम भावना भी तो ..”

“तुमने भी तो प्रकृति से ही लिया है ..” हेमू हंस रहा था। “बहुत अच्छा गाती भी थी मृग नयनी। उसने हरि दास से संगीत सीखा था और तन्ना शास्त्री की ध्रुपद में संगत करती थी!” हेमू ने केसर की ओर देखा था। “तुम्हें आता है गाना – कसर ..?” उसका प्रश्न था।

केसर चुप थी। वह बोली नहीं थी। यमुना के विस्तारों को देखती रही थी तो हेमू को उत्तर मिल गया था।

“मुझे भी नहीं आता गाना!” हेमू ने स्वीकारा था और हंस पड़ा था।

“और ये सुलतान इब्राहिम लोधी?” केसर ने अचानक एक अप्रत्याशित प्रश्न पूछा था।

हेमू ने होंठों पर उंगली धर उसे चुप रहने को कहा था!

“ये नाविक इब्राहिम का जासूस है!” हेमू ने आहिस्ता से केसर को बताया था।

केसर पहली बार डरी थी!

मेजर कृपाल वर्मा

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