गृह कलह में नाक तक डूबा सुलतान इब्राहिम लोधी आज बेचैन था!
कहने को तो वह एक सल्तनत का स्वामी था लेकिन वास्तव में तो उसका अपना बेटा भी उसके साथ न था। जलाल की हत्या कराने के बाद न जाने कैसा संदेश फैला था जो उसे बेचैन किये था। कुछ बहुत गलत हो गया था शायद!
आगरा में उसे एक सुकून मिलता था। उसे लगता था कि वह अपनी सल्तनत के मध्य में बैठा महफूज था और सुरक्षित था। लेकिन आज न जाने कहॉं से आ आकर उसे अपनों की आवाजें टकरा रहीं थीं ..
“हमें अपना हक चाहिये!” सामूहिक आवाजें थीं और एक सम्मिलित शोर था। “मैं तो तुम्हारा चचा हूँ। मैंने भी तो जंग लड़ी है! फिर मेरा हक?”
“दूंगा तुम्हारा भी हक!” मन ही मन इब्राहिम ने प्रतिज्ञा ली थी। “जलाल ने तो ले लिया .. अबकी बार तुम्हारा नम्बर है!” तनिक सा मुसकुराया था – इब्राहिम लोधी।
उसकी आंखों के सामने लोधियों, लोहानियों, फोरमूसियों और निचनियों की एक भीड़ जमा हो गई थी। ये सब अफगान थे, सब उसके अपने थे लेकिन आज ये सब उसकी जान के प्यासे थे!
और .. और हॉं! युद्ध के मैदान में अचानक बीमार हुए सिकंदर लोधी का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ खड़ा हुआ था। वह देख रहा था – हिन्दुओं का होता विनाश, उनपर टूटता कहर, मंदिरों को ढाता, संत साधुओं को जिंदा जलाता अपने अब्बा का चेहरा!
“कहां मिटा पाये अब्बा हिन्दुओं को?” इब्राहिम ने आह छोड़कर स्वयं से ही प्रश्न पूछा था। “और क्या वो इन अफगानियों को ..?” वह उंगलियों पर गिन रहा था उनके नाम!
तभी हेमू आ पहुंचा था। हिन्दू था हेमू – अचानक एक विचार इब्राहिम लोधी के दिमाग में कौंध गया था!
“उम्मीद से भी आगे का काम हुआ होगा – मैं जानता हूँ!” इब्राहिम लोधी ने खुश खुश हेमू का स्वागत करते हुए पूछ लिया था।
“हुआ तो सब है लेकिन ..” हेमू चुप हो गया था।
“लेकिन ..?” इब्राहिम ने चिंतित होकर पूछा था।
“आप का डर दिखा कर, कैद में पड़े और जागीरें गंवा बैठे लोगों के बारे में बता कर और ये बता कर कि हुक्म अदूली की सजा संगीन होगी और सुलतान किसी भी कीमत पर माफ नहीं करेंगे – तब जाकर ..” हेमू ने इब्राहिम लोधी के चेहरे को पढ़ा था।
इब्राहिम लोधी का चेहरा चमक उठा था। उसे अपने छाये खौफ पर जैसे घमंड हुआ था और उसे विश्वास हुआ था कि उसका अदल कायम होता चला जा रहा था! और अगर इसी तरह चला तो .. वो ..
“सारी शर्तें मान लीं?” इब्राहिम ने पलट कर पूछा था।
“सारी शर्तें मनवा लीं!” हेमू ने हंस कर बताया था। “इतने डर गये थे ये लोग कि कोई बोल ही न पाया था!”
इस बार वो दोनों साथ साथ हंसे थे। दोनों प्राप्त कामयाबी पर प्रसन्न थे। इब्राहिम लोधी को कामयाबी को कान से पकड़ कर लाता हेमू बहुत अच्छा लगा था।
“आप के चचा जानी ..?” हेमू ने यों ही एक महत्वपूर्ण प्रसंग छेड़ा था। वह इब्राहिम लोधी को उसके सबसे बड़े खतरे से अवगत करा देना चाहता था।
“मैं जानता हूँ हेमू!” टीस आया था इब्राहिम लोधी। वह चुप रहा था देर तक। “है कोई इलाज?” उसने चुपके से पूछा था।
“बात बिगड़ जाएगी!” हेमू का सुझाव था। “मैंने जो महसूस किया है वह है आपके खिलाफ अफगान सरदारों का एका!” हेमू ने ठहर कर इब्राहिम लोधी की प्रतिक्रिया पढ़ी थी। “सब को कुछ न कुछ तो चाहिये!”
“फिर मेरे पास क्या बचेगा!” इब्राहिम ने भी प्रश्न पूछा था। “मैं क्यों बांटूंगा साम्राज्य को? मैं तो चाहता हूँ कि लोधी सल्तनत के सितारे ..”
फिर से हेमू ने महसूसा था कि इब्राहिम लोधी का सपना ज्यों का त्यों था। उसे हिन्दुस्तान पर लोधियों का झंडा फहराने का ख्वाब पूरा करना था!
“क्या तकलीफ है इनको?” इब्राहिम लोधी ने एक सहल सा सवाल पूछा था हेमू से।
हेमू बहुत देर तक चुप रहा था। वह इब्राहिम लोधी को अपनी निगाहों में भर कर तोलता रहा था। कुछ कहने से पहले सोच रहा था कि क्या सुलतान इब्राहिम लोधी को अपने दिमाग का डर कह सुनाए? फिर उसने सोचा था कि बात का सूत्र पकड़ाने में कोई हर्ज नहीं था!
“बाबर ..?” संक्षेप में उत्तर दिया था हेमू ने।
“बाबर ..?” हंसा था सुलतान इब्राहिम लोधी। “कोई पहाड़ नहीं है – बाबर!” उसने सहज में कहा था। “तुर्क है! फरगना से मार खा कर काबुल में भाग आया है।” उसने परिहास किया था। “समरकंद जीतने गया था और गांठ का भी दे बैठा।” फिर हंसा था इब्राहिम।
“वो कहते हैं – बाबर का कभी भी आक्रमण हो सकता है।” हेमू ने बात आगे चलाई थी। “और कहते हैं दिल्ली से उन्हें कोई मदद नहीं मिलती?”
“दिल्ली को देते क्या हैं?” उलाहना दिया था इब्राहिम ने। “तुम तो खुद मुख्तार हो जानते तो हो कि बहानों के सिवा लाहौर से कभी कुछ नहीं आता!”
“बताते हैं कि बाबर तैमूर और चंगेज खां – दोनों की सल्तनतों से ताल्लुक रखता है। मॉं और अब्बा ..”
“मुझे सब पता है! ओर मुझे ये भी पता है कि उसके पास अब कुछ भी नहीं है। तैमूर की तरह ये भी हिन्दुस्तान को लूटना चाहता है! लेकिन ..”
“तोपें हैं – शायद बाबर के पास! कहते हैं कि ये इसे उस्मानिया से मिली हैं! तोपची भी वहीं के हैं और ..”
“लेकिन कामयाब नहीं हैं!” इब्राहिम का उत्तर था। हेमू अब समझ गया था कि इब्राहिम बेखबर नहीं था। “कुल मिला कर दिन में सोलह बार चलती हैं। कभी कभी फट भी जाती हैं। लोग मर जाते हैं। घायल भी हो जाते हैं!” इब्राहिम लोधी जानकारी देता ही रहा था। “बारूद बट्टा और सामान सट्टा कुल मिला कर ऐसा कबूडल बनता है कि खींचना मुश्किल हो जाता है!” इब्राहिम लोधी ने हाथ झाड़ दिये थे।
लेकिन हेमू के दिमाग में तोपें लटकी ही रही थीं। वह चाहता था कि तोपों का कोई उत्तर खोज ले और इसे खाली खतरा न माना जाये!
और इब्राहिम लोधी अचानक एक चुप्पी में जा डूबा था!
उसे तैमूरलंग का हिन्दुस्तान पर हुआ हमला याद हो आया था और याद हो आया था कि किस तरह तैमूरलंग ने तुगलक सल्तनत का अंत ला दिया था? कहते यही हैं कि लैमूरलंग तुगलकों के हिन्दुओं के साथ हुए सौहार्द से नाखुश था। वह इस्लाम का झंडा ही ऊपर हुआ देखना चाहता था और तभी उसने हिन्दू राजे-रजवाड़े मार गिराए थे, मंदिर तोड़े थे, शहर के शहर नष्ट किये थे, कत्लेआम किया था और लूट पाट से तबाही और बरबादी ला दी थी। दिल्ली में पंद्रह दिन रह कर शहर को मिट्टी में मिला दिया था। बानबे हजार घुड़ सवार लेकर आया था और बानवै हाथियों में लूट का माल भर कर ले गया था!
“हेमू भी तो हिन्दू है!” फिर एक बार इब्राहिम लोधी के दिमाग में बिजली कौंधी थी। “बाबर को इसका पता तो अवश्य होगा!” उसने अनुमान लगाया था। “ओर वह हिन्दुओं को सेनाओं में ले रहा था? और उसका काम बिना हिन्दुओं के चलना भी नहीं था। बाबर के काबुल आने के बाद अब अफगानों का आना बंद था और पुर्तगालियों के आने के बाद बंगाल का रास्ता भी बंद था और दक्खिन भी हाथ से जाता रहा था! अब ..? गहरे सोच में डूबा रहा था इब्राहिम!
काफी सोच विचार के बाद भी इब्राहिम लोधी कोई उत्तर न पा सका था। चारों ओर निगाहें दौड़ाने के बाद सहसा उसे राजपूतों की सुध आई थी। हेमू के जरिये हो सकता था कि राजपूतों के साथ ..
“कोढ़ में खाज!” उसका अंतर बोला था। “आ बैल मुझे मार!” वह हंसा था। “ये तो और भी गलत हो जायेगा! इस्लाम का परचम अब उसे अकेले ही लेकर चलना होगा!” उसने निश्चय किया था। “राजपूत उसे कभी साथ न लेंगे! राणा सांगा अपनी भूख बुझाने में लगा था! आज उसके पास सबसे बड़ा साम्राज्य था और उसकी आमदनी का भी ठिकाना न था!”
फिर एक बार हेमू ही पतवार की तरह उसके हाथ में आ गया था!
मेजर कृपाल वर्मा