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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग बानवे

Hemchandra Vikramaditya

कालिंजर का किला और महोबा बुंदेलखंड की महाराजा कीरत सिंह की रियासत अब शेर शाह सूरी की आंखों में खटक रही थी। राजा वीर भान सिंह के कालिंजर जाने के बाद से और अभी तक कलाकृति के ना आने के सबब शहंशाह को दिन रात सता रहे थे। जहां उनका पुराना सपना टूट रहा था वहीं नया सपना सामने आ रहा था।

कालिंजर का विध्वंस कर, राजपूतों को समूल नष्ट कर और हिन्दुओं पर नए तौर तरीकों से अत्याचार और अनाचार का उनका सपना नए जुनून के साथ उनपर तारी था। कालिंजर उनके लिए एक मात्र चुनौती था।

“कालिंजर का किला है क्या बला साजन जो इसका इतना शोर मचा है?” केसर ने सहज प्रश्न पूछा था। “सुन रहे हैं कि कालिंजर पर आक्रमण ..”

“होगा आक्रमण जरूर!” स्वीकारा था हेमू ने। “होकर ही रहेगा होतव्य केसर!” तनिक मुसकुराकर कहा था हेमू ने। “कालिंजर एक निर्णायक कदम की तरह इतिहास में अपना नाम दर्ज करेगा – मेरा अनुमान है।”

“लेकिन क्यों?” केसर की जिज्ञासा अभी भी शांत नहीं हुई थी।

हेमू ने दृष्टि उठा कर कहीं दूर – बहुत दूर देखा था।

“कालिंजर का वर्णन तो वेदों में भी है केसर!” हेमू बताने लगा था। “ऋग वेद में इसे तपस्या के लिए एक मात्र उपयुक्त स्थान बताया है और रामायण, महाभारत और पुराणों में भी कालिंजर का वर्णन मिलता है। इसी प्रदेश में तो चित्रकूट है जहां हमारे आराध्य श्री राम ने बारह बरस का वन वास बिताया था।” हेमू ने एक महत्वपूर्ण सूचना केसर को दी थी। “कहते हैं बड़ा ही सुरम्य और शुद्ध प्रदेश है!” हेमू ने केसर के प्रसन्न हो आये चेहरे को देखा था।

“फिर तो हम भी अवश्य देखेंगे – बुंदेलखंड, महोबा .. और ..”

“जान बचेगी तब ना?” हेमू ने बात काटी थी।

केसर ने मुड़ कर हेमू को प्रश्न वाचक निगाहों से घूरा था। यूं अचानक जान पर खेलने वाली घटना कहां से चली आई वह पूछ लेना चाहती थी।

“कालिंजर से भी बड़ा प्रश्न सुलतान शेर शाह सूरी के लिए पंडित हेम चंद्र है केसर!” वह बताने लगा था। “मेरी जान और शेर शाह सूरी के प्राण कालिंजर के किले पर जा चढ़े हैं। अब देखना ये है केसर कि ..”

हेमू ने ठहर कर केसर की प्रतिक्रिया पढ़ी थी।

“तो हम क्या करें?” केसर ने भी पूछ ही लिया था।

“हॉं!” हेमू ने स्वीकारा था। “अब हमें अपना बचाव सर्व प्रथम सोचना होगा, केसर!” हेमू बताने लगा था। “कालिंजर यों बातों या रातों में न गिरेगा! कालिंजर जीत लेना शेर शाह सूरी के लिए भारी पड़ेगा।”

“क्यों?”

“क्योंकि कालिंजर का इतिहास देखें तो बड़ा ही आकर्षक है! ये प्रदेश बड़ा ही संपन्न रहा है। चंदेल राजपूतों का गढ़ है ये और आठवीं शताब्दी से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक यहां उनका राज रहा। यशोवर्मन ने खजुराहो को अपनी राजधानी बनाया था और 925 से 950 तक राज किया था। गड़बड़ी कहीं 1019 से लेकर 1023 में हुई जब नन्द गजनवी के सामने ना आकर मैदान छोड़ कर भागा। कुतुबुद्दीन ऐबक के आने के बाद से ही सारा माहोल बिगड़ा! पृथ्वी राज चौहान की मृत्यु के बाद से सारा का सारा देश लुटेरों और आक्रमणकारियों के लिए खुल सा गया था।” रुका था हेमू।

“फिर ..?”

“फिर क्या केसर जब तैमूर ने 1398 में दिल्ली को लूटा, कत्लेआम किया, उसके बाद से तो इन लुटेरों के लिए सब आसान होता चला गया।” एक उठी टीस को झेला था हेमू ने। “फिर 1538 में हुमायू भी कालिंजर फतह करने पहुंचा था लेकिन बाबर की मौत होने से लौट आया था।” हेमू ने केसर को देखा था। “और अब ..?”

“हो जाएगा फतह कालिंजर?” केसर ने सीधा प्रश्न पूछ लिया था।

“शायद हॉं – शायद नहीं!” तनिक मुसकुराया था हेमू। “मैं तो चाहता हूँ कि किसी तरह कालिंजर अजेय ही बना रहे, केसर!” उसने चाहत पूर्ण आंखों से केसर को देखा था।

“आप जू ने तो किले फतह किये हैं!” केसर ने बड़े लाढ़ से कहा था। “कुछ इस बार भी कीजिये न साजन ताकि ..” बड़े ही पवित्र से आग्रह उभर आये थे केसर की आंखों में।

प्रिया की अनुपम आरजू सुन कर हेमू का दिल दिमाग जग सा गया था। पुरुषार्थ उठ खड़ा हुआ था। जी जान लगा कर फिर से लड़ने की उमंग पास आ बैठी थी। लेकिन ..

“दिन दशा तो यही बता रहे हैं केसर कि हमें अब संघर्ष करना ही पड़ेगा!” हेमू अपने सोच के साथ था। “लेकिन प्राण प्रिये स्थिति बहुत गंभीर है! ये बीमारी का बहाना ज्यादा दिन हमें जीवन दान नहीं दे पाएगा – मैं जानता हूँ। और अंत में जब शेर शाह सूरी को पता चलेगा तो सब से पहले मेरा शीश कटेगा!” गंभीर था हेमू। “लेकिन मैं .. कायरों की तरह .. एक शर्मनाक मौत ..” चुप हो गया था हेमू।

और इस गहन चुप्पी के पेट से ही एक अंतर वेदना का जन्म हुआ था।

केसर अपने पति पुरुष की लाचारी को समझ न पा रही थी। वह क्या था जो हेमू को लड़ने से रोक रहा था – वह समझ लेना चाहती थी।

“एक ही उपाय है इस वक्त कि हम दिल्ली छोड़ कर भाग जाएं!” हेमू ने बताना आरम्भ किया था। “लेकिन जाएं तो जाएं कहां?” उसने विवशता भी बताई थी। “शेर शाह सूरी के पंडित हेम चंद्र को पनाह कौन देगा?” उसने केसर की आंखों को पढ़ा था। “कोई नहीं न ..?” वह तनिक विहंसा था। “कौन है जो बैठे ठाले अपनी मौत बुलाएगा?” हेमू ने केसर से प्रश्न किया था।

“तो फिर ..?” केसर भी हिल गई थी। उनकी स्थिति वास्तव में ही गंभीर थी।

“हिन्दुओं का हिमायती तो कोई है ही नहीं जो शेर शाह के सामने आएगा!” हेमू ने अपना विचार बताया था। “है न विचित्र बात केसर कि इस हिन्दुस्तान में हिन्दुओं के लिए आज कोई हिमायती नहीं है?” हेमू चुप था। वह गहरे सोच में डूबा था।

केसर भी यही सोच रही थी कि वास्तव में ही ये विचित्र बात थी कि हम हिन्दुओं का अपने ही देश में कोई हिमायती नहीं था। जिस तरह मुसलमानों ने आ कर देश घेर लिया था और अब बकरों की तरह हिन्दुओं को हलाल कर रहे थे ओर हिन्दू ..”

“पुर्तगालियों को संदेश तो भेजा है!” हेमू ने चुप्पी तोड़ी थी। “अगर बात बनी तो उन के साथ मिल कर या तो गुजरात लेंगे या फिर दिल्ली ..?” एक आशा किरण को हेमू ने आजाद किया था।

“और अगर पुर्तगाली भी न आये तो ..?” केसर अब सजग थी।

“तो फिर शायद विजय नगर से अलिया राम राया से शरण मांगनी होगी! वही एक बचा है जो संसार का बादशाह बनना चाहता है और अगर पत्ते सीधे पड़े तो इस शेर शाह सूरी को भी सटक लेगा!” हेमू तनिक प्रसन्न हुआ था। “अब वही एक अकेली उम्मीद है केसर!” हेमू ने आशा दीपों सी जलती केसर की आंखों में देखा था।

“ये मुसलमान साजन ..?” केसर को आज पहली बार मुसलमानों से डर लगा था।

“इनकी जड़ें बहुत गहरी जम गई हैं केसर!” हेमू बताने लगा था। “हुमायू को देखो! कहां फारस में जाकर शरण ली है जहां शेर शाह के फरिश्ते भी नहीं पहुंच सकते।” हेमू ने बताया था। “इसके आगे तक भी मुसलमानों का साम्राज्य खुरासान और उस्मानिया तक फैला है। और इनका आतंक भी खुले आसमान पर छपा हुआ है! लोग दहला जाते हैं इनके जुल्मों का संदेश पाकर! और एक हम हैं हिन्दू ..?” एक खट्टा चूक जायका घिर आया था हेमू के मुंह में। “सब कुछ होने के बाद भी कुछ भी नहीं है हमारे पास?” हेमू की आंखों में गजब की बेबसी तैर आई थी। “हमारे सर काट काट कर मीनारें बनाई जाएंगी। अब शेर शाह सूरी हमारी औरतों की इज्जत उतारेगा। अब लूट पाट आरम्भ होगी। हिन्दुओं के खेत खलिहान जलाए जाएंगे। अब न जाने कितने बोधनों को बीच चौराहे पर खड़ा कर जिंदा जलाया जाएगा और न जाने ..” आंसू भर आये थे हेमू की आंखों में।

“यों दुखी होने से फायदा?” केसर पूछ रही थी। “विजय की कामना करते हैं साजन।” केसर ने रास्ता सुझाया था। “आज मैं तुम्हें नई तोड़ी सुनाती हूँ जो मुझे तन्ना शास्त्री ने अभी सिखाई है।” हंस रही थी केसर। “चलो आज साथ साथ गाते हैं साजन!” उसका आग्रह था।

“गीत की रीत सी प्रीत .. सजनवा ..” वह दोनों गाते रहे थे और मोद मनाते रहे थे।

मेजर कृपाल वर्मा
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