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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग बहत्तर

Hemchandra Vikramaditya

हुमायू की भेजी खबर पढ़ कर बाबर के तोते उड़ गये थे।

रातों रात बिना किसी हीलो-हुज्जत के पूरब के सारे पठान ओर अफगान एक हो गये थे। दिल्ली से भागा सुलतान मोहम्मद लोधी अब अफगानों और पठानों का बिहार का बादशाह था! और इनकी पीठ पर बंगाल का नवाब था। लाखों की तादाद में सेना खड़ी हो गई थी और हजारों की तादाद में लड़ाकू सिपहसालार बाबर को परास्त करने के लिए उछलते घूम रहे थे।

सुलतान मोहम्मद लोधी को सर्व सम्मति से बिहार और दिल्ली का बादशाह चुन लिया गया था।

बाबर भी इकट्ठे हुए दुश्मन की ललकार सुनते ही उठ खड़ा हुआ था। उसने हुमायू को वहीं बने रहने के आदेश दिये थे ओर अपनी सेना साथ लेकर द्वाबा पार कर गया था। गंगा के दोनों तटों पर वह हुमायू, जनरल असगरी और अन्य दूसरे सिपहसालारों से मिला था – जो सुलतान महमूद लोधी को दगा देकर बाबर से मिल गये थे।

सुलतान महमूद लोधी ने बाबन और वजाद को बाबर का मुकाबला करने भेजा था लेकिन वह दोनों बाबर से मिल गये थे। चूंकि बिहार के कई नए पुराने मालिक थे और वो सब सुलतान बनने के इच्छुक थे अत: लड़ने के अलावा उन्हें किसी तरह से भी गद्दी ही लेनी थी!

बाबर की समझ में सारा खेल समा गया था। वह जान गया था कि बारी बारी सब उसकी शरण में आएंगे ओर उसने सब को शरण देकर बिहार को अपनी झोली में डाल लेना था। ज्यों ज्यों बाबर की सेनाएं आगे बढ़ती गईं त्यों त्यों अफगान और पठान उसकी ओर आ आकर मिलते गये! चुनार पहुंचते पहुंचते शेर शाह सूरी से लेकर जलाल खान लोहानी तक सब बाबर से आ मिले। सुलतान मोहम्मद लोधी भाग कर बंगाल के सुलतान के खेमे में जा बैठा।

6 मई 1529 को अब बाबर का मुकाबला सुलतान लोधी और बंगाल की सेना से होना था। गंगा और घाघरा के संगम पर दोनों सेनाएं आमने सामने थीं। बाबर ने अपने छोटे बेटे असगरी को चार डिवीजन देकर गंगा के दूसरे तट पर जाकर बंगाल सेना को पीछे से घेरने के आदेश दिये। स्वयं दो डिवीजन लेकर सामने से हमला करने को तैयार होकर अलीकुली और मुसल्ला रूमी को तोपों की दो बैटरी लगा कर बंगाल के कैंप पर गोला बारी करने के आदेश दिए!

सुबह युद्ध आरंभ होते ही बंगाल सेना के होश उड़ गये थे। हालांकि उनकी सेना ने बहादुरी से मुकाबला किया था पर बाबर के बिछाए जाल में वह सहज ही फंस गये थे। तीनों ओर से घिरने के बाद उन्होंने समर्पण कर दिया था!

सब आ आकर बाबर से मिलने गये थे। सबने जागीरें पा ली थीं और बंगाल के नवाब से भी पुरानी शर्तों पर समझौता करा दिया था।

“उसमान अली कुली और मुस्तफा रूमी बाबर की दो समर्थ भुजाएं हैं।” माहिल बता रहा था। “ये दोनों तुर्क हैं! दोनों ही तोपची हैं!” उसने सूचना दी थी। “कहर ढाते हैं दुश्मन की सेनाओं पर और बाबर ..”

“विजयी हो जाता है?” हंसा था हेमू। “मैं जानता हूं माहिल कि बाबर का ये तोप खाना ही आज का अजेय अस्त्र है!” अब हेमू ने अब्दुल को देखा था। “एक आर अब्दुल की तोपें आ जाएं?” उसने जैसे एक संभावना की ओर देखा था।

लेकिन अब्दुल चुप था। तनिक परेशान भी था। कुछ प्रश्न थे शायद जो उसे परेशान किये थे। जैसे उसके पास हेमू के प्रश्न का उत्तर तो था – पर वह बताना न चाहता था।

“मेरा काम तो हुआ मानो सुलतान!” माहिल चहका था। “मेदनी राए के बहुत सारे सैनिक मैंने आप के लिए भरती कर लिए हैं! राणा सांगा की मौत के बाद अब राजपूत सैनिक भी हमारे पास आ रहे हैं! ओर जहां तक हाथियों का प्रश्न है .. वो ..”

“घोड़े तो हम पुर्तगालियों से प्राप्त कर लेंगे सुलतान!” अब्दुल बोला था। “तुर्की घोड़े हमें इनसे मिल जाएंगे!” उसने सूचना दी थी। लेकिन अब्दुल अभी भी उदास ही था।

“अब्दुल! बात क्या है? तुम खुल कर कहो न!” हेमू ने अब्दुल को कुरेदा था।

“ये पुर्तगाली भी कमीने हैं सुलतान!” टीसा था अब्दुल। “बिना लिए दिये ये काम नहीं करते!” उसने शिकायत की थी। “तोपें तो तुरंत आ जाएं – अगर हमारे पास धन हो तो!” वह कह रहा था। “लेकिन मैं तो जानता हूँ कि ..” वह चुप हो गया था।

हेमू भी अब चुप हो गया था। वह जानता था कि अभी उसका बाहर आना अभी भी खतरों से खाली न था। बाबर उसे भूले न बैठा था। यही एक सच्ची खबर थी और हेमू नहीं चाहता था कि वो बाहर आये और तोपों की खरीद के लिए धन जुटाए!

“शोरा ..?” हेमू ने चुप्पी तोड़ी थी।

“बिहार का सारा शोरा खरीद लिया है!” अब्दुल बताने लगा था। “अबकी बार खूब मुनाफा होगा! लेकिन पुर्तगालियों की मांग बहुत ज्यादा है!” अब्दुल फिर से चुप हो गया था।

“शोरे के साथ सेवाएं भी ले लें हमसे?” हेमू ने प्रस्ताव रक्खा था।

“ये बात तो आप ही कर सकते हैं सुलतान! मैं तो ..” अब्दुल ने साफ कहा था।

हेमू भी चुप हो गया था। उसकी समझ में न आ रहा था कि धन आये तो कहां से? देश पर तो बाबर छा गया था। बाबर से पूरा माहौल भयभीत था और अगर बाबर को उसके बारे भनक भी लगी तो उसे जमीन से खोदकर निकाल लेगा!

वक्त की मांग चुप्पी थी – हेमू ने ताड़ लिया था।

घाघरा की फतह के बाद अब बाबर हिन्दुस्तान का एक छत्र बादशाह था।

“ऐसा कैसा है ये बाबर साजन जो जीत के नगाड़े ही बजाता चला जा रहा है?” केसर पूछ रही थी। “क्या ऐसा कोई भी मर्द नहीं जो इसके जबड़े तोड़ दे?” केसर का प्रश्न था।

हेमू चुप था। उसका मन चांद सितारों में अकेला भटक रहा था। वह केसर के प्रश्न का उत्तर पाने में असमर्थ था। उसे इब्राहिम लोधी से लेकर राणा सांगा और अब समूचे अफगान पठानों की हार सताने लगी थी।

“बहादुर होने के बावजूद बाबर बहुत चालाक है केसर!” हेमू बता रहा था। “अनुभवी भी है केसर!” हेमू आहिस्ता से बोला था। “ये तो बचपन से ही लड़ता आ रहा है और हार जीत का स्वाद चखते चखते अब लड़ने में निपुण हो गया है। समरकंद तो ये जीत ही नहीं पाया था और यहां तक कि फरगना से भी इसे भागना पड़ा था! काबुल आया था तो कुछ न था इसके पल्ले!” हेमू फिर से चुप हो गया था।

“ये कहानी तो मुझे भी पता है – साजन!” केसर फिर से बोली थी। “मैं तो यह जानना चाहती हूँ कि वो क्या है जो ..?”

“तोपें!” हेमू बोल पड़ा था। “तोपों से चंदेरी के किले की दीवारें ढा दीं और रातों रात किले पर कब्जा कर लिया! और सुबह फिर गोला बारी!” हेमू ने पलट कर केसर की आंखों में देखा था। “दहशत भर जाती है लोगों में केसर! तभी तो मेदनी के सैनिकों ने अपनी इज्जत बचाने के लिए एक दूसरे के सर काटे और औरत और बच्चों ने जौहर किया और जानें झोंकीं! बाबर ने नर मुंडों की मीनार बनाई और जश्न मनाया। सोचो केसर ..?”

“हे परमात्मा!” केसर रोने लगी थी। “इस शैतान को कौन मारेगा?” वह जैसे प्रार्थना कर रही थी। “तोपें साजन .. ये तोपें और किसी के पास क्यों नहीं हैं?”

“कहां से लाएं? ये तो उस्मानिया से लेकर आया है। और वो हमें चाहने पर भी तोपें नहीं देंगे!”

“लेकिन क्यों?”

“मुसलमान सब एक हैं भारत से लेकर खुरासान तक और उस्मानिया तक ये मुसलमान हम हिन्दुओं के खिलाफ हैं!”

“और हिन्दू ..?”

“बटे हुए हैं!” हेमू ने अन्यमनस्क उत्तर दिया था। “हिन्दुओं का एका नहीं है! थोड़ी राजपूतों से उम्मीदें थीं .. सो राणा जी ..”

“फिर क्या होगा साजन?” विवश हो आई थी केसर। “तो क्या हम यूं ही हिन्दू राष्ट्र की रट लगाते रहते हैं?”

हेमू ने आंखें उठा कर एक अज्ञात आशा किरण को पकड़ना चाहा था!

लेकिन एक नया घटाटोप आकाश पर उठ आया लगा था। अब तो सारे पठान, अफगान और मुगल एक होकर बाबर के झंडे के नीचे आ गये थे। बाबर ने सब को जागीरें देकर मना लिया था और मिला लिया था। आज की तारीख में तो बाबर एक अजेय शक्ति के रूप में आ खड़ा हुआ था! हेमू को अपना स्वप्न सरेआम छिन्न भिन्न होता लगा था! गुरु जी की इच्छा का भी जैसे अंत आ गया था – उसे महसूस हुआ था!

“क्या हम भी पठानों और अफगानों के साथ मिल कर मोर्चा नहीं खोल सकते साजन?” केसर क्रोध में बावली हो रही थी।

“मैंने कहा न केसर! मुसलमान यहां से लेकर कुस्तूनतूनिया तक एक हैं! हमें यह लोग काफिर कहते हैं। हिन्दुओं को लूटना, मारना और उनके साथ जघन्य अपराध करना ये अपना धर्म मानते हैं!”

“और हमारा धर्म ..?”

“हम तो मानवता के पुजारी हैं!” तनिक व्यंग के साथ कहा था हेमू ने। “हम तो चींटी भी नहीं मारते!” हेमू का चेहरा अतर गया था।

माहिल और अब्दुल अनायास ही चले आये थे!

“गजब का गोला गिरा है सुलतान!” माहिल ने चहक कर कहा था। “बाबर मर गया!” उसने बड़ी बेरुखी से कहा था। “जहर देकर मारा है इसे!” वह बता रहा था। “इब्राहिम लोधी की मॉं ने बदला लिया है!” माहिल मुसकुरा रहा था।

“मरने की उम्र थी कहां?” अब्दुल बोला था। “कुल सैंतालीस साल का ही तो था?”

खबर सुन कर हेमू कुछ बोल नहीं पाया था। लेकिन उसने महसूस किया था कि अब वक्त बदलेगा! शायद हवा भी मुड़ेगी और हो सकता है कि ..

“बहुत अच्छा किया इब्राहिम की मॉं ने!” केसर कह उठी थी। “एक शैतान को मार कर पुण्य कमा लिया!” केसर जोरों से हंसी थी। “हैवान और शैतान था ये आदमी!” केसर का कहना था।

26 दिसंबर 1530 के दिन बाबर की मौत का ऐलान हुआ था!

पूरे भारत ने इसे एक जश्न की तरह मनाया था। बाबर के किये अत्याचारों को हिन्दू गिनते ही रहे थे ..

“अब तो हम चित्तौड़ चलेंगे साजन?” केसर ने उल्लसित होकर पूछा था।

“क्यों नहीं?” हेमू भी मुसकुराया था। “अब अब्दुल की शिकायत भी पूरी हो जाएगी!” उसे विश्वास था।

वक्त एक साथ ही पलट गया था – न जाने क्यों?

मेजर कृपाल वर्मा

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