Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग अट्ठावन

Hemchandra Vikramaditya

केसर चित्तौड़गढ़ से एक बेटी की तरह विदा हुई थी।

केसर की ढाणी वाला दृश्य ही लौट आया था जैसे – हेमू विश्वास ही नहीं कर पा रहा था। सजल आंखों से केसर को विदा करती रानियां, महारानियां और सारी सहेलियां अपनी प्यारी पदमावत को एक अनजान परदेसी के साथ विदा कर रही थीं और प्रार्थना कर रही थीं कि इस बार उसे जौहर न करना पड़े और उसका साम्राज्य बस जाए!

अचानक हेमू की आंखों के सामने भी इच्छित हिन्दू राष्ट्र आ खड़ा हुआ था।

“शहजादे पहुंच गये हैं!” मुरीद अफगान ने हेमू को सूचना दी थी।

हेमू ने मुड़ कर देखा था। शहजादा सामने खड़ा था। एक अमानत की तरह हेमू ने उसे पा लिया था। फिर प्रसन्न होकर शहजादे के स्वागत के लिए आगे बढ़ा था। लेकिन न जाने क्यों शहजादा मूर्तिवत अचल ही खड़ा रहा था। हेमू ने उसकी आंखों को पढ़ा था। उनमें घृणा की मशालें जल रही थीं। जैसे हेमू उसका जन्मजात दुश्मन हो – ऐसा प्रतीत हो रहा था।

“हमारी हार के कारण तुम हो ..” लगा था – शहजादा कहने लगा था। “तुम हो जो सुलतान को गलत राय देते हो .. तुम हो जो सुलतान से सब कुछ छीन लेना चाहते हो .. हिन्दू हो, गद्दार हो तुम!”

“आप ठीक तो हैं?” हेमू ने औपचारिक प्रश्न पूछा था।

लेकिन शहजादे ने प्रश्न का कोई उत्तर न दिया था। वह अब भी चुप खड़ा था। उस इकट्ठी हुई हिन्दुओं की अपार भीड़ में वह जबान न खोल पा रहा था!

“आइये शहजादे!” मुरीद अफगान ने उसकी अगवानी की थी और काफिला दिल्ली के लिए रवाना हो गया था!

“चाहे तुम जान भी दे दो पर अफगान तुम पर कभी भरोसा न करेंगे हेमू!” वह आवाजें सुन रहा था। “कभी भी .. किसी भी वक्त .. सोते जागते ये हिन्दुओं को ..”

“फिर तुम भी क्यों भरोसा करते हो इनपर?” प्रश्न पैदा हो गया था।

“करता हूँ!” हेमू का स्पष्ट उत्तर था। “मैं तो जानता हूँ कि हर पल मैं मौत के साथ सोता हूँ! और जागते ही सोचता हूँ कि .. न जाने कब ..?”

केसर भी चुप थी। परेशान भी थी। उसने भी शहजादे की आंखों को पढ़ा था। उसने भी हेमू के हुए अपमान को सहा था। वह भी किसी घोर निराशा में जा डूबी थी। अब रह रह कर उसे रानी पदमावत का किया जौहर याद आ रहा था। और याद आ रहा था कि किस तरह खिलजी उसे पाने के लिए आठ माह तक ..

“क्या खिलजी इतना बलवान था, साजन कि ..” केसर ने चुप्पी तोड़ी थी।

“बलवान तो वक्त होता है केसर!” हेमू की आवाज ठंडी थी। शायद वह भी चित्तौड़गढ़ की हुई पराजय के बारे ही सोच रहा था। “जिसका वक्त होता है – वही जीत जाता है!”

जैसे हेमू हवा में बातें कर रहा था पर केसर सुन ही न रही थी। उसका मन तो बैठा जा रहा था। उसे रह रह कर शहजादे का चेहरा याद आ रहा था। उसे लग रहा था कि जो हेमू कर रहा था – सब व्यर्थ था। अकारथ था उसका ये योगदान और इब्राहिम ..

“शहजादे ने कुछ कहा ही नहीं!” केसर ने पूछ ही लिया था। “फिर इन के लिए हम क्यों मेहरबानियां मांगते फिरते हैं?”

हेमू ने केसर का प्रश्न सुन लिया था। वह भी अभी अभी इसी प्रश्न का उत्तर देकर चुका था। लेकिन केसर को वह आहत न करना चाहता था। वह चाहता था कि केसर किसी प्रकार असंपृक्त ही बनी रहे ताकि ..

“मुझे तो सुलतान इब्राहिम पर भी भरोसा नहीं है!” केसर फिर से बोली थी।

“मैं भी सब कुछ जानता हूँ केसर!” हेमू की आवाज धीमी थी। “सब कुछ मेरी उंगलियों पर धरा है प्रिये!” उसने केसर की आंखों में सीधा देखा था। “लेकिन हमारे हिन्दू राष्ट्र का मार्ग गुजरता ही इन्हीं गलियों से है!” आह रिता कर कहा था हेमू ने। “इन भेड़ियों से घिरे रास्तों पर गुजर कर ही हमें मंजिल तक जाना है! चौकन्ना होकर चलना है हमें केसर! मैं नहीं चाहता कि फिर एक बार मेरी पदमावत को जौहर दिखाना पड़े!”

“हम अपना अलग से ..?”

“कच्चा फल टूटने पर सड़ जाता है केसर!” हेमू ने हंस कर कहा था। “सब्र का फल ही मीठा होता है!” अब वह हंस रहा था।

लेकिन केसर अभी भी अधीर बनी रही थी!

“हम जीतेंगे पूरा देश!” अचानक केसर बोल पड़ी थी। “कर दो हिन्दू राष्ट्र की स्थापना?” उसने हेमू की आंखों में घूरा था। उसका प्रश्न सजीव था, सटीक था, सच भी था और उसके अंतःकरण की अमिट भावना भी था लेकिन था असामयिक!

अब दोनों पलट कर एक दूसरे को देख रहे थे!

“मंजिल अभी बहुत दूर है केसर!” हेमू एक लंबे सोच के बाद बोला था। “जितना बड़ा स्वप्न होता है – उतना ही ज्यादा समय लगता है!” उसने सच सामने रक्खा था। “साम्राज्य खड़ा करने के कई अलग अलग अर्थ हैं प्रिये!” उसने स्नेह सिक्त नजर से अपनी महारानी को देखा था। “कई अर्थों का अर्थ है कि धन जन से लेकर सैन्य शक्ति और हॉं – उसका इस्तेमाल!” वह हंसा था।

“क्यों हंस रहे हैं?”

“इसलिए केसर कि हर आदमी तुम्हारी ही तरह सोटा नहीं चला पाता!” उसने केसर को आगोश में ले लिया था। “वक्त पर वार करना .. मौके का इंतजार करना .. और मौत से लड़ना और दुश्मन को चकमा देना हर किसी को नहीं आता!” वह बता रहा था। “इब्राहिम क्यों हारा राजपूतों से – जानती हो?”

“बताओ?” केसर ने हेमू की बलिष्ठ बाँहों में सिमटते हुए पूछा था।

“जब राजपूतों के हमले की आंधी आई थी तो – अफगानों की आंखें बंद हो गई थीं। डरे हारे कबूतरों की तरह काटा था – राजपूतों ने!” हेमू बता रहा था। “लड़ाई दिमाग में जीती जाती है और हारी जाती है! जो सूरमा मौके पर बरछे का जवाब नहीं दे पाता – हार जाता है!”

“क्या अगली लड़ाई में इब्राहिम जीतेगा?”

“तुम्हें कैसे पता कि अगली लड़ाई होगी?”

“मुझे ही नहीं – चित्तौड़ में सब जानते हैं कि इब्राहिम फिर चढ़ाई करेगा!” हंस गई थी केसर। “लोग भूले थोड़े हैं साजन!”

“और क्या क्या जानती हो?”

“यही कि तुम अगली लड़ाई भी नहीं लड़ोगे!”

“कैसे जाना?”

“शहजादे की आंखें पढ़कर!” केसर का सटीक उत्तर था।

हेमू प्रसन्न था कि केसर कहीं उससे भी ज्यादा चतुर थी। शायद बहादुर भी थी – वह जानता था। वह जानता था कि केसर की रगों में मारा धाड़ा खून ही बहता था। वह न तो कोई समझौता करती थी और न कोई चूक। बहुत चुस्त थी केसर!

“केसर! अगर जरूरत पड़ी तो क्या तुम ..?” हेमू ने आज यह प्रश्न पूछ ही लिया था। वह पदमावत के जौहर की कहानी सुन कर हिल गया था। वह भी जानता था कि केसर बहुत बहुत सुंदर थी और अगर ..

“मैंने तो पहले ही तय कर लिया है आप सा!” हुलस कर कह रही थी, केसर। “संग लड़ूंगी और हम हर लड़ाई साथ साथ लड़ेंगे!” उसने हेमू के गले में बाहें डाल दी थीं। “साजन! मैं तुम से जुदा होकर एक क्षण भी न जीऊंगी!” केसर वायदा कर रही थी। “मैं ..”

“लेकिन केसर जंग में जाना ..?”

“नहीं साजन!” केसर का उत्तर था। “हम तो साथ साथ जीएंगे, साथ साथ लड़ेंगे और साथ साथ ही मरेंगे!” केसर ने जैसे घोषणा ही कर दी थी।

“प्रिये! इतना आसान नहीं है ये तुम्हारा चुना रास्ता ..”

“क्यों ..?” केसर ने बात काटी थी। “मैं पद्मावती की तरह किसी चिता में जलकर न मरूंगी साजन!” केसर के तेवर तन आये थे। “मैं कोई अबला नारी नहीं हूँ! मैं हूँ दुश्मन का घर फूंक कर तांडव करने वाली रण चंडी! मैं रक्त बहा कर .. जानें लेकर ..”

“ओह केसर!” हेमू बहुत भावुक हो आया था। “ओह केसर .. मेरी प्राण प्रिये .. तुमने मुझे आज जिंदा कर लिया है!” वह बता रहा था। “मैं तो डरा हुआ था कि ..”

अमर प्रेमियों की तरह अब वह दोनों एक दूसरे को देख रहे थे!

“मृगनयनी भी तो साथ लड़ती थी साजन?” केसर ने पूछा था।

“कहते तो हैं!” हेमू का उत्तर था।

“महाराजा मान सिंह की और कितनी रानियां थीं?” उसका अगला प्रश्न था।

“आठ थीं – शायद ..!” उसने बताया था।

“और महाराणा की ..?” केसर हंस रही थी।

“क्यों ..? शायद – उन्नीस हैं!” हेमू ने तनिक रुक कर बताया था।

“और तुम कितनी लाओगे – साजन?” केसर ने शरारती स्वर में पूछा था।

अब आकर हेमू की समझ में आया था कि केसर क्या कहना चाहती थी!

वह चुप था। वह केसर की आंखें पढ़ रहा था। आरक्त हो आये केसर के चेहरे को देख रहा था। देख रहा था कि केसर उसके उत्तर का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। वह केसर के किये प्रश्न पर मुग्ध हो गया था!

“अपने लिए मुझे तो केवल केसर ही चाहिये!” हेमू का उत्तर था। उसकी आंखों में भी शरारत उमड़ आई थी और उसने केसर को आगोश में ले लिया था!

“ओह साजन!” केसर सुबकती रही थी। वह प्रसन्न थी .. बेहद प्रसन्न!

एकाकार हो गये थे – वो दोनों – उस दिन!

मेजर कृपाल वर्मा

Exit mobile version