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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग अट्ठासी

Hemchandra Vikramaditya

“खुरासान में खबर ये है शहंशाह कि आप इस्लाम की कब्र खोद रहे हैं!” हदीस बता रहे थे। “हमने भी हिन्दुस्तान में आ कर देखा है तो पाया है कि बात में वजन है।” हदीस ने आंख उठा कर शहंशाह शेर शाह सूरी को गौर से देखा था। “और ये भी खबर है – बड़ी खबर कि एक हिन्दू पंडित ने आप को सम्मोहित कर लिया है। आप वही करते हैं जो चाहे अनचाहे पंडित चाहता है।” उन्होंने हाथ झाड़े थे। “जबकि आप से इस्लाम को उम्मीदें थीं कि आप ..”

हदीस चुप हो गये थे। गुप्त वास में होती इस सभा में केवल वही लोग शामिल थे जो बाहर से पधारे थे। बादशाह शेर शाह सूरी इस सभा में आने से पहले बेहद प्रसन्न थे। उन्हें उम्मीद थी कि फिर से उनके किये कारनामों की प्रशंसा होगी और उन्हें एक महान और सफल शासक घोषित किया जाएगा। लेकिन जो सामने था वो तो एक बड़ा सदमा था। जो आरोप उन पर लगा था ..

एक बारगी पंडित हेम चंद्र का चेहरा बादशाह शेर शाह सूरी की आंखों के सामने आ खड़ा हुआ था। ललाट पर त्रिपुंड लगाए और स्वच्छ, धवल परिधान में सजे पंडित हेम चंद्र किन्हीं मायनों में बेजोड़ थे। लेकिन ..

“सच तो है!” शहंशाह को पसीने आने लगे थे। “मैं .. मैं न जाने क्यों बिना पंडित जी से पूछे कुछ नहीं कर पाता!”

गिन कर देखा था सुलतान शेर शाह सूरी ने कि पंडित हेम चंद्र की ही सलाह पर उन्होंने सारे मोर्चे फतह किये थे। उनके पास था ही क्या .. जब ..

“ये आपके किये सारे प्रयत्न यहां के हिन्दू राजाओं की नकल हैं, सुलतान!” इस बार उलेमा बोल रहे थे। “ये नव रत्न का चलन विक्रमादित्य का है तो ये राज मार्गों का सिलसिला चंद्र गुप्त मौर्य का है। और ये जो सुधार आपने किये हैं ये भी कोई नए नहीं है। ये सब हिन्दू राष्ट्रों की विशेषताएं रही हैं!” एक और आरोप आकर सुलतान के समकक्ष खड़ा हो गया था।

“और ये जो आप सुरक्षा सेनाओं की बागडोर राजा महेश दास को सोंप बैठे हैं ये कभी भी ..?” गाजी थे जो कह उठे थे। “और सेनाओं का लूटपाट बंद करना, शहरों को न तोड़ना, बस्तियों को न उजाड़ना इस्लाम के हित में नहीं, हिन्दुओं के हित में है।” वो बताने लगे थे। “हमारा उद्देश्य खलीफत की स्थापना है। हम चाहते हैं कि इस्लाम हिन्दुस्तान में फले फूले। हम चाहते हैं कि हिन्दुओं को जैसे भी हो मुसलमान बनाएं और हिन्दुस्तान को एक इस्लाम देश बना दें।”

“लेकिन आपने तो खुदकुशी करने की ठान ली है।” उन सब का सामूहिक मत था।

शहंशाह शेर शाह सूरी अकेले, निरीह, डरे हुए तथा भ्रमित बैठे बैठे उन विद्वान और मनीषियों के मत सुन रहे थे।

“वही कीजिए सुलतान – जो आपके सामने बाबर ने किया, उससे पहले सिकंदर लोधी ने किया और हमारे पुरखे यहां करके लौटे हैं। तोड़िये मंदिर, बदलिए इनके नाम, ढाइये इनके निशान और करिये इन्हें गारत और बनाइये इन्हें मुसलमान!”

“हमें हिन्दू मुसलमान का भाई चारा नहीं चाहिये!” राय खुलकर सामने आई थी।

सुलतान शेर शाह सूरी की समझ में सब कुछ समा गया था। अब उसका दिमाग था जो हिन्दुओं के सर काट काट कर मीनारें बनाने लगा था और बरबादी का धुआं हिन्दुस्तान के हर कोने से उठता नजर आ रहा था ओर हिन्दू ..

“अब क्या करेंगे आप ..?” अंगद पूरी खबर सुनाने के बाद हेमू से पूछ रहा था। वह भी सकते में आ गया था। “ये अब ना मानेगा!” अंगद की राय थी। “जुल्म ढाएगा .. अब तो जरूर ही ..” उसने बात का तोड़ किया था।

“किया कराया सब मिट्टी में मिल गया!” एक लम्बी उच्छवास छोड़ते हुए पंडित हेम चंद्र बोले थे। “अब तो इस चूहे से शेर बने शेर शाह ने मेरा ही सर कलम करना है अंगद!” हेमू की राय थी। “अब तो मुझे ही बली का बकरा बनाया जाएगा।” उसका स्वर भारी था। “अब कैसे बचा पाएंगे देश को अंगद?” हेमू का प्रश्न था।

दो दिनों के बाद सुलतान शेर शाह सूरी को सूचना मिली थी कि पंडित हेम चंद्र बहुत बीमार थे।

अंत: पुर में शांत पड़े पड़े छत को एक टक निहारते बुहारते हेमू जिंदगी के एक ऐसे मोड़ पर आ खड़े हुए थे जहां से कोई ओर रास्ता मौत की अगाई काट कर आगे न जाता था।

आज तक की चली सारी राजनीतिक चालें, सारी सफलताएं, सारे कयास और लगाए अनुमान अचानक ही औंधे मुंह आ गिरे थे। अब तो बार बार और हर बार नंगी तलवार हाथ में लिए सुलतान शेर शाह सूरी उनका सर काटने भागता नजर आ रहा था। हेमू सुन रहा था – काफिर, गद्दार, हिन्दू की औलाद ले अपना इनाम! और ऐसे बहुत से और सर्वनाम थे जो सुलतान शेर शाह सूरी की जबान से टपकते लग रहे थे।

विगत के देखे सारे दृश्य बार बार जीवित हो पुन: घट रहे थे।

चौराहे पर जिंदा जलाया जा रहा बोधन क्योंकि उसने अल्लाह और ईश्वर को बराबर बता दिया था और .. बोधन का दिया वो श्राप जो सिकंदर लोधी को ले बैठा था – हेमू को याद हो आया था। युद्ध में मरते इब्राहिम लोधी को देखा था और फिर बाबर भी तो मरा ही था। लेकिन अब ये शेर शाह सूरी ..? न जाने कितनी कितनी तबाहियां लाएगा और न जाने अब कैसे कैसे जुल्म ढाएगा?

प्राण सूखने लगे थे हेमू के।

“गुरु जी ..!” अंतिम इच्छा की तरह गुरु जी को याद किया था हेमू ने।

“नहीं!” उत्तर आया था। “लाल गढ़ी भस्म हो जाएगी। सर्वनाश हो जाएगा।” एक स्पष्ट चेतावनी थी।

पवित्र बयार के एक झोंके की तरह केसर चली आई थी।

“मैं इतनी पराई हूँ साजन कि ..?” केसर की आंखें सजल थीं। हेमू ने अभी तक उसे मन की बात नहीं बताई थी। वह नहीं चाहता था कि केसर को बताए कि .. “क्या विपदा है बताएंगे भी नहीं?” केसर का स्वर कातर था।

प्रश्न वाचक आंखें फैलाए हेमू अपलक अपनी परम प्रिया केसर को निहारता ही रहा था। केसर उसकी जिंदगी से भी ज्यादा मोहक थी। केसर ही तो आधार था उसकी उम्र का! और अब उम्र का अंत सामने आ खड़ा हुआ था ओर पूछ रहा था – केसर का क्या होगा?

“तन्ना से क्या सीखा है ..?” हेमू ने केसर से अप्रत्याशित प्रश्न पूछ लिया था।

केसर कुछ समझ नहीं पाई थी – चुप थी!

आज कल तन्ना शास्त्री उसे शास्त्रीय संगीत सिखा रहे थे। महाराजा मान सिंह के मरने के बाद वो ग्वालियर से रीवा चले गये थे और अब दिल्ली आ गये थे। गुजरी रानी की सेवा में उनका काफी समय बीता था और अब केसर भी उनसे गुजरी रानी और महाराजा मान सिंह के अपूर्व प्रेम के प्रसंग सुनती रहती थी।

“राजपूतों ने ही क्यों मार डाला अपने महाराजा को?” यही एक प्रश्न था जो केसर बार बार पूछना चाहती थी। “इसलिए महारानी जी कि उनकी समझ में ही न आया था कि महाराजा चाहते क्या थे? अफगानों के मुकाबले अगर राजपूत और गुर्जर मिल कर खड़े हो जाते तो आज दिल्ली में ये शेर शाह सूरी नहीं तौमर राजपूतों का झंडा लहरा रहा होता!”

और फिर अचानक ही दिल्ली के ऊपर हिन्दू राष्ट्र का झंडा फहराने लगा था। और केसर सम्राट हेमू को आंखें भर भर कर देख रही थी।

लेकिन आज शांत बिस्तर में लेटे हेमू को देख केसर का कलेजा हिल गया था। था तो कुछ गंभीर, अगम्य, अगेय पर हेमू उगलकर नहीं दे रहा था।

“ध्रुपद!” केसर ने बड़ी ही शालीनता से हेमू के प्रश्न का उत्तर दिया था।

केसर की मधुर आवाज ने हेमू को अपने उलझे सुलझे विचारों से मुक्ति जैसी दिलाई थी। उसने प्रसन्न होकर केसर को ही अपनी तमाम दुविधाओं के उत्तर की तरह चुना था। अब वह केसर को ही लम्बे पलों तक देखता रहा था!

“सुनाओगी कुछ?” अद्भुत आग्रह था हेमू का। “चलो सुनाओ!” फिर से आग्रह दोहराया था उसने। “मन बहुत ही विचलित है।” हेमू ने कहा था। “बहल जाएगा तो ही कुछ सूझेगा!” हेमू ने छोटी सी मुस्कान केसर को इनाम बतौर सोंप दी थी।

तमूरा लेकर बैठ गई थी केसर। अपने प्रियतम के लिए आज वह पहली बार गा रही थी। आलाप उठाया था उसने! तानपूरा का स्वर गूंजा था और हेमू के हृदय की वेदना में एक बवाल सा उठ खड़ा हुआ था।

स्वरों का आरोह अवरोह, तानपूरे की हृदय स्पर्शनीय झंकार और केसर का मधुर कंठ अब आलाप को उठा रहा था – आ .. रे .. ने ने .. ते ते .. ने ना ..! इस संगीत के महासागर में जैसे चराचर डूबता ही चला जा रहा था और हेमू गहरी निद्रा में अचेत सोया पड़ा था।

केसर बड़े ही मनोयोग से सोते हेमू का सर सहलाती रही थी।

मेजर कृपाल वर्मा

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