Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग अठहत्तर

Hemchandra Vikramaditya

सुख स्वप्नों में डूबे हुमायू की जब नींद खुली थी तो उसने चारों ओर चौड़ा हुआ देखा था!

शेर खान ने बंगाल बिहार और गुजरात पर कब्जा कर लिया था। अब उसकी आंख आगरा पर लगी थी। हुमायू के रोंगटे खड़े हो गये थे। बाबर की सल्तनत उसे जाती लगी थी। उसे लगा था कि शेर खान – जो कभी बाबर का प्राइवेट था और जिसने बाबर से तीन बार क्षमा मांगी थी अब बाबर की सल्तनत को हड़पने के इरादे बना बैठा था!

“शेर खान से मुकाबला तो होगा!” हवा पर लिखा था और हुमायू ने पढ़ा था।

लम्हों में हुमायू का शासक युद्ध की तैयारियों में जुट गया था!

“चुनार को पहले फतह करते हैं!” हुमायू का हुक्म था। “शेर खान का बेटा जब तक चुनार के किले में बैठा है हम आगे बढ़ ही नहीं सकते!” हुमायू का अनुमान सही था।

“गौर पर कब्जा करते हैं। हमारा सारा भंडार गौर में है ओर युद्ध से पहले हमें ये अपने हाथ में लेना होगा!” हुमायू का यह दूसरा अनुमान था।

लेकिन हुमायू का दुर्भाग्य था कि गौर लुट चुका था और सड़कों पर लाशें बिछी थीं। शेर खान सारा माल ढो कर ले गया था। शायद हुमायू की यह सबसे पहली हार थी। अफसोस हुआ था हुमायू को और अब चिंता थी कि युद्ध लड़ने के लिए अब नए सिरे से सब जुटाना था।

और जब हुमायू ने पीछे मुड़कर देखा था तो पता चला था कि हुंडल – उन्नीस साल का उसका छोटा भाई आगरा प्रस्थान कर गया था और उसने अपने आप को बादशाह घोषित कर दिया था।

“जाइये खां साहब और समझाइये उस ना समझ को कि इन मुसीबत के दिनों में हम मिल कर रहें और हम उसका हक उसे जरूर देंगे!” हुमायू ने शेख मुफ्ती मोहम्मद को समझा कर हुंडल के पास भेजा था।

लेकिन खबर आई थी कि हुंडल ने शेख मुफ्ती मोहम्मद का कत्ल करा दिया था और फिर हुमायू को उसे स्वयं ही सबक सिखाना पड़ा था। हुंडल को माफ इसलिए कर दिया था कि वह अब्बा बाबर के फरमान का पालन कर रहा था। बाबर के बेटों के साथ हुमायू कोई भी गैर इंसाफी नहीं करना चाहता था। उसने वचन जो दिया था – बाबर को!

चूंकि हुमायू को अपने भाइयों से कोई मदद नहीं मिल रही थी अत: उसने मुगलों को फतवा दिया था कि वो अफगानों को मिल कर हराएं और मुगल साम्राज्य की मदद करें!

शेर खान ने भी बिना वक्त गंवाए तमाम अफगान और पठानों से आग्रह किया था कि ये मौका था जब वो सब मिल कर मुगलों को हिन्दुस्तान से बाहर खदेड़ दें ओर अफगान साम्राज्य की फिर से स्थापना करें!

एक तरह का बाय बेला उठ खड़ा हुआ था। अफगान और मुगल अब अपने अपने झंडों के नीचे आ खड़े हुए थे!

चौसा में डटे शेर खान के मुकाबले में आने के लिए हुमायू ने बड़ी ही सूझ बूझ से काम लिया था। वह जानता था कि यह युद्ध निर्णायक था और इसकी हार जीत का असर पूरे हिन्दुस्तान पर पड़ना था!

“हमारी सेना दो भागों में चौसा के लिए कूच करेगी!” हुमायू का निर्णय था। “पहला भाग असगरी के नीचे आगे चलेगा और दूसरा भाग मेरे नीचे चार कोस पीछे चलेगा!” हुमायू का हुक्म था।

मुंगेर पहुंच कर दोनों भाग मिले थे और गंगा पार की थी। फिर आगे चलकर बिंदिया पर गंगा पार की और गंगा के उत्तरी किनारे पर गंगा और कर्मनाशा की तलहटी में जाकर शेर खान के मुकाबले में आ डटे थे!

हेमू को मानो मन की मुराद मिल गई थी!

“मैंने कहा था न सुलतान!” हेमू प्रसन्न था। “अब हम नहीं हारेंगे!” हेमू ने ऐलान किया था। “मुगल सेनाएं हमारे अंगूठे के नीचे आ दबीं हैं!” हेमू का जय घोष था।

लेकिन शेर खान को वक्त लगा था हेमू की बात समझने में। शेर खान कहीं डरा हुआ था। वह मुगल सेना के बोझ तले दबा हुआ था। बाबर का डर आज भी उसके जहन में बैठा हुआ था। आज भी उसे लग रहा था कि वह शायद माफी ही मांगेगा और सुलहनामे पर हस्ताक्षर कर घर लौट जाएगा!

उसे हुमायू नहीं बाबर की फौजें पहुंच गई लगी थीं।

“तुरंत हमले का हुक्म दे दें सुलतान!” हुमायू के सारे सिपहसालार एक स्वर में बोले थे। “जोश है सैनिकों में! शेर खान का गीदड़ खान बना कर समेट देते हैं – सब!” उन सब का सामूहिक ऐलान था। “बहुत दूर आन पड़े हैं!” साथ में सभी ने एक कठिनाई गिनाई थी।

लेकिन हुमायू चुप था। हुमायू विचार मग्न था। उसने आंख उठा कर पूरे युद्ध क्षेत्र का परिदृश्य देख था। उसे लगा था जैसे शेर खान ने कोई षड्यंत्र रच रक्खा था। कुछ था तो जरूर .. यहां .. इस चौसा में .. जो ..

“नहीं!” हुमायू ने साफ मना कर दिया था। “सोच समझ कर हमला करेंगे!” उसकी अपनी राय थी। “शेर खान शातिर है। मत भूलो कि ..!” उसने चेतावनी दी थी। “ये युद्ध हमारे लिए बहुत महत्व का है!” हुमायू ने दूर की बात दर्शाई थी।

और जब हुमायू की सेनाएं काफिले लगाने लगी थीं और मोर्चे बनाने लगी थीं तो हेमू की जान में जान आ गई थी। अगर हुमायू का हमला हो जाता तो उनका सारा खेल ही बिगड़ जाता! हो सकता था – हार भी हो जाती! हेमू जानता था कि इब्राहिम लोधी की तरह ही शेर खान के दिमाग पर भी बाबर का भूत बैठा था।

अब .. अब हेमू ने बहुत सारा वक्त लगाने की बात तय कर ली थी। अभी मई का महीना था – और हेमू चाहता था कि जुलाई तक दोनों सेनाएं आमने सामने डटी रहें! उसके बाद तो मौसम ने ही हार जीत का फैसला करना था!

हुमायू की सेना के पीछे गंगा नदी थी और बाएं कर्मनाशा बह रही थी। दोनों नदियों के कछार में हुमायू की सेना का पड़ाव था। जबकि शेर खान की सेना सामने के ऊंचे कगार से आगे तक फैली थी। हुमायू के लिए आगरा छह सौ कोस पर था और जाने के लिए हर बार गंगा पार करनी थी, जबकि शेर खान के लिए पटना तो पिछवाड़े में ही था। चौसा का इलाका उजाड़ था और वहां कुछ भी उपलब्ध न था।

“तोपें कहां लगाएं सुलतान?” अली कुली की समझ में कुछ न आ रहा था तो पूछा था। तोपों के लिए दुश्मन कहां था – वह समझ ही न पा रहा था। और आगे के ऊंचे कगार पर नीचे कछार से गोले दागने का कोई फायदा नहीं था – वह जानता था।

हुमायू सोचता ही रह गया था। पहली बार उसकी समझ में आया था कि उसका एक हाथ अभी अभी कट गया था और अली कुली को भी अपनी मौत सामने खड़ी दिखाई दे गई थी।

“हाथी घोड़ों और पशुओं के लिए चारा ही नहीं है!” हुमायू को खबर मिली थी। “कहां से लाएं? चौसा में तो कुछ मिलता मिलाता नहीं और आगरा ..?”

भूखे मरने लगे थे हुमायू के हाथी घोड़े और पशु धन।

“सेना के भी भूखे मरने की नौबत आ जाएगी सुलतान!” हुमायू को खबरें मिल रही थीं। “बरसात आरम्भ हो गई है। पानी भरने लगा है कछार में। सारे रास्ते बंद हो जाएंगे और ..”

हुमायू के तोते उड़ गये थे। उसकी समझ में ही न आ रहा था कि करे तो क्या करे? मदद के लिए बुलाए भी तो किसे और था कौन जो उसकी यहां आ कर मदद कर देता? आंख उठा कर देखने से ही पता चल जाता था कि वह बाज की आंख के नीचे आ बैठी एक भोली चिड़िया था – जिसे बाज जब चाहे तब खा लेता!

“नहीं नहीं! शेर खान नहीं चल सकता इतनी गहरी चाल?” हुमायू अब सर पीट रहा था। “है कोई! अवश्य कोई बेहतर दिमाग है जिसने इतनी गहरी चाल चली है!” हुमायू को पश्चाताप होने लगा था। “और हम – हम तो सोच बैठे थे कि शेर खान हमारा ही एक नौकर था और अब हम से सबक लेना चाहता था।”

“क्या हमला किया जाए?” प्रश्न था जिसे हुमायू बार बार उठा रहा था, लेकिन उसका कोई उत्तर न दे रहा था।

हुमायू ने बारी बारी अपने सभी सिपहसालारों से राय ली थी और किसी तरह भी हमला कर इस जाल से आजाद होने की बात सोची थी। लेकिन कोई माकूल राय न थी और न कोई ऐसा रास्ता था जिससे हुमायू अपनी सेनाएं लेकर भाग लेता आगरा।

हेमू हंस रहा था। वह जानता था कि अब जीत अवश्यंभावी थी। वह यह भी जानता था कि हुमायू उसका घेरा तोड़कर कहीं नहीं जा सकता था। अभी तो बरसात आरम्भ ही हुई थी। अभी तो खादर में पानी और भी भरना था। अभी तो सेना में भुखमरी फैलनी थी और अभी तो ..

हुमायू कहीं परास्त हो चुका था। मन टूट चुका था उसका। और अब सामने घोर अंधकार था।

“पागल! कब्रिस्तान में आ बैठा सेना सहित!” हुमायू सर धुन रहा था। “अब्बा जान अब बचें तो कैसे बचें?” वह बाबर को ही पूछ रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा

Exit mobile version