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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग अस्सी

Hemchandra Vikramaditya

“क्यों किये थे संधि पर हस्ताक्षर, सुलतान?” हेमू ने शेर खान पर सीधा प्रश्न दागा था। जैसे कोई मुजरिम से सत्य उगलवाने का प्रयत्न करे, हेमू का वही इरादा था।

शेर खान को पहली बार एहसास हुआ था कि वो सामने प्रश्न पूछता पंडित, उसके ललाट पर लगा सफेद चंदन का टीका और उसका दप दप कर जलता दैदीप्यमान चेहरा – एक अदालत थे। उसे अब झूठ नहीं सच बताना था और सही सही सारा सत्य उगल देना था – फिर चाहे जो हो।

“मैं .. मैं .. डर गया था, पंडित जी।” शेर खान ने भीतर का डर सामने ला खड़ा किया था। उसे समूची घटना एक हुई गलती की तरह याद हो आई थी। “जब वो लोग अचानक मेरे पास चले आये, मतलब कि हुमायू का श्रेष्ठ सलाहकार मोहम्मद अजीम खान और उसके साथ और तीन उलेमा और विद्वान जब मेरे पास आ बैठे तो मैं गदगद हो गया था। मैंने अजीम खान के बारे सुना तो था पर आज जब सब सामने आया तो ..”

“लड़ने से क्या फायदा होगा शेर खान?” अजीम खान ने पूछा था। “हार हुई तो क्या मिलेगा?” उसका प्रश्न था। “तुम तो जानते हो कि हुमायू ने एक एक ..” वह रुका था।

“ले दे कर समझौता कर लो भाई।” उलेमाओं ने आदेश जैसा दिया था। “हम तो मुसलमानों के साझे हैं। हमारी राय तो यही है कि ..”

“बंगाल ले लो!” अजीम खान सीधा मुद्दे पर आ गया था। “चाहो तो कुछ बिहार में से भी बांट लो। रही इज्जत की बात सो तुम्हारी फौज हुमायू की फौज के आक्रमण पर मैदान छोड़ कर भाग ले।” मुसकुराया था अजीम खान। “और फिर तो ..”

“मिला क्या आपको ..?” हेमू ने फिर से प्रश्न पूछा था।

“बंगाल और बिहार का ..”

हंस पड़ा था हेमू। बच्चों की तरह बात कर रहा था शेर खान। वह अब भी समझ नहीं पा रहा था कि आखिर हो क्या गया था?

“आप मिले थे, हुमायू से?” हेमू ने फिर प्रश्न किया था।

“नहीं! वह नहीं आया। अजीम खान ही ..”

“क्या हुमायू का कोई भाई था?”

“नहीं!”

“क्या बेटा था हुमायू का ..?”

“नहीं!” तनिक रोष में आकर उत्तर दिया था शेर खान ने।

“आप ने ही हस्ताक्षर किये हैं न संधि पर?” हेमू ने शेर खान को आंखों में देखा था। “आगरा पहुंचते ही हुमायू इसे फाड़ फेंकेगा। न बंगाल आपका होगा और न बिहार में आप कुछ बांटेंगे। और फिर हिन्दुस्तान में कोई भी हुमायू के खिलाफ न तो सहारा देगा और न शरण देगा।” हेमू मुसकुराया था। “हॉं पुर्तगालियों के पास शायद पनाह मिले?”

शेर खान का चेहरा काला पड़ गया था।

“लेकिन युद्ध हार गये तो .. पंडित जी ..?”

“किसने कहा – आप युद्ध हार जाएंगे?”

“अजीम खान .. हुमायू के ..”

“झूठ बोला है – उसने!” हेमू गर्जा था। “सरासर झूठ! आपको डराने के लिए ऐसा कहा है। ये हुमायू की ही सोची समझी रणनीति है।”

“आप ..?”

“हॉं! मैं आपको बताता हूँ कि आप युद्ध जीतेंगे और शत प्रति शत जीतेंगे। कारण – हुमायू तो हारा बैठा है। उसकी फौज के हाथी घोड़े और पशु धन मर रहा है। चारा नहीं है – इसलिए। उसकी तोपें बेकार बैठी हैं क्यों कि निचान में हैं, निशाना दागें तो कैसे? उसके सैनिक और छह दिन के बाद भूखे मरने लगेंगे। वह आगरा से छह सौ कोस दूर बैठा है। जबकि आपकी सेना घर के द्वार पर है ओर न भूखी है न प्यासी है और सालों साल बैठी रहे तो भी ..” हेमू ने शेर खान को पढ़ा था। “चालाकी से .. छल से और भय दिखा कर हुमायू आप को ठग लेना चाहता है। तभी उसने अजीम को भेजा और स्वयं नहीं आया।” हेमू ने ठहर कर शेर खान को सोचने का मौका दिया था।

“मैं कहता हूँ – और दावे के साथ कहता हूँ कि युद्ध हुआ तो आप विजयी होंगे .. आपको लोग फरीद-अल-बिन शेर शाह के नाम से जानेंगे और आप ..”

“पंडित जी ..” शेर शाह अब प्रसन्न था। “लेकिन पंडित जी ..?”

“मुझे तो आप से कुछ लेना नहीं!” हेमू फिर से बोला था। “हॉं! अगर आप की हार हो जाए तो आप मेरा सर कलम करा देना – मैं आप से वचन भरता हूँ।” हेमू ने बात का तोड़ कर दिया था।

एक हिन्दू ब्राह्मण के वचन लेकर शेर शाह जी गया था।

“हमला ..?” शेर खान ने प्रश्न करना चाहा था।

तभी अचानक हेमू उठा था। वह खेमे के बाहर गया था। उसने अपने ही एक सैनिक को खेमे से चिपका पाया था। सामने से निकल कर आते अंगद की ओर हेमू ने देखा था। अंगद को सब समझते देर न लगी थी। वह उस सैनिक को लेकर गायब हो गया था। हेमू लौट आया था।

“क्या था पंडित जी?” शेर खान से रहा न गया था तो उसने पूछा था।

“हुमायू के कान चिपके थे हमारे साथ।” मुसकुराकर हेमू ने उत्तर दिया था। “उन लोगों को शक है हमारे ऊपर कि हम ..” हेमू बताता रहा था।

शेर खान अब और भी सचेत हो गया था। अब वह हुमायू को उसके असली रूप में देख पा रहा था। अब वह चाह रहा था कि हुमायू जैसे खतरनाक खतरे को शीघ्रातिशीघ्र खत्म कर दे।

“हमला कब पंडित जी ..?” शेर खान ने तुरंत पूछा था।

“आज!” हेमू ने कहा था। शेर खान ने बाहर निगाह दौड़ाई थी। बरसात आने वाली थी। घनघोर बादल घिरे थे। मौसम एकदम भीगा भीगा और ..

“आज रात! अर्ध रात्रि के बाद!” हेमू आहिस्ता आहिस्ता बोल रहा था। “बरसात बंद हो जाएगी।” उसने बताया था। “तब हमारी तोपें गोले दागेंगी। इस बीच हमारे तीन दल – एक आप के नीचे और सामने से हमला करेगा – दूसरा अफजल खान के नीचे बाएं से हमला करेगा और तीसरा ख्वाजा खान और राजा गजपथ के नीचे पीछे से हमला करेगा और ..”

“हुमायू ..?”

“कुछ नहीं कर पाएगा। उसकी तोपें बेकार हैं उन्हें दाग कर भी क्या करेगा अली कुली? सेना सोई होगी। और स्वयं हुमायू भी ..” मुसकुरा गया था हेमू।

“बहुत खूब पंडित जी।” शेर खान खुश था।

“एक बात और!” हेमू बोला था। “ये एक निर्णायक युद्ध है। आप के लिए वरदान है। अगर आप ने हुमायू को पूरी तरह बर्बाद कर दिया तो आप होगे हिन्दुस्तान के मालिक। वह आपके चंगुल में है। इसे अब छोड़ना नहीं।” हेमू ने हिदायत दी थी।

“हमले की घोषणा?”

“नहीं होगी।” हेमू ने स्पष्ट बताया था। “तैयारियां होंगी जैसे कि हम हमला आने पर भागने की तैयारियां कर रहे हैं।” हेमू हंसा था। शेर खान भी बात समझ कर मुसकुराया था। “जैसे ही तोपों का मुंह खुलेगा हमारे तीनों भाग हमला करने चल पड़ेंगे। और जैसे ही तोपों का मुंह बंद होता है हमारा आक्रमण हो जाएगा। फिर हमारे पास पूरा पूरा वक्त होगा कि हम बीन बीन कर मारें दुश्मन को। हम हुमायू की कमर तोड़ दें हमेशा के लिए ताकि आप ..”

“अब मैं आप को कर के दिखाऊंगा ये करिश्मा।” शेर खान अब ताल ठोक कर खड़ा हो गया था। “मैं निकाल दूंगा इसकी चालाकी।” ऑंखें नचाई थीं शेर खान ने। “लेकिन आप मेरे साथ ही रहना पंडित जी ओर देखते रहना कि ..”

“आप को छोड़कर मैंने कहां जाना है?” हेमू ने संयत स्वर में कहा था।

आधी रात के बाद जैसे ही बारिश बंद हुई थी, शेर खान की तोपों की गर्जन तर्जन ने दिगंत को हिला कर रख दिया था। और जब हुमायू की सेना के सर पर गोले फूटे थे तो उनके होश उड़ गये थे। जब हुमायू की नींद टूटी थी तो उसे सब कुछ एक भयंकर स्वप्न सा लगा था। फिर उसने तोपों के मुंह बंद होने के बाद लौटी शांति में आये खतरे को सूंघना चाहा था। लेकिन तभी उनपर आक्रमण हो गया था। भीषण आक्रमण था। तीन ओर से हमला हुआ था। भागने के लिए पीछे गंगा नदी थी और बाएं थी कर्म नाशा। नदियों में पानी चढ़ा हुआ था। रात का अवसान था। काली अंधेरी रात थी। हुमायू केवल महसूस कर पा रहा था कि उसके सैनिकों को हमलावर काटते बांटते जा रहे थे और चारों ओर भगदड़ मची थी। चीख चिल्लाहटें थीं, शोर शराबा था और शेर खान के हुंकारें भरते सैनिकों ने उनके होंसले पस्त कर दिये थे।

अब क्या करता हुमायू? क्या करते अली कुली के तोपची और क्या करते उसके सैनिक? वह तो मुगालते में ही था कि कल शेर शाह की सेना भागेगी और वह विजयी हुआ आगरा लौटेगा। शेर खान उसकी शरण में होगा और वो ..

“भागो बादशाह!” सामने खड़ा भिश्ती शमशुद्दीन मोहम्मद आवाज दे रहा था। “चढ़ो मुश्क पर!” फिर उसने आदेश दिये थे। जैसे ही हुमायू पेट के बल मुश्क पर लेटा था उसने मुश्क को गंगा में धकेल कर उस पार ले जाना आरम्भ कर दिया था।

“ये सब हुआ कैसे?” गंगा के मझधार में पहुंच हुमायू ने स्वयं से प्रश्न पूछा था। “यह उस तिलक धारी पंडित की चाल है।” प्रश्न का उत्तर शमशुद्दीन भिश्ती ने दिया था।

इन हिन्दुओं को हराना कितना मुश्किल है – मुश्क पर पड़ा पड़ा हुमायू सोचता ही रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा

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