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दिल्ली के जूते के नीचे नहीं रहेंगे,भाई जी !!

चलो दिल्ली

महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा .

भोर का तारा -नरेन्द्र मोदी !

उपन्यास -अंश :-

यह २९ अक्टूवर २०१० शुक्रवार का दिन था !

सच में तो मैं किसी भी देवी-देवता -या किसी भी टोना -टोटका का कायल नहीं हूँ ! पर ,हाँ ! परम ब्रम्ह परमात्मा में मेरा अटूट विश्वास है ! वह मेरे साथ हर दम बना ही रहता है . मैं यह जानता हूँ ….और मैं यह भी मानता हूँ …उस ने जो करना है …वह तो करना है !!

पर आज …इस दिन ………इस शुक्रवार के दिन ….उसे न जाने क्या करना था ….? मैं मात्र यह सोच-सोच कर ही रोमांचित हो रहा था !

“चित्त भी …….और पट भी ….! कुछ भी हो सकता है …?” मुझे साल्वे ने बता दिया था . “हाँ…! हमारी तैयारियां मुकम्मल हैं ! हमारे तर्क अचूक हैं ! हमारे पास सबूत है . हम यह सिद्ध कर देंगे कि …अमित शाह का सुहराबुद्दीन …या किसी अन्य की हत्या से …कुछ लेना-देना नहीं है ! और हम ये भी सिद्ध कर देंगे कि …ये सी बी आई का मन गढ़ंत मुकद्दमा है ! ये अमित शाह को फंसाने की साज़िश है ! और इस में ऊंची हस्तीयों का भी हाथ है ! हमारे पास एविडेंस है …लिखित रूप में …यह बताने के लिए कि …अमित शाह का चरित्र हनन किया जा रहा है ! और यह कि …यह एक राजनैतिक शरारत है …जिस में अमित शाह ही नहीं …नरेन्द्र मोदी भी निशाने पर हैं !!”

“बेस्ट आफ लक …..!!” मैंने कांपते हुए होठों से कहा था !

“मुझ पर भरोसा रखिए ….आप ?” साल्वे ने जाते-जाते कहा था . “न्यायालय में न्याय अवश्य मिलता है !” उस का कहना था .

मेरी बिगड़ी हालत तनिक सुधर गई थी !

और उस दिन हाई कोर्ट में जौहर हुए थे !!

देश-प्रदेश की ही नहीं ….विश्व की ताकतें उस दिन तुल कर खड़ीं थीं ! अपने-अपने पक्ष संभाले …उस दिन हर तर्क हाई कोर्ट में आ पहुंचा था ! और दुनियां की हर पहुँच अब जज के सामने आ खड़ी हुई थी ! अचानक अमित शाह एक अपराधी से उठा कर ….आराध्य बन गया था !

“निरी साज़िश का शिकार हुए हैं ,अमित शाह – मई लार्ड !” आवाजें आने लगीं थीं . “इन्हें तो मात्र इस लिए फंसाया जा रहा है कि ये …….”

“हत्यारे हैं ….!! इन्होने …निर्दोष लोगों की जानें ली हैं ! ये …इतने शातिर हैं ….माई लार्ड …कि …अपने मातहत पुलिस कर्मियों से … इन्होने कुकृत्य कराए ….उन्हें प्रमोशन …और पद-प्रतिष्ठा का लालच दिया ….और गलत सूचनाएं थमा कर …बे-गुनाहों के गले चाक करा दिए ! और ये सब के सब …कोल्ड ब्लडीड …मर्डर …हैं , योर ओनर …! इन के इशारों पर ….पुलिस वालों ने जो नर-संहार किए हैं …शर्मनाक हैं !! जो साम्प्रदायिकता के बीज इन्होने बोये हैं …उन की नफ़रत की फसल …हमारी न जाने कितनी पीढ़ियों को काटनी होगी …? हिन्दू-मुसलमान के भाईचारे के …ये हत्यारे हैं ! आज देश जिस कगार पर आ खड़ा हुआ है ….उस के लिए यही जिम्मेदार हैं …..”

“कैसे ….? सबूत ….?” जज ने मांग की थी .

“ये देखिए ….मीडिया की रिपोट …! अखबार ….और ये देखिए …..”

“सब का सब मन गढ़ंत है , योर ओनर …..! सी बी आई के ये सब …तोते हैं …..”

छोटी सी एक हंसी कोर्ट के परिसर के आर-पार तक निकल गई थी !

“आप का कोई तोता नहीं है ….?”

“है, योर ओनर ….!” फिर से वही हंसी लौटी थी . “मेरे पास सबूत है ! ये देखिए ….और ये लीजिए ….और ये भी पढ़िए ….! पुलिस वालों को जेल में जा-जा कर …खरीदा जा रहा है , मई लार्ड !!”

घमासान युद्ध चल रहा था ! तर्क के तराजू पर न्याय तुल रहा था … ! कभी डंडी …इधर …तो कभी डंडी उधर …! जज सहाब भी विभ्रम में थे ! दोनों पक्षों की दलीलें कारगर थीं . दोनों पक्षों के पास सबूत भी थे . और दोनों पक्षों का न्याय पाने का हक़ भी बराबर का था …?

” लगता है कि ….अमित शाह को बेल मिलनी चाहिए ….!” हाई कोर्ट की बेंच कह रही थी . “लेट अस ..हैव …ए ..फैअर गेम …? लेट द …ट्रायल प्रूव द केस ….!!” जज उठ गए थे .

अमित शाह को बेल मिल गई थी …..!!

शुकवार का ये २९ अक्टूवर का दिन बहुत ही लंबा हो गया था !

आज रात हो कर ही न दे रही थी ? आज कोई सोना ही न चाह रहा था ! आज हर कोई टी वी और मीडिया को सुनने में व्यस्त था ! आज सब समझ लेना चाहते थे कि …सच् क्या था …और झूठ क्या था …? अमित शाह क्या वास्तव में ही एक हत्यारा था – आम प्रश्न पैदा हो गया था …!

“नहीं,नहीं ! हाई कोर्ट का फैसला गलत है ! सब बिकाऊ हैं ! नरेन्द्र मोदी ने सौदा किया है !” नौबत यहाँ तक पहुँच गई थी .

“जस्टिस आफ्ताव आलम ……!!” किसी ने इस नाम को एक नारे की तरह बुलंद किया था . “चलते हैं ..! न्याय माँगते हैं …!! उन को बताते हैं …कि उन की ही नाक के नीचे …हाई कोर्ट क्या-क्या गेम खेल रहा है …? किस कदर नरेन्द्र मोदी का जादू …न्याय की आँखों पर पट्टी बाँध कर …अपराधी अमित शाह को ….”

“कल शनिवार है ! फिर इतवार है …!!” कानून विद बोले थे . “कुछ नहीं हो सकता ! कोर्ट बंद है !!”

“होगा …? ज़रूर होगा ….???” एक व्यक्ति अखाड़े में कूदा था . “जस्टिस आफ्ताव आलम को आप लोग जानते नहीं ….? इतने जीवट वाला इंसान मैंने आज तक देखा नहीं ? चलो ! अर्जी …लिखो !!”

“लेकिन ….कोर्ट ….?”

“उन का घर तो है ….? वो …तो हैं …?” उस आदमी की दलील थी . “काम होगा …! ये ..बेल केनसिल ….कराएंगे …! हाथों …हाथ ….और हम ….”

“नहीं होगी …..?”

“होगी ….!!! और अगर न होगी तो ….पूरा देश जलेगा …..! फिर से ‘गोधरा’ होगा ….? फिर से …..”

हवा में गर्मी थी . रात जाग रही थी ….!!

“मैं भी सो न पा रहा था ….!!” जस्टिस आफ्ताव आलम कह रहे थे . “कैसे ….कैसे …हुई बेल ….? इस अपराधी को तो देश निकाला मिलेगा …! ही …इज …टू बी ….हैंग्ड ….!!” उन का कहना था . “मैं देखता हूँ ! लाओ ! अर्जी …दो …!! देखता हूँ ….कि ….”

और देखते ही देखते …..जस्टिस आफ्ताव आलम ने …अपने घर पर ही कोर्ट की कारवाही आरम्भ कर दी थी !

“अमित शाह को …गुजरात से बाहर उस समय तक रखा जाए …जब तक कि उस की बेल कनफर्म ..न हो जाए …! सी बी आई हाई कोर्ट के फैसले से सन्तुष्ट नहीं है ! अत ह ..इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी …! इस हालत में अमित शाह …..”

क्या-क्या बालाएं न थीं ….? मैं तो हैरान था …..?

गले मिलते मुझे और अमित शाह को ….पुलिस ने आ कर अलग कर दिया था ….!!

“आप को प्रदेश छोड़ कर जाना होगा ……?” अमित से उन का कहना था . “जस्टिस आफ्ताव आलम के …..आदेश …..”

अमित गुजरात में नहीं रहेगा – अजीब-सी बात थी !

लेकिन अमित जहाँ भी रहेगा ….गुजरात का ही हो कर रहेगा – यह भी मैं जानता था !

“आप व्यर्थ की चिंता कर रहे हैं …!” अमित की आवाज़ में ख़ुशी की एक खनक थी . “मैं और सेजल दिल्ली रहेंगे …!” वो बता रहा था . “पहले आप ने दिल्ली में …गुप्तवास काटा …. अब हम रहेंगे ….?” वह मज़ाक कर रहा था . “आई नीड ….सम …रेस्ट …!!” वह बता रहा था . “सेजल साथ रहेगी तो …कुछ राहत मिलेगी …..” वह फिल्ल-फिल्ल कर हंस पड़ा था .

“पाजी ….!!” मैंने उसे कन्धों पर पीटा था . “नौटी …ब्बोय ….!!” मैंने प्रसन्नता से कहा था . “लेकिन ……”

“आप का काम …..पहले …!” अमित ने वायदा किया था . “मैं भूलता कब हूँ, भाई जी ….? मुझे भी चिंता है ! मेरे पास योजना है !! फिक्र न करें ….आप ….” वह मुस्करा रहा था . “ये …महाशय …आफ्ताव आलम …खुद भी नहीं जानते कि …ये क्या कर बैठे ….?” उस ने चुटकी ली थी . “होतव्य के हाथ …बहुत लम्बे होते हैं, भाई जी ! हमारा शुभ हो रहा है ! एक के बाद दूसरे दुश्मन के ताश खुलते जा रहे हैं ….” वह बताता रहा था .

“लिस्ट तो लिख रहे हो , ना …..?” मैने पूछा था .

अमित हंस कर चला गया था ….!!

लेकिन मैं अपने सोच को मुट्ठियों में भरे चुपचाप खड़ा ही रहा था …!

संघर्ष अभी समाप्त कब हुआ था ? अभी तो वह आने को था …! आरम्भ होने के लिए इजाज़त मांग रहा था ! हंस रहा था …और मेरी सामर्थ मुझे बता रहा था …! मैंने आँख उठा कर देखा था …तो …मुझे चुनौतियाँ खड़ी दिखाई दी थीं …! चुनौतियाँ -ही-चुनौतियाँ ….जो मेरे लिए अब नई तो न थीं ….पर थीं – भ्रामक ? जनता ….और जन-मत …एक हवा थे …? कब …किधर मुड जाएं – इन का कोई भरोसा नहीं ….?

“अब हम …ज्यादा दिन …दिल्ली के जूते के नीचे नहीं रहेंगे , भाई जी ….?” और एक अमित था कि घोषणा किए जा रहा था . “अब हमें …..” वह रुका था . उस ने मेरे चहरे को पढ़ा था . “अब हमें …दिल्ली चलने की मुहीम …..?” वह खड़ा-खड़ा मुझ से उत्तर मांग रहा था !!

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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