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बोलता -डोलता अमित सच् का प्रतीक है !

amit shah

महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा .

भोर का तारा -नरेन्द्र मोदी .

उपन्यास -अंश :-

भुज में आए भूकंप की कहानी सुन कर अटल जी का चेहरा तमतमा गया था ! उन का मुख-मंडल ठीक एक ब्रह्माण्ड -सा तन कर वक्त के सामने खड़ा था . त्रिकाल उन की द्रष्टि में समाया था …और भूत,भविष्य तथा वर्तमान …अपने-अपने हक़ के लिए लड़ रहे थे ! राजनीती का पूरा का पूरा परिद्रश्य उन के सामने आ कर ठहर गया था !

“संक्रमण काल है, नरेन्द्र !” एक लम्बी उच्छवास छोड़ कर वह बहुत देर के बाद बोले थे . “एक मुख्य मंत्री को अपने प्रदेश की चिंता नहीं …? उसे अपने ही स्वार्थ सही लगते हैं – लोग नहीं ! सारा -का-सारा माहौल की विषाक्त हो गया है ! क्या करें ….? किसे लें ….किसे छोड़ें ….? अबा -का-अबा ही …?’ घोर निराशा में उन की त्योरियां तन आईं थीं . “वो …है …कहाँ …?” उन का अगला प्रश्न था .

“बीमार है !!” मैंने शांत स्वर में बताया था .

“बहाना है – ये बीमारी …..! रोग है …..” वो ठहर गए थे . “कहते भी तो लज्जा आती है ….?” उन का स्वीकार था .

“शंकर सिंह …….” मैं यों ही बोला था .

“शंकर सिंह हों …..भयंकर सिंह हों …..और लोई …सिंह हों …..?’ उन का उल्हाना था . “महता हो ….दलीप हो …..और कोई महीप हो …..?” उन्होंने मेरी आँखों में देखा था . “सब -के- सब अकर्मण्य हैं , नरेन्द्र !” उन की आवाज़ में अनंत का रोष था . “न जाने …क्या होगा इस देश का ….?” उन की चिंता थी . “प्रदेश के लोग मर रहे हैं ….बर्बाद हो रहे हैं ….मलवे में दबे हैं …और मुख्य मंत्री ….?”

“स्थिति …नियंत्रण में है ,अटल जी ! आप निश्चिन्त रहें …..” मैंने उन्हें सांत्वना दी थी .

“तुम से मुझे आशाएं …हैं !” वो धीमे से बोले थे . मैं तुम्हारा काम देखता आ रहा हूँ ! तुम्हारी निष्ठां की मैं क़द्र करता हूँ . पार्टी को तुम जैसे होनहार युवक ही तो चाहिए ….? न ….कि ….” उन के मुंह का स्वाद खट्टा चूक था ! “खैर ! मैंने तो अपना निर्णय ले लिया है ! ज्यादा सतरंज खेलना बेकार है !” वो एक गंभीर स्थिति से उभर आए थे . “तुम जा कर गुजरात को संभालो …!” अचानक ही आया था – उन का आदेश ! “नरेन्द्र ….!” अब वो मुझे निहार रहे थे . “मेरे …अपने ….!! नहीं,नहीं ….! तुम ही तो मेरे सपने हो, नरेन्द्र !” वो अपने कवि के चोले में लौट आए थे . “मुझे तुम से वो उम्मीदें हैं ….जो एक गुरु को अपने शिष्य से होती हैं ! और लो ! मैं तुम्हें वो उत्तराधिकार सौंप रहा हूँ ….जो एक बाप अपने लायक बेटे को सौंपता है !” वो अब चुप थे .

मैं भी चुप था ! मेरे दिमाग में एक बर्फीला तूफ़ान आ कर फिट हो गया था !

मैं न जाने कौन से सन्नपात के नीचे था …? मैं न तो कुछ सोच ही पा रहा था …और न ही कुछ समझ ही पा रहा था ! अटल जी जो कह रहे थे – मैं उसे सुन तो रहा था …पर उस पर कोई प्रतिक्रिया न हो रही थी …? शायद मैं जो सुन रहा था – उस के लिए मैं तैयार न था …या कि …आशावान न था ! जो घटने जा रहा था …वो तो अघटनीय था ….अनोखा था …विचित्र था …और शायद ..पवित्र भी था ….?

कहीं,…हाँ,हाँ कहीं …मुझे इस दिन का इंतज़ार तो था ….? क्योंकि …मैं अब सत्ता पा कर …अपने ज़ोर आज़माने का सपना देखने लगा था !!

“देखना ,नरेन्द्र कि …कहीं …हमारी कौम को बट्टा न लग जाए ….?” अटल जी ने मुझे सचेत किया था . “विचित्र खेल है , ये ! बिलकुल …चूहा-बिल्ली का मुकाबला है ! दिमाग से काम लोगे …तो कामयाब हो जाओगे …!” उन्होंने मुझे फिर से निहारा था . “और हाँ ! अपने निजी स्वार्थों को समेट कर रखना …! हक़ है – वही लेना ! लेकिन देते समय उदार बने रहना …!” अब उन्होंने मुझे प्रेम-वत्सल निगाहों से घूरा था . “तुम ,मेरे मन के हो ! मैं चाहता रहा था कि …तुम्हें …बड़ी जिम्बेदारियां दूं . आज वक्त आ गया है,नरेन्द्र !” उन्होंने मेरे सर पर हाथ धरा था . “भगवान् तुम्हें दीर्घायु दे …क्यों कि मैं तुम्हें अकूत जिम्मेदारियां दे रहा हूँ ! प्रदेश के बाद ….देश …और देश के बाद ….?” हँसे थे, अटल जी . “यात्रा है, पगले ! और हमारा धर्म चलते रहना है ….!” उन्होंने मुझे वक्त से चेता दिया था !

अचानक मैं आज प्रचारक से शाशक बन गया था !!

मैंने प्रथम सूचना अमित को ही दी थी . अमित उछल पड़ा था . अमित उल्लासित था . अमित ….भावुक था ! और अब अमित न जाने क्या-क्या कहने लगा था …..?

“अभी से बाबले हो गए …..?” मैंने अमित से चटक आवाज़ में पूछा था . “अच्छा , बताओ ! लोगों का क्या हाल-चाल है ….?”

“सब प्रसन्न हैं ….प्रभावित हैं ….! आप के आगमन की देर है ….कि ….”

“ज्यादा कुछ नहीं,अमित !” मैंने संकेत दिया था . “कीप इट ए …. लो …प्रोफाइल …..इवेंट …!” मैंने आदेश दिया था . “समझ गए ….,न ….?” मैंने प्रश्न दुहराया था .

“समझ गया ….!” अमित हंस रहा था . “आप आईए …….” उस ने स्वागत-शब्द कहे थे .

और ….मैं ….? मेरा स्वयं में बुरा हाल था ! अमित को तो मैंने डपट दिया था ….पर …मुझे स्वयम को रोक पाना कठिन हो रहा था ? भय ….भावनाएं …विचार ….और आशाएं …आ-आ कर मुझ से चिपक जातीं . कहतीं – वक्त आ गया है , नरेन्द्र ! इस पाजी को मिटा ही देना ….और उसे भी मत छोड़ना …! और हाँ ! वो तो तुम्हारा अपना है ? जागीरें उसे देना ! धन का बंटबारा भी स्वयं करना …? सत्ता का सदुपयोग करना …! देखो , नरेन्द्र ! तनिक-सी भी उक-चूक ले बैठती है ! केशो को …ही देख लो ….?

और अटल जी ने जो कहा था – मैं उस पर ही मनन कर रहा था ! उसे पाठ की तरह याद कर रहा था -मैं ! उगलियों पर गिन-गिन कर कंठस्त कर रहा था ….कि अब मुझे प्रदेश का मुख्य मंत्री बन कर क्या-क्या करना होगा …?

“कुछ हट कर करूगा !” मेरा उल्लसित हुआ मन मुझे साधे था . “प्रदेश का रूप-स्वरुप … कुछ इस तरह गढ़ूंगा …कि …पूरे देश के लिए एक आदर्श बन जाए ! दुःख-दर्द और इस गरीबी का तो …अंत लाने का हर प्रयत्न …करूंगा ! हर हाथ को काम ….और …हर परिवार को खुशहाली दूंगा ….! मैं वो दूंगा ….जो ….”

“देश-काल की चाल तो ….समझ लो , जादूगर …?” मुझे किसी ने टोका था . “दोस्तों में खेलने लगे …? दुश्मनों को कौन गिनेगा ….? मत भूलो कि मुख्य मंत्री बनते ही …. तुम्हारे आस-पास सांप-छछूंदर आ बैठेंगे ….? सत्ता संभालना बच्चों का खेल नहीं है, नरेन्द्र …?”

“भाग जाऊं ….. ?” मैंने गुर्रा कर पूछा था .

“नहीं ! ” उत्तर आया था . “उलटी गिनती आरंभ करो ….! ये देखो कि …पहला वार कौन करेगा ….? ये भी समझो कि तुम्हारे मुख्य मंत्री बनने से …कौन सब से ज्यादा संकट में आएगा ….? पहला वार बचा गए …तो समझो कि ….बच गए ….!!”

“हाँ ,,,! ” मैं अब एक सोच के सागर में तैर रहा था . “पहला ….वार ….? हाँ,हाँ ! वही करेगा ….और अवश्य करेगा ….!!” एक साथ ही मैं संभाल गया था . “अमित को बताना होगा ….कि ….” एक साथ ही सारी होनी- अनहौनी को मैंने आत्मसात कर लिया था .

राजनीति बहुत टिकाऊ नहीं है – मैं सोच रहा था ! तीर है …तर्कश है …तर्क भी है …पर जिन्दगी और मौत इन में से किसी की भी कायल नहीं है ! वह जब तक है – है ! और जब नहीं है – तो नहीं है !! हमें बस चंद लम्हों के बीच से …जीना है ! आँखें खुली हों …या बंद हों ….क्या फर्क पड़ता है ….?

अब मेरा विवेक भी मुझे समझा रहा था – शाशक को चोर नहीं होना चाहिए ! उसे लालचों से असम्प्रक्त रहने की कला में दक्ष होना चाहिए ! सामाजिक शोषण से लोगों को त्रान दिलाना शाशक का पहला धर्म है ! व्यवस्था का अर्थ …समाज के समग्र सुख में है ! जो हो …वो – सब का हो …! और सब के लिए हो …! परम्पराएं पड़े ….तो उन के निशान …लोगों के दिल-दिमाग पर अंकित हों ! संम्पन्न समाज …की संरचना एक संभावना है -सपना नहीं ! सब का साथ …सहयोग …मनोयोग …अगर मिलता है …तो ही …बात बनती है ! अपने-तेरे का चाकू अगर चलता है …तो मन फट जाते हैं !!

“लोग तो लड़ेंगे ….?” एक उल्हाना आया था . “धर्म के नाम पर …कर्म के नाम पर …जाती और जीत-हार को ले कर …..वो लड़ेंगे तो ज़रूर …..!!”

“और मैं भी लडूंगा, ज़रूर !” मैं बाहर आ कर अखाड़े में आ खड़ा हुआ था . “देखता हूँ, कौन जीतता है ….?” मैंने अंखिया कर पूरे गुजरात प्रदेश को देखा था .

अमित आज तन्हाई में अकेला बैठा था ! अमला नहीं आया था . वह नाराज़ था . उसे भारतीय जनता पार्टी से शिकायत थी . कांग्रेस पार्टी का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा था – अमला का उल्हाना था ! ‘तुम्हारा मोदी बेकार आदमी है !’ कह कर वह चला गया था .

लेकिन अमित का सोच लौट-लौट कर …मोदी की मन-पसंद बातों में उलझा था !

१९८२ में …पहली बार जब अमित की मुलाक़ात मोदी से हुई थी तो उसे लगा था – वह किसी आदमी से नहीं , अपने अभीष्ट से मिल रहा था ! मोदी की आंखों में आशाओं के तैरते समुन्दरों को देख कर अनायास ही जीवंत हो उठा था -वह ! हार -जैसा उन आँखों में कुछ भी न था ! एक नया पन था – जीतने का नया मंत्र …लड़ने की उमंग …कुछ कर दिखाने का दुसाहस …और बैरियों पर हावी हो जाने की बेजोड़ कला -उस में थी !

और फिर सन २००२ में उसे मोदी के संरक्षण में ही सरखेज से चुनाव लड़ने का मौका मिला था ! चुनाव लड़ने की कला ,कौशल …और चतुराई ….चालाकी उस ने मोदी से ही ली ! चीते की चाल चलता मोदी …अपनी सतर्क आँखों से लोगों के मनों में उतर जाता ! उन से …उन की बराबरी पर आ कर …उन की ही भाषा में बात करता ! उन से उन के हित-साधन की बातें करते-करते …अपने हित की बात उन के गले उतार देता ! अपनापन …और एक ऐसा सच्चा सौहार्द वह सभा -सम्मेलनों में पैदा करता …जहाँ लगता कि ….उन को उन का ही कोई सुह्रद मिल गया है …! लगता – वह उन का है …उन के लिए है …और उन का ही रहेगा …!

आदमी से उस का नाम ले कर बातें करना ….बुजुर्गों के पैर छू कर …उन से आशीर्वाद लेना …महिलाओं की पवित्र भावनाओं का आदर करना ….और बच्चों के सहज हास-परिहास को बांहों में बटोर लेना ….मोदी का अपना स्टाईल है !

कितना अपनापन दे जाता है – ये आदमी . अमित हैरान था !

सरखेज में चुनाव लड़ते वक्त ….उस ने भी तो इसी कला का प्रयोग किया था ….? उस ने भी तो सरखेज के चप्पे-चप्पे की खबर ले ली थी ….? उस ने भी तो नरेन्द्र भाई जी की ही तरह ….अपने भरोसे के लोग चुने थे ! उन्ही के द्वारा तो उस ने अपनी बात जनता तक पहुंचाई थी ? और उन्ही के द्वारा तो उस ने सरखेज के भीतर-बाहर का पूरा का पूरा परिद्रश्य देख लिया था ! घर-घर जा कर अमित ने अलख जगाया था ! कहा था – मैं आप का सेवक हूँ ! मैं नरेन्द्र मोदी जी का दास हूँ …..उन के अजश्र प्रेम का पुजारी हूँ ! मैं उन का अनुयाई ..इस लिए हूँ …कि वो आप के लिए पूर्ण रूप से समर्पित हैं …जनता के हैं …देश के हैं ! उन का उद्देश्य जनता की सेवा करने के सिवा और कुछ नहीं है !

“अगर हमारी जीत होती है —-तो आप की जीत होती है !” अमित लोगों को बताता . “अगर प्रदेश की प्रगति होती है ….तो आप की प्रगति होती है ! अगर आप संपन्न होते हैं ….तो राष्ट्र संपन्न होता है ! अतः हमारी नीतियां आप को ही संम्पन्न बनाने के लिए बनेंगीं …और आप के ही सहयोग से बनेंगीं !!”

लोग अमित को बड़े ही ध्यान पूर्वक सुनते थे ! बड़े ही धैर्य के साथ …वो बैठे-बैठे …इस उमंगों से भरे सागर को निहारते रहते थे ! उन्हें लगता -अमित उन्ही का बेटा-बच्चा था …जो उन्ही के खेत-खलिहानों में ….कल से ही हल चलाएगा …और सच्ची-मुच्ची की फसल उगाएगा ! अभी तक के लोग तो ठग थे ! केशू भाई …बघेला ….या थगेला …. सब के सब स्वार्थी थे …झूठे थे ….!!

अमित – बोलता -डोलता …एक सच का प्रतीक लगता था – उन्हें !!

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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