
बाल-स्वयंसेवक !!
महान पुरूषों के पूर्वापर की चर्चा !
उपन्यास -अंश :-
“पूर्ण -स्वराज की हमारी मांग अब टलेगी नहीं ! हम जेलें भरेंगे …..हम आन्दोलन छेड़ेंगे …..हम …….!” मैं सुनता जा रहा था .
“जेल से छूटने के बाद वो कुछ दिन कलकत्ता रहे थे . फिर नागपुर लौट आये थे . नागपुर वो अकेले नहीं लौटे थे ….!” अथावले मुस्कराए थे .
“कौन-कौन थे ……?” मैंने पूछा था .
“उन के साथ थे – उन का सोच ….उन का द्रड -निश्चय ….उन की प्रतिज्ञा …..और उन का अदम्य साहस ! जो कुछ जेल में रह कर उन्होंने तय किया था ….उसे वह साथ ही लेकर लौटे थे .”
“फिर ….?” मेरी जिज्ञासा बढ़ी थी . मैं रोमांचित था !
“नागपुर में आ कर उन्होंने …..लोगों से अपनी मिली यातना का जिकर किया था . उन्होंने जिकर किया था – उस हवा का जो कलकत्ता के हर गली-कूंचे को बुहार-बुहार कर …..पवित्र बना रही थी ! उन्होंने युगांतर और अनुशीलन की कार्य-शैली पर बैठ कर ….विचार किया था . वहां बहती गरम धारा – और नरम धारा ….को छुआ था ! फिर उन का सोच उन के पास आ बैठा था .
“नागपुर में भी तो दंगे हुए होंगे ….?” मैंने अनुमान लगाया था .
“नहीं ! नागपुर में दंगे नहीं …..एक चुप्पी का जन्म हुआ था . एक विचित्र प्रकार की खामोशी थी – जिसे अंग्रेजी शाशन समझने की कोशिश में लगा हुआ था . हेगडेवार उन की आँख के नीचे थे . वह जानते थे कि …यह युवक ….कोई साधारण युवक नहीं था . वो पहचानते थे -इन्हें !”
“एक अलग ही रास्ता चुनेंगे , हम !” अपने पांच अनुयाइयों से कहा था – हेगडेवार ने .
“कौन सा रास्ता ….?”
“सेवा-भाव ! इसे लेकर हम चलेंगे ….अपने ध्येय की और…!” उन का कथन था .
“पर …..पहुंचेंगे ….कहाँ ….?” प्रतिप्रश्न हुआ था . “कायरता की बातें हैं , ये ! डरने से काम नहीं चलेगा ….! जंग में तो कूदना ही होगा , हमें ! …आग लगा देंगे …..उन के समूचे साम्राज्य को …” एक बबंडर उठा था .
और मैं भी उस बबंडर में उन के साथ हो लिया था .
बाबला हुआ …..मतवाला हुआ ….मैं ….नरेन्द्र मोदी …हाथ में आज़ादी की मशाल लिए …..उन आताताइयों के घर फूँक रहा था ….जिन्होंने हमारे देश-भक्तों को जेलों में ठोक दिया था !
“ईंट का ज़बाब तो पत्थर से ही होता है …!” बात पूरी होते न होते फैल गई थी . .
“नहीं ! ईंट का ज़बाब पत्थर नहीं …..!!” हेगडेवार बेहद ठंडी आवाज़ में बोले थे . “जो मैंने उत्तर खोजा है – वह अलग है !” उन्होंने साथियों को सीधा आँखों में घूरा था . “विजय पाने का …अलग हथियार है …..मेरे पास !”
“क्या ….?”
“सेवा ….!!” उन का स्वर द्रड था. “हम …सब ….स्वयं सेवक होने का ब्रत लेंगे ….!” उन का सुझाव सामने आया था . “हम सब निश्चय करेंगे कि …हम देश की निःस्वार्थ भाव से सेवा करेंगे …और अपने आप को …स्वयं सेवक की पदवी देंगे ! हम अपने आप को …स्वयं सेवक मान कर ही चलेंगे ….”
“मतलव ….?”
“मतलव साफ़ है , मित्रो !” उन का स्वर एक गर्व में गर्क था . “हम …उत्सर्ग का मार्ग चुनेंगे ….हम समाज में जा-जा कर …लोगों के पास पहुँच कर ….उन के साथ मिल-बैठ कर ….एक मशविदा करेंगे …..”
“कैसा मशविदा …..?”
“समाज-कल्याण का मशविदा ….! समाज-सुधार का आचरण ……समाज में जाग्रति लाने के लिए ….मशालें जलाने का ….प्रयोजन हम पहले करेंगे ….”
“क्यों …?”
“क्यों कि हमारा समाज …सोया हुआ है ! उसे आज़ादी का अर्थ ही समझ नहीं आता ….! वह अंग्रेजों के दिए छोटे-छोटे लालचों का गुलाम बन गया है ! हमें नौकरी अंग्रेज देता है ….शिक्षा अंग्रेज देता है …..वजीफा उन का है ….व्यवस्था उन के हाथ में है …! वो जिसे चाहें …..जो दें ! हम उन का हाथ नहीं रोक सकते ! और जब तक ये लालच की पट्टी …समाज की आँखों से नहीं उतरेगी ….वो साफ़-साफ़ नहीं देख पाएंगे …और न ही कुछ समझ पाएंगे …..! और जब तक हमारा समाज जाग्रत नहीं होगा …..आज़ादी हासिल करने के बाद भी ….हम कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे ! हम सर्व-प्रथम …समाज-कल्याण के लिए व्रती बनेंगे …..”
“अंग्रेज ….?”
“हमारा क्या बिगाड़ लेंगे ….? हम देश-द्रोह की धरा के उस पार होंगे ….दोस्तों ! हम ….चुपचाप ….अपने कर्तव्य का निर्वाह करेंगे ….! पहले ….सर्व-प्रथम …..हम अपना पाठ ‘क ख ग से शुरू करेंगे !” वो हंस गए थे .
“समाज को जगाने की आवश्यकता तो …आज भी है , सर ! काम पूरा कहाँ हुआ है ….?” मैंने तुनक कर पूछा था .
“तो करो , न ….!!” अथावले बोले थे . “और मैं तुम्हें कह क्या रहा हूँ , नरेन्द्र ….!!”
एक चुनौती थी ….जो कूद कर मेरे पास आ गई थी ….!!
…………….
श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!
