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अंडे

मेरी जान, मेरी जान

मुर्गी के अंडे

हाँ! हाँ! मेरी जान

मेरी जान, मुर्गी के अंडे।

वाकई! में हमारी और हमारे परिवार की जान ही हुआ करते थे, मुर्गी के अंडे।

हर रोज़ के नाश्ते पर बारह अंडे तो हमारे परिवार में लगते ही थे। अंडे ब्रेड का ही नाश्ता चला करता था.. हमारे यहाँ।

हमें करीब से जानने वाले रिश्तेदार हमें अक्सर.. ” अंग्रेजों के नाना कहा करते थे”।

इस बात पर बहुत हँसी आ जाया करती थी.. पर स्वाद से जो मजबूर थे।

पिताजी को तो नाश्ते में उबले अंडे, या फ़िर डबल फ्राई ही भाता था.. पर हाँ! कभी-कभार प्याज़ वगरैह डालकर माँ से बढ़िया आमलेट बनवा लिया करते थे.. फ़िर टोस्ट कैंसिल कर दिया करते, खाली आमलेट के ही मज़े लिया करते थे।ऐसे ही परिवार में अंडों और ब्रेड को लेकर सबका अपना ही अनोखा तरीका था।

पर हमारा अपना और माँ का तरीका याद आते ही..  मुहँ में पानी आ जाता है।

माँ के संग हम तो मस्त अंडे की भुजिया जिसमें हरी-मिर्च,प्याज़ टमाटर और अदरक हुआ करता था.. ख़ूब नमक -मिर्च डाल.. चटक सी बना.. मस्त टोस्टर में करारे टोस्ट सेक नाश्ता फरमाया करते थे । 

अंडों का नाश्ता ही नहीं! हमारा परिवार एग-करी और आमलेट करी का भी शौकीन था.. दोनों ही चीज़ें माँ के हाथ की गज़ब बना करतीं थीं।

आमलेट करी का स्टाइल ज़्यादा पसन्द आया करता था.. छोटे-छोटे आमलेट के pieces और लिपटी हुई चटक तरी.. वाह!

यह अंडों वाला भी बचपन का एक अलग और अनोखा अध्याय था.. अब तो हम अंडे-वनडे ज़्यादा खा नहीं पाते, सूट नहीं होते। 

पर फ्रिज में रखे अंडे हर बार, फ्रिज खुलते ही बचपन के परिवार संग उसी नाश्ते को ताज़ा कर देते हैं।

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