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स्वामी अनेकानंद भाग 9

Swami Anekanand

“लो! तिकड़म भिड़ा कर मनी ऑडर किया है।” कल्लू ने मनी ऑडर की रसीद राम लाल को थमाई है। “पोस्ट मास्टर जानकार है वरना शाम हो जाती।” वह पसीना पोंछ रहा है।

“और वो भी दो।” राम लाल ने कल्लू को घूरा है। “वो – पते की पर्ची!” उसने मांग की है।

कल्लू ने राम लाल को कई पलों तक घूरा है। “कुछ नहीं भूलता कलूटा” उसने मन में कोसा है राम लाल को। फिर झूठ बोलने का मन बनाया है। “खो गई” वह कह देना चाहता है।

“निकाल-निकाल।” राम लाल उसे झिड़कता है। “इसका पता ठिकाना मेरे पास होना बहुत जरूरी है, पागल।” वह कल्लू को मनाता है।

कल्लू ने बे मन पते की पर्ची राम लाल को पकड़ा दी है। अब वह राम लाल को घूरे जा रहा है। उसे क्रोध चढ़ने लगा है। राम लाल न जाने क्यों बात को घुमाए जा रहा है और आनंद को अभी तक लाइन पर नहीं ला रहा है। कल्लू ने मान लिया है कि अगर आनंद ने लाइन पकड़ ली तो उनका उद्धार हो जाएगा। फिर वो ये चिड़िया का टुच्चा धंधा नहीं करेंगे और ..

“गुरु!” कल्लू कड़क स्वर में बोला है। “कहे देता हूँ – ये तो भागेगा ही साथ में मेरा ग्राहक भी जाएगा।” कल्लू के स्वर में उलाहना है – एक चेतावनी है।

“ग्राहक ..?” चौंका है राम लाल। “कौन से ग्राहक की बात करता है बे!” उसने तुनक कर पूछा है। वह जानता है कि कल्लू बंडल बाज है। और यूं ही अनाप शनाप बकता रहता है।

“मोटा मुर्गा ..!” तनिक मुसकुराया है कल्लू। “सोने का अंडा देती है – ये मुर्गी।” वह हंसा है। “साले के पास अटूट माल है।” उसने आंखें नचा कर कहा है। “और अब ..? अब तो वो बादशाह बन जाएगा।”

“कैसे ..?” राम लाल चौंका है।

“टिकट!” उंगलियां नचा कर कल्लू ने कहा है। “पार्टी इसे टिकट दे रही है।” कल्लू ने सूचना दी है।

“किसे ..?” राम लाल हैरान है। “कौन है ये?”

“मग्गू ..!” कल्लू ने बात खोली है। “मग्गू! दलाल .. दल्ला .. हरामी .. मक्कार .. और ..”

“फिर पार्टी इसे टिकट क्यों दे रही है?”

“और किसे दे?” कल्लू हंसा है। “कर दो टाटा को खड़ा? हारेगा। शर्तिया हारेगा और ये टिकट निकालेगा .. बड़े ..”

“मैं .. मैं तो .. शायद जानता नहीं इसे?”

“क्यों? ये ठिकाना किसने दिलाया था, गुरु?”

“अरे रे! ये वो मग्गू है!” राम लाल हैरान है। “लेकिन यार, ये तो ..?”

“तब और आज दोनों अलग हैं, गुरु। अब राज है मग्गू का।” उसने बताया है। “और मैंने पटा लेना है। एक बार उसका भविष्य आनंद बाबू बता दें, बस।” कल्लू राम लाल को घूर रहा है। “मैं कहता हूँ गुरु कि ..” वह रुका है। “ये आदमी यारों का यार तो है।”

“इसमें तो कोई शक नहीं है कल्लू।” राम लाल मान गया है। “अब तू ही बता यार कैसे-कैसे इस आनंद को ..?”

“वो तुम जानो।” कल्लू ने हाथ झाड़ दिए हैं।

“अच्छा तो ये देख। ये फोटो देख।”

“क्या देखूं? देख लिया – स्वामी विवेकानंद का है।”

“ठीक देखा है। अब आनंद को .. स्वामी ..?”

“अनेकानंद!” कह कर कल्लू उछल पड़ा है। “अरे गुरु! मार दिया पापड़ वाला। स्वामी अनेकानंद – माने आनंद बाबू। जमेगा .. चलेगा .. दौड़ेगा – खूब।” वह जश्न जैसा मना रहा है। “कसम से गुरु ..”

“पन एक कमी है।” राम लाल ने आंखें नटेरी हैं।

“क्या?”

“आनंद बाबू को अंग्रेजी बोलना सिखाना होगा।”

“कौन बड़ी बात है। मैं इसे उस नालायक रामी के पास छोड़ दूंगा। सिखा देगा। अरे, पैसे ही तो लेगा और क्या जान मांगेगा?”

“कब तक?”

“बस, वही कोई दो तीन सप्ताह मानो। हो जाएगा अपना आनंद अंग्रेज।” कह रहा है प्रसन्न हो कर कल्लू।

“जा! उसे भेज देना।” राम लाल ने आदेश दिया है।

कल्लू के जाने के बाद राम लाल आनंद को पटाने का प्रयत्न करने की मुहिम बनाने लगता है। उसे डर है कि आनंद अगर बिदक गया तो सब किया धरा चौपट हो जाएगा।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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