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रजिया भाग 9

रज़िया, Razia

“जैसे ही जफर ने तुम्हें अमेरिकन जासूस कहा था और बांहाें में भरने चला था, वह सही वक्त था उन तीनाें काे शूट करने का।” डैडी सर राॅजर्स साेफी काे समझा रहे हैं। “कुछ कमजाेरियां हाेती हैं। ये मानव मन की आम कमजाेरियां हैं, साेफी।” उन्हाेंने कहीं दूर देखा है। “वियतनाम में भी हम अपनी इन्हीं कमजाेरियाें की वजह से ..।”

“आप शायद सही कहते हैं।” मैं भी डैडी की बात मान लेती हूॅं।

“साेचाे साेफी! अगर मूडी वक्त पर हमला न कर देता ताे?” डैडी अब चिंतित हैं। “और फिर कभी-कभी वक्त पर मदद नहीं भी पहुंचती।”

यह वास्तव में ही एक घाेर चिंता का विषय है। अगर मूडी मुझे न बचा लेता ताे वह तीनाें दरिंदे मुझे फाड़-फाड़ कर खा जाते। मेरी ताे लाश का भी पता नहीं चलता। और शायद ..? मेरा हिया कांप उठता है। मात्र उस घटना की कल्पना करना भी कितना भयावह है।

“फिर ..?” मैंने अब उत्तर पाने के लिए डैडी की आंखाें में ही झांका है।

वह शांत हैं। चुप हैं। कहीं साेच रहे हैं। मैं भी समझ रही हूॅं कि शाायद वह अब मुझे जासूसी करने ही न देंगे। शायद अब वह मुझे राॅबर्ट के साथ कहीं घूमने जाने के लिए राय देंगे। मैं उनकी इकलाैती बेटी हूॅं और वह मुझे बहुत प्यार करते हैं।

जब से मां का सहारा छूटा है उन्हाेंने मुझे ही अपना सहारा मान लिया है।

और मैं भी इस बात का ध्यान रखती हूॅं कि जब भी उनके मन में माॅं की दी बेवफाई की टीस उठती है मैं उस पर अपने सहज पिता प्रेम का मरहम पाेत देती हूॅं। तब वह प्रसन्न हाे जाते हैं। मुझे पा कर ताे वह किसी भी स्वर्ग की कामना नहीं करते।

हम बाप बेटी बहुत ही न्यारे हैं। हम एक दूसरे काे मन से चाहते हैं। हमारे बीच काेई भी दुराव नहीं है। मैं अपने मन की हर बात अपने डैडी से कह देती हूॅं। और उनका भी आगत-विगत मुझे ज्ञात है।

“कैंप लाॅरी ..।” डैडी अचानक जैसे नींद से जगे हाें – कहते हैं। उनके चेहरे पर एक दिव्य मुसकान दाैड़ जाती है। किसी स्वीकार में वह सर हिलाते हैं। “यस-यस। दैट इज दी करैक्ट आनसर!” वह स्वयं से कहते हैं।

“कैंप लाॅरी ..?” मैं भी उनसे पूछ लेती हूॅं।

“हां-हां! कैंप लाॅरी। मेरा साथी सेवर्स इस कैंप काे चलाता है। एक बार उसके हाथाें से प्रशिक्षित हाेने के बाद तुम वह गलती नहीं कराेगी जाे ..!” डैडी तनिक से हंसते हैं। “टु फाइट इज ऑलसाे एन आर्ट।” वह मेरी आंखाें में घूरते हैं। “बड़े ही यत्न से आती है यह आर्ट। कन्टीन्यूअस एफर्ट्स, ट्रेनिंग और लगातार अभ्यास से ही कामयाबी हासिल हाेती है, साेफी।” वह मुझे समझा रहे हैं। “मैं अभी फाेन करके सेवर्स काे बता देता हूॅं कि तुम ट्रेनिंग के लिए आ रही हाे।”

“लेकिन डैडी?” मैं अपने कुछ दिन आराम करने की बात बीच में ले आना चाहती हूॅं।

“नाेप! ताते घाव जाे तुरंत घटना पर पकड़ हाेती है वह बाद में नहीं हाेती। अभी चली जाऒ। तुम देखना कि किस कदर ..!”

“ऒके, डन।” मैं डैडी की बात मान लेती हूॅं।

डैडी ने ठीक राय दी है। मेरा राॅबर्ट से मिलने तक के लिए मन नहीं था। मेरी मिशन में हुई विफलता मुझे भीतर से घुन की तरह खाए जा रही थी। मैं खाेज ही न पा रही थी कि मेरा खाेट क्या था? मुझे अपनी कमियां नजर ही न आ रही थीं। यह स्वाभाविक ही है। विफल हाेने के बाद आदमी हमेशा ही अपना खाेट दूसराें के सर डाल देता है।

उन तीनाें का बहता खून मुझे बुरा लगा था। मैं ताे मूडी से नाराज थी। मैं ताे उससे लड़ पड़ना चाहती थी कि उसने मेरे मिशन में दखल क्याें दिया? पर आज जब डैडी ने बात का खुलासा किया है ताे अकल आई है।

वार हारने से पहले करना चाहिए। और पहल काे हमेशा ही अपने हाथ में रखना चाहिए।

सेवर्स अंकल से मिल कर मुझे बेहद प्रसन्नता हुई है।

वह मुझे जीप में ले कर अब अपना कैंप लॉरी दिखा रहे हैं। मीलों का विस्तार है इस कैंप का। युद्ध कौशल की हर कला का सवाल जवाब अंकल सेवर्स के पास है। उनके इस कैंप की संरचना भी सवाल जवाबों की शक्ल में ही की गई है। कैंप एक गहरे जंगल के गर्भ में स्थित है। इस को देखने पर यहां जंगल के सिवा कुछ और दिखाई ही नहीं देता।

कैंप में रहस्यात्मक कॉटेज बनी हैं। इन में संसार के हर कोने से आए शिक्षार्थी रहते हैं। सब अकेले-अकेले रहते हैं। सभी एक अलग-अलग उद्देश्य को लेकर यहां शिक्षा लेने आते हैं। सब का प्रोग्राम भी अलग-अलग है। केवल कुछ ही मौकों पर सब मिलते हैं। लेकिन हर व्यक्ति एक रहस्य की तरह ही यहां रहता है।

“आई नीड फिजिकल ट्रेनिंग, सर।” मैं सेवर्स अंकल को बता देना चाहती हूं।

“यू नीड फिजिकल एंड मेंटल ट्रेनिंग। एंड बोथ आर ए मस्ट फाॅर यू सोफी।” अंकल सेवर्स बता रहे हैं। “फॉर ए स्पाई मेंटल स्ट्रेंथ इज ऑलसो वैरी इंपॉरटेंट।” वह मुसकुराते हैं। “सब दिमाग का ही तो खेल है बेटी।” वह मेरी पीठ थपथपाते हैं। “लुक एट यॉर डैडी। छह साल जेल के भीतर और फिर एक दिन जेल तोड़ कर भाग निकला।”

“और फिर घर लौटने पर वहां मां का न मिलना ..?” मैं चुपके से अपने दिमाग में एक वाक्य बोलती हूँ। “ओह गॉड!” मैं अब अपने डैडी के लिए ही प्रार्थना करने लगती हूँ।

“इन छह सप्ताहों में मैं तुम्हें हर करिश्मे से मिलाउंगा, हर तरकीब बताउंगा और हर असंभव को संभव बनाने की कला में तुम्हें दक्ष कर दूंगा। इसके बाद – इट विल बी यॉर लक।” वह खुल कर हंसे हैं।

“वॉट डू यू मीन बाई लक?” मैं पूछ लेती हूँ। शायद अभी तक मैं लक नाम की इस चिडिया को नहीं जानती।

“यस, बेटी लक इज ए फैक्टर इन ऑल यॉर सक्सैस। फिफ्टी-फिफ्टी इज यॉर लक।”

“तो क्या आप भी मानते हैं ..”

“हां! मैं तो मानता हूँ। अपने अनुभव के आधार पर मैं ये सब मानता हूँ। बाकी तुम्हारी तुम जानो।” वह अपने दोनों हाथ झाड़ देते हैं।

छह सप्ताहों का यह सफर, एक जान लेवा सफर, एक चुनौतियों से भरा सफर, एक ऐसा सफर जहां जिंदगी और मौत साथ-साथ रहते हैं और एक ऐसा सफर जहां सफलता और विफलता दोनों ही समान और सगी दिखती हैं।

“इजिंट इट ए टॉर्चर अंकल?” मैं कराह कर पूछती हूँ। “इतना क्या कि आदमी टूट ही जाए, बिखर ही जाए और ..?”

“शरीर साधना एक अलग कला है बेटी।” अंकल बताते हैं। “मनुष्य का यह शरीर एक कमाल की मशीन है। जो प्रकृति ने बनाया है – इसका कोई जोड़ नहीं है। यह भी एक आश्चर्य जैसा ही है।” वह एक रहस्य जैसा उजागर करते हैं। “कोई भी हुक्म दो यह शरीर तुम्हें सब कुछ कर दिखाएगा।” वह हंस रहे हैं। “कोई भी करिश्मा करने को कहो ..”

उनकी बातों में सच्चाई है। उनके हर वाक्य में नपा तुला एक दर्शन है – जिसे उन्होंने परख-परख कर संजोया है। यहां ट्रेनिंग करने के बाद और कुछ सीखने को बकाया नहीं रहता।

चींटी की चाल और शेर की दहाड़ अब मैं एक साथ सुन सकती हूँ और आंख की पुतली हिलने की देर नहीं कि गोली! अंधेरे में मेरी आंख अब उतना ही देेख लेती है जितना कि उजाले में!

अब आदमी मुझे एक भिनुगे की शक्ल में दिखाई देता है। गाजर मूली की तरह नरम और ..

“तुम अब अपने हर मिशन में कामयाब होगी सोफी!” अंकल सेवर्स ने मुझे आशीर्वाद देकर कैंप से विदा किया है।

आज अचानक ही मुझे रॉबर्ट याद हो आया है।

क्यों ..? मैं क्या जानूं ..

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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