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रजिया भाग 8

रज़िया, Razia

“खबर पढ़ते ही मैं तुम्हारे पास दाैड़ी-दाैड़ी चली आई हूॅं। मैं हांफते कांपते स्वर में उन तीनाें पकड़े गए आतंकवादियाें काे सूचना देती हूॅं। “जैसे ही मुझे पता चला कि ..”

“पर तुम ताे अमरीकन हाे?” अरमान अली बीच में ही बाेल पड़ा है। यह इन तीनाें में सब से ज्यादा तेज है। रिंग लीडर लगता है।

“मैं अमरीकन थी लेकिन अब नहीं हूॅं।” मैं तुरंत उत्तर देती हूॅं। “यह देखाे रिवाॅल्यूश्नरी गार्ड। इस मैग्जीन की मैं चीफ एडीटर हूॅं। मैं अब तीसरी दुनिया के लिए काम करती हूॅं। देखाे! मैंने पिछले ही माह अल नसीर पर आर्टिकल छापा है।” मैं उन तीनाें काे मैग्जीन दिखाती हूॅं।

वह तीनाें बड़े ही ध्यान से उस छपे लेख काे घूरते हैं। मैं जानती हूॅं कि उन्हें अंग्रेजी बिलकुल नहीं आती। फिर भी वह तीनाें छपे आर्टिकल काे समझने का प्रयत्न करते हैं।

“तुम्हारा नाम क्या है?” अबकी बार रहमान अल जफर बाेला है। यह इन तीनाें में सबसे ज्यादा खतरनाक आदमी है। मनुष्याें काे मारना ही इसकी हाॅबी समझाे।

“रजिया!” मैं उसे हंस कर अपना नाम बताती हूॅं। “तुम मुझे रजिया सुल्तान कह सकते हाे।” मैं अपना नाम जान-मान कर दाेहराती हूॅं। “मैंने धर्म परिवर्तन किया है। और अब मैं ..!”

“अब हमारी हाे ..?” इस बार अल अबरार ने प्रश्न किया है। वह बहुत प्रसन्न है। मेरा नाम सुन कर उसका सीना फूल गया है। उसकी आंखाें में अचानक ही एक चमक लाैट आई है।

“और मुझे तुम लाेग अपनी कह सकते हाे।” मैंने अपनी अनमाेल हंसी के पुष्प जेल के उस बेहूदा माहाैल में बखेर दिए हैं।

एक सहजता सी आ जाती है। वह तीनाें अब राहत की सांस लेते हैं। उन तीनाें ने मुझे फिर से पलट-पलट कर देखा है। मैंने भी उन तीनाें का फिर से उसी मधुर मुसकान के साथ स्वागत किया है।

“मैं तुम तीनाें के बारे में ही लिखूंगी।” मैं झटपट अपना काम आरंभ करती हूॅं। “लैट्स हैव द फाेटाेग्राफ फर्स्ट।” मैं अचानक ही अपना कैमरा संभाल लेती हूॅं। “पहले तुम आऒ अबरार। मैं उसे बड़ी ही आत्मीयता से पुकारती हूॅं। “चश्मा उतार दाेगे ताे अच्छा रहेगा।” मैं उसे सुझाव देती हूॅं।

“नहीं! इसी तरह चलेगा!” वह जिद करता है।

मैं बिना किसी बहस में पड़े उन तीनाें के चित्र कैमरे में उतार लेती हूॅं।

“क्याें उड़ा देना चाहते थे ट्रेन काे?” मैं अब अपना पैड ले कर लिखने बैठ जाती हूॅं।

उन तीनाें की ऒर से काेई भी उत्तर नहीं आता।

“बेगुनाह लाेगाें काे मार कर क्या हासिल हाेगा?” मैं चुप्पी काे ताेड़ती हूॅं। “अल्लाह ने कहां कहा है कि इस तरह से ..?” मैं अब उन तीनाें काे आंखाें में घूरती हूॅं।

“कहा है!” वह तीनाें एक साथ बाेल पड़ते हैं। “अल्लाह ने कहा है – काफिराें काे देखते ही कत्ल कर दाे।” उनकी आवाज में राेष है और वह तीनाें उद्विग्न हाे उठे हैं।

“काफिर ..?” मैं प्रश्न करती हूॅं। “काैन सा काफिर?”

“वही जाे सारा माल समेट कर बैठा है। वही जाे हमें भीख मांगने काे मजबूर करता है। वही जिसका न धर्म है, न काेई कर्म है।”

“कितने पढ़े हाे अबरार?” मैं बीच में बात काट कर पूछती हूॅं।

अचानक ही वह तीनाें चुप हाे जाते हैं। वह मुड़-मुड कर मुझे देखते हैं। शायद उन्हें एहसास हुआ है कि वह ताे तीनाें ही अनपढ़ हैं। उन के पल्ले जाे भी थाेड़ा बहुत ज्ञान है वह सुना है – गुना नहीं है। उन्हें जाे भी बताया जाता है, वह उसे बेहिचक मान लेते हैं।

“मुश्किल ताे यही है मित्राें! हम दूसराें के बहकावे में आकर संगीन अपराध कर बैठते हैं।” मैं उन्हें टीस कर बताती हूॅं। “तुम तीनाें ..” अब मैं उन्हें प्रसंशक निगाहाें से देखती हूॅं। “तुम – अबरार अगर पढ़ लिख जाते ताे मैं दावे के साथ कह सकती हूॅं कि ..”

“मैं ताे टाॅपर ही हाेता रजिया!” अली गरजा है। “अब्बा काे कहा भी था पर ..” वह रुक जाता है। “लेकिन अब क्या हाे सकता है ..?”

“अभी बिगड़ा भी क्या है?” मैं उससे पूछ लेती हूॅं। “जफर! अगर तुम्हें अभी भी माैका मिले ताे ..?”

“मुझे बहकाऒ मत रजिया सुल्तान!” जफर तनिक हंसा है। “बूढ़े ताेते भी पढ़ते हैं भला?” वह व्यंग करता है। “काम की बात कराे।” वह आदेश जैसा देता है।

“क्या काम की बात करें?” मैं जफर से ही पूछती हूॅं। “बाेलाे! मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूॅं?” मैंने अब की बार जफर काे जांघ पर छू लिया है!

“एक बार बाहर का रास्ता दिखा दाे फिर देखना जिहाद का जलवा!” अरमान अली खुलेआम बाेला है। “हम ताे गलती से पकड़े गए मैडम। अगर हमारा हाथ बैठ जाता ताे हम आधे से ज्यादा फ्रांस काे ले बैठते।” वह शेखी बघारता है।

“अमरीका काे उड़ाने का इरादा है क्या?” मैं पूछती हूॅं।

“एक बार बाहर करा दाे बस। फिर बताएंगे तुम्हें कि हम हैं क्या चीज़। जेल में रह कर ताे आदमी ..”

मैं चुप हूॅं। बात कुछ-कुछ बनने काे है। मैं चाहती हूॅं कि अभी इसी समय इन तीनाें से वायदा कर दूं और इन्हें जेल से बाहर निकालने का आश्वासन दे दूं।

“कहां जाना चाहते हाे?” मैं पूछ लेती हूॅं।

“लीबिया।” अबरार बताता है। “बैंघाजी।” वह शहर का नाम लेता है। “मैं वहीं का हूँ जफर त्रिपाेली रहता है और अली अल-वैदर का है। एक बार लीबिया पहुंचने के बाद ताे हम ..”

“और मैं ..?” हंस कर मैंने पूछा है। “ताे क्या मुझे यहीं छाेड़ दाेगे?”

“नहीं-नहीं। तुम्हें ताे अब साथ रक्खेंगे। तुम ताे अब हमारी हाेगी और हमारे ही साथ रहाेगी।” अली वायदा करता है। “शादी शुदा हाे?” वह मुझे पूछ लेता है।

“नहीं। अभी शादी के बारे साेचा नहीं है।” मैं कह देती हूॅं।

“साेचना भी मत।” जफर हंसता है। “हम अब साथ-साथ रहेंगे ताे खूब जमेगी।” वह प्रसन्न है। “लीबिया पहुंच कर मिलते हैं।”

“लेकिन कहां?”

“बैंघाजी।” वह बताता है। “तुम अपना काम कराे – हम अपना काम करेंगे।” वह वायदा करता है।

ठीक एक सप्ताह के बाद मैं उन्हें बाहर जाने का रास्ता सुझा कर उन के हाथ में उन के पासपाेर्ट और पते ठिकाने सब थमा देती हूं। उन तीनाें काे अलग-अलग तीन दिनाें में जाना है। उन की फ्लाइट सीधी नहीं है। याेजना बहुत ही साेच समझ कर तैयार की गई है।

तीनाें फ्रांस से बनाई याेजना के अनुसार ही उड़ जाते हैं। अखबार और टैलीविजन पर खूब जाेरदार खबरें छपती हैं। फ्रांस की सरकार की भी खूब छीछा लेदर हाेती है। मैं भी अपना रास्ता बैंघाजी तक तय कर उन तीनाें से संपर्क साधने की काेशिश करती हूं।

“यहां पहुंचिये आप।” बैंघाजी में मुझे उनका एक अन्य मित्र ठिकाना बताता है। “रास्ता कठिन है। संभल कर जाइए। कुछ पैदल का रास्ता भी है। जान का जाेखिम ताे है ही, पर आप ..” वह मुसकुराता है।

मैं पहुंचती हूॅं। मैं बेदम हूॅं। शाम ढलने काे है। मैं एक अजीबाे-गरीब ठिकाने पर पहुंच गई हूॅं। मुझे डर लगने लगा है। मेरा साहस भी मुझे जवाब देने लगा है।

“आइए-आइए। रजिया सुल्तान का स्वागत है।” वह तीनाें एक साथ मुझे बुलाते हैं।

“हैलाे फ्रेंड्स ..!” मैं भी बांहें फैला कर उन तीनाें का स्वागत करती हूं। “मैंने अपना वायदा पूरा किया है न?” मैं उन्हें याद दिलाना नहीं भूलती हूॅं।

“और अब हम अपनी वायदा पूरा करेंगे रजिया सुल्तान।” जफर कह रहा है।

मैं उस वीराने काे फिर से टटाेलती हूॅं। वैसे ताे लीबिया में इसी तरह के ठिकाने हैं, जहां लाेग अकेले-अकेले बसर करते हैं। फिर भी मुझे कुछ अटपटा सा लग रहा है।

“कितनी खूबसूरत हाे तुम – रजिया सुल्तान – माने कि साेफिया रीड – माने कि अमेरिकन जासूस ..” जफर ने मुझे अपनी बलिष्ट बांहाें में जकड़ लिया है। “लेकिन हम तुम पर फिदा हैं .. मेरी जान ..”

“और हम ताे तुम्हारे नाम के ही दीवाने हैं – मेरी बुलबुल।” कह कर अली हंसा है।

अब क्या है? मेरी जान ताे गई समझाे। पहले यह तीनाें मेरे साथ बलात्कार करेंगे और फिर ..? मैं सब कुछ समझ जाती हूं। मैं उचक कर जफर के जबड़े पर घूंसा मारती हूॅं। जफर की पकड़ तनिक ढीली हाे जाती है। लेकिन अली मुझ पर वार करता है। मैं उसका घुटना ताेड़ देती हूॅं। वह जमीन पर गिर जाता है। लेकिन अबरार ने मुझे पीछे से आ कर दबाेच लिया है। जफर भी उसकी मदद के लिए आ गया है। वह दाेनाें अब मुझे ललचाई निगाहाें से घूर रहे हैं। मैं फिर से अपनी पिस्ताैल खींच कर उन्हें धमकाती हूं। लेकिन पता नहीं कैसे अली पीछे से आ कर मेरी पिस्ताैल छीन लेता है। जफर ने एक बहुत लंबा चाकू निकाल कर मेरा दम सुखा दिया है।

“आज ताे जश्न हाेने दाे मेरी जान।” अबरार का आग्रह है। “याें लड़ने भिड़ने में क्या मिलेगा? हम तुम्हें अपना दाेस्त मान लेते हैं।”

मैंने क्राेध में आ कार अबरार के मुंह पर दाेनाें लात दे मारी हैं।

“धांय-धांय-धांय!” गाेलियां चलती हैं। मैं असमंजस में आ चाराें ऒर आंखें फाड़ कर देखती हूॅं।

तीन लाशें ठंडे हुए रेत पर बिछ जाती हैं। खून ताे बह रहा है लेकिन रेत उसे पीता जा रहा है – साथ-साथ।

“चलाे। पुलिस संभाल लेगी सब।” मूडी मेरी बांह पकड़ कर मुझे घसीटता है।

मेरा पहला ही मिशन फेल हाे गया है।

मेजर कृपाल वर्मा

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