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रजिया भाग 74

रज़िया, Razia

“जस्ट फ्यू मंथ्स माेर।” जालिम ने राेलेंडाे की आवाज सुनी थी।

अभी 9 दिसंबर था। 19 अप्रेल के आने में समय था। उससे पहले ताे 36 हजार टन ड्रग्स का कंसाइनमेंट जालिम के पास पहुंच जाना था – यह जालिम का अनुमान था। 19 अप्रेल की जन क्रांति में 36 हजार टन के ड्रग्स जनता में जुनून ला देंगे – जालिम मान रहा था। “उमड़ता जन सैलाब अमेरिका काे ही नहीं पूरी दुनिया काे डुबाे देगा।”

“गुलाम अली तुम ..?” अचानक सामने आए गुलाम अली काे देख जालिम चाैंका था। उसकाे बुलाया ताे न था, फिर गुलाम अली ..? “ये काैन है?” बगल में बुर्के में सजी वजी रजिया सुल्तान काे देख जालिम ने प्रश्न पूछा था।

जालिम काे अचानक हैदराबाद में मनाई रंगरेलियां याद हाे आई थीं।

“मजलूम एक शहजादी रजिया सुल्तान है, जनाब।” गुलाम अली ने काॅर्निश करते हुए अर्ज किया था। “आप की शरण मिले ताे ही ..?”

“क्याें ..?”

“मरहूम नवाब अली वर्दी खान – बंगाल के नवाब की पड़पाेती हैं हुजूर।” गुलाम अली बताने लगा था। “आज बे सहारा सड़क पर पड़ी हैं।”

“क्याें?”

“अरबाें खरबाें की जायदाद थी। सरकार मुकदमा जीत गई। केस इंग्लैंड में चल रहा था। अब ताे पाई राई कुछ भी पल्ले नहीं रहा। अकेली हैं।” गुलाम अली मुसकुराया था।

जालिम ने एक सरसरी निगाह से साेफे पर बुर्के में लुकी छिपी बैठी रजिया सुल्तान काे देखा था। उसका आधा पैर बुर्के से बाहर था। एक दम गाेरा चिट्टा पैर और गहरे लाल रचे पैर के नाखूनाें काे जालिम देर तक देखता रहा था, जब तक कि रजिया ने पैर काे अंदर बुर्के में खींच न लिया था।

“केस क्या था?” जालिम की आंखाें में एक सराेकार सुलगने लगा था। “किसी ने मदद क्याें नहीं की?”

“हुजूर, नवाब अली वर्दी खान की तीन बेटियां थीं। बेटा न था। अतः उन्हाेंने छाेटी बेटी के बेटे सिराजुद्दाैला काे गद्दी साेंप दी। इस पर मंझली बेटी घसीटी बेगम बिगड़ गईं।”

घसीटी बेगम का नाम सुन कर साेफी हंसी न राेक पाई थी। जालिम ने साेफी के कंठ स्वर सुने थे ताे उसका मन बावला हाे उठा था। जल तरंग सी थिरकती हंसी जालिम के आरपार हाे गई थी।

“फिर क्या हुआ?” जालिम जैसे नींद से उठ खड़ा हुआ था – उसने पूछा था।

“मुकदमा ब्रिटिश काेर्ट में 31 साल चला था, अंत में भारत सरकार जीत गई।” गुलाम अली ने उत्तर दिया था।

“लेकिन .. लेकिन सिराजुद्दाैला ने बहन की मदद क्याें नहीं की?” जालिम काे राेष चढ़ने लगा था।

“उसका भी अंजाम बुरा हुआ हुजूर।” गुलाम अली की आवाज डूबने लगी थी। “उसके साथ ताे और भी बुरा हुआ।”

“वाे कैसे?”

“सिराजुद्दाैला की बात अंग्रेजाें के साथ बिगड़ गई थी। उसने अंग्रेजाें काे बंगाल से निकाल बाहर किया था। लेकिन उसी के सगे मीर जाफर ने गद्दारी की और अंग्रेजाें से मिल गया। सिराजुद्दाैला काे हराया और कत्ल कर दिया।” गुलाम अली गंभीर था। “हिन्दुस्तान के इतिहास में ये दर्दनाक घटना ..”

“मीर जाफर ..?”

“गाेल गप्पाें और गद्दाराें के लिए ताे हिन्दुस्तान कभी से बदनाम रहा है हुजूर।” गुलाम अली ने मजाक मारा था ताकि जालिम का राेष ठंडा पड़ जाए। “मैं चलता हूँ – जाे इनाम ..?” गुलाम अली ने जालिम की आंखाें काे पढ़ा था। “मूंह मांगा मिलेगा।” गुलाम अली बाहर निकल आया था।

न जाने क्याें और कैसे जालिम के सामने राेलेंडाे नहीं लाॅर्ड क्लाइव आ खड़ा हुआ था। जंग आरंभ हुई थी। वार पर वार हुए थे। सिराजुद्दाैला इस बार हारना न चाहता था। इस बार ताे वह अमेरिका काे परास्त कर दुनिया में अपनी सल्तनत कायम करना चाहता था। 19 अप्रेल अब दूर न थी। सारी तैयारियां मुकम्मल थीं। लेकिन लाॅर्ड क्लाइव का फरेब, अंग्रेजाें की चालाकियां, अमेरिकन्स का फैला दुनिया में साम्राज्य उसे हर बार ही हरा देता था।

“बेगम।” अचानक जालिम ने रजिया बेगम काे पुकारा था। “नींद सता रही है।” उसने सबब बताया था। “जरा हमारा सर सहला दें ताे ..?” उसने आग्रह किया था।

बुर्के से बाहर आए रजिया के हाथाें पर मेंहदी रची थी। उंगलियाें के नाखून सिलवर पेंट से रचाए थे। जालिम ने रजिया के दाेनाें हाथाे काे चूमा था, आंखाें से लगाया था और साे रहा था अचेत – बे खबर, बेसुध!

जालिम गहरी नींद में अचेत सोया पड़ा था। कमरे में दूधिया प्रकाश फैला था। उस प्रशांत खामोशी के भीतर से नई चेतना उदय हो सोफी के अंतरमन में आ बैठी थी। अब उसे सूझ बूझ से चाल चलनी थी। जालिम नादान न था।

अगली तैयारी के तहत सोफी ने बाथरूम में जा कर घर्षण स्नान किया था। तन को, मन को और हर अंग प्रत्यंग को मल-मल कर धोया था। फिर पारदर्शना नाइटी पहन अपने आप को आदम कद शीशे के सामने खड़ी हो कर देखा था।

नारी सौंदर्य ने हंस कर सोफी को निहाल कर दिया था।

सोफी को अब जालिम के जगने का इंतजार था।

तभी कमरे की सर्विस बैल बजी थी। सोफी सजग हो गई थी। उसने कमरे के पीप होल से बाहर झांका था। उसे चाय की ट्रॉली नजर आई थी। सुबह हो चुकी थी। लेकिन ..

“फिर आना ..” सोफी कहना चाहती थी। लेकिन सामने खड़े राहुल को देख वह दंग रह गई थी। “तुम ..?” उसने बेहद धीमी आवाज में खुशी जाहिर की थी। “ठहरो।” सोफी ने तुरंत प्रपंच रचा था। उसने बाथरूम का भीतर वाला दरवाजा खोला था। चाय की ट्रॉली को राहुल ने बगल में खड़ा किया था। अब वो दोनों आमने-सामने खड़े थे।

राहुल सोफी के हुस्न को देखे जा रहा था, तो सोफी नएला बने राहुल को प्रशंसक निगाहों से देख रही थी।

प्रेमिल पलों का विस्तार युगों को भी अपने में समेट लेता है – ऐसा लगा था उन दोनों को। कितना कहा, कितना सुना – कुछ पता नहीं। क्या कहा – क्या सुना – मालूम नहीं। लेकिन ज्यों ही जालिम ने करवट बदली थी दृश्य भी बदल गया था।

कमरे की सर्विस बैल जालिम के जग जाने के काफी बाद बजी थी।

जालिम तो नए अंदाज में सजी वजी रजिया सुल्तान को ही देखे जा रहा था।

“चाय, कॉफी या जूस ..?” सलाम बजाने के बाद नएला ने पूछा था।

“चाय।” जालिम ने बिना रजिया से नजर हटाए ही आदेश दिया था।

नएला चाय बनाने लगा था तो सोफी ने रोक दिया था।

“चाय मैं बनाती हूँ।” रजिया बोली थी और चाय बना कर जालिम को पेश करते समय उसने जालिम की उंगलियों का स्पर्श प्लेट के नीचे से किया था।

जालिम कृतार्थ हो गया था।

“आप के लिए चाय मैं बनाता हूँ।” नएला ने रजिया बेगम को चाय बनाने से रोका था।

“इसे हमने दिल्ली से अभी-अभी खरीदा है।” जालिम ने रजिया को बताया था। “शहंशाह जहांगीर से रिश्ता है इसका।”

“सच?” रजिया सुल्तान ने आश्चर्य जाहिर किया था तो जालिम प्रसन्न हो गया था।

और नएला ने चाय देते वक्त रजिया सुल्तान की उंगलियों का स्पर्श किया था – प्लेट के नीचे से।

लेकिन ये स्पर्श कोई प्रेमिल स्पर्श न था। ये राहुल का एक महत्वपूर्ण स्वीकार था।

“दि ट्राइंगल इज क्लोज्ड।” राहुल का संदेश था। “अब टारगेट रोलेंडो, रजिया और नएला के बीच में खड़ा है। लेकिन इसे मारना नहीं है। इसे बंदी बना कर अमेरिका को सोंपना है। लेकिन कैसे?” अहम प्रश्न सामने खड़ा था।

“मुख्य भूमिका मेरी है।” सोफी मान रही थी। “लेकिन .. लेकिन कैसे ..?” उसके पास कोई उत्तर न था।

समय बहुत कम रह गया था। 19 अप्रैल से पहले-पहले मिशन स्पाई फ्रंट पूरा होना था।

“कैसे बचाएगी सोफी अपने आप को जालिम से?” राहुल की चिंता थी। उसे यों सोफी को निहत्था जालिम के सामने खड़ा करना अच्छा न लगा था।

“जालिम – शायद हम तीनों के वश में भी न आएगा – फिर उसे बंदी बना कर ..?” मूडी भी चिंता मुक्त न था।

शिकार सामने खड़ा था, निडर, लेकिन शिकारी थर-थर कांप रहे थे।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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