बरनी और मखीजा की वजह से स्पाई फ्रंट रुका खड़ा था।
जितने ज्यादा सर रॉजर्स परेशान थे उससे कहीं ज्यादा बरनी दुखी था और सबसे ज्यादा प्रेशर मखीजा पर आन पड़ा था। दिन रात एक करने के बाद भी मखीजा अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा था। वो और उसका सिंडीकेट पागलों की तरह पहाड़ों से लड़ रहे थे। उन्होंने हर संभव विचार को निरखा परखा था लेकिन नतीजा कुछ न निकला था।
“लगता है हम सब पागल हो जाएंगे।” मखीजा ने माथे का पसीना पोंछा था। “समझ नहीं आ रहा कि ये मामला क्या है?” वह गहरी दुविधा में पड़ा था।
मखीजा जानता तो था कि किसी भी अनुसंधान में कितना भी समय लग सकता था। लेकिन यह अनुसंधान नहीं एक सामरिक जरूरत थी। वक्त कम था और प्रश्न अमेरिका की सुरक्षा का था।
सुबह का सूरज चढ़ आया था। सिंडीकेट काम पर लगा था। लेकिन मखीजा माथा पकड़ स्टूल पर बैठा अपने आप को कोस रहा था। वह वैज्ञानिक तो था पर कोई जादूगर नहीं था। जबकि बरनी सर को उससे उम्मीद थी कि वो ..
“दिख गया। दिख रहा है, सब कुछ दिख रहा है – गांव .. पंछी .. आदमी सब कुछ।” टिम्मी शोर मचा रहा था। वह नाच-नाच कर, उछल-उछल कर कह रहा था, “दिख रहा है सब कुछ। मुझे सब कुछ दिख रहा है सर।”
“लो एक तो पागल हो गया।” जिम्मी बोल पड़ा था। “अब बारी-बारी सब पागल होते जाएंगे।” उसने डरते-डरते कहा था।
मखीजा का मौन टूटा था। उसने टिम्मी को चीखते चिल्लाते सुन लिया था। उसने टिम्मी के पास जाकर उसे छूआ था। वह नॉर्मल था।
“क्या दिख रहा है टिम्मी।” मखीजा ने शांत स्वर में पूछा था।
“सब कुछ दिख रहा है सर।” टिम्मी ने भी शांत भाव से कहा था। “वो रहा गांव। वो देखो पंछी, उधर आदमी हैं, सब आ जा रहे हैं।”
“तुम क्या कर रहे थे?” मखीजा ने फिर पूछा था।
“मैं नदी से पानी लेने जा रहा था। रास्ते में पता चला कि मैं तो छागल ही भूल कर आ गया हूँ। पानी कैसे लाता? मैं लौटा। तब मुझे सब दिखने लगा सर।”
“कहां से लौटे थे?”
“उस .. उस भूरी चट्टान के पास से।”
“ओके। जिम्मी तुम जाओ भूरी चट्टान तक और लौटो।” मखीजा ने आदेश दिया था।
जिम्मी भूरी चट्टान तक गया था और लौटा था।
“मुझे भी सब दिख रहा है सर।” जिम्मी वहीं से चीखा था। “सब कुछ साफ-साफ दिख रहा है। गांव .. आदमी, पंछी और सब कुछ।”
मखीजा का चेहरा खिल उठा था। मखीजा को जच गया था कि उसकी खोज हो चुकी थी।
उसके बाद तो सब कहानी थी। मखीजा ने उसे एक खोज का नाम दे दिया था। उसने तुरंत बरनी को कोड पर सूचना दे दी थी।
लेकिन बरनी अपने आप को ठीक से न कह पा रहा था। सर रॉजर्स बिगड़ गए थे। “मूडी, यू गो एंड कंफर्म द न्यूज।” उनका आदेश था। “तुमने समर कोट का जंग तो लड़ना ही है, माई बॉय। सब कुछ ठोक बजा कर देखो भालो। एंड गिव मी द रिपोर्ट।” उनका अगला आग्रह था।
मूडी भी चाहता था कि जाकर देख ले कि आखिर माजरा क्या था।
“इसका मतलब तो है कि अमेरिका के स्टार्स अब बुलंदी पर हैं, माइक ने कहा था।”
“यू आर लक्की बरनी सर।” सभी ने बरनी से गर्मजोशी से हाथ मिलाया था। “मुझे तो बड़ी चिंता थी, सच।” माइक ने हंस कर कहा था।
“मैं तो पागल होने को था यार।” बरनी ने अपनी कह सुनाई थी। “हुआ क्या है मैं तो अभी तक मुगालते में हूँ।”
“नहीं-नहीं। ट्रस्ट मखीजा।” माइक ने राय दी थी। “ही इज ए ऑनैस्ट सोल।” माइक का कहना था। “ये लोग ब्लफ नहीं मारते।”
सर रॉजर्स की प्रसन्नता का ठिकाना न था।
“तुम्हारा काम अब आसान हो जाएगा सोफी।” उन्होंने विहंस कर अपनी बेटी को आशीर्वाद दिया था।
“नएला भाई।” हाकिम साहब की आवाज खुश और खुली थी। “तुम्हारे इम्तिहान की घड़ी आन पड़ी है।” उन्होंने राहुल को भरपूर निगाहों से देखा था। “7 दिसंबर को हमारे खास मेहमान आ रहे हैं।” उन्होंने सूचना दी थी। “अब देखना होगा कि तुम उन्हें क्या खिलाओगे, कब-कब खिलाओगे और कैसा-कैसा खिलाओगे?” हंस रहे थे हाकिम साहब।
“जालिम।” राहुल ने मन के मनके को घुमा कर जान लिया था कि हो न हो जालिम ही आ रहा हो। जरूर जालिम ही था। अचानक उसे सोफी याद हो आई थी। चिंता रेखाएं राहुल के चेहरे को छू कर भाग गई थीं।
“डर गए नएला भाई?” हाकिम साहब ने पूछा था।
“न .. न नहीं। मैं डरता नहीं हूँ।”
“तो क्या मां की याद आ गई?” हंसे थे हाकिम साहब। “बड़े भाई। ऐसा मत करना। हम कहीं के न रहेंगे।”
“मां तो मर गई, हाकिम साहब।” राहुल की आवाज में दर्द था। “अब तो निपट अकेला हूँ। उम्र भर आपकी सेवा करूंगा।”
“वो तो अलग बात है भाई। लेकिन ये मौका खास है।” चहके थे हाकिम साहब। “ये आने वाला कोई आम नहीं खास है। दुनिया का मालिक ही मानो। अगर तुमने ..”
“मैं .. मैं तो अपनी जान लडा दूंगा हाकिम साहब।”
“जान नहीं अक्ल लड़ानी होगी, नएला भाई। जो-जो तुमने मुगलई खानों के नाम मुझे बताए, वही नाम उसे भी बताना। फिर बारी-बारी एक-एक बना कर खिलाना। साथ में यह भी बताना कि बादशाह जहांगीर कौन-कौन से खाने के शौकीन थे।” रुके थे हाकिम साहब।
अचानक ही हाकिम साहब को कुछ याद आ गया था। नएला ने बताया था हां-हां वही एक बात। हाकिम साहब पलट कर बोले थे। “बादशाह जहांगीर बाजरे की खिचड़ी बेहद पसंद करते थे – ये उन्हें मत बताना नएला। बताया तो सारा नवाबी का नशा उतर जाएगा उनका।”
“खयाल रक्खूंगा हाकिम साहब।” राहुल ने वायदा किया था।
“हफ्ते दस दिन का प्रोग्राम होगा।” हाकिम साहब ने अगली सूचना दी थी। “बड़े शौकीन हैं। उनके शौक निराले हैं। आदमी तो गजब हैं लेकिन हां एक खोट तो है।”
“क्या?” राहुल ने पूछा था।
“औरत।” हाकिम साहब ने दांती भींच कर बताया था। “औरत देखते ही पागल हो जात है ये आदमी। हैवान लगता है जब पी-पा कर औरतों की चीड़-फाड़ करता है। औरतों की चीख पुकारों से पूरा दफतर खान भर जाता है।” वो चुप हो गए थे।
राहुल ऊपर से नीचे तक हिल गया था। उसे सोफी की चीख चिल्लाहटें सुनाई देने लगी थीं। वह बुरी तरह से उद्विग्न हो उठा था। उसे एक बारगी बाह्यात लगा था – सोफी को उस नर भक्षी के सामने पेश करना। उसका मन आया था कि सारा बानक बिगाड़ दे और सोफी को ले कर नीमो की ढाणी चला जाए। लेकिन ..
“तुम एक बार दफ्तर खान देख लो नएला। एक बार सब चमकाने को कहो और अगर कोई कमी बेशी हो तो मुझे बताओ। इसमें तुम्हारी जिम्मेदारी बड़ी है। ये वी आई पी लोग कभी कभार आते हैं। लेकिन जब भी आते हैं – निहाल करके जाते हैं।” तनिक हंस गए थे – हाकिम साहब।
राहुल ने दफ्तर खान को पहली बार जा कर देखा था।
पीछे के बगीचे के नीचे बना था अनडरग्राउंड दफ्तर खान।
दफ्तर खान में सब ठाठ-बाट था। हर अइयाशी हाजिर थी। हर तरह की सुविधा थी। हर काम लोगों की नजरों के नीचे होता था। होने वाले कारनामों की खबर डब्बा बंद हो जाती थी। हाकिम साहब भी बहुत ही गहरा आदमी था। वह हर कुकर्म के ऊपर से निकल जाता था। उसके मन में कोई दया भाव न था। वह भी जल्लाद ही था – राहुल ने समझ लिया था।
“अगर सोफी को कुछ हुआ तो मैं .. खून पी लूंगा साले का।” राहुल बुदबुदाया था। उसका माथा घूम गया था।
“होश्यारी से काम करना होगा नएला।” हाकिम साहब की आवाज थी। “तनिक सी चूक पर ही इन लोगों का दिमाग बदल जाता है।” उन्होंने नएला को बतलाया था।
मुझे भी पहले अपने बारे में सोचना होगा – हाकिम साहब, कह कर राहुल बाहर चला गया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

