रघुनाथन के लिए दरबार से बुलावा आ गया था।
रघुनाथन घबरा रहा था। वह दौड़ कर कालिया के पास पहुंचा था। उसकी जुबान सूख गई थी। वह बोल नहीं पा रहा था।
“क्या हुआ?” कालिया ने पूछा था।
“दरबार ..! बुलावा ..” रघुनाथन इतना ही बोल पाया था।
कालिया हंस पड़ा था। उसे भी कभी जालिम से इतना ही डर लगा था। उस दिन लगा था – जान जाएगी। लेकिन वो जी गया था – अपनी हिम्मत पर।
“डरते क्यों हा?” कालिया ने उलाहना दिया था। “जाओ और कह दो अपनी कहानी।”
रघुनाथन को थोड़ा होश लौटा था। उसने याद किया था कि उसे संदेश क्या देना था।
जालिम के दरबार की शोभा देख रघुनाथन दंग रह गया था। सोने के सिंहासन पर बैठा जालिम जंच रहा था। उसके सर पर पहना आज दूसरा मुकुट था – जो बेशकीमती था। रघुनाथन को लगा था कि ये समर कोट अवश्य ही कोई पुराने जमाने का शहर था। और जालिम भी किसी पुराने कुल की वंश बेल था।
“संदेश।” दरबारी ने मांग की थी। “शहंशाह सुन रहे हैं।” उसने घोषणा की थी।
“हुजूर।” रघुनाथन ने हाथ जोड़ कर संदेश दिया था। “नौ दिसंबर हैदराबाद हाउस, नम्बर चार। रात के दो बजे।” रुका था रघुनाथन। उसने संदेश का दूसरी हिस्सा याद किया था। “36 हजार टन माल गोआ पहुंचेगा।” रघुनाथन हिम्मत बटोर कर बोला था।
“कब?” प्रश्न जालिम की ओर से आया था।
“समुद्री मार्ग से जहाज से आना है। रास्ते में रुकावट बहुत है। काम जोखिम भरा है। समय लगेगा।” रघुनाथन ने हिम्मत बटोर कर आहिस्ता-आहिस्ता अपनी पूरी बात कह दी थी।
“सौदा?” जालिम की ओर से पूछा था।
“कैश या काइंड का सौदा – पेमेंट माल मिलने पर।” रघुनाथन ने तुरंत उत्तर दिया था। “माल हमारे एजेंट्स खपाएंगे – कमीशन ले कर।” रघुनाथन ने अंतिम सूचना दी थी।
जालिम का चेहरा खिल उठा था। रघुनाथन ने महसूस किया था कि जालिम की पिंडी देव तुल्य थी जबकि वो था तो निरा राक्षस।
“सौदा कौन करेगा?” जालिम का अंतिम प्रश्न आया था।
“रोलेंडो।” रघुनाथन भी उत्तर न भूला था। रोलेंडो का नाम उसने अब तक जान मान कर न लिया था।
मात्र रोलेंडो के नाम को सुन कर जालिम के कठोर चेहरे पर कोमल भाव दिखाई दिए थे।
जालिम को आज का दिन अपने पुनर्जन्म का दिन जैसा लगा था।
अब जालिम को तनिक भी शक न था कि वो पूरे संसार का सम्राट बनेगा। अमेरिका को परास्त करने के लिए डॉलर की हवा जहां सोने की दुअन्नियां इकन्नियांओं ने निकाल देनी थी, वहीं अब नशे का अजेय हथियार अमेरिका की नैया डुबो देगा। हारेगा अमेरिका – इन दो अमोघ अस्त्रों के सामने, और टिक न पाएगा वह, जालिम मान रहा था।
“मेरे लिए हुक्म?” रघुनाथन ने कांपते कंठ से पूछा था।
“हमें सौदा मंजूर है।” जालिम ने मुसकुराते हुए घोषणा की थी। “रोलेंडो को हमारा सलाम देना।” कह कर जालिम सिंहासन से उठ गया था।
रघुनाथन का भी जैसे पुनर्जन्म हुआ हो – उसने अपनी काया को छू-छू कर देखा था। एक जंग जीती थी रघुनाथन ने, अपने सुनहरे भविष्य का रास्ता साफ कर लिया था उसने। उसे भी अब धन वान और महान होने से कोई रोक नहीं सकता था – वह समझ रहा था।
हिम्मत बहादुर तो हो भाई – कालिया ने हंस-हंस कर रघुनाथन को बधाई दी थी।
संसार का साम्राज्य आज उठ कर जालिम की मुट्ठी में बंद हो गया था।
“आई एम ए बॉर्न बादशाह।” जालिम ने जयघोष किया था।
जालिम को आज लगा था कि समूचा भूतल उसके जयघोष को सुन कर हिल गया था। उसे अब कोई शक न था कि वो अब चराचर का स्वामी होगा। रोलेंडो के साथ समझौता होने के बाद तो उसे न कोई रोक पाएगा, न टोक पाएगा। अमेरिका अकेला रह जाएगा और इस नई जंग में मुंह की खाएगा।
अचानक जालिम को अमेरिका के पुराने जंग खाए हथियार दिखाई दे गए थे। वह जोरों से हंसा था। वह हंसता ही रहा था। बारूद का अब कोई अस्तित्व नहीं रहा – जालिम ने स्वयं को बताया था। भूत विद्या मल्लही बारह बरस चल रही। युग समाप्त हुआ बारूद का – जालिम प्रसन्न था। अब तो इक्कनियां लड़ेंगी, गिन्नियां जीतेंगी और नशे में बेहोश आदमी बेपरवाह हुआ खुला डोलेगा।
सिक्का अब जालिम का चलेगा – वह सोचता रहा था। सल्तनत जालिम की जमेगी – उसका दृड विश्वास था। उसके ग्यारह शहजादे और शहजादियां राज करेंगे। पुराने-धुराने नेताओं की बस्तियां अब उजड़ जाएंगी। धरा को फिर से बसाएंगे समर कोट के लोग। ये युग का आरंभ होगा।
“तो क्या .. तो क्या तुम दिल्ली को भी तोड़ोगे?” एक अनूठा प्रश्न जालिम के दिमाग में उगा था। “और हैदराबाद पुन: उसके ध्यान में आया था। हैदराबाद नहीं-नहीं ..” उसका मन डोल गया था। “हरगिज नहीं।” उसने मन को समझाया था। “ये दोनों तो मक्का मदीना हैं मेरे लिए। इनके बिना मैं जीऊंगा कैसे?” वह सोच में पड़ गया था।
अचानक ही जालिम की नजरों के सामने दिल्ली का होटल व्योम बसेरा और हैदराबाद का हैदराबाद हाउस उठ खड़े हुए थे। वहां से उठ कर एक मादक सुगंध फौरन ही जालिम के पास पहुंच गई थी। बहुत दिन हुए उसे बिन छूए – जालिम को याद आया था।
दिन में गंदी-संदी दिखने वाली पहाड़ गंज की गलियां कैसे रात में जगमगा उठती थीं – जालिम को याद आ रहा था।
माल पटाते ग्राहक और ग्राहक को पटाते ऐजेंट – कोई स्वर्ग की नर लीला जैसी थी, जिसे देख कर हर कोई सेक्स की सुगंध में डूब-डूब जाता था।
“तरन्नुम बेगम बूढ़ी हो गई थी।” अचानक जालिम को आज एहसास हुआ था। “लेकिन उसका मन अभी तक नहीं डूबा था। छूट भाग कर सीधा दिल्ली-हैदराबाद चला आता था। “तरन्नुम बेगम अब याद ही नहीं आती थी।” जालिम ने माना था। “घोड़े पछाड़ हुस्न था कभी तरन्नुम बेगम – ऊर्फ राज रानी यशोघरा का।” हंसा था जालिम। “और राजाधिराज गंधर्व सैन एक दिव्य पुरुष थे।” उसे आज सब कुछ याद आता जा रहा था। “भाग्य में जो लिखा होता है वो तो भगवान देते ही हैं।” जालिम ने अंतत: मान लिया था। “अब संसार का स्वामी बनने का स्वप्न भी पूरा हो जाएगा।” जालिम का मन आज बल्लियों कूद रहा था।
“क्या तारीख दी थी रघुनाथन ने?” जालिम ने स्वयं से प्रश्न पूछा था। “9 दिसंबर?” उसने स्वयं ही उत्तर दिया था। “नहीं-नहीं।” जालिम ने सर हिलाया था। “9 दिसंबर कैसे हो सकती थी तारीख।” वह बिलबिलाया था। “9 दिसंबर तो ..”
लगा था – जालिम कहीं भूल कर रहा था।
लेकिन 9 दिसंबर की तारीख हर सरकारी किताब के पन्नों पर जा लिखी थी।
एक बेचैनी ने जालिम को पकड़ लिया था। दिल्ली और हैदराबाद के दलाल उसे सताने लगे थे। रह-रह कर उसे हाकिम साहब का होटल – व्योम बसेरा और वहां चारों ओर घिर आई कच्ची-कच्ची वो कलियां, तितलियां और .. और अदाकाराएं ..
और फिर हैदराबाद में उसकी पसंद ढूंढ लाने में बावला हुआ गुलाम अली ..?
“खबर तो भेजनी होगी दिल्ली और हैदराबाद ताकि वो लोग तैयारियां कर लें।” जालिम ने तय कर लिया था। लेकिन, लेकिन 9 दिसंबर तो अभी बहुत दूर था। “तब तक मैं कैसे जीऊंगा मेरे मौला।” जालिम अधीर था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड