Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

रजिया भाग 65

रज़िया, Razia

सामने रोड थी जिसके पार रघुनाथन को कुछ-कुछ दिखाई देने लगा था।

सामने बहती नदी पर लकड़ी का पुल बना था। नदी का पानी शीशे सा साफ था। सामने के पहाड़ जंगलों से भरे महक रहे थे। मोहक सुहाती सुबास रघुनाथन को तरो ताजा कर गई थी। अचानक ही वह एक प्रसन्नता से भर उठा था।

उसने बड़ी ही सावधानी से लकड़ी के पुल को पार किया था।

सामने एक ही रास्ता था। वह उसी पर चल पड़ा था। अचानक एक आवाज सुनाई दी थी।

“सीधे चले आओ मित्र।” रघुनाथन सुन रहा था। “जो भी पहला आदमी मिले उससे कहना – रोलेंडो। वह तुम्हें मेरे पास पहुंचा देगा।” सामने की सड़क बंद हो गई थी।

रघुनाथन तनिक सहमा था। वह डर गया था। उसे लगा था जैसे वो कोई स्वप्न देख रहा था।

जो पहला आदमी रघुनाथन को मिला था उसे देख कर भी वह डर गया था। लंबा चौड़ा आदमी था। संगमरमरी देह पर यूनानी फीचर्स देख रघुनाथन उसे कई पलों तक देखता ही रहा था। काले घुंघराले बाल थे। बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें थीं। तोते जैसी नाक थी। बड़ा ही मोहक लग रहा था वो आदमी।

“रोलेंडो।” रघुनाथन ने कहा था।

“आइए।” उस व्यक्ति ने कहा था और रघुनाथन की अगवानी में जुट गया था।

रघुनाथन आंखें फाड़े-फाड़े उस नए परिवेश को गौर से पढ़ रहा था।

गांव थे लेकिन मकान ईंट गारे से नहीं बने थे। उन पर सुनहरे रंग रोगन की बड़ी ही सुंदर और मोहक कढ़ाई बनी थी। लोग भी बड़े ही ह्रष्ट-पुष्ट, गोरे, आकर्षक और दिव्य लग रहे थे। कहीं-कहीं रघुनाथन ने काठ की बनी गाड़ियां भी देखी थीं। गाड़ियों को जिराफ जैसा एक लंबा तगड़ा जानवर खींच रहा था। विचित्र देश था।

शहर को देख कर तो रघुनाथन सकते में आ गया था। सोने का बना शहर तो उसने जीवन में आज पहली बार ही देखा था। सुना तो था कि लंका सोने की बनी थी या कि कृष्ण की द्वारका भी सोने से निर्मित थी। लेकिन आज तो ..? वह उस आदमी से प्रश्न पूछना चाहता था लेकिन चुप ही बना रहा था।

“आओ दोस्त।” अचानक उसके स्वागत में सामने आ खड़ा एक आदमी निरा देसी दिख रहा था।

उस गुंडे मवाली जैसे आदमी को देख रघुनाथन को शक हुआ था कि वह जरूर ही चोरों के हाथ लग गया था।

“जान बच जाएगी अब।” वह आदमी बोला था। “वरना तो कल ही कत्ल हो गया होता।” उसने तनिक मुसकुराते हुए कहा था।

“क्या मतलब?” रघुनाथन का जैसे खून सूख गया था।

“शक हो गया था हम पर।” वह आदमी बता रहा था। “मैं कालिया हूँ। रोलेंडो का संदेश ले कर यहां आया था। लेकिन ..”

“अब तो आ गया रोलेंडो।” कह कर रघुनाथन ने लंबी सांस ली थी।

“कुछ लाए हो?”

“हां-हां।” रघुनाथन ने सर हिलाया था।

“बहुत बेसब्री से इंतजार है तुम्हारा।” कालिया ने बताया था। “तोते की जान अब तुम्हारे हाथ में है।” कह कर वह हंस गया था।

बतासो ने जब बेगम तरन्नुम को रोलेंडो के आगमन की सूचना दी थी तो उन्होंने बतासो को गले लगा लिया था।

समर कोट में एक उल्लास जैसा भरने लगा था। रोलेंडो के मात्र आगमन की खबर से जालिम के मंसूबों को आकाश में उछाल दिया था। उसे विश्वास हो गया था कि जो कालिया और बतासो संदेश लाए थे वो सही था।

जालिम रोलेंडो की आई खबर को खुशखबरी के तौर पर ऐलान कर देना चाहता था।

रघुनाथन को शाही महल में ठहराया गया था। उसकी खातिर खुशामद में कई लोग लगे थे। जालिम ने अपने आप को खबरदार किया था। चारों ओर से शहर की सुरक्षा का बंदोबस्त किया था। सूचनाएं भेजी गई थीं कि एक व्यक्ति रोलेंडो की सूचना ले कर आया था। उस पर भी निगरानी बिठाई जाए।

कालिया और बतासो बेहद प्रसन्न थे। उन्हें जंच गया था कि अगर रोलेंडो का कोई संदेश नहीं आता तो उनकी गर्दन कट जाती। जालिम को शक होने लगा था। समय बीत रहा था लेकिन रोलेंडो आ कर ही न दे रहा था।

मन की मुराद जैसे पूरी हुई हो जालिम अब जश्न मनाना चाह रहा था।

लेकिन रघुनाथन अब और भी सकते में आ गया था।

समर कोट में पहुंच रघुनाथन अनेकों आश्चर्यों से लबालब भरा था।

रघुनाथन नारको ऐजेंट था, उसने दुनिया देखी थी। उसने भला बुरा सब देखा था। वह हर अच्छे बुरे से परिचित था। लेकिन जो उसने समर कोट में आ कर देखा था वह तो बेजोड़ था, बेमिसाल था और अलौकिक ही था।

“बाहर वालों को रहने नहीं देते समर कोट में।” कालिया उसे बता रहा था। “मैं और बतासो इसलिए जिंदा हैं कि रोलेंडो का जालिम को इंतजार है। वरना तो अभी तक हमें कभी का कत्ल कर दिया जाता। बेरहमी से मारते हैं बाहर वालों को।”

“क्यों?” रघुनाथन सतर्क था।

“इसलिए कि ये नहीं चाहते कि इनकी नस्ल में, इनकी सभ्यता में और इनके देश में बाहर का कोई दखल पड़े। ये स्वयं में स्वच्छ और समृद्ध बने रहना चाहते हैं।”

“लेकिन कब तक?” रघुनाथन ने मार्मिक प्रश्न पूछा था। उसने तो दुनिया देखी थी।

“मुझे क्या पता भाई!” कालिया ने हाथ खड़े कर दिए थे। वह तो सीधा सादा उटवारिया था।

रघुनाथन ने निगाहें भर-भर कर समर कोट को भीतर बाहर से बार-बार देखा था।

मौसम भी समर कोट में अलग ही था। एक बड़ी ही स्वच्छ, साफ और पवित्र हवा थी और कहीं कोई प्रदूषण न था। कोई गंदगी या किसी प्रकार की बदबू कहीं न थी। एक सुगंध थी – शायद समर कोट के वन प्रदेशों से चल कर आ रही थी और गांव और शहरों में भरती चली जा रही थी। समर कोट के लोगों के इतने अच्छे स्वास्थ का शायद यही कारण था।

समर कोट के लोग असाधारण थे। गरीबी जैसा यहां कुछ न था। बेकारी की कोई समस्या भी न थी। एक सुंदर और सुगठित समाज था।

“मुझे … मेरे लिए … मेरा मतलब कि …” रघुनाथन ने कालिया से कुछ पूछना चाहा था।

“जश्न के बाद बुलाएंगे तुम्हें।” कालिया ने बताया था। “हमें जश्न में शामिल नहीं करेंगे।” वह हंसा था। “वैसे इनका जश्न होता बड़ा जाएकेदार है।” कालिया फिर हंस गया था।

“कैसे?” रघुनाथन ने भी आनंद लूटना चाहा था।

“ये लोग वारुणी पीते हैं। ये इनकी अपनी बनाई शराब है। स्त्री पुरुष सभी पीते हैं। राज के जश्न में औरतें पारदर्शी परिधान पहन का नाचती हैं। परियों का सा जमघट लगता है। जालिम उनके बीच आ कर नाचता है और अन्य लोग भी शामिल होते हैं। नाचते-नाचते जालिम जिस स्त्री के कंधे पर हाथ रख देता है वह उसकी हो जाती है।”

“और बाकी …?” रघुनाथन ने पूछा था।

“यहां सब स्वतंत्र हैं। कोई भेद भाव नहीं है। स्त्री की मर्जी है, वो चाहे जिसे चुने। उसे कोई बाध्य नहीं करता।”

“ये तो गजब है भाई!” रघुनाथन जोरों से हंसा था। “ये समाज आज का तो नहीं लगता बड़े भाई।”

“हमारे में इतनी बुद्धि नहीं है, ऐजेंट साहब।” कालिया मुसकुराया था। “हमें देखना बहुत अच्छा लगता है। मन तो करता है कि ..?”

“लेकिन मजबूरी है।” रघुनाथन ने अपने अंदर के भाव व्यक्त किए थे। “मेरा मन भी करता है कि … यहीं रहूं, इन्हीं के साथ गाऊं, इन्हीं की तरह जीऊं और उस अपनी दुनिया के झमेले में कभी लौट कर न जाऊं। लेकिन …”

“बड़े ही बेरहम हैं ये लोग। बाहर वालों की बोटी-बोटी काट कर चील कौवों को खिलाते हैं। मैं भी पहले यहां जल्लाद का काम करता था। बड़ा बुरा लगता था। लेकिन अब न जाने कब तक जिंदा रहना पड़े और …”

“मतलब कि ये लोग मुझे भी मार डालेंगे?” रघुनाथन ने अहम प्रश्न पूछा था।

“नहीं। तुम से तो काम लेना है न! जब तक मतलब है, तब तक तुम हो।” हंसा था कालिया। “बाकी तो ऊपर वाला जाने ऐजेंट जी।”

रघुनाथन कालिया के इस कथन से कुछ समझ नहीं पाया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Exit mobile version