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रजिया भाग 59

रज़िया, Razia

माइक के स्वागत में सर रॉजर्स दिल दिमाग खोल कर बैठे थे।

“और कैसा रहा ब्लाडी बोस्टक का मिशन?” सर रॉजर्स ने माइक का हार्दिक स्वागत करते हुए पूछा था।

“मैं तो कहूंगा सर ये एक अनमोल अनुभव रहा।” माइक ने तनिक मुसकुराते हुए उत्तर दिया था। “वहां तो हर रोज जैसे एक नया सूरज उगता हो – ऐसा लगता है सर।”

“जालिम आया ..!” सर रॉजर्स ने सीधा प्रश्न पूछा था।

“आया।” माइक ने भी सीधा उत्तर दिया था। “उजागर भी हुआ था। एक नए सूरज सा जालिम – सच मानिए सर मैं तो उसे देख कर दंग रह गया था।”

“क्यों?”

“क्योंकि वो मानव नहीं महा मानव है।” माइक के चेहरे पर वही आश्चर्य धरा था जो उसने जालिम को देखते ही महसूस किया था। “लंबी चौड़ी कद काठी, घुंघराले काले बाल, सतेज आंखें और मस्त गजराज की उसकी चाल चलगत ने मुझे हैरान कर दिया था।”

माइक चुप हो गया था। सर रॉजर्स भी चुप थे। दोनों के दिमागों में जालिम अलग-अलग दो दिशाओं में सफर कर रहा था। सर रॉजर्स को अब जंच गया था कि जालिम वास्तव में ही एक बड़ी चुनौती था।

“क्यों ..?” सर रॉजर्स ने फिर प्रश्न पूछा था।

“सच कहता हूँ सर – मुझे लगा था जैसे जालिम गोट द होल वर्ल्ड अन्डर हिज बैल्ट।” स्पष्ट बयान दिया था माइक ने। “यह नहीं कि हम कमजोर हैं, या अमेरिका कहीं से छोटा पड़ता है, लेकिन यह कि जालिम का बॉडरलैस वर्ल्ड की परिकल्पना के साथ उसके हाव-भाव मेल खाते हैं। मैंने ऐसा लीडर जीवन में पहली बार देखा है।” माइक चुप हो गया था।

“और शायद ये आखिरी बार ही हो?” सर रॉजर्स तनिक मुसकुराए थे।

माइक ने सर रॉजर्स की दलील को ठुकराया नहीं था। क्योंकि सर रॉजर्स एक अनुभवी जनरल थे और उन्होंने विश्व युद्ध लड़ती दुनिया का हर ऊंच नीच देखा था और सहा था। लेकिन जालिम द्वारा पैदा किया व्यामोह अभी भी माइक के दिमाग में मरा नहीं था।

“थर्ड वर्ल्ड को जालिम पूरी तरह प्रभावित कर चुका है। उसके ग्यारह बेटे और बेटियां उसके मिशन को कामयाब बनाने में दिन रात कार्य रत हैं। वो सभी ब्लाडी बोस्टक में हाजिर थे। मैंने उन सब का फोटो और परिचय प्राप्त कर लिया है।” माइक ने एक जरूरी सूचना दी थी।

“गुड।” प्रसन्न हुए थे सर रॉजर्स। “ये सराहनीय काम हुआ।” सर रॉजर्स ने माइक की प्रशंसा की थी।

“रूस, चीन और वियतनाम के फहराते झंडों से लग रहा था कि कम्युनिस्ट ब्लॉक उसके साथ है। सिर्फ अमेरिका और यूरोप को उसे फतह करना है। शेष सब तो उसकी मुट्ठी में आ चुके हैं।” माइक ने अगला खुलासा किया था।

सर रॉजर्स की त्यौरियां चढ़ गई थीं। मात्र सूचना से ही सिद्ध हो गया था कि ये मिशन शांति में क्रांति था। और इसे फतह करने के लिए अमेरिका को ग्लोबल सहयोग का सहारा लेना ही होगा।

“हमारा मित्र कौन है?” सर रॉजर्स ने माइक से अहम प्रश्न पूछा था।

“सच कहूं सर तो वहां जमा सतरंगी भीड़ में मुझे अपना मित्र कहीं भी नजर नहीं आया। यहां तक कि मैंने भारत से आए कुछ लोगों को भी उस भीड़ में ..” चुप हो गया था माइक।

सर रॉजर्स के चेहरे पर चिंता रेखाएं उभर आई थीं।

“क्या है जालिम की जाति, धर्म, भाषा और उसका रंग-रूप?” सर रॉजर्स ने अगला सूत्र तलाशा था।

“नन।” संक्षेप में माइक ने बताया था। “वह किसी भी धर्म को नहीं मानता। वह जात पांत में भी विश्वास नहीं रखता। उसके लिए उसका पूरा विश्व मानव धर्म मानता है और मानेगा। वह वन वर्ल्ड बनाने का सपना पाले है।”

“और समय ..?” सर रॉजर्स ने एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा था।

“उनकी अगली मीटिंग अब आठ महीने के बाद है।” माइक ने उत्तर दिया था। “अभी सितंबर है, आठ महीने मतलब कि मई और छह महीने माने तो ..”

“छह महीने ही मानते हैं।” सर रॉजर्स समझ रहे थे। “माने समय बहुत थोड़ा है।” उन्होंने अगला इशारा किया था। “मीन्स अमेरिका शुड गो हैल फॉर लैदर एंड ऑल आउट।”

“यस सर।” माइक भी मान गया था।

सर रॉजर्स को अपने चारों ओर रण भेरियां बजती सुनाई देने लगी थीं।

आज जीवन में पहली बार था जब लैरी अपने भीतर के उठते अतिरेक से पूरी सामर्थ्य लगा कर लड़ रहा था।

सोफी लखनऊ आ रही थी। लैरी ने उसे मंसूर अली के ऐश गाह में ठहराना था। ऐश गाह परी लोक और अली बाबा बाग के बीच बना था। ये उन मेहमानों के ठहरने का ठिकाना था जो वी आई पी या वी वी आई पी थे। और समाज के श्रेष्ठ वर्ग से संबंध रखते थे।

मंसूर अली और बिंदा बेगम भी ऐश गाह में मौजूद थे। उनके साथ आज सोफी का प्रथम परिचय होना था। सोफी का नाम क्रिस्टी बताना था और सिनेमा का किरदार रजिया सुल्तान का था। इस पूरे गुप्त वास में सोफी को बिंदा बेगम की छोटी बहन सलमा बन कर रहना था। बड़ा ही पेचीदा मामला था। सोफी के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी। लैरी को सोफी पर पूरा भरोसा तो था लेकिन काम था बहुत कठिन।

कार पोर्टिको में आ कर रुकी थी। लैरी ने सोफी को रिसीव किया था।

“वैलकम क्रिस्टी।” लैरी ने तनिक ऊंची आवाज में कहा था ताकि पूरा आसपास सोफी का बदला नाम क्रिस्टी सुन ले।

“स्वागत है भारत के लखनऊ शहर में जो मुगलइ तहजीब के लिए दुनिया में विख्यात है।” लैरी ने जान मान कर ऐसा कहा था। “इन से मिलिए। लखनऊ शहर के जाने माने रईस हैं – मंसूर अली।” लैरी तनिक मुसकुराया था। “और ये हैं बिंदा बेगम। मंसूर अली की पत्नी हैं और यही आपकी ट्रेनर होंगी।” लैरी ने बिंदा बेगम को क्रिस्टी से मिलाया था। “लखनऊ में आप इनकी छोटी बहन सलमा के नाम से जानी जाएंगी।” तनिक हंसा था लैरी। “इसलिए कि अगर आपके असल नाम को तनिक हवा भी लग गई तो मन्टो का बंटाधार हो जाएगा।” लैरी ने इस बार उन तीनों को एक साथ देखा था। “बड़ी सावधानी से हम लोगों को ये मुकाम हासिल करना है।” लैरी ने सबको खबरदार किया था। “जरा सी भी प्रेस या पत्रकारों को खुशबू आ गई कि मन्टो की हीरोइन क्रिस्टी ट्रेनिंग के लिए लखनऊ पधारी हैं तो गजब हुआ धरा है। हमारी पिक्चर बनने से पहले ही फ्लॉप हो जाएगी।” लैरी ने गलती का परिणाम बताया था। “परम गुप्त होगी सारी ट्रेनिंग।” उसने इस बार बिंदा को सतर्क किया था। “हमें आप से रजिया सुल्तान ठीक तीन महीने के अंदर-अंदर ट्रेंन्ड हुई चाहिए मेम।” लैरी ने बात का तोड़ कर दिया था।

“मैं वायदा करती हूँ ..” बिंदा बेगम ने क्रिस्टी को अपांग देखा था। संगमरमर की बनी एक बेहद खूबसूरत औरत थी – क्रिस्टी। उसके बेहद सादा लिबास को देख बिंदा बहुत प्रभावित हुई थी। “मेरी छोटी बनी हो – इसे याद रखना क्रिस्टी।” बिंदा बेगन ने क्रिस्टी से हाथ मिलाया था।

औपचारिकताएं पूरी हुई थीं तब ऐश गाह में चाय पहुंची थी।

“आप की सुपुर्दगी में ही सब चलेगा, नवाब साहब।” लैरी ने मंसूर अली को चाय का प्याला पकड़ाते हुए कहा था।

“बेफिक्र रहिए जनाब। मेरी इजाजत के बगैर लखनऊ में पत्ता तक नहीं हिलता।” मंसूर अली ने अपनी शेखी बघारी थी तो क्रिस्टी ने उसे गौर से देखा था।

लेकिन कमाल ये हुआ था कि वह बजाए मंसूर अली के राहुल को देख रही थी – अपलक।

एक बारगी सोफी का मन हुआ था कि खुल कर हंसे और हंसती ही रहे। वेटर की पोषाक पहने और चाय बांटते राहुल को सामने खड़ा पा कर वह दंग रह गई थी। तभी लैरी ने उसे कठोर निगाहों से देख वर्ज दिया था।

राहुल भी बार-बार और हर बार चोरी छुपे सोफी को देख लेता था और हर बार ही चोरी पकड़े जाने पर भी मान नहीं रहा था।

“इतनी अच्छी सेहत का राज क्या है री?” राहुल ने इशारों में सोफी से पूछा था।

“मां सा ने खूब मलाई मक्खन खिलाया .. और ..” सोफी ने इशारों में ही सब कुछ कह सुनाया था।

राहुल भीतर तक भीग गया था। मां सा की ममता का कोई मोल न था – उसने महसूसा था।

“कल नौ बजे आप की हवेली के सामने आप की छोटी सलमा बग्गी से उतरेगी और आप उसे रिसीव करेंगी।” लैरी अगले आदेश दे रहा था। “बग्गी के साथ रजिया की पोशाक भी भिजवा दीजिए।” लैरी ने अंतिम आदेश दिया था।

“जानती हो कुछ रजिया सुल्तान के बारे?” चलती कार में मंसूर अली ने बिंदा से पूछ लिया था।

“क्यों ..? पी एच डी नहीं की मैंने रजिया पर।” तुनक कर बिंदा बोली थी।

बिंदा के बोल कह रहे थे – अनपढ़ तो तुम हो मंसूर अली, मैं नहीं।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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