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रजिया भाग 56

रज़िया, Razia

बरनी लखनऊ से लौट आया था। स्काई लार्क में जैसे कोई बम विस्फोट हुआ हो – ऐसा लग रहा था।

“द ब्लडी इंडियंस, दे आर नॉट ट्रस्ट वर्दी।” बरनी कहता फिर रहा था। वह अभी राहुल से नाराज था। “ये बिगाड़ेगा काम को। नहीं चलने देगा मिशन को।” बरनी ऊल-जलूल बातें कर रहा था।

हवा हिल गई थी – स्काई लार्क की। हर किसी को चिंता हो गई थी – काम रुक जाने की। बरनी का एक स्टाइल था। बरनी हार्ड टास्क मास्टर था। बरनी कभी काम में कोताही नहीं करता था। बरनी का स्काई लार्क में सम्मान था। लेकिन राहुल ने न जाने क्या कह दिया था कि बरनी लखनऊ से उलटे पैरों लौट आया था?

“कूल डाउन यार।” लैरी ने बरनी को हाथ पकड़ कर बिठाया था। “हैव द हैवन्स फॉलन?” लैरी ने उसे प्रश्न पूछा था।

“दिस .. ब्लाडी राहुल ..”

“डॉन्ट एब्यूज हिम।” लैरी ने उसे मंत्रणा दी थी। “हमारी टीम का वह मैम्बर है।” लैरी ने उसे समझाया था। “सब चौपट हो जाएगा बरनी।” लैरी ने उसे चेताया था। “हुआ क्या?” उसने बरनी को पूछ लिया था।

“सोफी नहीं आई। पता नहीं कहां है। पूछा तो सिर चढ़ कर बातें करने लगा।”

“क्या कहा?”

“यही कि सोफी को सबसे पहले कास्ट क्यों कर रहा हूँ। अब मेरी मर्जी, मैं चाहे जैसे तीनों को कास्ट करूं। मतलब तो ..”

“बरनी।” लैरी ने माथा पीटा था। “सबसे पहले सोफी को क्यों कास्ट करोगे? अगर तनिक सी भी चूक हो गई तो सब चौपट।”

“लेकिन .. यार वो बिंदा के साथ ..”

“कौन है ये बिंदा? तुम कितना जानते हो उसे? क्या वो ..?” लैरी ने बरनी को आंखों में घूरा था।

“मैं .. मैं सर रॉजर्स से मिलता हूँ। मैं ..”

“मत मिलो।” लैरी ने उसे वरजा था।

बरनी तनिक रुका था। उसे शक तो हुआ था कि शायद वो कहीं गलत था।

“मैं स्काई लार्क छोड़ रहा हूँ।” फिर भी बरनी ने ऐलान किया था।

“बुलाया किसने था?” लैरी का सवाल था।

अब बरनी के पेट में ज्वाला धधक रही थी। उसने सर रॉजर्स के पास जा कर सब कुछ कह डाला था।

“तुम निरे बेवकूफ हो बरनी।” सर रॉजर्स की आवाज बिलकुल ठंडी थी। “लैट मी टैल यू सन – दूसरे विश्व युद्ध में अगर इंडियन ट्रुप्स को बरमा में न लड़ाया होता तो ब्रिटिश कभी जंग न जीत पाता। ये लोग बड़े ही ईमानदार लड़ाके हैं। राहुल गॉट गट्स, ही इज डाइनैमिक और उसमें जो लड़ने का जज्बा है, बरनी, वो ..” रुक गए थे सर रॉजर्स।

“सर, विद ड्यू अपोलॉजी, मैं स्काई लार्क में काम नहीं कर पाऊंगा।”

“तो मत करो भाई। जासूसी तो एक क्राफ्ट है – नौकरी नहीं है। हर कोई इसे कर नहीं पाता।”

सर रॉजर्स उठे थे और चले गए थे।

बरनी की आंखों के आगे अंधकार छा गया था। उसके सपनों का साम्राज्य यूं पल छिन में बिखर जाएगा, उसे उम्मीद नहीं थी।

लैरी लखनऊ जा रहा था। सर रॉजर्स अब कोई चांस न लेना चाहते थे।

लैरी के दिमाग में बार-बार राहुल ही आ जा रहा था। वह जानता था कि राहुल बिना मकसद के लड़ेगा नहीं। उसने एक ब्लंडर मिस्टेक होने से पहले स्काई लार्क को जीवन दान दे दिया था। बरनी जिस तरह से सोफी को कास्ट कर रहा था वो तो डिजास्टर ही था। भरे बाजार में खड़े हो कर जासूसी करना बेवकूफी नहीं तो और क्या थी? सर रॉजर्स भी समझ गए थे कि बरनी बहुत बड़ी गलती करने जा रहा था।

लैरी के मन में राहुल के लिए प्यार उमड़ आया था। राहुल ने एक संगीन स्थिति को संभाल लिया था। सोफी को उजागर करने के साथ-साथ लखनऊ का प्रेस और मीडिया उसके साथ हो लेना था। अगर सोफी का एक फोटो भी कहीं छप जाता तो सारा खेल गारत हो जाता।

बरनी जासूसी की बारीकियां समझता नहीं था – अब लैरी की समझ में भी आ गया था।

अलसुबह ही ट्रेन ब्लाडी बोस्टक पहुंच गई थी। सात दिन की लगातार यात्रा के बाद माइक स्टेशन पर उतरा था। उसने पहली नजर से स्टेशन को देखा था तो दंग रह गया था। इतना खूबसूरत रेलवे स्टेशन उसने आज तक नहीं देखा था।

सूर्योदय हो रहा था। प्राची में उगे सूरज की सुनहरी रश्मियों ने सब को सोना बना दिया था। माइक का मन प्रसन्न हो गया था। ऐसा अद्भुत सूर्योदय माइक ने पहली बार देखा था। जैसे सूरज साथ ही आ खड़ा हुआ हो और हाथ मिला कर पूछ रहा हो – सब खैरियत से तो हैं मित्र।

माइक को स्टेशन पर ही रिसीव कर लिया गया था। अब उसे एक गाइड, पत्रकार और प्रेस के लिए नियुक्त स्थान की ओर लिए जा रहा था। कम्यूनिष्ट देशों की ये परंपरा है कि विदेशियों के आगमन पर ही उनकी परछाइयों तक पर पहरे बिठा दिए जाते हैं। उनके मन और मनसूबों को जान लिया जाता है और देश छोड़ने तक उन्हें छोड़ा नहीं जाता।

माइक ने महसूस किया था कि ब्लाडी बोस्टक में दुनिया के कोने-कोने से लोग चले आ रहे थे। हर रंग रूप के लोग थे। हर तरह के लोग थे। खेल कूद में भाग लेने वाले लोग थे तो सांस्कृतिक सम्मेलनों में शामिल होने वाले लोग भी थे। कुछ लोग थे – जो यूं ही चले आ रहे थे। और कुछ ऐसे लोग भी थे जो गण मान्य थे। और उनका आगत स्वागत भी हो रहा था। एक सतरंगी भीड़ थी जो ब्लाडी बोस्टक में लगातार बढ़ती चली जा रही थी।

फुरसत में आने के बाद माइक ने ब्लाडी बोस्टक का भ्रमण किया था।

ब्लाडी बोस्टक का किला हजारों हजार सालों का अतीत ओढ़े माइक को बुलाने लग रहा था। माइक से बतियाने लगा था किला और बताने लगा था कि उसने न जाने कितनी जंगें जीती हैं और न जाने कितनी बार वो परास्त हुआ है और अधीन रहा है, लेकिन अब स्वतंत्र है।

म्यूजियम को देख कर माइक ने अनुमान लगाया था कि यहां सभ्यता ने बहुत पहले ही दस्तक दी होगी शायद।

लाइट हाउस पर खड़े हो कर माइक ने समुंदर के पार देखने की चेष्टा की थी लेकिन उसके पारावार ही इतने थे कि माइक की दृष्टि थक कर लौट आई थी।

कई देशों के झंडे ब्लाडी बोस्टक में जगह-जगह फहरा रहे थे। माइक ने चीन, रूस और वियतनाम के झंडों को पहचान लिया था। उन झंडों पर लिखा था – ऑल फ्लैग्स फाइंड देयर वे टु अस! माने कि हम सब के हैं।

स्कैयर ऑफ फाइटिंग फॉर द रिवॉल्यूशन को देख कर माइक को उन खूनी क्रांतियों की याद हो आई थी जिन्होंने पूरे विश्व को जगा दिया था। अब शायद वही युग फिर लौट आए – कौन जाने? माइक ने सोचा था। जो विश्व में हो रहा था शायद वो होना नहीं चाहिए था। लेकिन मानव मानता कब है।

जगह-जगह ब्लाडी बोस्टक में होने वाली प्रतियोगिताओं की तैयारियां हो रही थीं। खेल कूदों की तैयारियां थीं तो सांस्कृतिक सम्मेलनों की तैयारियां भी थीं। फिल्म फैस्टिवल होना था तो लिट फैस्ट का भी आयोजन था।

हर ईवेंट के उद्घाटन के लिए एक प्रमुख व्यक्ति को चुना गया था। और जब माइक ने लिंडा कैरोल को फिल्म फैस्ट को संबोधित करते देखा था तो उसकी नींद खुली थी। मतलब कि जालिम के ग्यारह – राजा और रानियों में से कोई एक किसी एक ईवेंट को संभाल रहा था। माइक खुश था। उसने सात ईवेंट्स के इन संचालकों के चित्र खींच लिए थे।

लेकिन किले के भीतर कहीं आधी रात के एकांत में गुपचुप जो गोष्ठियां होती रहती थीं, वहां तो कोई जा ही नहीं सकता था। वहां क्या होता था – कोई नहीं जानता था। लेकिन माइक तो जानता था कि वहां कौन सी खिचड़ी पक रही थी। वह प्रसन्न था। वह मान रहा था कि उसकी मुलाकात जालिम से अवश्य होगी। पास से नहीं तो कहीं दूर से लेकिन होगी मुलाकात जरूर। माइक ने अपने अनुमान और अंदाज से जालिम के करीब जाने की योजना बना ली थी। अब वो सफलता के शिखर पर आ खड़ा हुआ था।

कमाल तो ये था कि सात-सात पहरों के बीच भी सुरक्षित कुछ न था। दुनिया में अजब गजब भ्रम भरा था। अंधा कोई नहीं था लेकिन दिखाई भी किसी को नहीं देता था कि उसके आजू-बाजू कौन और किस लिए खड़ा है।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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