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रजिया भाग 53

रज़िया, Razia

“मजनूं महल वाॅज ए हैल।” लैरी ने अपना अनुभव बरनी काे बताया था। “मैं ताे पागल हाेने काे था सर।” उसने अपने दाेनाें हाथ हवा में फेंके थे।

“ऐसा क्या था यार? मुझे ताे बताया था कि वाे ..” बरनी सनाका खा गया था। “बिगड़ गया काम?”

“काम ताे बन गया।” लैरी ने सूचना दी थी। “लेकिन मानेंगे कि मजनूं महल में नाक तक भरी प्याज लहसुन की बू ने मुझे बावला बना दिया था।”

“फिर ..?”

“फिर क्या। मैं उठा और मैनेजर के पास पहुंचा। उस भले आदमी ने मंसूर अली का नम्बर दिया और कहा – बात कर लें आप के सब दुख दूर हाे जाएंगे।”

“बन गया काम?”

“काम ही नहीं बना सर, एक नाम भी और हाथ लग गया – मंसूर अली।”

“खास बात?”

“खास बात ये कि अगला आदमी हर आदमी का मददगार है। माेहब्बत का मारा एक भला और नेक आदमी है। बताता रहा था कि किस तरह किसी गांव से चल कर नंगे पैराें लखनऊ पहुँचा था और मजनूं महल में वेटर की नाैकरी पा गया था। उसके बाद ताे ..”

“राेज फ्राॅम द रेंक्स।” बरनी ने अपना मत पेश किया था।

“मान लेते हैं।” लैरी सहमत था बरनी के विचार से। “एडवांस दे कर आया हूँ। आप ..”

“कितना ..?”

“साैदा नहीं करता ये आदमी। लेकिन हाँ, उसे मुंह मांगा दे देना सर। ये आदमी बड़े काम का है।”

बरनी की जिज्ञासा जागी थी। उसे इसी तरह के आदमी अच्छे लगते थे। वाे मानता था कि जाे लाेग क्रिएटिव हाेते हैं वाे अच्छे और सच्चे हाेते हें। बरनी प्रसन्न था कि लखनऊ में उसे एक काम का आदमी मिल गया था।

“ऐकाेमाेडेशन कैसी है?” बरनी पूछना न भूला था।

“स्वर्ग है सर – स्वर्ग। नाम है परी लाेक और है भी परी लाेक ही। कई एकड़ में अली बाबा बाग है। उसके बीचाें बीच बना है परी लाेक। एक कल्पना जैसा ही लगता है। एकांत है, निपट एकांत। सब खुला-खुला है।”

“बताया क्या है? मतलब कि हमारा परिचय?”

“आप फिल्म प्राेड्यूसर हैं। मन्टाे नाम की फिल्म बना रहे हैं। उसके कलाकार एक बेगम है, एक चैफ माने कि कुक है और एक है ड्रग मफिया। इनकी ट्रेनिंग लखनऊ में हाेनी है।” लैरी समझाता रहा था।

“और फिल्म की कहानी?” बरनी ने पलट कर पूछा था।

“काेई प्राेड्यूसर बताता है अपनी फिल्म की कहानी?” लैरी हंसा था। “सर आप भी तनिक सी ट्रेनिंग ले लेना। कहीं गुड़ गाेबर न हाे जाए।” लैरी ने मजाक मारा था।

बरनी थाेड़ा शरमा गया था। लैरी की बात सच थी। उसने ताे कुछ बताना ही न था। उनका उद्देश्य ताे उन तीनाें की ट्रेनिंग से था।

“और भी काेई मदद मिलेगी इस आदमी से – माने कि मंसूर अली से?” बरनी ने पूछा था।

“मिल भी सकती है। उसके रसूख अच्छे हैं। अच्छे और ऊंचे लाेग परी लाेक में ठहरते हैं। लखनऊ में उसे सब जानते हैं।”

“पैसा ..?” बरनी फिर पूछना न भूला था।

“उसे मुंह मांगा दे देना सर।” लैरी का भी वही सुझाव था।

बरनी प्रसन्न था। उसे अब लखनऊ दिखने लगा था। वह अब जाने कि जल्दी में था। माइक ब्लाडी बाेस्टक चला गया था। अब लैरी काे ही स्काई लार्क का संचालन करना था।

“ब्लाडी बाेस्टक क्याें?” लैरी ने बरनी से अहम प्रश्न पूछा था। अभी तक ताे ब्लाडी बाेस्टक का जिक्र ही न था।

“ये जालिम का वाटर लू है, लैरी।” हंस कर बताया था बरनी ने। “छुप कर अमेरिका के पीछे आ कर बैठा है। लेकिन अमेरिका ..?”

“जीतेगा वाटर लू?” लैरी ने यूं ही प्रश्न पूछा था।

“उम्मीद ताे है मुझे लैरी।” बरनी ने हामी भरी थी। “लेकिन साेफी ..?” उसने मन की बात बताई थी। “मैं मानता हूँ साेफी काे लेकिन .. लेकिन है ताे औरत ..।”

“पता नहीं कब किस की हाे जाए।” लैरी ने कहा था और हंस गया था। “औरत काे ताे भगवान भी नहीं जानता।”

सर्विस क्लब में सर राॅजर्स और टैड दाेनाें दाेस्त बड़े सुकून से साथ-साथ बैठ कर टैड की चाॅइस सुपर व्हिस्की काे घूंट-घूंट कर पी रहे थे। शाम ढल चुकी थी। दुनियादारी अपना काराेबार समेट रही थी। घर जा रहे थे नाैकरी पेशा लाेग। अमेरिका में पूरी तरह से अमन चैन था।

लेकिन इन दाेनाें दाेस्ताें के दिमाग पूरी तरह से आंदाेलित थे। इन्हें अमेरिका की सुरक्षा की चिंता ही सता रही थी।

“इस पाजी जालिम ने जबरदस्त प्राेपेगेंडा किया है – अमेरिका और अमेरिकन्स के खिलाफ।” सर राॅजर्स टैड काे सूचित कर रहे थे। “अमेरिका का कागज का डाॅलर घर बैठे कमाता है – इसने सबसे बड़ा दुश्प्रचार किया है। स्वयं के साेने के सिक्के मामूली कीमत पर बाजार में उपलब्ध हैं। थर्ड वर्ल्ड के लाेग फिदा हैं जालिम की करेंसी पर। जालिम के ऐजेंट अमेरिकन्स पर अपने आप काे श्रेष्ठ मानने का आराेप लगाते हैं। बराबरी नहीं ये लाेग भेदभाव मानते हैं। इनके पास माल मसाला बेशुमार है, जबकि बाकी देशाें में भुखमरी है और लाेग दाने-दाने काे माेहताज हैं। ये गरीबाें की मदद नहीं करते, बल्कि उनके पेट पर लात मारते हैं। इन्हें समाप्त करना हाेगा। ये मानवता वादी नहीं हैं – मनुवादी हैं।”

“लेट्स ब्लास्ट द बास्टर्ड्स।” टैड उद्विग्न हाे उठा था। “अमेरिका कमा कर खाता है। इनके बाप का क्या लेता है?”

“किस-किस काे ब्लास्ट कराेगे टैड?” सर राॅजर्स ने धीमी आवाज में पूछा था। “काम बिगड़ जाएगा दाेस्त। अगर जुबान खाेली ताे ..” चेतावनी दी थी सर राॅजर्स ने। “ये वाे जमाने नहीं हैं टैड जब हम खुले में खुले हाथाें जंग लड़े थे। नाे-नाे। नाॅट एट ऑल। बुलेट नहीं अब वक्त बदमाशी का है दाेस्त।” मुसकुराए थे सर राॅजर्स। “चुपचाप – दबे पांव चीते की तरह हमने शिकार काे पकड़ना है और खा लेना है।”

टैड भ्रमित था। जिस जंग की बात सर राॅजर्स कर रहे थे वह उसकी समझ ही न आ रहा था।

“पूरी दुनिया में हमारे कितने सैनिक अड्डे हैं?” सर राॅजर्स ने टैड से सीधा सवाल पूछा था।

“लैस दैन टू हन्डरेड।” टैड ने उत्तर दिया था।

“गुड।” मुसकुराए थे सर राॅजर्स। “इन्हें हम केवल चंद घंटाें पहले सचेत करेंगे, टैड। अब इस लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण है सरप्राइज। हम पता कर लें इनका डी डे और इनके हमले से पूर्व हमारा हमला हाे जाए, बात तब बनेगी।”

“कैसे पता लगेगा इनका डी डे?”

“पता लगाना हाेगा। एट एनी काॅस्ट – हमें ये ताे पता लगाना ही हाेगा।”

टैड चुप हाे गया था। उसकी ताे समझ से बाहर ही था ये समर।

“हमें चूकना नहीं है इस बार टैड।” सर राॅजर्स ने फिर से चेतावनी दी थी।

“मैं ताे आपके साथ हूँ सर। खड़ा मिलूंगा आपकाे हुकुम बजाने के लिए।” टैड ने आश्वासन दिया था।

बहुत रात ढल गई थी। दाेनाें दाेस्ताें की आँखाें में उनका विगत उतर आया था। दूसरे विश्व युद्ध की यादें व्हिस्की के सुरूर के साथ-साथ गहरी हाेती चली गई थीं।

“आपकी ताे एक बेटी भी है, सर?” टैड यूं ही पूछ बैठा था। “शादी हाे गई उसकी?”

“नहीं। उसने अपनी शादी नहीं की है।” सर राॅजर्स ने सगर्व बताया था।

“क्या सर।” टैड अब तनिक हलके मूड में था। “हमारा जब शादी का वक्त आया ताे लड़ाई में चले गए।” टैड हंस रहा था। “और जब लड़ाई से लाैटे ताे मेरी मंगेतर एक बच्चे की मां थी। हाहाहा।” टैड खूब जाेराें से हंसा था। “उसके बाद ताे मन ही बुझ गया था सर।इट्स ऒके .. नाे वरीज।” टैड तनिक विवश लगा था।

और सर राॅजर्स के सामने से भी विगत गुजरा था। मिष्टी ने भी ताे उन्हें तलाक दिया था, और साेफी काे छाेड़ कर चली गई थी। लड़ाई में कैसे साेफी उनका सहारा बन गई थी – उन्हें याद आ रहा था और वाे जी भी गए थे।

लेकिन .. लेकिन अब साेफी ने जा निर्णय लिया था वाे ताे उनके लिए निर्णय से भी ज्यादा कठाेर था। एक चिंता का शाेला सर राॅजर्स के भीतर प्रवेश करना चाहता था लेकिन वाे सावधान हाे गए थे। वाे ताे सच्चे सैनिक थे। उन्हें देश के लिए दिया बलिदान बुरा न लगता था।

“अगर जालिम की बेटी लिंडा कैराेल पूरे अमेरिका काे नचा सकती है ताे क्या मेरी बेटी साेफी जालिम से जंग नहीं कर सकती है?” सर राॅजर्स का सीना गर्व से तन आया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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