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रजिया भाग 5

रज़िया, Razia

“हद हो गई ..!” लैरी हाथ झाड़ कर एक बेबसी जाहिर करता है। “शर्मनाक काम है यह तो?” वह प्रश्न करता है। “पूजा पाठ करते लोगों पर हमला? यह कौन सा युद्ध हुआ?” वह आंखें नचा कर हम सब से पूछता है।

“धर्म युद्ध तो नहीं हो सकता?” रस्टी अपनी राय देता है। “यह जालिम जरूर कोई पागल हो सकता है।” वह तनिक सहज होने का प्रयास करता है। “यह जरूर कोई ..”

“यह बहुत सुलझा हुआ है, मित्र!” बरनी बोला है। “सब कुछ सोच समझ कर किया गया है। नई साल है। लोग उत्सव मना रहे हैं। क्रिसमस है। लोग ..!”

“और यह खुशियां न बांट कर गम बांट रहा है।” रस्टी बीच में कूद पड़ा है। “और एक हम हैं कि अभी तक जोड़ तोड़ के गणित में ही उलझे हैं।” वह तनिक रोष में है।

हम सब अब एक दूसरे का मुंह ताक रहे हैं। एक चुप्पी छा जाती है। एक बेधक तकलीफ हम सब को भीतर से तोड़ती है। एक निराशा है जो हमारा चैन छीन लेती है। समर्थ हो कर भी हम कितने असमर्थ हैं – यह एक पश्चाताप है, जो हमें परास्त किए दे रहा है।

“राष्ट्रपति पूछ रहे हैं – जालिम चाहता क्या है?” बरनी ने चुप्पी को तोड़ा है। “हम उन्हें क्या उत्तर दें?” वह प्रश्न दागता है।

अब तक तो जालिम की कोई मांग सामने आई ही नहीं है। अभी तक तो हम उसे कहीं से छू भी नहीं पाए हैं। अभी तक तो जालिम मात्र एक हवा है, एक हव्वा है और शायद हैवान है – कोई। उसका इरादा अभी तक स्पष्ट नहीं है।

“इस हमले से जालिम को क्या फायदा हुआ होगा?” लैरी एक प्रश्न पूछता है।

मैं भी तो इसी प्रश्न को अपने जहन में ले कर बैठी थी। मैं भी सोचे जा रही थी कि आखिर जालिम को इतनी मौतें बांट कर क्या मिला होगा?

“हमला किसी एक पर नहीं – अनेक पर हुआ है, पर ..” रस्टी अपनी समझ से बात को पकड़ रहा है। “रूस, अमेरिका, यूरोप और यहां तक कि भारत में भी उसने एक ही कम्यूनिटी को टारगेट बनाया है। केवल क्रिश्चियन्स को ही मारा है।”

“यह इत्तफाक भी ताे हो सकता है।” लैरी ने काट की है।

“इत्ती बड़ी घटना कोई इत्तिफाक नहीं हो सकता मित्र।” बरनी ने बात को संभाला है। “यह कोई सोची समझी चाल है। जालिम विश्व को बांट रहा है। बंदर बांट कर रहा है वह। लोगों के दिमागों में एक बंटवारे का बीज बो रहा है। चालाकी से ..”

“क्या रूस से मूडी की कोई खबर है?” बरनी मुझे पूछता है।

“नहीं।” मैं उदास हूँ। “कहता है – मामला पेचीदा है। वक्त लगेगा।” मैं बताती हूँ। “वह कही उलझ गया है।”

“हमेशा की तरह।” रस्टी हंसता है। “यह मूडी हमेशा इसी तरह उलझ जाता है।” वह हवा में हाथ फेंक कर कहता है। “ही इज ए गुंक!” वह अपना मत पेश करता है।

फिर से एक चुप्पी छा जाती है। एक निराशा भर आती है। एक कुछ न कर पाने की लाचारी हम सब को थकाती है। हमारी अकूत सामर्थ्य को पता नहीं ग्रहण कैसे लग गया है – मैं सोचने लगती हूँ। दुनिया के किसी भी कोने पर अगर एक क्रिकिट की बॉल भी रेंगती है तो हमें उसकी खबर लग जाती है। लेकिन .. जालिम इतना बड़ा जुल्म ढा कर भी अदृश्य है?

“ग्यारह सौ लोगों की मौत की खबरें हैं।” लैरी ने घोषणा की है। “और करीब दो हजार लोग घायल हुए हैं। हमला चुनिंदा ठिकानों पर हुआ है।” वह प्राप्त सूचना को कबूतर की तरह उड़ा कर अब हम सब के चेहरे पढ़ता है।

मैं तो रो ही पड़ती हूँ। मेरी सुबकियां थमती ही नहीं हैं। बेगुनाहों की मौतों पर बहते मेरे आंसू न जाने किस-किस के किए पाप को धो देना चाहते हैं।

“अभी नई है .. !” बरनी ने कहा है।

मेरी रुलाई पर सभी मंद-मंद मुसकुराए हैं। मुझे नया बता कर माफ कर दिया गया है। शायद जासूस कभी राेता नहीं। मैं ताे अभी तक इतना भी नहीं जानती हूं। लेकिन जान जाऊंगी – मैं निर्णय करती हूॅं।

“यह राेने धाेने का काम नहीं है साेफी।” लैरी मुझे सहज कर देता है। “यह साेचने की बात है।” वह बताता है। “आंख खाेल कर देखाे। बाजार भाव एकदम गिर गए हैं। लाेगाें में एक निराशा की लहर दाैड़ गई है। देशाें में आपसी भाई चारा और विश्वास टूट रहा है। लाेग ताे सड़क पार करने तक से भी डर रहे हैं ..”

“यू मीन – जालिम ..?”

“यस। यही ताे चाहता है जालिम।”बरनी ने व्यंग जैसा किया है। “वह यही ताे चाहता है।” उसने अपना सर स्वीकार में हिलाया है। “आम आदमी किसी आफत में शहीद हाेना क्याें चाहेगा? वह ताे सुख से रहना चाहता है। तभी ताे वह व्यवस्था काे चंदा देता है – टैक्स भरता है। वह ताे सुख खरीदता है और अगर सुख के बदले उसके घर में खतरा घुस आए, अगर माैत उसका इंतजार गिरिजाघर में करे और अगर सड़क पर निकलना तक असुरक्षित हाे जाए, ताे साेचाे ..?”

“सरकार काे ही काेसेगा वह ताे।” रस्टी दाे टूक कहता है। “व्यवस्था पर ताे प्रश्न चिन्ह लगेगा ही ..”

“यह तमाम लाव लश्कर क्याें राेटी ताेड़ रहा है – वह ताे पूछेगा ही।” लैरी भी रस्टी से सहमत हुआ लगता है।

मैं समझ रही हूं कि जालिम की यह चाेट व्यवस्था पर है, सरकाराें पर है और शायद हमारी व्यवस्था के कर्णधाराें पर भी है। वह शायद बता देना चाहता है कि ये तुम्हारी तमाम ताम झाम बेकार है, बेहूदा है। आम आदमी सुरक्षित है कहां? ये व्यवस्था वाले ताे झूठ बाेलते हैं। ये ताे माल उड़ाते खाते हैं। ये करते धरते कुछ नहीं हैं।

“तुम अकेली इन का क्या कर लाेगी साेफी?” मैं राॅबर्ट की आवाजें सुनने लगती हूं। “जानती हाे – जासूसी एक जुर्म है और इसकी सजा माैत है।” राॅबर्ट हंसा था। “और मुझे मरने से बहुत डर लगता है।”

“जांबाजाें के किस्साें से इतिहास भरा पड़ा है राॅबर्ट।” मैंने उसे बताया था।

“पर मैं किसी पचड़े में पड़ना नहीं चाहता। और तुम भी साेफी छाेड़ाे ये सब लफड़ा।” वह मुसकुराया था। “हम दाेनाें अमर प्रेमी बन जाते हैं। खुले विचरते हैं विश्व में। कहीं भी दाे गज जमीन खरीद कर रह लेंगे हम।” अब वह सहज भाव से हंसा था।

“मैं पहले इस जालिम काे ..” मैंने भी अपनी ही रट लगाई थी। “जब तक ये जालिम ..”

“उम्र हार जाऒगी, साेफी। फिर ताे बुढ़ापा आ धमकेगा। बहुत-बहुत पछताऒगी तुम।” उसने आग्रही स्वर में कहा था। “मेरे साथ उस स्वर्ग की यात्रा कराे – जाे ..”

“नहीं। पहले मैं जालिम के उन तमाम जहन्नुमाें काे देखूंगी। मैं हरगिज-हरगिज मैदान छाेड़ कर भागूंगी नहीं।” मैंने राॅबर्ट का हाथ छाेड़ते हुए कहा था। “तुम चाहाे ताे सारे स्वर्ग देख आऒ राॅबर्ट लेकिन मैं ताे लड़ूंगी।”

राॅबर्ट के जाने के बाद भी मुझे दुख कहां हुआ था।

मैं ताे अपने पूरे मनाेयाेग से इस जालिम से लड़ना चाहती हूॅं। मैं ताे चाहती हूॅं कि इस जालिम से खूब जम कर जंग करूं। मैं अब हर सूरत में उसका चेहरा माेहरा पहचान लेना चाहती हूॅं। फिर मैं चाहती हूॅं कि उसे सरेआम सामने आ कर ललकारूं और मैं उसकी ताकत काे ताेल कर अपनी ताकत पैदा करूं। फिर मैं चाहती हूॅं कि एक भरपूर जंग जुड़े। दुनिया के सामने साेफी रीड और जालिम – दाे और केवल दाे नाम हाें जाे लड़ें, भिड़ें, घाव दें, घाव लें और लहूलाेहान हाे-हाे कर फिर लड़ें।

मेरी रूह न जाने क्याें बिफर-बिफर कर लड़ना चाहती है – इस जालिम नामक राक्षस के साथ। मैं इंसानियत और इंसानाें काे इस तरह मरते नहीं देख सकती।

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