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रजिया भाग 29

रज़िया, Razia

लगता है स्काई लार्क के ऑफिस में सोफी आज सदियों के बाद लौटी है।

कितना कुछ नहीं घट गया है इस दौरान। भारत का भ्रमण और ..?

तभी सर रॉजर्स अपने ऑफिस में आ कर अपनी कुर्सी पर विराजमान हुए हैं। सोफी का ध्यान बंट गया है। बरबस ही उसने अपने पिता सर रॉजर्स की भव्यता को सराहा है। चंद दिन पहले की ही तो बात है जब उन्होंने स्काई लार्क को स्थापित किया और आज ..?

कुर्सी पर बैठा एक गुणी ज्ञानी पुरुष कितना फबता है – सोफी सोचने लगती है।

“उसके पिता ने अपनी उम्र की पूंजी को व्यर्थ नहीं गंवाया है।” सोफी महसूसती है। “एक अनुभवी, एक पराक्रमी और एक दूरदर्शी पुरुष हैं उसके पिता।” सोफी सच्चाई को पकड़ती है। “इन्हें एक महानायक कहा जा सकता है।” वह मान लेती है।

संसार की बागडोर अगर इसी प्रकार के लोगों के हाथ में हो तो बुरा क्या है? सभी के संकट दूर हो जाएंगे, सोफी एक निष्कर्ष पर पहुंच जाती है।

वह आज प्रसन्न है। नहीं-नहीं! वह प्रसन्न नहीं है। शायद भ्रमित है वह। वह तो यह भी नहीं जानती कि आज वह सर रॉजर्स से क्या-क्या कहेगी? क्या कहे – वह जानती तक नहीं है। अगर राहुल को लेकर ही प्रसंग छिड़ा तो ..?

राहुल के बारे में सोफी सोच-सोच कर बावली हो चुकी है। यहां तक कि वह राहुल को प्यार करती है, या कि उससे नफरत करती है, या कि उसे सिर्फ जानती भर है – वह नहीं जानती है।

“हाय सोफी!” लैरी ने उसे टहोका है। वह चौंक पड़ी है। “हाऊ वॉज इट?” वह यूं ही के भाव से पूछता है।

अब लो, लैरी को ही! वह सब जानता है – यह सोफी भी जानती है। वह इन सबकी आंख से दूर कहां थी – वह महसूसती है।

जासूसों की आंखें लोहे की बनी होती हैं, और एक चुंबकीय क्षेत्र की तरह काम करती हैं। सब कुछ देखती रहती हैं – शांत, मौन, संलग्न और सचेत, लेकिन खामोश।

सर रॉजर्स मुसकुराए हैं। उस मुसकान ने कुछ कहा है। लेकिन उसका अर्थ लग पाना कठिन है। कमाल है कि सोफी अपने इस पिता को, अपने जनक को बिलकुल भी नहीं जानती है। इस व्यक्ति का नाम ही अगर रहस्य रख दिया जाए तो ठीक ही होगा – अब वह मुसकुराती है।

स्काई लार्क में भी सब कुछ कितना रहस्यमय हो गया है? जासूसी भी कितना रहस्य और रोमांच भरा व्यवसाय है? इसमें आनंद तो अपार आता है लेकिन जब कीमत चुकानी पड़ जाती है तो नानी याद आ जाती है। कभी-कभी तो ..

राहुल को छोड़ कर आना और मां सा से विदा मांगना और उन बलुहे विस्तारों से यों उठ कर चले आना और .. और हां उस ऊंट की सवारी का स्वाद? आज जब अपने घोड़े पर सवार हो कर वह सैर के लिए निकली थी तो उसे यह सब एक जिया हुआ रुटीन ही लगा था – बासी-बासी सा कुछ बिलकुल बेकार! उसमें अज्ञात का आनंद तो था ही नहीं। एक जाना पहचाना सा कुछ था – एक दम निर्जीव और निष्प्राण।

लेकिन वह कालिया के साथ की ऊंट की सवारी .. उस अनंत रेगिस्तान की पीठ पर सवार हो कर एक अज्ञात के पेट में समाते ही चले जाने का वह अद्वितीय क्रम और कभी न लौटने की वह अमर सी लालसा? एक बावले हुए परवाने की तरह वहां आदमी भी अपने अज्ञात अंत को पा जाना चाहता है और अपने धाम को प्राप्त हो जाना चाहता है।

कितना अलौकिक था वह सब?

लो, सायरन बज उठा है। सोफी के पास बैठा सपना भाग खड़ा हुआ है। अब एक गहमागहमी चल पड़ी है। सब सचेत हैं। कॉनफ्रेंस के लिए यह पहली चेतावनी है। सब चल पड़े हैं। सब कॉनफ्रेंस हॉल में जा जाकर बैठ रहे हैं। वह भी उठी है। चलने को है तभी मूडी आ कर उसे एक अदद आइटम की तरह सहेज लेता है। फिर वह उसे आहिस्ता से उसकी सीट तक ले जाता है।

सोफी मूडी द्वारा बताई सीट पर आसीन होती है।

उसे सीट पर बैठ कर कुछ आभास होता है। उसे लगता है कि स्काई लार्क में उसका भी एक दर्जा है जो अब तक निश्चित हो चुका है। वह विचार करती है। उसे लगता है कि वह दो नम्बर पर है। माने कि सर रॉजर्स के बाद ..?

“और वह तीसरी सीट?” सोफी बराबर की खाली सीट को देख कर स्वयं से प्रश्न करती है। “कौन जाने!” कह कर वह मुंह मोड़ लेती है।

सोफी जानती है कि जरूर सर रॉजर्स ने तीसरे नम्बर पर किसी अपने पुराने अनुभवी खुड़ैल को रख लिया होगा। जरूर ही कोई अंकल होगा जो उसकी जान जरूर ही खाएगा। जरूर ही कोई खेला खाया ऐसा व्यक्ति होगा जो बहुत सारे जासूसी दुनिया में गुल खिला चुका होगा। जरूर ही वह तीसरा व्यक्ति ..

लो, वह तीसरा व्यक्ति आ गया है और मचमचा कर कुर्सी की काया में धंस गया है।

सोफी ने उसे देखा है। सोफी ने उसे पहचाना है। सोफी ने अपनी आंखों पर विश्वास न कर उन्हें मसला है। सोफी ने फिर से ध्यान से देखा है।

“क्या ..? राहुल ..?” वो उछल पड़ना चाहती है। फिर वह अपने आप को संभालती है। वह अपलक राहुल को देखती रहती है। जैसे वह कोई अजूबा हो और असंपृक्त ही हो। “राहुल ..?” वह फिर से प्रश्न करती है। “यह स्वप्न कैसे सच हुआ?” वह अपने मन से पूछती है। मन भी प्रसन्न है और बल्लियों कूदने लगता है। “यह कौन सा जादू टोना है? क्या वह किसी विभ्रम में है?” वह फिर से संभलती है।

लेकिन राहुल है कि एक अडिग भव्यता से कुर्सी पर बैठा ही रहता है। वह मुड़ कर सोफी को नहीं देखता।

“न देखे!” सोफी तनिक क्रोधित हो कर कहती है। अब वह मुड़ कर आए अन्य आगंतुकों को भी देख लेना चाहती है। “ये क्या?” वह फिर से बमक जाती है। “बतासो ..? कालिया ..?” वह प्रत्यक्ष में दो नामों को पुकारती है।

बतासो हंसी है। कालिया ने उसे अभिवादन भेजा है। दोनों ने सोफी को एक कृतज्ञता प्रदान की है। पर क्यों?

अजीब सा माहौल है। हवा में बहुत सारा सस्पेंस है। बहुत सारे अजनबी चेहरे हैं – जिन्हें सोफी नहीं जानती है। एक तिलस्म सा कुछ है – जो घटने जा रहा है।

“इन चित्रों को देखो सोफी!” अचानक वह रॉबर्ट की आवाजें सुनने लगती है। “इन चित्रों की तुम तनिक सी व्याख्या करो, और बताओ ये चित्र क्या कहते हैं?” रॉबर्ट उसे पूछ रहा है।

“तुम्हारा सर!” सोफी झल्ला कर कहती है। “जान मत खाओ रॉबर्ट!” वह उसे झिड़क देती है। “आई एम डैड टायर्ड!” वह शिकायत करती है।

“मैं तो तुम्हें खुश करने के लिए ..” रॉबर्ट गिड़गिड़ाता है।

“मैं खुश हूँ।” कह कर सोफी रॉबर्ट को काट कर अलग खड़ी हो जाती है। वह उसे पास आ बैठे राहुल के बारे कुछ भी नहीं बताती है।

लेकिन सर रॉजर्स को तो सब कुछ पता है। पर कमाल ये है कि अभी तक उन दोनों के बीच कोई संवाद नहीं आया है। उनकी जुबानें अभी खुली कहां हैं?

“जैंटलमैन!” सर रॉजर्स की आवाज कॉनफ्रेंस हॉल में गूंजी है। सोफी का ध्यान टूटा है। “मैं आप सब का स्वागत करता हूँ।” सर रॉजर्स के स्वर में प्रसन्नता है। “हम एक कामयाबी के शिखर पर हैं।” वह कह रहे हैं। “और अब दूसरी कामयाबी भी हमसे ज्यादा दूर नहीं है।” उन्होंने घोषणा जैसी की है।

“माने कि जालिम मिल गया है!” सोफी का दिमाग उसे तुरंत बताता है।

लेकिन जालिम को तो वह खोजना चाहती थी। फिर उसका शिकार सर रॉजर्स ने क्यों मारा? यह तो गलत गेम है जी!” सोफी स्वयं से कहती है। “मैं .. मैं तो इस में हिस्सा नहीं ही लूंगी।” वह एक प्रतिज्ञा जैसी करती है।

राहुल से सोफी की अभी तक आंख नहीं लड़ी है।

वह चाहती है कि उठे और चली जाए।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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