नीमो की ढाणी लौट कर सोफी को बहुत अच्छा लगा था।
उसे लगा था जैसे उसकी आत्मा हमेशा से ही इस नीमो की ढाणी में रह रही थी और अब उसका मन भी यहीं आ कर रच बस गया है। वह न जाने कैसे अमेरिका और स्काई लार्क को भूल गई है। अब तो उसे जालिम भी कम याद आता है। हां, राहुल सिंह ..? नहीं-नहीं! अब तो राहुल राठौड़ पर उसका मन आ गया है।
कितनी-कितनी विचित्र बातें हो जाती हैं – जीवन में ..?
सोफी निगाहें पसार कर फिर एक बार नीमो की ढाणी को देखती है। निरा उजाड़ ही तो है। फिर भी उस उजाड़ में उसे सारे विश्व के वैभव उग आए नजर आते हैं। स्वच्छ साफ चलता पुरवइया, चंद फासलों पर खड़े खेजड़ी के पेड़, झाड़ीनुमा आक और कटीली झाड़ियां उसके भीतर एक अजब गजब व्यामोह भरती लगती हैं। प्रशांत खामोशी उससे आ कर गले मिलती है और अपनी कीमत मांगती है। यहीं रहा करोगी न सोफी – वह पूछती है तो सोफी कोई उत्तर नहीं देती।
“कहां खोई है मेरी मेम सा?” बतासो ने प्रश्न पूछ कर सोफी का मौन भंग कर दिया था।
सोफी बमक पड़ी थी। उसने बतासो को निरखा परखा था। बतासो का अजीबो-गरीब चेहरा और वेश-भूशा उसे चौंका गई थी। उसे लगा था जैसे उसने पहली बार ही बतासो को देखा था।
“उर्दू अच्छी बोल लेती हो!” सोफी ने कहा था। “कहां से सीखी है तुमने ये भाषा?” उसने एक अटपटा प्रश्न दागा था।
“बेगम तरन्नुम से!” बतासो ने उत्तर उगला था। “मैं उनकी खिदमत में थी। और मेरा ये मर्द कालिया भी उनके कबीले में सिपाही था। मालिक ..”
“कौन मालिक? कबीला मीन्स वॉट? और ये बेगम तरन्नुम ..?” सोफी ने एक तल्खी के साथ पूछा था। उसे लगा था के वह अचानक ही अपनी मंजिल पर आ खड़ी हुई है।
लेकिन अब बतासो का हुलिया भी बिगड़ गया था। वह चुप थी।
“क्यों? डरती हो किसी से? कोई गुनाह ..?”
“हां सा! चुपचाप छुप कर वहां से भाग आने का गुनाह और ..” बतासो दहला सी गई थी।
“कारण ..?” सोफी ने उसे कुरेदा था।
“जुल्म ..!” बतासो ने तनिक संभल कर बताया था। “हम से सहा नहीं गया था। होते जुल्मों को वह ..?” बतासो कुछ सोच कर फिर बोली थी। “भूखे पेट रहना अच्छा मेम सा! जुल्म के साये से भी आदमी को दूर रहना चाहिए।” उसने सोफी की आंखों में देखा था। “मालिक के जुल्म तो .. और बेगम तरन्नुम भी जिंदा आदमी की खाल खींच देती है सा!” बतासो का चेहरा भयानक भावों से भरा था।
“कहां के लोग हैं ये?” सोफी ने चकित होते हुए पूछा था।
“कोट कमूरा कैसर – जगह का नाम कहते हैं, सा! पहाड़ियों के बीच एक बड़ा सा सिलसिला है जो न गांव लगता है न शहर!” बतासो बताती है।
“तो फिर क्या लगता है?” सोफी पूछ लेती है।
“खंडहर जैसा ही कुछ लगता है।” बतासो बताने लगती है। “लगता है दलदल होगा पर है वो तहखाने – गोला बारूद से भरे तहखाने। लेकिन आदमी सोचता है कि ये पहाड़ है। लेकिन है तो वह महल। आलीशान महल। लगेगा जंगल है पर भीतर पूरी सेना की छावनी। कहेंगे तालाब लगेगा झील और तालाब सा ही वह जगह पर लगता है वहां मालिक का दरबार। हैरतअंगेज करने वाला ही सब कुछ है वहां, सा।” बतासो चुप हो जाती है।
सोफी भी मौन थी। उसने जो भी सुना था बिलकुल एक गप्प जैसी थी। लेकिन बतासो उसे गप्प क्यों सुनाती? बतासो उससे क्यों झूठ बोलती?
“है क्या यह सब, बतासो?” सोफी ने फिर से पूछा था।
“है क्या, सा! राम जाने!” बतासो सहम जाती है। “लेकिन है तो सब राज-पाट, है तो सब शाही – सलीम। खूब धन माल है। दुनिया जहान से लूट का माल आता है। दुनिया जहान से वहां सुंदर लड़कियां पहुंचती हैं और दुनिया जहान के लोग ..”
“आते जाते हैं लोग?”
“नहीं! पकड़ कर ले जाए जाते हैं – धनी मानी लोग। फिर उन्हें यातनाएं दी जाती हैं। उनका धन माल एंठ कर .. उन्हें ..”
“छोड़ देते हैं?”
“नहीं सा। यातनाएं दे कर – तड़पा-तड़पा कर और बेहाल करके ..”
“मार देते हैं ..?” सोफी पूछती है।
लेकिन बतासो चुप हो जाती है। वह डरी सहमी सोफी की आंखों में कुछ खोजती है।
“तुम क्या थीं वहां?” सोफी पूछती है।
“तरन्नुम बेगम की खिदमत में लगी तेरह औरतों में से मैंं एक थी!”
“तेरह औरतें एक औरत की खिदमत में? एक औरत और ..?”
“जी, सा। सबके काम थे – अलग-अलग!”
“तुम्हारा क्या काम था?”
“जूतों का! माने कि जूते-चप्पलों का काम!”
सोफी को हंसी आ जाती है। उसे लगता है कि बतासो उसे बहका रही हो।
“हंसने की बात नहीं है सा। इतने जोड़े जूते और चप्पलें हैं बेगम साहिबा के कि आम आदमी गिनती भूल जाए। मैं सच कहती हूं कि मैं ..”
“चलो मान लेते हैं बतासो।” सोफी सहज हो आती है। “कोई पता ठिकाना है इन लोगों का?”
“वह जाने सा!” बतासो कहती है। “उसे सब पता है।”
“माने कि कालिया को? तुम्हारा क्या लगता है ये कालिया?”
“मरद है, मेरा मरद!” बतासो बताती है। “मुझे भगा कर लाया था। बड़ा ही जीवट वाला है – ये कालिया, सा!”
“ये क्या करता था वहां?”
“सारे कुकर्म करता था। खून, डाका, कत्ल और जो सोचो वही जुर्म!”
“लेकिन क्यों?”
“काम ही ये था इसका!” बतासो बताती है। “तभी तो ये भागा।” वह धीमे से कहती है। “नाक तक पेट भर गया था जुल्म ढाते-ढाते, सा। उबकाइयां आने लगी थीं ..” बतासो अपना मुंह बंद कर लेती है।
जालिम ही हो सकता है यह – सोफी अपने दिमाग में निर्णय लेती है। जरूर यही जालिम है – उसे विश्वास हो जाता है। एक खुशी का खजाना अचानक ही उसके पास आ बैठा दिखाई देता है। अब वह कालिया से भी मिलना चाहती है। वह अब कालिया से मिलने को अधीर है। अचानक उसे भूली याद की तरह जालिम ही याद आ जाता है और अचानक ही वह महसूसती है कि सर रॉजर्स से बातें करे। अचानक उसे लगता है कि ..
“कालिया कहां है?” सोफी पूछती है।
“कहीं गया है।” बतासो बताती है।
“कब लौटेगा?”
“राम जाने!” बतासो मुसकुराती है। “मन मौजी है। बिगड़ा हुआ है। मवाली कवाली है। इसका पता पाना तो परमेसर भी नहीं जानता सा!”
लौटेगा तो जरूर – सोफी स्वयं से कहती है। इंतजार करूंगी – वह एक निर्णय लेती है। बिना किसी पुष्ट प्रमाण के सर रॉजर्स से बात करना बेकार होगा। वह निर्णय कर लेती है कि ..
“पर ये राहुल कहां है?” वह अचानक अपने आप से प्रश्न पूछती है। राहुल उसे कहीं भी नहीं दिखा है। न जाने क्यों कल से ही वह गायब है। “पहले इस राहुल को खोजो, सोफी!” कोई उसके भीतर से आवाज देता है। “खोजो – ये तुम्हारा राहुल राठौर है कहां?”
सोफी एक नई चलाचली से भर आती है। अचानक उसे एक रास्ता मिल जाता है और अचानक ही उसे सब कुछ साफ-साफ नजर आने लगता है।
लेकिन राहुल नजर नहीं आता।
कहीं गुम है उसका राहुल राठौर!
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड