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कुछ टूटा सा तो है

आज फिर दिल मे कुछ टूटा सा तो है।
कोई अपना आज फिर रूठा सा तो है।

भ्रम था कि हाथ है उसका अभी हाथ मे
मगर आज देखा तो कुछ छूटा सा तो है।

भर गया बेशक दामन अपनी यादो से वो
लेकिन उसने कुछ मुझ से लूटा सा तो है।

राह तकते हार गयी है अब तो ये आँखे
मन मे अभी भीआस का बूटा सा तो है।

चाह सकता था तो, निभा भी सकता था
इस बात मे कुछ न कुछ झूठा सा तो है।

surinder kaur

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