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स्वामी अनेकानंद भाग 13

Swami Anekanand

कल्लू ने आनंद को फ्रांसिस के हवाले किया था और चला आया था।

चकित भ्रमित सा आनंद कई पलों तक खड़ा-खड़ा उस मुन्ना कोचिंग सेंटर को देखता रहा था। वहां सब कुछ था। उस घूमती फिरती चहल पहल में आनंद ने महसूसा था कि वहां वही लोग थे जो अंग्रेजी पढ़ने आए थे और वो लोग थे जो उन्हें अंग्रेजी पढ़ाने में लगे थे।

“आइए आनंद बाबू।” अचानक ही किसी ने उसे पुकारा था। “मैं फ्रांसिस!” उसने अपना नाम बताया था। “बैठिए।” उसने आदेश दिया था। आनंद कुर्सी पर बैठ गया था। “आपकी क्वालीफिकेशन?” फ्रांसिस ने पूछा था।

“एम ए!” आनंद ने बेहिचक उत्तर दिया था। “एम ए इन हिस्ट्री।” उसने फिर से कहा था।

लंबे लमहों तक फ्रांसिस आनंद को घूरता ही रहा था। वह कुछ सोचता रहा था, समझता रहा था और फिर एक छोटे सोच के बाद बोला था।

“हिंदी मीडियम ..?” वह तनिक हंसा था। “रोना यही है – आनंद बाबू कि हम पढ़े लिखे भी अनपढ़ हैं। क्या फायदा हुआ? आधी उम्र गंवा कर आप ..?”

एक चुप्पी थी उन दोनों के बीच। लेकिन आनंद को क्रोध चढ़ने लगा था। वह उस व्यक्ति फ्रांसिस को ललकारना चाहता था लेकिन चुप था। वह चुप था – क्योंकि उसे नौकरी चाहिए थी। वह महसूस रहा था कि ये देश फिर से गुलाम होगा।

“नीलू।” फ्रांसिस ने पुकारा था। एक मझोले कद की लड़की चली आई थी। “ये मिस्टर आनंद आज से आपके स्टूडेंट।” वह बताने लगा था। “एलीमेंटरी से शुरू कराएं – इन्हें।” उसने आदेश दिया था। “इनके साथ जाइए आनंद बाबू।” कहते-कहते वो उठ गए थे।

नीलू आनंद को ले कर अपने क्यूबीकल में लौट आई थी। ये एक तरह का औजार जैसा था। अब नीलू ने काम आरंभ किया था।

“ये आज के लिए पांच वाक्य हैं, आनंद बाबू।” नीलू बता रही थी। “यहां बैठिए। इनको दस-दस बार लिखिए। फिर इनको रट लीजिए। इसके बाद मैं आपकी आवाज में इनको रिकॉर्ड करूंगी और आपको सुनाऊंगी। फिर आप इन्हीं को मेरी आवाज में सुनेंगे और देखेंगे कि ..”

आनंद को काम से लगा कर नीलू चली गई थी।

वाक्य लिखते-लिखते आनंद को बर्फी याद हो आई थी। उसने नीलू के चेहरे में बर्फी को तलाशा था – पर कहीं गुम हो गया था – सब कुछ। कुछ भी तोड़ मोड़ करने के बाद बर्फी के चेहरे को जोड़ गांठ न कर पा रहा था। उसका मन अब वहां न था। वह बे मन उन वाक्यों को लिख रहा था।

फ्रांसिस आ गया था।

“कैसा लग रहा है आनंद बाबू।” फ्रांसिस ने हंस कर पूछा था।

“बुरा।” मुंह बिचका कर कहा था आनंद ने। “बहुत बुरा।” उसकी आवाज धीमी थी। “मुझे तो समझ नहीं आता कि ..” चुप हो गया था आनंद।

फ्रांसिस एक अनुभवी शिक्षक था। उसने आनंद की मनोदशा जान ली थी और उसने अनुमान भी लगा लिया था कि अगर आनंद ने अंग्रेजी सीख ली और उसकी बताई मैनोरिज्म ले ली तो आनंद बाबू के मुकाबले का युवक ढूंढे न मिलना था।

देखिए आनंद बाबू!” फ्रांसिस संभल कर बोला था। “आपने स्वामी विवेकानंद का नाम तो सुना होगा?” उसने पूछा था।

“नाम ही नहीं – मैं उनका पूरा इतिहास जानता हूँ।” आनंद ने उत्साहित होते हुए कहा था। “और मैं जानता हूँ कि विवेकानंद एक ब्रह्मचारी थे, एक वेदांती थे ..”

“और क्या ये भी कि उन्होंने शिकागो में अपने भाषण में क्या कहा था।”

“हां-हां मैं जानता हूँ।”

“और ये भी कि वो अंग्रेजी में बोले थे। कैसे ..? ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका – फ्रांसिस ने नमूना देते हुए बताया था। “और अंग्रेजों के खिलाफ भी थे विवेकानंद?” फ्रांसिस बता रहा था। “अंग्रेजी एक ऐसी भाषा है आनंद बाबू जो आपको हर तरह के भवसागर से पार उतार देगी।” हंस रहा था फ्रांसिस। “मन लगा कर सीख लो।” उसकी राय थी। “देर आए दुरुस्त आए।” जुमला कह कर वो उठ गया था।

एक सुंदर सपना अचानक ही आनंद की आंखों के सामने लहक गया था।

“लिख लिया ..?” नीलू आ धमकी थी। “देखूं।” उसने आनंद बाबू का लिखा देखा था। “ठीक है। हैंड तो पूअर है।” वह बोली थी। “कोई नहीं, सुधर जाएगा।” उसने हंसते हुए आनंद को घूरा था। “चलिए। आपकी वॉइस रिकॉर्ड करते हैं।” उसने आनंद को अगला कदम बताया था।

आनंद कोशिश करते हुए उन वाक्यों को कठिनाई से रिकॉर्ड करा पाया था। और जब उसने अपनी आवाज सुनी थी तो वह सनाका खा गया था। उसकी जुबान तो टूट ही न पा रही थी। वह बहुत कुछ अड्ड बड्ड बोल गया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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