Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

इशक की महक

आती है महक इशक की फिजाओ से
खत मेरे खुलेआम क्यू जला देते हो।

याद तुम्हारी हमे बहुत आने लगी है,
तुम जाने कैसे हम को भुला देते हो।

मौत की कगार पर पहुंचा कर हमे
फिर क्यू जिंदगी की दुआ देते हो।

आवाज कभी सुन न पाये हमारी,
अब क्यू पीछे से हमे सदा देते हो।

आसां नही थी कभी यू तो जिंदगी ,
थोड़ा हस कर क्यू मुझे रूला देते हो।

सुरिंदर कौर

Exit mobile version