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रजिया भाग 1

रज़िया, Razia

“जालिम ..?” लैरी ने पुकारा है तो मैं अपनी डैस्क से उछल पड़ती हूँ। “पूरा नहीं हुआ हुलिया?” वह पूछ रहा है।

रात का एक बजा है। पूरा अमरीका सो रहा है। लेकिन हमारा रतजगा चल रहा है। जालिम को लेकर हम कितने भयभीत हैं – कोई हम से पूछे।

“कुछ भी अता पता नहीं लग पा रहा है, सर!” मैं होश में आ कर बताती हूँ। “है तो कोई भयंकर सा आदमी। जैसे कोई ..”

“गन टौटिंग क्रिमिनल?” लैरी मेरी बात को आगे बढ़ाता है। “मारता .. खाता .. उजाड़ता और विध्वंस करता कोई एक अनैतिक सा तूफान ..?”

“लेकिन अभी तक कोई इसकी शक्ल ही नहीं बन पाई है।” मैं असमर्थता जताती हूँ।

“प्रेस की क्या खबर है?”

“यही कि जालिम हम पर – माने कि अमेरिका पर भारी होता जा रहा है। वह बिन लादेन से भी बड़ा खतरा साबित हो सकता है।”

“कैसे?”

“इस जालिम ने तो जुर्म ही जुर्म ढाए हैं। यह तो किसी को बख्श्ता ही नहीं।” कह कर मैं चुप हो गई हूँ।

मेरी डैस्क के सामने खड़ा-खड़ा लैरी निराशा के अथाह समुद्र में डूबने लगा है। अब जालिम का आतंक उसके दिमाग पर भी मेरे दिमाग की ही तरह असर करने लगा है।

“इराक से क्या खबर है?” मैं भी अब अपने संदर्भ सूत्र टटोलने लगती हूँ। “क्या जालिम ईराक में है?” मैं सीधा प्रश्न पूछती हूँ।

“नहीं। कोई पुष्ट सूचना नहीं। जिस पर शक था वह और ही टारगेट है।”

लैरी मुझे घूरता है। वो भी जानता है कि जालिम का पता ठिकाना कहीं मिल ही नहीं रहा है। यमन से आई रिपोर्ट के बारे पूछता है। यमन से रिपोर्ट आ तो गई है लेकिन नैगेटिव है।

“अगर पकड़ा नहीं जाएगा तो यह अकेला जालिम पूरे विश्व को निगल जाएगा।” लैरी मुझे सतर्क करता है। “यह सही सूचना समझो कि इसने पूरी दुनिया को ग्यारह ठिकानों में बांट कर पूरे विश्व को निगलने की योजना तैयार कर डाली है।”

“ग्यारह ठिकाने ही क्यों?” मैं पूछ लेती हूँ।

“ये तो मैं भी नहीं जानता।” लैरी साफ-साफ बताता है। “लेकिन इस अकेले आदमी के दिमाग की ही ये उपज है। स्लीपर बम लगा कर सो गया है, और हम हैं कि ..”

“जागते ही रहेंगे जब तक कि ..?”

“हां। जब तक कि जालिम हमारे चंगुल में न आ जाए।”

“पाकिस्तान को क्यों नहीं बताते?” मैं सुझाव देती हूँ।

“बेकार है। वह पाकिस्तान-अफगानिस्तान से कोसों दूर है। वह किसी पहाड़ी के पीछे कहीं घात लगा कर बैठा है। किसी नई जमीन पर जमा है। कहीं ..”

“राष्ट्रपति के सुबह के नाश्ते पर क्या परोसोगे?” मैं पूछती हूँ।

“निराशा – और क्या?” कह कर लैरी चला जाता है।

रात के इस अवसान में मैं बहुत अकेली छूट जाती हूँ। आस पास सब गुलजार है, फिर भी मैं अकेली हूँ – बहुत अकेली।

जालिम का रूप स्वरूप एक बार फिर से जेहन में उग कर कोई इमेज बना देना चाहता है, लेकिन कैसे? वह कितना जालिम होगा, कोई नहीं जानता।

मैं जालिम की फाइल को फिर से खोल कर बैठ जाती हूँ। एक बड़ी मोटी रकम आज तक जालिम के नाम पर खर्च हो चुकी है। और भी कितना खर्चा होगा कौन जाने? फिर भी जालिम तो है ही जालिम। मरेगा भी तो भी लेकर ही डूबेगा।

अचानक ही मुझे अपने ऊपर रोष हो आता है।

मुझे क्या जरूरत थी यह सब जहमत उठाने की? पिताजी ने मेरे लिए तो इतना धन कमा लिया है कि मुझे तो कोई काम करने की जरूरत भी नहीं है। सोलह साल की छोटी उम्र में मेरे सारे शौक पूरे हो चुके हैं। मैं रॉबर्ट के साथ रात-रात भर नाच चुकी हूँ। मैंने सब कुछ खा पी कर देख लिया है। मैंने पूरे विश्व का भ्रमण भी कर लिया है। फिर मुझे क्या जरूरत है जो मैं ..?

“स्कैच की जरूरत है। जैसा भी हो निकाल दो।” रस्टी ने मांग की है। “जालिम ..?” वह रुका है। उसने मुझे घूरा है। “बॉस हैज टू आनसर।” वह बताता है।

“ये लो!” मैं उसे जालिम का स्कैच थमा देती हूँ। एकदम भुतहा सा स्कैच बना है। सब कुछ गड्मड्ड है। नाक नक्श तक ठीक नहीं आए हैं। लेकिन हॉं, ऑंखें बहुत ही हिंसक बन गई हैं। “लगता तो है निरा ही हत्यारा।” मैं स्वयं से कह गई हूँ।

“लुक्स लाइक ए बिग बास्टर्ड।” रस्टी ने भी उसे गरियाया है। “कित्ता हरामी होगा, कौन जाने?” कहते हुए वह चला गया है।

मैं फिर से अपने आप को कोसने लगती हूँ।

“जासूसी का नशा पालने का परिणाम कोई अच्छा तो होगा नहीं।” अब मेरा विवेक मुझे बता रहा है। “जान मान कर तुमने अपनी जान मुसीबत में झोंकी है। तुम्हें जरूरत क्या थी .. जो ..?”

“थी!” मैं स्वयं को उत्तर देती हूँ। “जरूरत थी।” मैं कह जाती हूँ। “मेरे मन को जो उचाट-उचाट रहने लगा था, एक इसी तरह के जोखिम भरे काम की जरूरत थी। अब कहॉं भागता है – मेरा मन? अब तो डैस्क से चिपका खड़ा रहता है और जालिम के ही बारे दिन रात सोचता है। सारी अइयाशी भूल कर अब ये जालिम के लिए ..”

“जालिम नाइजीरिया में भी नहीं है।” मुझे सूचना मिलती है। “ये भी नैगेटिव है। नाइजीरिया वाला तो कब का मर चुका। उसे तो उड़ा दिया।” एक और निराशा आ कर बैठ जाती है मेरे पास।

आज की रात भी यूं ही गारत हो जाएगी। कल मेरा मन फिर पूरे दिन कुंद रहेगा। फिर मुझे डैस्क पर लौटने की जल्दी होगी और फिर मुझे ..

अजीब शौक है ये जासूसी भी। सच कहूँ तो मुझे अब एक तरह से इस काम में आनंद भी आने लगा है। एक तरह से ये भी मेरी एक खोज है। मैं चाहती थी – कुछ करना। कुछ ऐसा करना जिसमें मेरा नाम हो। कुछ ऐसा – जो अनोखा हो, कुछ ऐसा जिसमें जान पर बन आए और मैं जान बचाने के लिए भागूं ..

वैसे तो मुझे सर्व सुख है। मैं पैसे की भूखी नहीं हूँ। मेरे पिताजी साल में एक ही सौदे में अल्लम-खल्लम कमा लेते हैं। मैं उनकी इकलौती और प्रिय बेटी हूँ। उनका सब कुछ मेरा ही है।

हां! मेरी मां का मुझे पता ठिकाना तक याद नहीं है।

अकेली थी – मैं, अब अकेली नहीं हूँ। अब तो जालिम मेरे साथ है – हर पल, हर दिन। हर पल हर दिन देखती हूँ इसे और जालिम को लेकर मैं न जाने कहां तक जीती चली जाती हूँ।

“जालिम को लेकर कल हंगामा होगा।” लैरी आ कर मुझे बताता है। “तुम तो शायद बच भी जाओ लेकिन बेचारा बॉस ..?” वह कंधे उचका कर कहता है। “नो चांस।” वह फिर से आंखें मटकाता है। “ही मे लूज हिज जॉब।” वह एक खतरनाक बात कह देता है।

अब मैं क्या करूं? अगर मेरी डैस्क से भी जालिम जाता रहा तो मैं भी क्या कर पाउंगी? जालिम ऊपर ही ऊपर चढ़ता चला जा रहा है। कितना बड़ा खतरा है वह कौन जाने?

“जालिम को मैं नहीं जाने दूंगी।” न जाने क्यों मैं एक शपथ जैसी लेती हूँ। “यह मेरा टारगेट था और अब यही मेरा मिशन होगा।” मैं स्वयं से कहती लगती हूँ। “इसे मेरे बिना और कोई मारने ही न पाएगा।” मैं एक भविष्य वक्ता बन बैठी हूँ।

अब तो कल ही देखते हैं कि क्या होता है।

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